नवरात्र मे माँ बगलामुखी का जितना अधिक जप हो सके उतना ही अच्छा …

01 अक्टूबर 2016 से माँ के नवरात्र के साथ ही नया उत्‍साह नई उमंग जाग गई, सोया मार्किट जाग गया। वही यह समय सभी साधको के लिए बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इस काल में की गयी उपासना का विशेष फल प्राप्त होता है। जो लोग अभी तक किसी कारण से कोई अनुष्ठान अथवा पुरश्चरण नहीं कर सके है उन्हे कल से वह अवश्य शरू कर देना चाहिए। यह जरुरी नहीं है कि नवरात्र में केवल माँ दुर्गा की ही उपासना की जाती है बल्कि इस समय आप किसी भी इष्ट देवता के मंत्रो का अनुष्ठान कर सकते है।
नवरात्र के पहले दिन अपने गुरु देव से मंत्र दीक्षा लेकर, उसका अनुष्ठान करना चाहिए। कुछ साधको के मन में एक प्रश्न रहता है कि क्या नवरात्र में शरू किया गया अनुष्ठान नवरात्र मे ही पूर्ण करना जरुरी है , नहीं ऐसा बिल्कुल नहीं है। ये अनुष्ठान आप २१ अथवा ४० दिन में भी पूर्ण कर सकते है लेकिन यदि हो सके तोअंतिम नवरात्र तक पूर्ण कर लेना चाहिए। यदि किसी कारण से अनुष्ठान करना सम्भव नहीं है तो नवरात्र में जितना अधिक जप हो सके उतना ही अच्छा है।
ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।।
नवरात्र मे अपने इष्ट देव के सहस्रनाम से अर्चन करना चाहिए। सहस्त्रनाम मे देवी/देवता के एक हजार नाम होते है। इसमे उनके गुण व कार्य के अनुसार नाम दिए गए हैं। सर्व कल्याण व कामना पूर्ति हेतु इन नामो से अर्चन करने का प्रयोग अत्यधिक प्रभावशाली है। जिसे सहस्त्रार्चन के नाम से जाना जाता है। सहस्र नामावली के एक-एक नाम का उच्चारण करके देवी की प्रतिमा पर, उनके चित्र पर, उनके यंत्र पर या देवी का आह्वान किसी सुपारी पर करके प्रत्येक नाम के उच्चारण के पश्चात नमः बोलकर देवी की प्रिय वस्तु चढ़ाना चाहिए। जिस वस्तु से अर्चन करना हो वह शुद्ध, पवित्र, दोष रहित व एक हजार से अधिक संख्या में होनी चाहिए।अर्चन मे बिल्वपत्र, हल्दी, केसर या कुंकुम से रंग चावल, इलायची, लौंग, काजू, पिस्ता, बादाम, गुलाब के फूल की पंखुड़ी, मोगरे का फूल, चारौली, किसमिस, सिक्का आदि का प्रयोग शुभ व देवी को प्रिय है। यदि अर्चन एक से अधिक व्यक्ति एक साथ करें तो नाम का उच्चारण एक व्यक्ति को तथा अन्य व्यक्तियों को नमः का उच्चारण अवश्य करना चाहिए।सहस्त्रनाम के पाठ करने का फल भी महत्वपूर्ण है। अर्चन की सामग्री प्रत्येक नाम के पश्चात, प्रत्येक व्यक्ति को अर्पित करनी चाहिए। अर्चन के पूर्व पुष्प, धूप, दीपक व नैवेद्य देवी/देवता को अर्पित करना चाहिए। दीपक पूरी अर्चन प्रक्रिया तक प्रज्वलित रहना चाहिए। जो लोग शत्रु बाधा,व्यापार का ठप होना अथवा ऊपरी बाधा गृह क्लेश एवं अन्य उपद्रवों एवं तंत्र प्रयोगो से ग्रस्त हैं उन्हें नवरात्र में माँ बगलामुखी अथवा माँ प्रत्यंगिरा का अनुष्ठान अवश्य कराना चाहिए।
माँ बगलामुखी रोग शोक और शत्रु को समूल नष्ट कर देती है,,प्रबल से प्रबल शत्रु भी इनके साधक और उपासको के आगे पानी भरते हैं,और कोई इनके उपासको का बाल भी बंका नही कर सकता है, कलियुग में इनकी साधना उपासना तुरंत फलदायी होती है तथा यह विजय की देवी हैं इनके भक्त कभी पराजय का मुंह नही देखते,देश के जाने माने अधिकांश राजनेता और राजनीती करने वाले व्यक्ति इनके उपासक है, जो अपनी चुनाव विजय तथा शत्रुओ के पराभव के लिए गुप्त रूप से इनके तांत्रिक अनुष्ठान हवन पूजन आदि कराते है। ये स्तम्भन की देवी भी है। कहा जाता है कि सारे ब्रह्मांड की शक्ति मिलकर भी इनका मुकाबला नहीं कर सकती। शत्रु नाश, वाक सिद्धि, वाद-विवाद में विजय के लिए देवी बगलामुखी की उपासना की जाती है।
♦ बगलामुखी देवी को प्रसन्न करने के लिए 36 अक्षरों का बगलामुखी महामंत्र :
‘ऊं हल्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय, जिहवां कीलय बुद्धिं विनाशय हल्रीं ऊं स्वाहा’ का जप करे।
हल्दी की माला पर करना चाहिए।सभी मनुष्यो को जीवन में एक बार माँ बगलामुखी का अनुष्ठान ,हवन ,पूजन अवश्य कराना चाहिए।इनके हवन में पिसी हुई शुद्ध हल्दी,मालकांगनी, काले तिल,गूगल,पीली हरताल,पीली सरसो, नीम का तेल, सरसो का तेल,बेर की लकड़ी,सूखी साबुत लाल मिर्च आदि भिन्न 2 सामग्रियों का उपयोग भिन्न 2 कामनाओ के लिए किया जाता है।
तांत्रिक पद्धति से किया गया माँ बगलामुखी का यज्ञ/हवन-पूजन त्वरित और तीव्र परिणाम देता है।नलखेड़ा (मध्यप्रदेश) स्थित प्राचीन माँ बगलामुखी सिद्धपीठ पर यह अनुष्ठान संपन्न होते है। इस सिद्ध पीठ की स्थापना महाभारत युद्ध के समय भगवान श्री कृष्ण के सुझाव पर पांडव वंश के युवराज युधिष्ठिर  द्वारा की गयी थी।  यह शमशान क्षेत्र मे स्थित स्वयंभू प्रतिमा बहुत चमत्कारी हैं।
जिला आगर  (म.प्र.) स्थित नलखेड़ा नगर का धार्मिक एवं तांत्रिक द्रिष्टि से महत्त्व है। तांत्रिक साधना के लिए उज्जैन के बाद नलखेड़ा का नाम आता है। कहा जाता है की जिस नगर में माँ बगलामुखी विराजित हो , उस नगर , को संकट देख भी नहीं पाता। बताते है की यहाँ स्वम्भू माँ बगलामुखी की मूर्ति महाभारत काल की है। पुजारी के दादा परदादा ही पूजन करते चले आ रहे हैं | यहाँ श्री पांडव युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण के निर्देशन पर साधना कर कौरवों पर विजय प्राप्त की थी | यह स्थान आज भी चमत्कारो मे अपना स्थान बनाये हुए है | देश विदेश से कई साधू- संत आदि आकर यहाँ तंत्र –मन्त्र साधना करते है , माँ बगलामुखी की साधना करते है। माँ बगलामुखी की साधना जितनी सरल है तो उतनी जटिल भी है। माँ बगलामुखी वह शक्ति है, जो रोग शत्रुकृत अभिचार तथा समस्त दुखो एवं पापो का नाश करती है। 
इस मंदिर में त्रिशक्ति माँ विराजमान है , ऐसी मान्यता है की मध्य मे माँ बगलामुखी दायें माँ लक्ष्मी तथा बायें माँ सरस्वती है।  त्रिशक्ति माँ का मंदिर भारत वर्ष में कहीं नहीं है। मंदिर मे बेलपत्र , चंपा , सफ़ेद आकड़े ,आंवले तथा नीम एवं पीपल ( एक साथ ) पेड़ स्थित है जो माँ बगलामुखी के साक्षात् होने का प्रमाण है | मंदिर के पीछे नदी ( लखुन्दर पुरातन नाम लक्ष्मणा ) के किनारे कई समाधियाँ ( संत मुनिओं की ) जीर्ण अवस्था में स्थित है , जो इस मंदिर मे संत मुनिओं का रहने का प्रमाण है | मंदिर के बाहर सोलह खम्भों वाला एक सभामंडप भी है जो आज से 252 वर्षों से पूर्व संवत 1816 मे पंडित ईबुजी दक्षिणी कारीगर श्रीतुलाराम ने बनवाया था | इसी सभामंड़प मे माँ की ओर मुख करता हुआ कछुआ बना हुआ है , जो यह सिद्ध करता है की पुराने समय मे माँ को बलि चढ़ाई जाती थी मंदिर के ठीक सम्मुख लगभग 80 फीट ऊँची एक दीप मालिका बनी हुई है | यह कहा जाता है की मंदिरों में दीप मालिकाओं का निर्माण राजा विक्रमादित्य द्वारा ही किया गया था | मंदिर के प्रांगन में ही एक दक्षिणमुखी हनुमान का मंदिर एक उत्तरमुखी गोपाल मंदिर तथा पूर्वर्मुखी भैरवजी का मंदिर भी स्थित है , मंदिर का मुख्या द्वार सिंह्मुखी है , जिसका निर्माण 18 वर्ष पूर्व कराया गया था | माँ की कृपा से सिंहद्वार भी अपने आप मे अद्वितिए बना है , श्रद्धालु यहाँ तक कहते हैं की माँ के प्रतिमा के समक्ष खड़े होकर जो माँगा है , वह हमें मिला है हम माँ के द्वार से कभी खाली हाथ नहीं लौटे है |
व्यक्ति को अपने जीवन में माँ बगलामुखी(ब्रह्मास्त्र विद्या) का एक बार आश्रय लेकर इनकी शक्ति का प्रमाण और परिणाम अवश्य देखना चाहिए!
माँ बगलामुखी का एक प्रसिद्ध नाम श्री पीताम्बरा भी है। यह त्रिपुर सुंदरी शक्ति श्री विष्णु की आराधना से ही माता बगला के रूप मे प्रकट हुईं। यह वैष्णवी शक्ति हैं।यह शिव मृत्युंजय की शक्ति कहलाती है। यह सिद्ध विद्या श्रीकुल की ब्रह्म विद्या है। दश महाविद्या में आद्या महाकाली ही प्रथम उपास्य है। इनकी कृपा हो तो साधना में शीघ्र लाभ प्राप्त होता है। इनकी साधना वाम या दक्षिण मार्ग से किया जाता है, परंतु बगला शक्ति विशेषकर दक्षिण मार्ग से ही उपास्य हैं। श्री बगला पराशक्ति की साधना अति गोपनीयता के साथ की जाती है। इनकी उपासना ऋषि-मुनि के अतिरिक्त देवता भी करते है। श्री स्वामी द्वारा लिखित पुस्तक ‘श्री बगलामुखी रहस्य’ अति सुंदर और साधकों के लिए कृपा स्वरूप है। श्री बगलामुखी के साधक को गंभीर एवं निडर होने के साथ-साथ शुद्ध एवं सरल चित्त का होना चाहिए।
❄ श्री बगला स्तंभन की देवी भी है त्रिशक्ति रूप के कारण स्तंभन के साथ-साथ भोग एवं मोक्षदायिनी भी है।
❄ बगलामुखी की साधना बिना गुरु के भूल कर भी नहीं करनी चाहिए, अन्यथा थोड़ी सी भी चूक से साधक के समक्ष गंभीर संकट उपस्थित हो जाता है।
❄ मणिद्वीप वासिनी काली भुवनेश्वरी माता ही बगलामुखी हैं।
❄ इनकी अंग पूजा में शिव, मृत्युंजय, श्री गणेश, बटुक भैरव और विडालिका यक्षिणी का पूजन किया जाता है। कई जन्मों के पुण्य प्रताप से ही इनकी उपासना सिद्ध होती है।
❄ विद्वानों का मत है कि विश्व की अन्य सारी शक्तियां संयुक्त होकर भी माता बगला की बराबरी नहीं कर सकती है। इनके मंत्र का जप सिद्ध गुरु के मार्गदर्शन में ही करना चाहिए। इनके मंत्र के जप से अनेक प्रकार की चमत्कारिक अनुभूतियां होने लगती हैं। अलग-अलग कामनाओं की सिद्धि हेतु जप के लिए हरिद्रा, पीले हकीक या कमलगट्टे की माला का प्रयोग करना चाहिए। देवी को चंपा, गुलाब, कनेल और कमल के फूल विशेष प्रिय हैं। इनकी साधना किसी शिव मंदिर या माता मंदिर मे अथवा किसी पर्वत पर या पवित्र जलाशय के पास गुरु के सान्निध्य में विशेष सिद्धिप्रद होता है।
❄ वैसे घर में भी किसी एकांत स्थान पर दैनिक उपासना की जा सकती है। श्री बगला के एकाक्षरी, त्रयाक्षरी, चतुराक्षरी, पंचाक्षरी, अष्टाक्षरी, नवाक्षरी, एकादशाक्षरी और षट्त्रिंशदाक्षरी मंत्र विशेष सिद्धिदायक हैं। सभी मंत्रों का विनियोग, न्यास और ध्यान अलग-अलग हैं। इनके अतिरिक्त 80, 100, 126 अक्षरों मंत्रों के साथा 514 अक्षरों के बगला माला मंत्र की भी विशेष महिमा है। 666 अक्षर का ब्रह्मास्त्र माला मंत्र भी है। इसके अलावा और भी अनेकानेक मंत्र हैं, जिनका उल्लेख सांखयायन तंत्र में मिलता है।
❄मनोकामना की सिद्धि के लिए बगला स्तोत्र, कवच और बगलास्त्र का गोपनीय पाठ भी किया जाता है।
❄साथ ही बगला गायत्री और कीलक भी है। घृत, शक्कर, मधु और नमक से हवन करने पर आकर्षण होता है।
❄शहद, शक्कर मिश्रित दूर्वा, गुरुच और धान के लावा से हवन करने पर रोगों से मुक्ति मिलती है। कार्य विशेष के लिए विशेष माला, विशेष मंत्र और विशेष हवन का विशेष प्रयोग होता है।
यदि आप के भी शत्रु औकात से बाहर हों दुश्मन आप पर भारी पड़ रहे हों, पानी सर के ऊपर से गुज़र रहा हो व्यापर बिलकुल ठप हो गया हो, उच्च अधिकारी उत्पीड़न कर रहे हो,भुत प्रेत उपद्रव कर रहे हो कही से कोई आशा की किरण नही नज़र आ रही हो कोई मार्ग नही सूझ रहा हो तो आप भी माँ बगलामुखी की साधना पूजा, हवन,अर्चना,एवं अनुष्ठान करके माँ की कृपा प्राप्त करे और अपने गुप्त प्रत्यक्ष सूक्ष्म स्थूल समस्त शत्रुओ को माँ की कृपा से नष्ट करते हुए विषम परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करते हुए ईश्वरीय ऊर्जा से परिपूर्ण नवरात्रि में माँ की विशेष शक्ति का अनुभव करे ।
बगलामुखी स्तोत्र के अनुसार देवी समस्त प्रकार के स्तंभन कार्यों हेतु प्रयोग मे लायी जाती हैं जैसे, अगर शत्रु वादी हो तो गूगा, छत्रपति हो तो रंक, दावानल या भीषण अग्नि कांड शांत करने हेतु, क्रोधी का क्रोध शांत करवाने हेतु,धावक को लंगड़ा बनाने हेतु, सर्व ज्ञाता को जड़ बनाने हेतु, गर्व युक्त के
गर्व भंजन करने हेतु। साधारण तौर पर व्यक्ति कितना भी अच्छा कर्म करे निंदा चर्चा करने वाले या अहित कहने वाले उस के बनेंगे ही, ऐसे परिस्थिति में देवी बगलामुखी की कृपा ही समस्त निंदको, अहित कहने वालों के मुख या कार्य का स्तंभन करती है।
*कही तीव्र वर्षा हो रही हो या भीषण अग्नि कांड हो गया हो, देवी का साधक बड़ी ही सरलता से समस्त प्रकार के कांडो का स्तंभन कर सकता है।
* बामा ख्यपा ने अपने माता के श्राद्ध कर्म में इसी प्रकार तीव्र वृष्टि का स्तंभन किया था।
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 ♦ श्री बगलामुखी देवी के दुर्लभ मंत्र :
 इस मंत्र से काम्य प्रयोग भी संपन्न किये जाते है जैसे : 
मधु. शर्करा युक्त तिलों से होम करने पर मनुष्य वश में होते है। मधु. घृत तथा शर्करा युक्त लवण से होम करने पर आकर्षण होता है। तेल युक्त नीम के पत्तों से होम करने पर विद्वेषण होता है।हरिताल, नमक तथा हल्दी से होम करने पर शत्रुओं का स्तम्भन होता है। भय नाशक मंत्र : 
अगर आप किसी भी व्यक्ति वस्तु परिस्थिति से डरते है और अज्ञात डर सदा आप पर हावी रहता है तो देवी के भय नाशक मंत्र का जाप करना चाहिए…
ॐ ह्लीं ह्लीं ह्लीं बगले सर्व भयं हन।।
पीले रंग के वस्त्र और हल्दी की गांठें देवी को अर्पित करें। पुष्प,अक्षत,धूप दीप से पूजन करे। रुद्राक्ष की माला से 6 माला का मंत्र जप करे। दक्षिण दिशा की और मुख रखे।
♦ शत्रु नाशक मंत्र :
अगर शत्रुओं नें जीना दूभर कर रखा हो, कोर्ट कचहरी पुलिस के चक्करों से तंग हो गए हों, शत्रु चैन से जीने नहीं दे रहे, प्रतिस्पर्धी आपको परेशान कर रहे है तो देवी के शत्रु नाशक मंत्र का जाप करना चाहिए।
ॐ बगलामुखी देव्यै ह्लीं ह्रीं क्लीं शत्रु नाशं कुरु ।
नारियल काले वस्त्र में लपेट कर बगलामुखी देवी को अर्पित करे।मूर्ती या चित्र के सम्मुख गुगुल की धूनी जलाये।रुद्राक्ष की माला से 5 माला का मंत्र जप करे।मंत्र जाप के समय पश्चिम कि ओर मुख रखे।
♦ जादू टोना नाशक मंत्र :
यदि आपको लगता है कि आप किसी बुरु शक्ति से पीड़ित हैं, नजर जादू टोना या तंत्र मंत्र आपके जीवन मे जहर घोल रहा है, आप उन्नति ही नहीं कर पा रहे अथवा भूत प्रेत की बाधा सता रही हो तो देवी के तंत्र बाधा नाशक मंत्र का जाप करना चाहिए।
ॐ ह्लीं श्रीं ह्लीं पीताम्बरे तंत्र बाधाम नाशय नाशय।।
आटे के तीन दिये बनाये व देसी घी ड़ाल कर जलाएं।
कपूर से देवी की आरती करे।रुद्राक्ष की माला से 7 माला का मंत्र जप करे। मंत्र जाप के समय दक्षिण की और मुख रखे।
♦ प्रतियोगिता परीक्षा मे सफलता का मंत्र :
आपने कई बार इंटरव्‍यू या प्रतियोगिताओं को जीतने की कोशिश की होगी और आप सदा पहुँच कर हार जाते हैं, आपको मेहनत के मुताबिक फल नहीं मिलता, किसी क्षेत्र में भी सफल नहीं हो पा रहे, तो देवी के साफल्य मंत्र का जाप करे।
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं बगामुखी देव्यै ह्लीं साफल्यं देहि देहि स्वाहा: ।।
बेसन का हलवा प्रसाद रूप में बना कर चढ़ाएं।देवी की प्रतिमा या चित्र के सम्मुख एक अखंड दीपक जला कर रखे।रुद्राक्ष की माला से 8 माला का मंत्र जप करे। मंत्र जाप के समय पूर्व की और मुख रखें।
♦ बच्चों की रक्षा का मंत्र :
यदि आप बच्चों की सुरक्षा को ले कर सदा चिंतित रहते हैं, बच्चों को रोगों से, दुर्घटनाओं से, ग्रह दशा से और बुरी संगत से बचाना चाहते है तो देवी के रक्षा मंत्र का जाप करना चाहिए।
ॐ हं ह्लीं बगलामुखी देव्यै कुमारं रक्ष रक्ष ।।
देवी माँ को मीठी रोटी का भोग लगायें। दो नारियल देवी माँ को अर्पित करे। रुद्राक्ष की माला से 6 माला का मंत्र जप करे। मंत्र जाप के समय पश्चिम की ओर मुख रखें।
♦ लम्बी आयु का मंत्र :
यदि आपकी कुंडली कहती है कि अकाल मृत्यु का योग है, या आप सदा बीमार ही रहते हो, अपनी आयु को ले कर परेशान हों तो देवी के ब्रह्म विद्या मंत्र का जाप करना चाहिए…
ॐ ह्लीं ह्लीं ह्लीं ब्रह्मविद्या स्वरूपिणी स्वाहा:।।
पीले कपडे व भोजन सामग्री आता दाल चावल आदि का दान करे। मजदूरों, साधुओं,ब्राह्मणों व गरीबों को भोजन खिलाये। प्रसाद पूरे परिवार में बाँटे। रुद्राक्ष की माला से 5 माला का मंत्र जप करे।
मंत्र जाप के समय पूर्व की ओर मुख रखें।
♦ बल प्रदाता मंत्र :
यदि आप बलशाली बनने के इच्छुक हो अर्थात चाहे देहिक रूप से, या सामाजिक या राजनैतिक रूप से या फिर आर्थिक रूप से बल प्राप्त करना चाहते हैं तो देवी के बल प्रदाता मंत्र का जाप करना चाहिए…
ॐ हुं हां ह्लीं देव्यै शौर्यं प्रयच्छ ।।
पक्षियों को व मीन अर्थात मछलियों को भोजन देने से देवी प्रसन्न होती है। पुष्प सुगंधी हल्दी केसर चन्दन मिला पीला जल देवी को को अर्पित करना चाहिए। पीले कम्बल के आसन पर इस मंत्र को जपे। रुद्राक्ष की माला से 7 माला मंत्र जप करे।
मंत्र जाप के समय उत्तर की ओर मुख रखे।
♦ सुरक्षा कवच का मंत्र :
प्रतिदिन प्रस्तुत मंत्र का जाप करने से आपकी सब ओर रक्षा होती है, त्रिलोकी मे कोई आपको हानि नहीं पहुंचा सकता ।
ॐ हां हां हां ह्लीं बज्र कवचाय हुम देवी माँ को पान मिठाई फल सहित पञ्च मेवा अर्पित करे। छोटी छोटी कन्याओं को प्रसाद व दक्षिणा दे। रुद्राक्ष की माला से 1 माला का मंत्र जप करे।
मंत्र जाप के समय पूर्व की ओर मुख रखे ।
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श्री पित्ताम्बरा बगलामुखी रहस्य : 
( ब्रह्मास्त्र विद्या दर्शन ) बगलामुखी एक प्रचलित विद्या है ||
इसका मूल संदर्भ आगम निगम तंत्र से मिलता है इनके प्रयोग और कर्मकांड के विषय मे पुस्तक भर भर के लिखा हुआ है पर इनका रहस्य सिर्फ सिद्धो तक परम्परागत गुरु मार्गीय रह गया है। यह विज्ञानं सिर्फ गुरु के मार्ग पर जीवन समर्पित करने वालो को ही प्राप्त होता है यह देवी जिह्वा स्तम्भन कारिणी है। इसका कारण यही है के इसके साधक बनते ही यह पीतवर्ण देवी सबको पिला कर देती है यह देवी तेजोमय है इसके साधक में भी इतना तेज आ जाता है की वो इर्षा का भोग बनता है और शत्रु जैसे चीटिया हो वैसे उभर आते है। इसका कारण समजो पहले अँधेरा था वहा बहुत से जिव रेहते है पर एक दिन एक सूर्य प्रकाशमय हो गया और दुसरो ने देखा यह तो हम में से एक है यह इतना तेजोमय कैसे बन गया यह नहीं हो सकता क्यूंकि वो जो जिव थे वो खुद को उजागर नहीं कर सकते थे तो उन्होंने तेज की इर्षा शुरू करदी जैसे उल्लू सूरज की करता है। ऐसे अनेको अंधेरो में रेहने वाले जिनको विज्ञानं पता नहीं जो मानवता से ऊपर उठना नहीं चाहते ये विद्या और साधक के विरोधी बनेगे क्यूंकि वो नहीं पा सकते है पीताम्बरा गोपनीय है यह वैष्णवी विद्या है। जो श्री कुल चलाती है और बगला मुखी पित्तकाली रूप में काली कुल की सेनापति है। इसका पूरा रहस्य जानना मानो खुद को एक उचे आयाम पर ले जाना जैसा है जहा तुम सृष्टि चक्र ग्रह नक्षत्र विज्ञानं भू मंडल देव मंडल यक्ष मंडल सब से परे की सोच रखते हो यह विद्या कालचक्र को स्तम्भित कर देती है कभी कभी साधको यह लगता है की यह विद्या मे सिद्धि तुरंत क्यूँ नहीं मिलती परन्तु यह विद्या में सिद्धि तभी प्राप्त होगी जब यह विद्या धारण करने जैसी सोच रखोगे यह विद्या का नियम है निंदा से दूर रहे क्यूंकि निंदा करने वाले साधक को यह खुद ही निचे गिरा देती है वो देवी देवता के श्राप का भोगी बनता है अपनी  सत्ता से वापस गिर जायेगा देवी यही कहती है की जो जिह्वा मेरे नामस्मरण के आलावा किसी की निंदा मे बिगाड़ी उस के लिए सिद्धि कठिन है यहा पीताम्बरा का कहना उचित है माँ यही चाहेगी की तुम किसी की निंदा न करो और अगर कोई तुम्हारी करता है तो चिंता न करो क्यूंकि बगलामुखी का प्रभाव जिह्वा पर है जिसने अपनी जिह्वा को काबू मे रखा है भगवती उसकी सहाय करती है साधना काल दरम्यान कुछ ऐसे तत्व भी प्रकट होंगे जो तुम्हारा विरोध करने हेतु या पतन करने हेतु अपनी जिह्वा का पुरे जोर शोर से प्रयोजन पर यह विद्या का प्रभाव है निंदको का ज़हर उगला कर उनसे पाप करवाएगी और फिर जिह्वा को लगाम से खीच कर उसका जडमूल से नष्ट कर देगी ना वो शत्रु यहा शांति पा सकेगा नहीं परलोक में निंदा करने सुनने और करवाने से बचे इर्षा अगर यह विद्या धारण की है तो तुम इर्षा का भोग बनोगे लोग तुम्हारी इर्षा करेंगे तुम्हारे ज्ञान पे विज्ञानं पे कला पे सौन्दर्य पे धन पे वैभव पे प्रतिष्ठा पर सब पर इर्षा चालू हो जाएगी क्यूंकि इर्षा वो ही करता है जो बगलामुखी के तेज से पिला हो चूका है वो खुद उपर नही उठेगा पर इर्षा करके दुसरो के मार्ग में बाधा डालेगा यहा बात यह आएगी वो इर्शालू जितनी देर साधक की सफलता की इर्षा करेगा साधक और तेजी से सफल होगा क्यूंकि वो साधक को अपनी शक्ति मुफ्त मे दे रहा है याद रहे यह विद्या प्रयोजन षड्यंत्र कारी की खेर निकाल देती है जैसे बगुला मछली को समय आने पर चोंच में फसा लेता है वैसे ही बगलामुखी शत्रु पर नज़र रख कर समय पर अपना काम कर देती है इस विद्या का प्रचलित पद्धति गुरुगम्य है बिना गुरु इसका प्रयोजन भारी पड़ता है यह सारी विद्याओ की राजा है इसी लिए ब्रह्मास्त्र की उपाधि दी गयी है कार्तिकेय ने शिव से पूछा था बगला मुखी साधक के लक्षण कैसे होने चाहिए? और देवी को शीघ्र प्रसन्न करने का उपाय बताये
1) शिव ने यही बताया पहेले तो साधक को साधना अंतर्गत सावधान और श्रद्धावान रेहना होगा।
2) हे पुत्र में अघोरियो का सम्राट हु पर मुझे अगोरात्व यही विद्या से प्राप्त हुआ है यहाँ साधक कोई भी क्युओं न हो राजा विद्वान पंडित सबको समान रह कर आरम्भ करना होगा ।
3 ) यह विद्या उनको काम नहीं देती जो निष्क्रिय है बगलामुखी का साधक कभी भी बैठ नहीं सकता वि अपना विस्तार करेगा।
4) गुरु भक्ति पूर्ण होगी गुरु चाहे कितनी भी परीक्षा कर ले साधक कभी भी अपने विश्वास को अपनी श्रद्धा को बलवान रखे कभी कभी परीक्षा गुरु नहीं अपितु देवी का योगिनी मंडल लेती है वो साधक को उल्जा देती है और साधक के समर्पण का इम्तहान लेती है। यह साधक का कार्य धीरज से करवाएगी इसमें साधक अपनी सुजबुज खो देता है तो यह सिद्धि विपरीत परिणाम देती है यह विद्या राजविद्या है इसके हेतु से साधक को हर एक दिशा से बलवान करेगी कभी कभी जीवन में बहुत उतार देगी साधक का विश्वाश अगर पूर्ण हुआ तो यह त्रिलोक का आधिपत्य दे देगी जैसे श्री राम को मिला यह संघर्ष देगी क्योंकि हमारी सोच की दिशा बदलने के लिए अगर सोच विद्या अनुसार बन गयी तो समजो तुम्हे कुछ नहि करना पड़ेगा सब तुम्हारे हाथ मे स्वयं संचालित हो जायेगा प्रकृति आधीन हो जाएगी यश और कीर्ति सूर्य जितनी बढ़ जाएगीहा पर इसके साधक को कोई मोह नहीं रहेगा इसकी सोच यश कीर्ति पर नहीं अपितु विज्ञानं पे टिकी होगी।
5 ) इसका साधक पूर्ण कलाओ का ज्ञाता होगा यह विद्वान वेदज्ञ कवि संगीत विशारद शास्त्र हो या शस्त्र दोनो मे निपुण होगा यह विद्या निति और षट्कर्म प्रदान करेगी।
6) ब्रह्मास्त्र विद्या का विधान है की इसका पूर्ण साधक जन्म मृत्यु से परे रहेगा वो दीर्घ दर्शक होगा अंड पिंड ब्रह्मांड परे की सोच रखेगा हे शिवांश यह एक वैज्ञानिक होगा जहा नक्षत्र ग्रह तारा मंडल मन्दाकिनी आकाशगंगा सबके रहस्यों का जानकार होगा यह देवता समान विवेकी और धर्म प्रिय होगा ।
7) यह साधक मे हमेशा नयी सोच नयी रचना नया विकास आद्यात्मिक सिद्धिया मन्त्र तंत्र यंत्र अघोर एवम सृष्टि के सभी आम्नायो का ज्ञाता होगा वो एक कवी और ऋषि कइ तरह अपना साहित्य और कलाओ में निपुण होगा ब्रह्मास्त्र तब काम करता है। जब असम्भव शब्द का निर्माण होता है क्यूंकि यही संभव करता है क्यूंकि जबजब असम्भवता ने जन्म लिया तब तब ब्रह्मास्त्र ने उसे संभव किया है। इसका साधक हमेशा आनंद में उत्साह में नई रचना में नए विचार में एवम ब्रह्म जिज्ञासा में लीन रहेगा वो कभी भी क्षणभंगुर चीजों की प्राप्ति नहीं करेगा नहीं। वो संग्रह मे विश्वास रहेगा वो लुटाता रहेगा क्यूंकि उसकी सोच अनंत जीवन की होगी ब्रह्मास्त्र को साधने हेतु साधक को खुद के भीतर एक अणु की तरह स्थिर रेहना होगा न्युक्लिअर वेपन इस लिए कहा गया है। यह अणु की शक्ति रखता है जो खुद के भीतर स्थिर रहेगा ध्यान में रहेगा अपनी शक्तिओ को काम क्रोध मद मोह निंदा इर्षा में नहीं बहने देगा वो सिर्फ गुरु ज्ञान आधीन अपनी उन्नति में लींन रहेगा। जिस हेतु से वो एक आर्षद्रष्टा बन जायेगा वो ब्रह्मांडो के सर्जन और विसर्जन को देखेगा वो काल चक्र की गति को देखेगा उसके लिये वो दुसरो के कहे गए विचारे गए शब्दो से या मायाजाल से कभी भी भ्रमित नहीं होगा वो तुच्छ विचार वो तुच्छ भौतिक वस्तु कोई मायने नहि रखेगी बगलामुखी का साधक कभी भी किसीका दमन नहीं करता नाही किसीको दंडित करता है बस वो तो सबको साथ लेके आगे बढ़ता है। अगर स्वार्थी हो और यह विद्या स्वार्थ के लिए प्राप्त कर रहे हो खुद को क्या चाहिए इस पर ध्यान है तो यह विद्या निम्न फल देगी अपितु सृष्टि को क्या चाहिए ब्रह्मांड को क्या चाहिए परमात्मा को क्या चाहिए यह सोच लिया तो यह शक्ति वशीभूत हो जाएगी इसे ब्रह्मास्त्र पर आरूढ़ होना कहते है। यह परा शक्ति तभी अपनी कृपा करती है जबी साधक सब कुछ खो कर परब्रह्म स्वरुपा बगलामुखीका अनन्य भक्त हो जाये याद रहे यह विद्या सर्व श्रेष्ठ है यह असामान्य है इसी हेतु इसका साधक भी सर्वश्रेष्ठ और असमान्य होगा यह विद्या का मूल उद्देश्य जगत को स्थिर करके विकास करना है। जैसे चन्द्र से मंगल मंगल से गुरु गुरु से शनि हमे और भी सृष्टि समभावना में जिना है और भी ब्रह्मांडो के रहस्य को समजना है। अगर हम तुच्छ इच्छाओ के लिये रुक गये तो विकास नहीं होगा जिन्होंने यह देख लिया समज लिया और पा लिया है वो अवतार कहे गये या संत येक सफल वैज्ञानिक आधार हमारी सोच पर है हम कितना बेहतर चाहते है।
।। ब्रह्मास्त्र विद्या सर्वोपरी।।
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भगवती बगलामुखी की पूजा हेतु चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर भगवती बगलामुखी का चित्र स्थापित करे। इसके बाद आचमन कर हाथ धोएं। आसन पवित्रीकरण, स्वस्तिवाचन, दीप प्रज्जवलन के बाद हाथ में पीले चावल, हरिद्रा, पीले फूल और दक्षिणा लेकर इस प्रकार संकल्प करें-
००संकल्प००
ऊँ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: अद्य……(अपने गोत्र का नाम) गोत्रोत्पन्नोहं ……(नाम) मम सर्व शत्रु स्तम्भनाय बगलामुखी जप पूजनमहं करिष्ये। तदगंत्वेन अभीष्टनिर्वध्नतया सिद्ध्यर्थं आदौ: गणेशादयानां पूजनं करिष्ये।
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♦ इसके पश्चात आवाहन करना चाहिए :
~ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं बगलामुखी सर्वदृष्टानां मुखं स्तम्भिनि सकल मनोहारिणी अम्बिके इहागच्छ सन्निधि कुरू सर्वार्थ साधय साधय स्वाहा।
•••अब देवी का ध्यान करे इस प्रकार :
सौवर्णामनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांशुकोल्लसिनीम्
हेमावांगरूचि शशांक मुकुटां सच्चम्पकस्रग्युताम्
हस्तैर्मुद़गर पाशवज्ररसना सम्बि भ्रति भूषणै
व्याप्तांगी बगलामुखी त्रिजगतां सस्तम्भिनौ चिन्तयेत्।
••इसके बाद भगवान श्रीगणेश का पूजन करे।  ••नीचे लिखे मंत्रों से गौरी आदि षोडशमातृकाओं का पूजन करे-
गौरी पद्मा शचीमेधा सावित्री विजया जया।
देवसेना स्वधा स्वाहा मातरो लोक मातर:।।
धृति: पुष्टिस्तथातुष्टिरात्मन: कुलदेवता।
गणेशेनाधिकाह्योता वृद्धौ पूज्याश्च षोडश।।
••इसके बाद गंध, चावल व फूल अर्पित करें तथा कलश तथा नवग्रह का पंचोपचार पूजन करें। तत्पश्चात इस मंत्र का जप करते हुए देवी बगलामुखी का आवाह्न करें- ~नमस्ते बगलादेवी जिह्वा स्तम्भनकारिणीम्। भजेहं शत्रुनाशार्थं मदिरा सक्त मानसम्।।
••आवाह्न के बाद उन्हें एक फूल अर्पित कर आसन प्रदान करें और जल के छींटे देकर स्नान करवाएं व इस प्रकार पूजन करें-
गंध- ऊँ बगलादेव्यै नम: गंधाक्षत समर्पयामि। का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को पीला चंदन लगाएं और पीले फूल अर्पित करें। पुष्प- ऊँ बगलादेव्यै नम: पुष्पाणि समर्पयामि। मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को पीले फूल चढ़ाएं। धूप- ऊँ बगलादेव्यै नम: धूपंआघ्रापयामि। मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को धूप दिखाएं। दीप- ऊँ बगलादेव्यै नम: दीपं दर्शयामि। मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को दीपक दिखाएं। नैवेद्य- ऊँ बगलादेव्यै नम: नैवेद्य निवेदयामि। मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को पीले रंग की मिठाई का भोग लगाएं।
••अब इस प्रकार प्रार्थना करे-
~जिह्वाग्रमादाय करणे देवीं, वामेन शत्रून परिपीडयन्ताम्।
गदाभिघातेन च दक्षिणेन पीताम्बराढ्यां द्विभुजां नमामि।।
••अब क्षमा प्रार्थना करे-
~आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि।।
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे।।
अंत मे माता बगलामुखी से ज्ञात-अज्ञात शत्रुओं से मुक्ति की प्रार्थना करें।
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••बगलामुखी साधना की सावधानियां :-
1. बगलामुखी साधना के दौरान पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना अत्यधिक आवश्यक है।
2. इस क्रम में स्त्री का स्पर्श, उसके साथ किसी भी प्रकार की चर्चा आदि निषेध है।
3. साधना के दौरान माँ साधक को डराती भी है। साधना के समय विचित्र आवाजें और खौफनाक आभास भी हो सकते हैं इसीलिए जिन्हें काले अंधेरों और पारलौकिक ताकतो से डर लगता है, उन्हें यह साधना नहीं करनी चाहिए।
4. साधना से पहले आपको अपने गुरू का ध्यान जरूर करना चाहिए।
5. मंत्रों का जाप शुक्ल पक्ष में ही करें। बगलामुखी साधना के लिए नवरात्रि सबसे उपयुक्त है।
6. उत्तर की ओर देखते हुए ही साधना आरंभ करे।
7. मंत्र जाप करते समय अगर आपकी आवाज अपने आप तेज हो जाए तो चिंता ना करे।
8. जब तक आप साधना कर रहे है तब तक इस बात की चर्चा किसी से भी ना करे।
9. साधना करते समय अपने आसपास घी और तेल के दिये जलाएं।
10. साधना करते समय आपके वस्त्र और आसन पीले रंग का होना चाहिए।
by Pandit Dayanand Shastri.