प्राचीन भारतीय संस्कृति मे युवक-युवतियो को विवाह पूर्व मिलने-जुलने की अनुमति नहीं थी। माता- पिता अच्छा वर और खानदान देखकर उसका विवाह कर देते थे, लेकिन वर और कन्या की जन्म कुण्डलियो का मिलान करवाना अत्यावश्यक समझा जाता था । समय के साथ स्थिति बदली है। आज हर क्षेत्र मे युवक-युवती कंधे से कंधा मिलाकर कार्य करते है। यही कारण है कि प्रेम-विवाह आम हो गए है और जन्म-कुण्डली के मिलान की आवश्यकता लगभग गौण होती जा रही है। परन्तु आज भी अनेक लोग विवाह पूर्व भावी दंपती की जन्म-कुण्डली मिलवाना आवश्यक समझते है। ताकि विवाहोपरांत वर कन्या अपना गृहस्थ जीवन निर्विध्न गुजार सके।
♦ क्या मिलाया जाता है ??
वैवाहिक सम्बन्धोती अनुकूलता के परिक्षण के लिए ऋषि-मुनियो ने अनेक ग्रन्थ की रचना की, जिनमे वशिष्ठ, नारद, गर्ग आदि की सन्हीताएं, मुहुर्तमार्तण्ड, मुहुर्तचिन्तामणि और कुण्डलियो मे वर्ण,वश्य,तारा,योनि,राशि,गण,भकूट एवं नाडी़ आदि अष्टकूट दोष अर्थात् आठ प्रकार के दोषो का परिहार अत्यन्त आवश्यक है। वर-कन्या की राशियो अथवा नवमांशेशों की मैक्त्री तथा राशियों नवमांशेशियो की एकता द्वारा नाडी़ दोष के अलावा शेष सभी दोषो का परिहार हो जाता है। इन सभी दोषो मे नाडी़ दोष प्रमुख है, जिसके परिहार के लिए आवश्यक है कि वर-कन्या की राशि एक ओर नक्षत्र भिन्न-भिन्न हो अथवा नक्षत्र एक ओर राशियां भिन्न हो ।
♦ कितने गुण मिलने चाहिए ??
शास्त्रानुसार वर-कन्या के विवाह के लिए 36 गुणो मे से कम से कम सा़ढ़े सोलह गुण अवश्य मिलने चाहिए, लेकिन उपरोक्त नाडी़ दोष का परिहार बहुत जरुरी है। अगर नाडी़ दोष का परीहार ना हो, तो अठाईस गुणो के मिलने पर भी शास्त्र विवाह की अनुमति नहीं देते है। बहुत आवश्यक हो, तो सोलह से कम गुणो और अष्टकूट दोषो के अपरिहार की स्थिति मे भी कुछ उपायो से शान्ति करके विवाह किया जा सकता है। इस स्थिति मे कन्या का नाम बदल कर मिलान को अनुकूल बनाना अशास्त्रीय है।
♦ क्या होता मांगलिक दोष ??
शास्त्रानुसार कुज या मंगल दोष दाम्पत्य जीवन के लिए विशेष रुप से अनिष्टकारी माना गया है। अगर कन्या की जन्म-कुण्डली मे मंगल ग्रह लग्न, चन्द्र अथवा शुक्र से 1, 2, 12, 4, 7 आठवे भाव मे विराजमान हो, तो वर की आयु को खतरा होता है। वर की जन्म-कुण्डली मे यही स्थिति होने पर कन्या की आयु को खतरा होता है। मंगल की यह स्थिति पति-पत्नी के बीच वाद-विवाद और कलह का कारण भी बनती है। जन्म-कुण्डली म वृहस्पति एवं मंगल की युति अथवा मंगल एवं चन्द्र की युति से मंगल दोष समाप्त हो जाता है। इसके अतिरिक्त कुछ विशेष भावो मे भी मंगल की स्थिति के कुज दोष का कुफल लगभग समाप्त हो जाता है। यह अत्यन्त आवश्यक है कि कुजदोषी वर का विवाह कुजदोषी कन्या से ही किया जाए, इससे दोनों के कुजदोष समाप्त हो जाते है और उनका दाम्पत्य जीवन सुखी रहता है।
♦ किन बातो का ध्यान रखे कन्या से विवाह करते समय..??
कन्या ग्रहण के विषय मे मनु ने कहा है कि वह कन्या अधिक अंग वाली, वाचाल, पिंगल, वर्णवाली रोगिणी नहीं होनी चाहिए। विवाह मे सपिण्ड, विचार, गोत्र, प्रवर विचार करना चाहिए। विवाह मे स्त्रियो के लिए गुरुबल तथा पुरुषो के लिए रविबल देख लेना चाहिए। कन्या एवं वर को चन्द्रबल श्रेष्ठ अर्थात् चौथा, आठवां, बारहवां, चन्द्रमा नहीं लेना चाहिए। गुरु तथा रवि भी चौथे, आठवें एवं बारहवें नहीं लेने चाहिए। विवाह मे मास ग्रहण के लिए व्यास ने कहा है कि माघ, फाल्गुन, वैशाख, मार्गशीर्ष, ज्येष्ठ, अषाढ़ महिनो मे विवाह करने से कन्या सौभाग्यवती होती है। रोहिणी, तीनो उत्तरा, रेवती, मूल, स्वाति, मृगशिरा, मघा, अनुराधा, हस्त ये नक्षत्र विवाह मे शुभ हैं। विवाह मे सौरमास ग्रहण करना चाहिए। जैसे ज्योतिषशास्त्र मे कहा है–
सौरो मासो विवाहादौ यज्ञादौ सावनः स्मतः।
आब्दिके पितृकार्ये च चान्द्रो मासः प्रशस्यते।।
बृहस्पति, शुक्र, बुद्ध और सोम इन वारों मे विवाह करने से कन्या सौभाग्यवती होती है। विवाह मे चतुर्दशी, नवमी इन तिथियो को त्याग देना चाहिए। इस प्रकार आपको भी धार्मिक रीति से ही विवाह संस्कार को पूर्ण करना चाहिये।
♦ शीघ्र विवाह के लिए ये करे वास्तु के अचूक उपाय :
विवाह जीवन का सबसे अहम पल होता है। कई बार विवाह मे अड़चने आती है। इसके कई कारण होसकते है। वास्तु दोष भी उन्हीं मे से एक है। यदि इन वास्तु दोषों को दूर कर दिया जाए तो जिसके विवाह मे अड़चने आ रही होती है उसका विवाह अतिशीघ्र हो जाता है। नीचे ऐसे ही कुछ वास्तु नियमो के बारे मे जानकारी दी गई है-
1- यदि विवाह प्रस्ताव मे व्यवधान आ रहे हो तो विवाह वार्ता के लिए घर आए अतिथियो को इस प्रकार बैठाएं कि उनका मुख घर मे अंदर की ओर हो। उन्हे द्वार दिखाई न दे।
2- यदि मंगल दोष के कारण विवाह मे विलंब हो रहा हो तो उसके कमरे के दरवाजे का रंग लाल अथवा गुलाबी रखना चाहिए।
3- विवाह योग्य युवक-युवती के कक्ष मे कोई खाली टंकी, बड़ा बर्तन बंद करके नहीं रखें। अगर कोई भारी वस्तु हो तो उसे भी हटा दे।
4- विवाह योग्य युवक-युवती जिस पलंग पर सोते हो उसके नीचे लोहे की वस्तुएं या व्यर्थ का सामान नहीं रखना चाहिए।
5- यदि विवाह के पूर्व लड़का-लड़की घर वालो की रजामंदी से मिलना चाहे तो बैठक व्यवस्था इस प्रकार करे कि उनका मुख दक्षिण दिशा की ओर न हो।
6- यदि घर के मुख्य द्वार के समीप ही वास्तु दोष हो तो विवाह की बात अन्य स्थान पर करे।
7-घर मे बेटी जवान है, उसकी शादी नहीं हो पा रही है, तो एक उपाय करें- कन्या के पलंग पर पीले रंग की चादर बिछाएं, उस पर कन्या को सोने के लिए कहे। इसके साथ ही बेडरूम की दीवारों पर हल्का रंग करे। ध्यान रहे कि कन्या का शयन कक्ष वायव्य कोण मे स्थित होना चाहिए। जीवन मे पीले रंग को सफलता का सूचक कहा जाता है। पीला रंग भाग्य मे वृद्धि लाता है। कन्या की शादी मे पीले रंग का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग किया जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि कन्या ससुराल मे सुखी रहेगी। विवाह निर्विघ्न होने की शुभ सूचना वस्तुतः हल्दी से सम्पन्न होती है, क्योंकि हल्दी को गणेशजी की उपस्थिति माना जाता है। और जिस कार्य मे गणेश जी स्वयं उपस्थित हो, उस कार्य को पूरा करने मे विघ्न कैसे आ सकता है।हल्दी की गांठो मे कभी-कभी गणेश जी की मूर्ति का चित्र मिलता है। लक्ष्मी अन्नपूर्णा भी हरिद्रा कहलाती है। श्री सूक्त मे वर्णन किया गया है कि लक्ष्मी जी पीत वस्त्र धारण किए है। अतः आप समझ सकते है कि हल्दी का कितना महत्व है। इतना ही नहीं, बृहस्पति का रंग भी पीत वर्ण का है, तभी तो पीत रंग का पुखराज पहनकर बृहस्पति की कृपा प्राप्त होती है।
जब किसी कुण्डली मे जब प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम अथवा द्वादश भाव मे मंगल होता है तब मंगलिक दोष लगता है। इस दोष को विवाह के लिए अशुभ माना जाता है। यह दोष जिनकी कुण्डली मे हो उन्हे मंगली जीवनसाथी ही तलाश करना चाहिए ऐसी मान्यता है। जिनकी कुण्डली मे मांगलिक दोष है वे अगर 28 वर्ष के पश्चात विवाह करते है, तब मंगल वैवाहिक जीवन मे अपना दुष्प्रभाव नही डालता है। शादी से पहले अक्सर लोग होने वाले वर-वधू की कुंडली मिलवाते है। यदि किसी की कुंडली मे मंगल दोष निकल आता है तो घबराने की जरुरत नहीं क्योंकि ज्यतिषी उपाय से सभी प्रकार के मंगल दोष को दूर किया जा सकता है। किसी अनुभवी ज्योतिषी से चर्चा करके ही मंगल दोष निवारण पूजन करना चाहिए। मंगल की पूजा का अंगारेश्वर महादेव, उज्जैन (मध्यप्रदेश) का विशेष महत्व है। अपूर्ण या कुछ जरूरी पदार्थों के बिना की गई पूजा प्रतिकूल प्रभाव भी डाल सकती है। चंद्र लग्न से मंगल की यही स्थिति चंद्र मांगलिक कहलाती है। यदि दोनों ही स्थितियों से मांगलिक हो तो बोलचाल की भाषा मे इसे डबल मांगलिक और केवल चंद्र मांगलिक हो तो उसे आंशिक मांगलिक भी कहते है। मांगलिक पुरुष जातक की कुंडली मे मंगल की यह स्थिति हो तो वह पगड़ी मंगल (पाग मंगली) और स्त्री जातक की चुनरी मंगल वाली कुंडली कहलाती है।
मंगल की स्थिति से रोजी रोजगार एवं कारोबार मे उन्नति एवं प्रगति होती है तो दूसरी ओर इसकी उपस्थिति वैवाहिक जीवन के सुख बाधा डालती है। कुण्डली मे जब प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम अथवा द्वादश भाव मे मंगल होता है तब मंगलिक दोष लगता है। इस दोष को विवाह के लिए अशुभ माना जाता है। यह दोष जिनकी कुण्डली मे हो उन्हे मंगली जीवनसाथी ही तलाश करनी चाहिए ऐसी मान्यता है। सातवाँ भाव जीवन साथी एवम गृहस्थ सुख का है। इन भावो मे स्थित मंगल अपनी दृष्टि या स्थिति से सप्तम भाव अर्थात गृहस्थ सुख को हानि पहुँचाता है। सामान्य तौर का अर्थ है कि विशेष परिस्थितियों मे इन स्थानों पर बैठा मंगल भी अच्छे परिणाम दे सकता है। तो लग्न का मंगल व्यक्ति की पर्सनेलिटी को बहुत अधिक तीक्ष्ण बना देता है, चौथे का मंगल जातक को कड़ी पारिवारिक पृष्ठभूमि देता है। सातवें स्थान का मंगल जातक को साथी या सहयोगी के प्रति कठोर बनाता है। आठवें और बारहवें स्थान का मंगल आयु और शारीरिक क्षमताओं को प्रभावित करता है। इन स्थानों पर बैठा मंगल यदि अच्छे प्रभाव मे है तो जातक के व्यवहार मे मंगल के अच्छे गुण आएंगे और खराब प्रभाव होने पर खराब गुण आएंगे। मांगलिक व्यक्ति देखने मे ललासी वाले मुख का, कठोर निर्णय लेने वाला, कठोर वचन बोलने वाला, लगातार काम करने वाला, विपरीत लिंग के प्रति कम आकर्षित होने वाला, प्लान बनाकर काम करने वाला, कठोर अनुशासन बनाने और उसे फॉलो करने वाला, एक बार जिस काम मे जुटे उसे अंत तक करने वाला, नए अनजाने कामों को शीघ्रता से हाथ मे लेने वाला और लड़ाई से नहीं घबराने वाला होता है। इन्हीं विशेषताओं के कारण गैर मांगलिक व्यक्ति अधिक देर तक मांगलिक के सानिध्य मे नहीं रह पाता।किसी अनुभवी ज्योतिषी से चर्चा करके ही मंगल दोष निवारण पूजन करना चाहिए। मंगल की पूजा का अंगारेश्वर महादेव, उज्जैन (मध्यप्रदेश) का विशेष महत्व है। अपूर्ण या कुछ जरूरी पदार्थों के बिना की गई पूजा प्रतिकूल प्रभाव भी डाल सकती है।
मंगली व्यक्ति इन उपायों पर गौर करें तो मांगलिक दोष को लेकर मन मे बैठा भय दूर हो सकता है और वैवाहिक जीवन मे मंगल का भय भी नहीं रहता है। जीवन साथी के चयन के लिऐ ग्रह मेलापक (गुण-मिलान) की चर्चा होती है,तो मांगलिक विचार पर खासतौर पर विचार करते है,समाज मे मांगलिक दो का हव्वा इतनी फैल गया है। कि मांगलिक के नाम पर महत्वपूर्ण निर्णय अटक जाते है। कई बार अमंगली कुंडली को मांगलिक और मांगलिक कुंडली को अमांगलिक घोषित कर दिया जाता है,जिससे परिजन असमंजस मे पड जाते है। मांगलिक कुंडली का निर्णय बारिकी से किया जाना चाहिऐ क्योकि शास्त्रोँ मै मांगलिक दोष निवारण के तरीके उपलब्ध है। शास्त्रवचनो के जिस श्लोक के आधार पर जहा कोई कुंडली मांगलिक बनती है। वही उस श्लोक के परिहार (काट) कई प्रमाण है,ज्योतिष और व्याकरण का सिध्दांत है,कि पूर्ववर्ती कारिका से परवर्ती कारिका (बाद वाली) बलवान होती है। दोष के सम्बन्ध मै परवर्ती कारिका ही परिहार है ,इसलिये मांगलिक दोष का परिहार मिलता हो तो जरूर विवाह का फैसला किया जाना चाहिये। परिहार नही मिलने पर भी यदि मांगलिक कन्या का विवाह गैर मांगलिक वर से करना हो तो शास्त्रो मे विवाह से पूर्व “घट विवाह” का प्रावधन है ,मांगलिक प्रभाव वाली कुंडलीसे भयभीत होने कि जरूरत नही है। यह दोष नही है वल्कि इसी मंगल के प्रभाव से जातक कर्मठ, प्रभावशाली, धैर्यवान तथा सम्मानीय बनता है। जहां तक हो मांगलिक से मांगलिक का संबंध करें।ऐसे मे अन्य कई कुयोग है। जैसे वैधव्य विषागना आदि दोषों को दूर रखें। यदि ऐसी स्थिति हो तो ‘पीपल’ विवाह, कुंभ विवाह, सालिगराम विवाह तथा मंगल यंत्र का पूजन आदि कराके कन्या का संबंध अच्छे अच्छे ग्रह योग वाले वर के साथ करे। मंगल यंत्र विशेष परिस्थिति मे ही प्रयोग करे। देरी से विवाह, संतान उत्पन्न की समस्या, तलाक, दाम्पत्य सुख मे कमी एवं कोर्ट केस इत्यादि मे ही इसे प्रयोग करें। छोटे कार्य के लिए नहीं। किसी अनुभवी ज्योतिषी से चर्चा करके ही मंगल दोष निवारण पूजन करना चाहिए। मंगल की पूजा का अंगारेश्वर महादेव, उज्जैन (मध्यप्रदेश) का विशेष महत्व है। अपूर्ण या कुछ जरूरी पदार्थों के बिना की गई पूजा प्रतिकूल प्रभाव भी डाल सकती है। मांगलिक शब्द का अर्थ कुछ अलग है लेकिन अपने निजी स्वार्थ हेतु कुछ ज्योतिष मित्र इसे राइ का पहाड़ बन देते है। भोले-भाले लोग इस पर तुरंत भरोसा करके बड़े भयभीत होते है। ‘मंगल” शब्द सुनने मे इतना मीठा और सुन्दर है, क्या वह किसी का बुरा/अमंगल कर सकता है ? सामान्यतया “मंगल” शुभ कार्यों मे,आशीर्वाद देने मे प्रयुक्त होता है मंगलमय हो, आदि…
इतना ही नहीं ऐसे जातको की जब शादी की बात आती है, तो मानों इन्होने जन्म लेकर कोई बड़ा पाप कर दिया हो। ऐसे मे कई बार मांगलिक जातको को अपमान भी महसूस होता है। हम यह बात नहीं भूल सकते की बड़े-बड़े वीर भी मांगलिक थे। ज्योतिशास्त्र मे कुछ नियम बताए गये है जिससे वैवाहिक जीवन मे मांगलिक दोष नहीं लगता है, आइये इसे समझे :
♦ मंगल दोष के परिहार स्वयं की कुंडली मे ( मंगल भी निम्न लिखित परिस्तिथियो मे दोष कारक नहीं होगा) :
♦ जैसे शुभ ग्रहो का केद्र मे होना, शुक्र द्वितीय भाव मे हो, गुरु मंगल साथ हो या मंगल पर गुरु की दृष्टि हो तो मांगलिक दोष का परिहार हो जाता है।
♦ वर-कन्या की कुंडली मे आपस मे मांगलिक दोष की काट- जैसे एक के मांगलिक स्थान मे मंगल हो और दूसरे के इन्हीं स्थानों मे सूर्य, शनि, राहू, केतु मे से कोई एक ग्रह हो तो दोष नष्ट हो जाता है।
♦ मेष का मंगल लग्न मे, धनु का द्वादश भाव मे, वृश्चिक का चौथे भाव मे, वृष का सप्तम मे, कुंभ का आठवें भाव मे हो तो भौम दोष नहीं रहता।
♦ कुंडली मे मंगल यदि स्व-राशि (मेष, वृश्चिक), मूलत्रिकोण, उच्चराशि (मकर), मित्र राशि (सिंह, धनु, मीन) मे हो तो भौम दोष नहीं रहता है।
♦ सिंह लग्न और कर्क लग्न मे भी लग्नस्थ मंगल का दोष नहीं होता है। शनि, मंगल या कोई भी पाप ग्रह जैसे राहु, सूर्य, केतु अगर मांगलिक भावो (1,4,7,8,12) मे कन्या जातक के हों और उन्हीं भावों मे वर के भी हों तो भौम दोष नष्ट होता है। यानी यदि एक कुंडली मे मांगलिक स्थान मे मंगल हो तथा दूसरे की मे इन्हीं स्थानों मे शनि, सूर्य, मंगल, राहु, केतु मे से कोई एक ग्रह हो तो उस दोष को काटता है।
♦ कन्या की कुंडली मे गुरु यदि केद्र या त्रिकोण मे हो तो मंगलिक दोष नहीं लगता अपितु उसके सुख-सौभाग्य को बढ़ाने वाला होता है।
♦ यदि एक कुंडली मांगलिक हो और दूसरे की कुंडली के 3, 6 या 11वे भाव मे से किसी भाव मे राहु, मंगल या शनि मे से कोई ग्रह हो तो मांगलिक दोष नष्ट हो जाता है।
♦ कुंडली के 1,4,7,8,12वे भाव मे मंगल यदि चर राशि मेष, कर्क, तुला और मकर मे हो तो भी मांगलिक दोष नहीं लगता है।
♦ वर की कुण्डली मे मंगल जिस भाव मे बैठकर मंगली दोष बनाता हो कन्या की कुण्डली मे उसी भाव मे सूर्य, शनि अथवा राहु हो तो मंगल दोष का शमन हो जाता है।
♦ जन्म कुंडली के 1,4,7,8,12,वे भाव मे स्थित मंगल यदि स्व ,उच्च मित्र आदि राशि -नवांश का ,वर्गोत्तम ,षड्बली हो तो मांगलिक दोष नहीं होगा ।
♦ यदि 1,4,7,8,12 भावो मे स्थित मंगल पर बलवान शुभ ग्रहो कि पूर्ण दृष्टि हो ।
♦ किसी अनुभवी ज्योतिषी से चर्चा करके ही मंगल दोष निवारण पूजन करना चाहिए।
क्या आप पक्षियो के समान आसमान मे उड़ने का सपना देखते है? यदि हां, तो आपका यह ख्वाब पायलट/ विमान चालक /एयर होस्टेस बनकर पूरा हो सकता है। एविएशन के इस क्षेत्र मे जहां आप एक पालयट के रूप मे आसमान मे उड़ने का सपना पूरा कर सकते है, वहीं आप इस विशाल क्षेत्र के अन्य विभागो मे भी अपने भविष्य को ऊंची उड़ान दे सकते है। हवाई यात्रा के किराए का घटना तथा यात्रियो की तादाद बढ़ने से यह क्षेत्र निरंतर प्रगति एवं वृद्धि कर रहा इसलिए इस क्षेत्र मे स्वर्णिम करियर उपलब्ध है। हवाई जहाजो के माध्यम से देश-विदेश मे आवागमन बढते जाने के कारण विमान चालको एव उनकी परिचारिकाओ की भी आवश्यकता अत्यधिक होती जा रही है । इनको मिलने वाले पैसे औंर विभन्न जगहों की सैर इनकी ग्लैमरस छवि बना रही है। टीवी पर विमान और विमान मे काम करने वाले इस वर्ग के लोगों को बहुत ही लुभावना दिखाये जाने के फलस्वरुप ही आज का छोटा बच्चा भी पायलेट बन उडान भरने की जिज्ञासा पैदा किये हुए दिखता है और छोटी बालिकांए विमान मे काम करने वाली एयर होस्टेस बनने का सुहाना सपना देखने लगती है। गौरतलब है कि एक कमर्शियल पायलट बनने के लिए आपसे 100 प्रतिशत नहीं, अपितु 200 प्रतिशत कमिटमेट की दरकार होती है। तुरंत निर्णय लेने की क्षमता, घंटों तक कार्य करना, अपने काम को जिम्मेदारी के साथ पूरा करना जैसी चुनौतियां पायलट के सम्मुख होती है और यदि आपमे यह क्षमता है तो आप भी एक कमर्शियल पालयट के रूप मे एविएशन इंडस्ट्री मे चमकीला करियर बना सकते है।पायलट जहां एयरक्रॉफ्ट को उड़ान देता है, वहीं इसकी जिम्मेदारियां भी एयरक्रॉफ्ट की गति से बढ़ती जाती है। विमान उड़ाने के साथ-साथ इन्हें प्री-फ्लाइट प्लान्स पर भी गंभीरता से ध्यान देना होता है और मेट्रोलॉजिकल सूचनाओं को जुटाना होता है साथ ही एयरक्रॉफ्ट मे ईंधन की मात्रा की जानकारी रखना और ट्रेफिक कंट्रोल विभाग व कैबिन क्रू से निरंतर संपर्क मे रहना होता है।
उम्मीदवार यदि भौतिकी व गणित विषयो के साथ बारहवीं कक्षा उत्तीर्ण हो तो वह एसपीएल लाइसेंस प्राप्त करने के बाद सीपीएल यानी कि कमर्शियल पालयट लाइसेंस प्राप्त कर सकता है। यह लाइसेंस डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन (डीजीसीए) द्वारा प्रदान किए जाते है। इसके तहत उम्मीदवार को फ्लाइंग क्लब या फ्लाइंग स्कूल द्वारा निर्धारित नियमों और घंटों की उड़ान का टेस्ट पास करना होता है। प्राइवेट पायलट लाइसेंस प्राप्त करने के लिए उम्मीदवार को डीजीसीए द्वारा संचालित परीक्षा मे शामिल होना पड़ता है। इस परीक्षा के तहत एयर नेवीगेशन, एविएशन मेट्रोलॉजी, एयर रेगुलेशन और तकनीकी विषयों से संबंधित थियोरिटीकल प्रश्न पूछे जाते है। इस क्षेत्र मे करियर बनाने के लिए उम्मीदवार के पास अच्छी दृष्टि क्षमता होना तथा शारीरिक रूप से फिट होना भी बहुत जरूरी है।
♦ आइये जाने और समझे किसी भी कुंडली मे पायलट बनने के योगों को :
ज्योतिष के माध्यम से यह जाना जा सकता है कि कौन सा बच्चा या बालिका पायलेट या एयर होस्टेस बन सकता है। पायलेट या एयर होस्टेस या विमान उडान मे कार्यं करने वाले लोगो की कुंडली मे पराक्रम भाव, लग्न, कर्म भाव, अक्षम व व्ययभाव वायु तत्व व आकाश तत्व राशियों से संबंधित होना अनावश्यक होता है। इसके अतिरिक्त इन्हीं भादों की चर राशियां या प्रेमभाव राशियां भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है ।
कुण्डली मे अनेक प्रकार के ऎसे योग बनते है जो पायलट बनने के क्षेत्र मे काफी सहयोगी होते है जिनके बनने से जातक इस कैरियर को आसानी से अपना सकता है। ज्योतिष के माध्यम से यह जाना जा सकता ही बच्चा इस क्षेत्र मे कुछ कर सकता है या नहीं। निचे दिए गए कई प्रकार के योग इस काम के करने मे प्रबल सहायक बनते है। पायलेट जैसे काम को करने के लिए सर्वप्रथम व्यक्ति मे साहस और पराक्रम, बौद्धिकता, खूब होना चाहिए अत: कुण्डली मे लग्न, तीसरे भाव, कर्म भाव, अष्टम स्थान और द्वादश भाव की भूमिका तय कि जाती है जिसके आधार पर इस कार्य को करने की योग्यता एवं ग्रह योग का निर्धारण किया जाता है।
♦ लग्न, पराक्रम भाव, कर्म भाव और अष्टम भाव को वायु तत्व व आकाश तत्व वाली राशियो से संबंधित होना चाहिए। इसके अतिरिक्त इन भावों मे चर रशियां अथवा द्विस्वभाव वाली राशियो का होना अनुकूल माना जाता है। कर्म भाव अर्थात दशम भाव मे शुक्र की राशि स्थित हो और इस भाव पर भाग्येश, लग्नेश व लाभेश इत्यादि का किसी भी प्रकार से संबंध बन रहा हो।
♦ वायु कारक राहु का चंद्रमा के साथ व्यय भाव मे या चतुर्थ भाव मे हो या इनसे संबंध बना रहा हो तथा दशमेश शुभ स्थिति मे त्रिकोण स्थान मे स्थित हो तो व्यक्ति को हवाई यात्राओं से संबंधित काम करने को मिलता है। यदि जन्म कुण्डली के लग्न भाव मे चर राशि का राहु स्थित हो तथा वह तृतीयेश के साथ दृष्टि संबंध बना रहा हो ।
♦ यदि दशमेश चंद्रमा का संबंध बारहवे भाव या तीसरे भाव से हो रहा हो । दशम भाव को किसी भी रूप मे लग्नेश और भाग्येश प्रभावित करते हो तो इस स्थिति मे भी जातक हवाई उडा़न से संबंधित कमो मे रूचि रखता है और इस क्षेत्र मे नाम कमा सकता है।
♦ जब लग्न चर राशि का हो और वह दशमेश राहु के साथ युति संबंध बनाते हुए तीसरे भाव, बारहवें या अष्टम भाव मे बैठा हो । शुक्र कर्म भाव को किसी भी तरह से प्रभावित करता हो और तृतीयेश का संबंध पंचमेश अथवा भाग्येश से हो रहा हो तथा मंगल लग्न या कर्म भाव से संबंध बना रहा हो तो जातक पायलट बन सकता है अथवा हवाई यात्रा से संबंधित अन्य कामों को भी कर सकता है।
♦ जब जन्म कुण्डली मे राहु द्वादश भाव मे स्थित होकर शुक्र को प्रभावित करता हो तथा द्वादश भाव का स्वामी दशम भाव मे स्थित हो या उसे प्रभावित करे, कर्मेश का संबंध सप्तमेश के साथ हो व मंगल और चंद्रमा भी प्रभावित हो रहे हों तो जातक पायल या एयर होस्टेस का कार्य कर सकता है।
♦ जब शुक्र और राहु लग्न, तृतीय भाव, दशम भाव, पंचम भाव, अष्टम भाव या द्वादश भाव से संबंध बनाए और लग्नेश का संबंध भी अष्टम भाव, द्वादश भाव या तीसरे भाव या दशम भाव से संबंध बना रहा हो तो जातक हवाई यात्रा मे रूचि रख सकता है।
♦ यदि कुंडली मे द्वादशेश का संबंध पंचमेश से हो रहा हो, भाग्येश व कर्मेश का संबंध तृतीयेश या अष्टमेश से हो रहा हो और दशम भाव का राहु या शुक्र द्वादशेश से प्रभावित हो रहा हो तो जातक पायलट या एयरहोस्टेस का काम कर सकता है।
♦ जब कुंडली मे वायु तत्व राशियां बली हो तथा इन राशियो के स्वामी अधिकतर चर राशियो मे स्थित हों तथा द्विस्वभाव राशियो से भी संबंध रखते हो। कुंडली मे तीसरा, दशम व अष्टम भाव विशेष बली हो तथा लग्न अग्नि तत्व राशि हो और इसके स्वामी का वायु तत्व राशि से किसी भी प्रकार का सम्बन्ध हो अथवा या यह वायु तत्व राशि मे स्थित हो । यदि कुंडली मे वायु कारक शुक्र, कारक बुध, जल कारक चंद्रुवायु कारक राहु यांत्रिक कारक वाल व शनि आदि का संबंध लग्न, पराक्रम, अष्टम, कर्म,लाभ, व्यय, सप्तम आदि से होता हो,तब भी जातक की हवाई उड़ान से संबंधित कार्य मे रुचि होती है।
यदि आप कोई बिज़नेस शुरू करना चाहते है या करने जा रहे है तो इसमे आपकी राशि काफी मददगार हो सकती है। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार बिजनेस /व्यापर या ट्रेंड की सफलता मे राशि का अहम रोल होता है। यदि राशि को ध्यान मे रखकर बिज़नेस शुरू किया जाए, तो उसमे सफल होने की संभावना बढ़ जाती है। राशियों की कुल संख्या 12 है। जन्म के समय के अनुसार अलग अलग व्यक्ति की अलग अलग राशि होती है। आपकी जो राशि है उनके अनुसार आप अपने लिए सही कैरियर की तलाश कर सकते है। हर राशि का एक खास गुण होता है, उस गुण के अनुसार व्यवसाय करने से काफी लाभ होता है । नाम का पहला अक्षर काफी अधिक महत्वपूर्ण होता है। मान्यता के अनुसार व्यक्ति के जन्म के समय चंद्रमा जिस राशि मे होता है, उसी राशि के अनुसार नाम का पहला अक्षर निर्धारित किया जाता है। चंद्र की स्थिति के अनुसार ही हमारी नाम राशि मानी जाती है। सभी 12 राशियो के लिए अलग-अलग अक्षर बताए गए है। नाम के पहले अक्षर से राशि मालूम होती है और उस राशि के अनुसार व्यक्ति के स्वभाव और भविष्य से जुड़ी कई जानकारी प्राप्त की जा सकती है। अक्सर देखा गया है कि कई लोगो के मन मे अपना खुद का बिजनेस करने और सफल उद्यमी बनने की तमन्ना होती है। लेकिन कई बार बेहतर रिसर्च और जमीनी स्तर पर सारी तैयारियां करने के बाद भी व्यक्ति को सफलता नहीं मिलती। इसके पीछे ज्योतिषीय कारण भी हो सकते है। क्योकि हर राशि की अपनी एक अलग खासियत होती है जो व्यक्ति को बिजनेस की दुनिया मे सफल बना सकती है।
♦ जानिए की आपकी राशि से अनुसार कौनसा बिज़नेस करना बेहतर है-
♦ मेष- (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, आ) :
राशि चक्र की सबसे प्रथम राशि मेष है। जिसके स्वामी मंगल है। धातु संज्ञक यह राशि चर (चलित) स्वभाव की होती है। इस राशि के जातक निर्णय लेने मे जल्दबाजी करते है तथा जिस कार्य को हाथ मे लिया है उसको पूरा किए बिना पीछे नहीं हटते। इनका स्वभाव कभी-कभी विरक्ति का भी रहता है। लालच करना इस राशि के लोगो के स्वभाव मे नहीं होता। दूसरों की मदद करना अच्छा लगता है। इनमे कल्पना शक्ति की प्रबलता रहती है।
क्या करे व्यापर/बिजनेस : मेष राशि के लोगो को गणित, फिजिक्स, अकाउंट आदि विषयो मे अधिक सफलता मिलती है। उन्हे सेना, आर्किटेक्ट, अस्त्र-शस्त्र, वास्तुशास्त्र मे कॅरियर या इनसे जुड़े सेक्टर मे बिज़नेस करना चाहिए। इनमे सफलता की अधिक संभावना रहती है। मंगल के साथ सूर्य की यूति हो तो सरकारी क्षेत्र मे सफलता मिलती है। अधिक सफलता के लिए लाल वस्त्र पहनना चाहिए। मसूर दाल का दान करना चाहिए।
♦ वृष- (ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो) :
इस राशि का चिह्न बैल है। बैल स्वभाव से ही अधिक पारिश्रमी और बहुत अधिक वीर्यवान होता है। इस राशि के जातक सरकार का मुख्य सचेतक बनने की योग्यता रखते हैं। मंगल का प्रभाव से जातक के अंदर मानसिक गर्मी प्रदान करता है। कल-कारखानो, स्वास्थ्य कार्यों और जनता के झगड़े सुलझाने का कार्य इस राशि के जातक कर सकते है । ये अधिक सौन्दर्य प्रेमी और कला प्रिय होते है।
क्या करे व्यापर/बिजनेस : वृषभ राशि के लोग कला प्रेमी होते है, ये लोग एक्टर, सिंगर, ऑटो सेलर, इलेक्ट्रिक इक्पिमेट सेलर, नाट्य कला, म्यूजिक के विशारद एवं कॉमर्स, ऑर्ट, पेंटिंग जिओलॉजी के विषय मे सफलता प्राप्त करने वाले होते है। इस राशि के लोगो को इन्हीं क्षेत्रो से जुड़े बिज़नेस या ट्रैन्ड मे कदम बढ़ाने चाहिए। सफलता की संभावना अधिक रहती है। इस राशि का स्वामी शुक्र होता है, जो वस्त्र एवं किराना बिज़नेस मे भी सफलता दिलाता है। अत्यधिक सफलता के लिए इस राशि के लोगो को सफेद वस्त्र पहनना चाहिए।
♦ मिथुन- (का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, ह) :
यह राशि चक्र की तीसरी राशि है। राशि का प्रतीक युवा दम्पति है, यह द्वि-स्वभाव वाली राशि है। इस राशि के जातक वाहनो की अच्छी जानकारी रखते है। नए-नए वाहनो और सुख के साधनो के प्रति अत्यधिक आकर्षण होता है। इनका घरेलू साज-सज्जा के प्रति अधिक झुकाव होता है। इस राशि के लोगो मे ब्रह्माण्ड के बारे मे पता करने की योग्यता जन्मजात होती है। वह वायुयान और सेटेलाइट के बारे मे ज्ञान बढ़ाता है। राहु-शनि का साथ मिलने से जातक के अन्दर शिक्षा और शक्ति उत्पादित होती है। जातक का कार्य शिक्षा स्थानों मे या बिजली, पेट्रोल या वाहन वाले कामों की ओर होता है।
क्या करे व्यापर/बिजनेस : इस राशि के लोग अध्यापक, प्रध्यापक, कवि, गीतकार, संगीतकार, प्रवचनकर्ता, ज्योतिषी, गणित, केमिस्ट्री, जिओलॉजी, अकाउंट, होटल मैनेजमेट, मैनेजमेट, फाइनेंस, बैंकिंग के विषय चुन सकते है। इस राशि के लोग इस क्षे़त्र मे बिज़नेस शुरू कर सकते है। अधिक सफलता के लिए मिथुन राशि के लोगों को हरे वस्त्र पहनना, मूंग की दाल का सेवन एवं दान करना चाहिए। सूर्य का पूजन सर्वश्रेष्ठ है।
♦ कर्क- (ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो) :
राशि चक्र की चौथी राशि कर्क है। इस राशि का चिह्न केकड़ा है। यह चर राशि है। शनि-बुध दोनो मिलकर जातक को होशियार बना देते है। शनि-शुक्र जातक को धन और जायदाद देते है। शुक्र उसे सजाने संवारने की कला देता है और शनि अधिक आकर्षण देता है। इस राशि के जातक श्रेष्ठ बुद्धि वाले, जल मार्ग से यात्रा पसंद करने वाले, कामुक, कृतज्ञ, ज्योतिषी, सुगंधित पदार्थों के सेवी और भोगी होते है।
क्या करे व्यापर/बिजनेस : इन लोगो के लिए जलीय वस्तु, शक्कर, चावल, चांदी, टीचिंग, वस्त्र, स्त्रियों के वस्त्र, सौंदर्य सामग्री, रंग, उपकरण मरम्मत करना, कॉमर्स, आर्ट, जियोलॉजी, मैनेजमेट, कम्प्यूटर के विषयों को चयन करना उचित होता है। इनमे नौकरी या इससे जुडे़ बिजनेस इस राशि वालो के लिए उपयुक्त है। अत्यधिक सफलता के लिए सफेद वस्त्र पहनें, शिव एवं नारायण को चावल का भोग लगाएं एवं चावल का सेवन करे।
♦सिंह- (मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे) :
सिंह राशि पूर्व दिशा की द्योतक है। इसका चिह्न शेर है। राशि का स्वामी सूर्य है और इस राशि का तत्व अग्नि है। केतु-मंगल जातक मे दिमागी रूप से आवेश पैदा करता है। केतु-शुक्र, जो जातक मे सजावट और सुन्दरता के प्रति आकर्षण को बढ़ाता है। केतु-बुध, कल्पना करने और हवाई किले बनाने के लिए सोच पैदा करता है। चंद्र-केतु जातक मे कल्पना शक्ति का विकास करता है। शुक्र-सूर्य जातक को स्वाभाविक प्रवृत्तियों की तरफ बढ़ाता है। छाती बड़ी होने के कारण इनमे हिम्मत बहुत अधिक होती है। और मौका आने पर यह लोग जान पर खेलने से भी नहीं चूकते। जातक जीवन के पहले दौर मे सुखी, दूसरे मे दुखी और अंतिम अवस्था मे पूर्ण सुखी होता है।
क्या करे व्यापर/बिजनेस : इस राशि के लोग प्रतिभाशाली होते है और इनके करीब-करीब सभी बिज़नेस मे सफल होने की संभावना रहती है। इस राशि के लोग एडवाइजर, ज्योतिष, इंजीनियर, चिकित्सक, वैज्ञानिक, सेना मे ज्यादा सफल होते है। ये अच्छे मैनेजर होते है। इनके लिए बिज़नेस विषय अनुकूल है। कॉमर्स, अकाउंट, कानून मे अधिक सफलता की संभावना रहती है। अत्यधिक सफलता के लिए आदित्य ह्दय स्त्रोत का पाठ करे एवं लाल वस्त्र पहनें।
♦ कन्या- (ढो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो) :
राशि चक्र की छठी कन्या राशि दक्षिण दिशा की द्योतक है। इस राशि का चिह्न हाथ मे फूल लिए कन्या है। राशि का स्वामी बुध है। कन्या राशि के लोग बहुत ज्यादा महत्वाकांक्षी होते है। भी होते है और वह दिमाग की अपेक्षा दिल से ज्यादा काम लेते है। इस राशि के लोग संकोची, शर्मीले और झिझकने वाले होते है। ये अपनी योग्यता के बल पर ही उच्च पद पर पहुंचते है। विपरीत परिस्थितियां भी इन्हे डिगा नही सकतीं और ये अपनी सूझबूझ, धैर्य, चातुर्य के कारण आगे बढ़ते रहते है।
क्या करे व्यापर/बिजनेस : इस राशि के लोग एजुकेशन, टीचिंग, लेखन, एक्टिंग, म्यूजिक के क्षेत्र मे सफलता प्राप्त करते है। इनके लिए जिओलॉजी, फिजिक्स, केमिस्ट्री, गणित, के विषय अनुकूल है। अत्यधिक सफलता के लिए हरे वस्त्र पहनें। गणेशजी का पूजन करना लाभदायक होता है।
♦ तुला- (रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते) :
तुला राशि का चिह्न तराजू है और यह राशि पश्चिम दिशा की द्योतक है, यह वायुतत्व की राशि है। इस राशि वालो को कफ की समस्या होती है। इस राशि के पुरुष सुंदर, आकर्षक व्यक्तित्व वाले होते है। आंखो मे चमक व चेहरे पर प्रसन्नता झलकती है। इनका स्वभाव सम होता है। किसी भी परिस्थिति मे विचलित नहीं होते, दूसरो को प्रोत्साहन देना, सहारा देना इनका स्वभाव होता है। ये व्यक्ति कलाकार, सौंदर्योपासक व स्नेहिल होते है। ये लोग व्यावहारिक भी होते है व इनके मित्र इन्हे करते है।
क्या करे व्यापर/बिजनेस: इस राशि के लोगो को एक्टिंग, म्यूजिक, सेना, मैनेजमेट, ज्यूडिशियरी, बैंक, इन्श्योरेंस, फाइनेंस, मशीनरी, कम्प्यूटर के क्षेत्र मे रोजगार या बिज़नेस आजमाना चाहिए। कॉमर्स, इकोनॉमिक्स, वनस्पतिशास्त्र, गणित के विषयों का चयन करना शुभ होता है। अत्यधिक सफलता के लिए नीले वस्त्र पहनें एवं हनुमान चालीसा का पाठ करे।
♦ वृश्चिक- (तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू) :
वृश्चिक राशि का चिह्न बिच्छू है और यह राशि उत्तर दिशा की द्योतक है। वृश्चिक राशि जलतत्व की राशि है। वृश्चिक राशि वालों मे दूसरों को आकर्षित करने की अच्छी क्षमता होती है। इस राशि के लोग बहादुर, भावुक होने के साथ-साथ कामुक होते है। शरीरिक गठन भी अच्छा होता है। ऐसे व्यक्तियो की शारीरिक संरचना अच्छी तरह से विकसित होती है। इनमे शारीरिक व मानसिक शक्ति प्रचूर मात्रा मे होती है। इन्हे बेवकूफ बनाना आसान नहीं होता है, इसलिए कोई इन्हें धोखा नहीं दे सकता। ये हमेशा साफ-सुथरी और सही सलाह देने मे विश्वास रखते है। कभी-कभी साफगोई विरोध का कारण भी बन सकती है। ये जातक दूसरो के विचारो का विरोध ज्यादा करते है, अपने विचारो के पक्ष मे कम बोलते है और आसानी से सबके साथ घुलते-मिलते नहीं है।
क्या करे व्यापर/बिजनेस : इन लोगो के लिए सेना, शस्त्र संबंधी कार्य, पुलिस, ज्यूडिशियरी, क्रिमिनल लायर, सोशल सर्विस, राजनीति के क्षेत्र सफलता दिलाने वाले होते है। फिजिक्स, गणित, कानून, अकाउंट, राजनीतिशास्त्र, होटल मैनेजमेट, ह्म्यूमन रिसोर्स के विषय इनके लिए लाभदायक होते है। इनसे जुड़े बिजनेस भी इनके लिए उपयुक्त होते है। बेहतर सफलता के लिए लाल वस्त्र पहनें या साथ मे रखें एवं हनुमानजी को पूजन अर्चना करे।
♦ धनु- (ये, यो, भा, भी, भू, धा, फा, ढा, भे) :
धनु द्वि-स्वभाव वाली राशि है। इस राशि का चिह्न धनुषधारी है। यह राशि दक्षिण दिशा की द्योतक है। धनु राशि वाले काफी खुले विचारो के होते है। जीवन के अर्थ को अच्छी तरह समझते है। दूसरो के बारे मे जानने की कोशिश हमेशा करते रहते है। धनु राशि वालो को रोमांच काफी पसंद होता है। ये निडर व आत्म विश्वासी होते है। ये अत्यधिक महत्वाकांक्षी और स्पष्टवादी होते है। स्पष्टवादिता के कारण दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुंचा देते है।
क्या करे व्यापर/बिजनेस : इस राशि के लोगों को नाट्य, ललित कला, गोल्ड सिल्वर बिज़नेस, किराना, सोशल सर्विस, अध्यात्म गुरू, मैनेजर, होटल, स्कूल संचालन के क्षेत्र मे सफलता मिलती है। साइंस, गणित, कॉमर्स, अकाउंट एवं सभी विषय अनुकूल होते है। बेहतर सफलता के लिए पीले वस्त्र पहनें एवं अपने गुरू के सम्मान के साथ गुरू मंत्र का जाप करे।
♦ मकर- (भो, जा, जी, खी, खू, खे, खो, गा, गी) :
मकर राशि का चिह्न मगरमच्छ है। मकर राशि के व्यक्ति अति महत्वाकांक्षी होते है। यह सम्मान और सफलता प्राप्त करने के लिए लगातार कार्य कर सकते है। इनका शाही स्वभाव व गंभीर व्यक्तित्व होता है। आपको अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए बहुत कठिन परिश्रम करना पड़ता है। ईश्वर व भाग्य मे विश्वास करते है। दृढ़ पसंद-नापसंद के चलते इनका वैवाहिक जीवन लचीला नहीं होता और जीवनसाथी को आपसे परेशानी महसूस हो सकती है। प्रत्येक कार्य को बहुत योजनाबद्ध ढंग से करते है। आपकी खामोशी आपके साथी को प्रिय होती है। अगर आपका जीवनसाथी आपके व्यवहार को अच्छी तरह समझ लेता है तो आपका जीवन सुखपूर्वक व्यतीत होता है। आप जीवन साथी या मित्रो के सहयोग से उन्नति प्राप्त कर सकते है।
क्या करे व्यापर/बिजनेस : ये लोग मशीनरी, रिपेयरिंग, कम्प्यूटर, सिविल इंजीनियर, आर्किटेक्ट, वास्तु विज्ञानी, गुप्त विद्याओं के जानकार, वैज्ञानिक, अच्छे रिसर्चर होते है। इनके लिए गणित, फिजिक्स, केमिस्ट्री, संस्कृत, भाषा, अकाउंट, मैनेजमेट संबंधी विषय हितकर होते है। अत्यधिक सफलता के लिए काले वस्त्र पहनें एवं हनुमानजी को पूजन करे।
♦ कुंभ- (गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा) :
राशि चक्र की यह ग्यारहवीं राशि है। कुंभ राशि का चिह्न घड़ा लिए खड़ा हुआ व्यक्ति है। इस राशि का स्वामी भी शनि है। शनि मंद ग्रह है तथा इसका रंग नीला है। इसलिए इस राशि के लोग गंभीरता को पसंद करने वाले होते है एवं गंभीरता से ही कार्य करते है। कुंभ राशि वाले लोग बुद्धिमान होने के साथ-साथ व्यवहारकुशल होते है। जीवन मे स्वतंत्रता के पक्षधर होते है। प्रकृति से भी असीम प्रेम करते है। शीघ्र ही किसी से भी मित्रता स्थपित कर सकते है। आप सामाजिक क्रियाकलापो मे रुचि रखने वाले होते है। इसमे भी साहित्य, कला, संगीत व दान आपको बेहद पसंद होता है। इस राशि के लोगों मे साहित्य प्रेम भी उच्च कोटि का होता है। आप केवल बुद्धिमान व्यक्तियों के साथ बातचीत पसंद करते है। कभी भी आप अपने मित्रों से असमानता का व्यवहार नहीं करते है। अपने व्यवहार मे बहुत ईमानदार रहते है।
क्या करे व्यापर/बिजनेस : इस राशि के कार्य क्षेत्र बहुत कुछ मकर राशि से मिलते-जुलते है। क्योंकि दोनों ही राशि का स्वामी शनि है। इसके अलावा सेना, टेक्निकल, मेडिसिन के क्षेत्र भी सफलता दिलाने वाले होते है। वनस्पतिशास्त्र, गणित, फार्मा, इलेक्ट्रिक के विषय हितकर होते है। बेहतरीन सफलता के लिए काले वस्त्र पहनें एवं दुर्गा एवं हनुमानजी का पूजन करे।
♦ मीन- (दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची) :
मीन राशि का चिह्न मछली होता है। मीन राशि वाले मित्रपूर्ण व्यवहार के कारण अपने कार्यालय व आस पड़ोस मे अच्छी तरह से जाने जाते है। आप कभी अति मैत्रीपूर्ण व्यवहार नहीं करते है। बल्कि आपका व्यवहार बहुत नियंत्रित रहता है। ये आसानी से किसी के विचारों को पढ़ सकते है। अपने धन को बहुत देखभाल कर खर्च करते है। आपके अभिन्न मित्र मुश्किल से एक या दो ही होते है। जिनसे ये अपने दिल की सभी बाते कह सकते है। ये विश्वासघात के अलावा कुछ भी बर्दाश्त कर सकते है।
क्या करे व्यापर/बिजनेस : इन लोगो को अध्यात्म, मेटल विक्रेता, व्हीकल, इलेक्ट्रिक इक्विपमेट के सेलर, गुप्तचर विभाग, फायर सर्विस, ज्यूडिशियरी मे सफलता मिलती है। गणित, साइंस एवं कॉमर्स के सभी विषय तकनीकी विषय भी लाभकारी होते है। अत्यधिक सफलता के लिए पीले वस्त्र पहनें एवं शिव का पूजन करे।
किसी जातक की कुण्डली मे वाणी दोष होने पर वह गूंगा हो सकता है या बोल नहीं पाता है । हमारी वाणी ही जीवन मे स्वयं के व्यक्तित्व को उभरने सँवारने बनाने और बिगड़ने मे बड़ा महत्व पूर्ण योगदान निभाती है।
“ वाणीक्या न सम अलंकृता “ ,
“ कंठा भरण भूषिता “
व्यक्ति कितने ही मूल्यवान आभूषण कंठ मे धारण करले फिर भी सुसंस्कृत, मधुर, स्नेहिल, विनयी, सन्नमानित शब्द न हो तो वह कंठ के आभूषण भी व्यर्थ बने रहेते है।
वाणी दोष होने पर आप अपनी अभिव्यक्ति नहीं कर पाते है। विचारो की अभिव्यक्ति वाणी द्वारा ही होती है। मधुरभाषी सदैव सबको प्रिय होता है। विचारो की अभिव्यक्ति वाणी से होती है। वाणी ही मनुष्य की पहचान होती है। मधुरभाषी मनुष्य सभी को प्रिय होता है। यदि वाणी मे कोई दोष आ जाए या गूंगापन आ जाए तो जीवन मे बहुत कुछ खो जाता है। इसे पूर्व जन्मो के कर्म फलो के रूप मे देखते है। नाम के बाद वाणी ही उसकी पहचान बनाती है। वाणी दोष हो तो जीवन मे एक अभाव सा रहता है, जीवन मे एक प्रकार से कुछ खो सा जाता है जो सदेव सालता रहता है। यह दोष व्यक्ति मे पूर्व जन्मों के कर्मों के कारण ही होता है।
किसी भी कुंडली मे दूसरा भाव वाणी का प्रतिनिधत्व करता है और बुध ग्रह वाणी का कारक कहलाता है। बुध मीन राशि मे होने पर नीच राशि मे होता है। बुध को पुरुष व नपुंसक ग्रह माना गया है तथा यह उत्तर दिशा का स्वामी है। बुध का शुभ रत्न पन्ना है , बुध तीन नक्षत्रो का स्वामी है अश्लेषा, ज्येष्ठ, और रेवती (नक्षत्र) इसका प्रिय रंग हरे रंग, पीतल धातु,और रत्नों मे पन्ना है। बुध एक ऐसा ग्रह है जो सूर्य के सानिध्य मे ही रहता है। जब कोई ग्रह सूर्य के साथ होता है तो उसे अस्त माना जाता है। यदि बुध भी 14 डिग्री या उससे कम मे सूर्य के साथ हो, तो उसे अस्त माना जाता है। लेकिन सूर्य के साथ रहने पर बुध ग्रह को अस्त का दोष नही लगता और अस्त होने से परिणामो मे भी बहुत अधिक अंतर नहीं देखा गया है। बुध ग्रह कालपुरुष की कुंडली मे तृतीय और छठे भाव का प्रतिनिधित्व करता है। बुध की कुशलता को निखारने के लिए की गयी कोशिश, छठे भाव द्वारा दिखाई देती है। जब-जब बुध का संबंध शुक्र, चंद्रमा और दशम भाव से बनता है और लग्न से दशम भाव का संबंध हो, तो व्यक्ति कला-कौशल को अपने जीवन-यापन का साधन बनाता है।
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♦ आइये जाने बुध गृह का वाणी पर प्रभाव :
बुध ग्रह को मुख्य रूप से वाणी और बुद्धि का कारक माना जाता है। इसलिए बुध के प्रबल प्रभाव वाले जातक आम तौर पर बहुत बुद्धिमान होते है तथा उनका अपनी वाणी पर बहुत अच्छा नियंत्रण होता है जिसके चलते वे अपनी बुद्धि तथा वाणी कौशल के बल पर मुश्किल से मुश्किल परिस्थितियो को भी अपने अनुकूल बना लेने मे सक्षम होते है। ऐसे जातकों की वाणी तथा व्यवहार आम तौर पर अवसर के अनुकूल ही होता है जिसके कारण ये अपने जीवन मे बहुत लाभ प्राप्त करते है। किसी भी व्यक्ति से अपनी बुद्धि तथा वाणी के बल पर अपना काम निकलवा लेना ऐसे लोगों की विशेषता होती है तथा किसी प्रकार की बातचीत, बहस या वाक प्रतियोगिता मे इनसे जीत पाना अत्यंत कठिन होता है। आम तौर पर ऐसे लोग सामने वाले की शारीरिक मुद्रा तथा मनोस्थिति का सही आंकलन कर लेने के कारण उसके द्वारा पूछे जाने वाले संभावित प्रश्नो के बारे मे पहले से ही अनुमान लगा लेते है तथा इसी कारण सामने वाले व्यक्ति के प्रश्न पूछते ही ये उसका उत्तर तुरंत दे देते है। इसलिए ऐसे लोगो से बातचीत मे पार पाना किसी साधारण व्यक्ति के बस की बात नहीं होती तथा ऐसे जातक अपने वाणी कौशल तथा बुद्धि के बल पर आसानी से सच को झूठ तथा झूठ को सच साबित कर देने मे भी सक्षम होते है।
अपनी इन्हीं विशेषताओ के चलते बुध आम तौर पर उन्हीं क्षेत्रो तथा उनसे जुड़े लोगो का प्रतिनिधित्व करते है जिनमे सफलता प्राप्त करने के लिए चतुर वाणी, तेज गणना तथा बुद्धि कौशल की आवश्यकता दूसरे क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक होती है जैसे कि वकील, पत्रकार, वित्तिय सलाहकार तथा अन्य प्रकार के सलाहकार, अनुसंधान तथा विश्लेषणात्मक क्षेत्रों से जुड़े व्यक्ति, मार्किटिंग क्षेत्र से जुड़े लोग, व्यापार जगत से जुड़े लोग, मध्यस्थता करके मुनाफा कमाने वाले लोग, अकाउंटेंट, साफ्टवेयर इंजीनियर, राजनीतिज्ञ, राजनयिक, अध्यापक, लेखक, ज्योतिषि तथा ऐसे ही अन्य व्यवसाय तथा उनसे जुड़े लोग। इस प्रकार यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि आज के इस व्यसायिक जगत मे बुध ग्रह के प्रभाव वाले जातक ही सबसे अधिक सफल पाये जाते है।
बुध गले , मस्तिष्क एवं वाणी के रोग उत्पन्ना करता है , तो अगर कोइ व्यक्ति हकलता है , तुत्लाता है तो यह बुध गृह के कारण हो सकता है , बुध ऐसी स्तिथि करता है कि आप अगर कुछ बोलना चह् रहे है तो आपके दिमाग मे वह् शब्द नही आएंगे, अभद्र भाषा भि बुध गृह के ही कारण होती जाती है , आवाज़ बहुत भारी हो जाती है, जल्दबाजी मे झूठ और निंदा कर बैठते है , बुध गृह अगर किसी का बहुत खराब हो तो उनका उच्चारण इतना खराब हो जाता है कि दूसरों को समझने मे परेशानी होती है। वाणी दोष कि वजह से परिवार मे अशांति हो जाती है , अगर बुध कि उँगली (कनिष्ठ) बहुत अंदर कि तरफ झुकी हुइ है या फिर बाहर कि तरफ़ निकली हुई है , या फिर बुध के पर्वत पर बहुत सारी लकीरों का जाल है , तो जब आप बोलना चाहेंगे तब आप वह चीज बोल नही पाएँगे , झूठ ज्यादा बोलेंगे , गले से जुड़ी समस्या हो जाती है | कन्या राशि मे स्थित होने से बुध सर्वाधिक बलशाली हो जाते है जो कि इनकी अपनी राशि है तथा इस राशि मे स्थित होने पर बुध को उच्च का बुध भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त मिथुन राशि मे स्थित होने से भी बुध को अतिरिक्त बल प्राप्त होता है तथा यह राशि भी बुध की अपनी राशि है।
कुंडली मे बुध का प्रबल प्रभाव होने पर कुंडली धारक सामान्यतया बहुत व्यवहार कुशल होता है तथा कठिन से कठिन अथवा उलझे से उलझे मामलों को भी कूटनीति से ही सुलझाने मे विश्वास रखता है। ऐसे जातक बड़े शांत स्वभाव के होते है तथा प्रत्येक मामले को सुलझाने मे अपनी चतुराई से ही काम लेते है तथा इसी कारण ऐसे जातक अपने सांसारिक जीवन मे बड़े सफल होते है जिसके कारण कई बार इनके आस-पास के लोग इन्हे स्वार्थी तथा पैसे के पीछे भागने वाले भी कह देते है किन्तु ऐसे जातक अपनी धुन के बहुत पक्के होते है तथा लोगों की कही बातों पर विचार न करके अपने काम मे ही लगे रहते है। बुध के वाणी पर दुष्प्रभाव से बचने के लिए |अगर बच्चों मे तुतलाहट है तो यह चिंता का विषय बन जाता है , इस उपाय को करने से यह बीमारी ठीक हो सकती है , जबान साफ़ हो जाती है , शांत मन से शब्दों को धीरे धीरे बोलने कि कोशिश करे, अनुलोम – विलोम प्राणायाम सीख कर करा करे।
अगर आपके बच्चे को बोलने मे कठिनाई हो रही हो , या फिर कुछ शब्दों का उच्चारण ठीक से ना हो पा रहा हो तो तो उसको मजाक ना बनाये , इससे उनका आत्मविश्वास कम हो जाता है और यह गंभीर रूप ले सकता है , इसके लिए बुध के उपाय करने से वाणी मे मधुरता आति है | शारदा स्तोत्र सा नित्य पाठ करते रहे। मंगल , केतु , बुध या शनि का अगर वाणी पर बूरा प्रभाव पड़ रहा होगा तो वह भी ठीक होने लगेगा। यदि कुंडली का दूसरा भाव, दूसरे भाव का स्वामी एवं वाणी कारक ग्रह बुध यदि पाप ग्रह से युत, दृष्ट या अशुभ भाव मे स्थित हो तो वाणी दोष होता है। वाणी से ही व्यक्तित्व का परिचय ओर सही पहेचान प्रदर्शित होती है |किसी भी व्यक्ति की वाणी को /आवाज को सुनकर केवल शब्दो के प्रयोजन ओर स्वर प्रवाह के माध्यम से भी किसी व्यक्ति के ग्रहों के शुभाशुभ प्रभाव को जाना जा सकता है।
बुध मस्तिष्क, जिह्वा, स्नायु तंत्र, कंठ -ग्रंथि, त्वचा, वाक-शक्ति, गर्दन आदि का प्रतिनिधित्व करता है। यह स्मरण शक्ति के क्षय, सिर दर्द, त्वचा के रोग, दौरे, चेचक, पित्त, कफ और वायु प्रकृति के रोग, गूंगापन, उन्माद जैसे विभिन्न रोगों का कारक है। सर्वार्थ चिंतामणि के अनुसार द्वितीय स्थान वक्तृत्व शक्ति, भाषण शक्ति का स्थान है और बुध भाषण का कारक ग्रह है। सवार्थ चिंतामणिकार लिखते है कि द्वितीयेश और गुरु अस्टम मे हो तो मनुष्य मूक होता है। शम्भू होरा प्रकाश के अनुसार: शुक्र या मंगल द्वितीय या द्वादश भाव मे हो तो मूक बधिर योग होता है। पराशर होरा शास्त्र के अनुसार यदि चतुर्थ स्थान मे 1, 4, 7, 10 राशि हो तथा चतुर्थेश षष्ठ मे व मंगल 12 मे हो तो मनुष्य मूक होता है।
♦ मूक योग के बारे मे सरावली मे कुछ विशेष लक्षण बतलाए गए है-
पापग्रह राशियो की संधियो मे गए हो वृष राशि मे चंद्रमा पर मंगल शनि सूर्य की दृष्टि हो तो जातक गूंगा होता है। जातक अलंकार के अनुसार यदि द्वितीयस्थान का स्वामी ग्रह और गुरु इन मे कोई एक या दोनों 6, 8, 12 वे स्थानो मे गये हो तो मनुष्य वाणीहीन अर्थात मूक होता है।
इसी प्रकार जातक की कुंडली मे माता-पिता, भ्राता आदि स्थानों के स्वामी उनसे द्वितीयेश व गुरु से युक्त होकर त्रिक स्थानों मे (6, 8, 12) मे गए हो उन संबंधियों की मूकतां कहनी चाहिए। सर्वार्थ चिंतामणि के अनुसार द्वितीय स्थान वक्तृत्व शक्ति, भाषण शक्ति का स्थान है और बुध भाषण का कारक ग्रह है। वैदिक ज्योतिष अनुसार वाणी दोष के कुछ ज्योतिष योग इस प्रकार हो सकते है :
♦ मंत्रेश्वर के अनुसार –
तत्तद्भावादृष्टमेशस्थितांशो तत् त्रिकोणगे। व्ययेशस्थितमांशे वा मन्दे तद्भाव नाशनम्।
अर्थात्- जिस भाव का विचार करना हो, उससे आठवें या बारहवें भाव का स्वामी जिस राशि या नवमांश मे हो उससे 1, 5, व 9 मे भाव मे शनि आयेगा तब उस भाव का नाश करेगा। शास्त्रीय ग्रंथों मे गूंगा (मूक) योग के लिए ग्रह स्थितियां ।
1. कर्क, वृश्चिक और मीन राशि मे गये हुए बुध को अमावस्या का चंद्रमा देखता हो।
2. बुध और षष्ठेश दोनों एक साथ स्थित हो।
3. गुरु और षष्ठेश लग्न मे स्थित हो।
4. वृश्चिक और मीन राशि मे पाप ग्रह स्थित हों एवं किसी भी राशि के अंतिम अंशो मे व वृष राशि मे चंद्र स्थित हो और पाप ग्रहों से दृष्ट हो तो जीवन भर के लिए मूक (गूंगा) तथा शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो पांच वर्ष के बाद बालक बोलता है।
5. क्रूर ग्रह संधि मे गये हो, चंद्रमा पाप ग्रहो से युक्त हो तो भी गूंगा होता है।
6. शुक्ल पक्ष का जन्म हो और चंद्रमा, मंगल का योग लग्न मे हो।
7. कर्क, वृश्चिक और मीन राशि मे गया हुआ बुध, चंद्र से दृष्ट हो, चैथे स्थान मे सूर्य हो और छठे स्थान को पाप ग्रह देखते हों।
8. द्वितीय स्थान मे पाप ग्रह हो और द्वितीयेश नीच या अस्तंगत होकर पापग्रहो से दृष्ट हो एवं रवि, बुध का योग सिंह राशि मे किसी भी स्थान मे हो।
9. सिंह राशि मे रवि, बुध दोनों एक साथ स्थित हों तो जातक गूंगा होता है।
10. यदि षष्ठेश और बुध लग्न मे हो तथा पापग्रह द्वारा दृष्ट भी हों तो जातक गूंगा होता है।
11. यदि बुधाष्टक वर्ग बनाने पर बुध स्थित राशि से द्वितीय राशि मे कोई रेखा न हो अर्थात वह शून्य हो तो जातक गूंगा होता है। अतः पित्रादि भावों के स्वामी की स्थिति द्वारा पित्रादि के गूंगेपन के संबंध मे समझना चाहिये।
12. दूसरे भाव से त्रिक भाव मे वाणी कारक बुध स्थित हो तो यह योग होता है। अथवा द्वितीयेश त्रिक भावों मे हो तो वाणी दोष होता है। यहां त्रिक भावों की गिनती द्वितीय भाव से होगी।
13. चन्द्र लग्न या लग्न से त्रिक भाव मे द्वितीयेश या वाणी कारक बुध स्थिति हो और पापग्रह से युत या दृष्ट हो और किसी प्रकार की शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो जातक गूंगा होता है।
14. द्वितीयेश बुध व गुरु के साथ अष्टम भाव मे हो तो जातक गूंगा होता है।
15. दूसरे भाव मे नीच ग्रह स्थित हो और उस पर पाप ग्रह की दृष्टि हो तो वाणी दोष होता है।
16. दूसरे भाव मे सूर्य, चन्द्र, राहु व पापयुत शुक्र की युति हो तो वाणी दोष होता है।
17. शनि-चन्द्र की युति दूसरे भाव मे हो और उस पर सूर्य व मंगल की दृष्टि पड़े तो वाणी दोष होता है।
18. छठे भाव का स्वामी या बुध चौथे, आठवें या बारहवें स्थित हो और पापग्रह से दृष्ट हो तो वाणी दोष होता है या गूंगा होता है।
19. कर्क, वृश्चिक व मीन राशि मे गए हुए बुध को अमावस का चन्द्र देखे तो जातक गूंगा होता है।
20. द्वितीय भाव से कारक ग्रह बुध 6, 8, 12 वे भाव मे होने से दोष उत्पन्न होता है या द्वितीय भाव का स्वामी इन स्थानों मे हो या द्वितीय भाव मे 6, 8, 12 भावेश हों। यह स्थिति द्वितीयभाव को लग्न मानकर देखी जाती है।
21. जन्मलग्न या चंद्र लग्न से 6, 8, 12 भावों मे द्वितीयेश या कारक ग्रह बुध हो, इन पर पाप दृष्टि हो या पापयुक्त हो अर्थात् इन पर शुभदृष्टि न हो तो जातक गूंगा होता है।
22. द्वितीयेश इन भावों मे केंद्र व त्रिकोणेश के प्रभाव मे न हो तो भी जातक गूंगा होता है या द्वितीयेश या बुध गुरु युक्त अष्टम में हो तो भी जातक गूंगा होता है।
23. द्वितीय भाव में नीच का ग्रह हो तथा उस पर पापदृष्टि हो या पापयुक्त हो।
24. द्वितीय भाव मे सूर्य, चंद्र, राहु व पापयुक्त शुक्र हो या शनि युक्त चंद्र पापग्रही हो और सूर्य मंगल से दृष्ट हो।
25. कर्क, वृश्चिक और मीन राशि मे पापग्रह हो, चंद्र पापयुक्त हो या पापदृष्ट हो। षष्ठेश या बुध 4, 8,12 वे भाव मे पापदृष्ट हो तो जातक गूंगा होता है।
26. जन्मलग्न या चंद्र लग्न से तृतीयेश, अष्टमस्थ ग्रह, अष्टम पर दृष्टि रखने वाला ग्रह, निर्बल राहु, द्वितीयेश या बुध की दशा अंतर्दशा मे वाणी दोष उत्पन्न कर सकते है या द्वितीय भाव से 8वें या 12वें भाव का स्वामी जिस राशि नवमांश मे हो उससे 1, 5, 9वें जब शनि आयेगा, तब वाणी दोष उत्पन्न हो सकता है।
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♦ गूंगापन न होने के ज्योतिषीय योग :
1. यदि कर्क, वृश्चिक अथवा मीन राशि मे पापग्रह हो तथा चंद्रमा किसी पाप ग्रह से द्रष्ट हो तो जातक गूंगा होता है। परंतु यदि चंद्रमा पर शुभग्रह की दृष्टि हो तो बालक अधिक समय बाद अथवा 5 वर्ष की आयु के बोद बोलना आरंभ कर देता है।
2. यदि द्वितीयेश एवं गुरु की अष्टम भाव मे युति हो तो जातक गूंगा होता है। परंतु यदि इन दोनो मे से कोई उच्च या शुभ हो तो गूंगा नहीं होता।
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यदि वाणी का कारक बुध यदि प्रभावित है तो बुध संबंधी उपाय करना चाहिये।
1. बुधवार को गणेशजी को लड्डू का प्रसाद चढ़ाये या गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करे।
2. दुर्गा सप्तशती का पाठ करवाएं।
3. पेठा, कद्दू का दान करें या हरे वस्त्रों का दान करे।
4. तांबे का पैसा पानी मे बहाएं। यदि द्वितीयेश या तृतीयेश प्रभावित हो तो ग्रहो के अनुसार उपाय करने पर गूंगापन, बहरापन होने को कम किया जा सकता है।
5.उस बालक को पालतू चिड़िया का झूँठा पाली पिलाएं।
6.छोटे शंख की माला भी ऐसे बच्चों को पहनाने से लाभ होता है। शंख फूंकने से भी वाणी दोष मे सुधार सम्भव है।
सूर्य: गायत्री मंत्र का जप करे। गुड़ व गेहूं का दान करे। सूर्य को अघ्र्य दे।
चंद्र: शिवलिंग पर दूध व जल का अभिषेक करे। रात को दूध न पिये। चंद्र से संबंधित वस्तु चांदी, दूध का दान करे।
मंगल: हनुमानजी को गुड़ और चूरमे का भोग लगाएं। मीठे भोजन का दान करे। मंगलवार का व्रत रखे या सुंदर कांड का पाठ करे।
गुरु: केशर का तिलक माथे व नाभि पर लगाएं। पीपल का वृक्ष लगाएं। गुरु की सेवा करे।
शुक्र: गाय का दान करे या गाय को चारा खिलाए। शुक्र की देवी लक्ष्मीजी है। अतः उनके समक्ष घी का दीपक जलाकर श्री सूक्त का पाठ करे।
शनि: मछली को आटे की गोलियां खिलाएं। तेल का दान करे। कौओं को भोजन का अंश दे।
01.वाणी दोष होने पर कार्तिकेय मंत्र व स्तोत्र का पाठ नित्य सुबह संध्या काल मे पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर 10 बार पढ़े। ये प्रयोग किसी भी पुष्य नक्षत्र मे शुरू कर 27 दिनों तक अगले पुष्य नक्षत्र तक बिना किसी नागा के करे।
02.पीपल के वृक्ष की परिक्रमा करते हुए ब्रह्माजी द्वारा नारद जी को बताए गए अश्वत्थ स्तोत्र का पाठ करना चाहिए व दीप प्रज्वलित करना चाहिए। इस उपाय को कने से गुरु जनित वाणी विकार व बधिर योग काफी हद तक शांत हो जाता है।
03.जिस दिन अनुराधा नक्षत्र बृहस्पतिवार को हो उस दिन सिरस के व आम के कोमल पत्तो को तोड़कर उनका रस निकाल कर उसे गुनगुना कर 4 बुंदे नित्य दोनो कानो मे 62 दिन तक लगातार डाले। कर्ण रोग से व सुनने मे उत्पन्न समस्या से छुटकारा मिल जाएगा।
04.जिस जातक के जन्मांग मे यह योग परिलक्षित होता है। उस जातक को भी वागेश्वरी पूजा यंत्र को सवा सात लाख मंत्रों से अभिमंत्रित करके शुक्ल पंचमी के दिन धारण करने से दोनों समस्याओं का निवारण होता है।
05.चांदी की सरस्वती का दान शुक्लपक्ष पंचमी को या बसंतपंचमी को करना मूक दोष को शांत करने का सर्वोत्तम उपाय है।
06. बुधवार को गरीब लड़कियों को भोजन व हरा कपड़ा दे।
07.किसी किन्नर/हिजड़े को बुध के दिन चांदी की चूड़ी और हरे रंग की साड़ी का दान करे ।
08. बुध के मन्त्र “ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः” तथा सामान्य मंत्र “बुं बुधाय नमः” है। बुधवार के दिन हरे रंग के आसन पर बैठकर उत्तर दिशा की तरफ मुख करके बुध मंत्र का जाप करे ।
09.कुंडली के दूसरे भाव/भावेश तथा उसके नक्षत्र स्वामी को मजबूत करे और अगर क्रूर ग्रह का प्रभाव हो तो उसकी शांति के उपाय करे। वृहस्पति को मजबूत करे, भगवान गणेश ओर माँ शारदा का आराधना करे।
10. हरा वस्त्र, हरी सब्जी, मूंग का दाल एवं हरे रंग के वस्तुओं का दान उत्तम कहा जाता है।
11. विष्णु सहस्रनाम का जाप भी लाभकारी होता है।
12. तुलसी का पौधा अवश्य लगाना चाहिए।
13. हरी सब्जियाँ एवं हरा चारा गाय को खिलाना चाहिए।
14. गणेशजी को लड्डुओं का भोग लगाएँ तथा बच्चो को बाँटे।
बुध यंत्र से लाभ : कुंडली मे बुध कमजोर होने के कारण स्मरण शक्ति कमजोर हो,वाणी दोष हो, बुध यंत्र लाॅकेट चांदी मे शुद्धीकरण आदि करके हरे धागे मे बुधवार को सुबह धारण करना चाहिए। इसके साथ पाप ग्रह राहु ,केतु शनि ,मंगल, का उपाय करना चाहिए ।
♦ ये वास्तुदोष भी बनते है वाणी दोष के कारण :
खिड़की, दरवाजे और मुख्य रूप से मेन-गेट पर काला पेंट हो तो परिवार के सदस्यों के व्यवहार मे अशिष्टता, गुस्सा, बदजुबानी आदि बढ़ जाते है। जन्मपत्रिका मे वाणी दोष ( ग्रह शनि, राहु मंगल और केतु ) हो, तो प्रभाव विशेष रूप से पता लगता है । यदि मंगल व केतु का प्रभाव हो तो लाल पेंट धारण से कुतर्क, अधिक बहस, झगड़ालू और व्यंगात्मक भाषा इस्तेमाल होती है। ऐसे हालात मे सफेद रंग का प्रयोग लाभदायक होता है।
यदि किसी व्यक्ति को संतान प्राप्ति मे समस्या आ रही हो, तो ऐसे व्यक्ति इन सरल उपायो को अपना कर संतान की प्राप्ति अति ही सहजता के साथ कर सकते है। किंतु उपायो को अति सावधानी से व श्रद्धा के साथ करना अति आवश्यक होता है। उपाय निम्न लिखित है :
1. संतान प्राप्ति के लिए पति-पत्नी दोनो को रामेश्वरम् की यात्रा करनी चाहिए तथा वहां सर्प-पूजन करवाना चाहिए। इस कार्य को करने से संतान-दोष समाप्त होता है। 2. स्त्री मे कमी के कारण संतान होने मे बाधा आ रही हो, तो लाल गाय व बछड़े की सेवा करनी चाहिए। लाल या भूरा कुत्ता पालना भी शुभ रहता है। 3. यदि विवाह के दस या बारह वर्ष बाद भी संतान न हो, तो मदार की जड़ को शुक्रवार को उखाड़ ले। उसे कमर मे बांधने से स्त्री अवश्य ही गर्भवती हो जाएगी। 4. जब गर्भ धारण हो गया हो, तो चांदी की एक बांसुरी बनाकर राधा-कृष्ण के मंदिर मे पति-पत्नी दोनों गुरुवार के दिन चढ़ाये तो गर्भपात का भय/खतरा नहीं होता। 5. यदि बार-बार गर्भपात होता है, तो शुक्रवार के दिन एक गोमती चक्र लाल वस्त्र मे सिलकर गर्भवती महिला के कमर पर बांध दे। गर्भपात नहीं होगा। 6. जिन स्त्रियो के सिर्फ कन्या ही होती है, उन्हे शुक्र मुक्ता पहना दी जाये, तो एक वर्ष के अंदर ही पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी। 7. यदि बच्चे न होते हो या होते ही मर जाते हो, तो मंगलवार के दिन मिट्टी की हांडी मे शहद भरकर श्मशान मे दबाये। 8. पीपल की जटा शुक्रवार को काट कर सुखा ले, सूखने के बाद चूर्ण बना ले। उसको प्रदर रोग वाली स्त्री प्रतिदिन एक चम्मच दही के साथ सेवन करें। सातवें दिन तक मासिक धर्म, श्वेत प्रदर तथा कमर दर्द ठीक हो जाएगा। 9. संतान प्राप्ति के लिए इन मे से किसी भी एक मन्त्र का नियमित रूप से एक माला प्रतिदिन पाठ करे —
इनमे से आप जिस मंत्र का भी चयन करे उस पर पूर्ण श्रद्धा व आस्था रखे।
विश्वासपूर्वक किये गये कार्यों से सफलता शीघ्र मिलती है। मंत्र पाठ नियमित रूप से करे। कृष्ण के बाल रूप का चित्र अपने शयन कक्ष मे लगाएं। लड्डू गोपाल का चित्र या मूर्ति लगाना लाभदायक होता है। क्रम संख्या 4 व 5 पर दिए गये मंत्र शीघ्र फलदायक है। इन्हे संतान गोपाल मंत्र भी कहा जाता है। *****************************
♦ संतान रक्षा हेतु मंत्र-तंत्र-यंत्र एवं उपासना —
1. यदि पंचम भाव मे सूर्य स्थित हो तो :
कभी झूठ मत बोलो और दूसरो के प्रति दुर्भावना कभी नहीं रखे। यदि आप किसी को केाई वचन दे तो उसे हर हाल मे पूरा करे। प्राचीन परंपराओ व रस्म रिवाजो की कभी अवहेलना न करे। दामाद, नाती (नातियों) तथा साले के प्रति कभी विमुख न हो न ही उनके प्रति दुर्भावना रखे। पक्षी, मुर्गा और शिशुओ के पालन- पोषण का हमेशा ध्यान रखे।
2. यदि पंचम भाव मे चंद्र हो तो :
कभी लोभ की भावना मत रखे तथा संग्रह करने की मनोवृत्ति मत रखे। धर्म का पालन करे, दूसरो की पीड़ा निवारणार्थ प्रयास करते रहे और अपने कुटुंब के प्रति ध्यान रखे। चंद्र संबंधी कोई भी अनुष्ठान करने से पूर्व कुछ मीठा रखकर, पानी पीकर घर से बाहर जाएं। सोमवार को श्वेत वस्त्र मे चावल-मिश्री बांध कर बहते जल मे प्रवाहित करे।
3. यदि पंचम भाव मे मंगल बैठा हो तो :
रात मे लोटे मे जल को सिरहाने रखकर सोएं। परायी स्त्री से घनिष्ठ संबंध न रखे तथा अपना चरित्र संयमित रखे। अपने बड़े-बूढ़ो का सम्मान करे और यथासंभव उनकी सेवा करे तथा सुख सुविधा का ध्यान रखे। अपने मृत बुजुर्गों इत्यादि का पूर्ण विधि- विधान से श्राद्ध करे। यदि आपका सुहृद संतान मर गया हो तो उसका भी श्राद्ध करें। नीम का वृक्ष लगाएं तथा मंगलवार को थोड़ा सा दूध दान करे।
4. यदि पंचम भाव मे बुध हो तो :
गले मे तांबे का पैसा धारण करे। यदि गो-पालन किया जाए तो संतान, स्त्री और भाग्य का पूर्ण सुख प्राप्त होगा।
5. यदि पंचम भाव मे बृहस्पति विराजमान हो तो :
सिर पर चोटी रखे और जनेऊ धारण करे। आपने यदि धर्म के नाम पर धन संग्रह किया या दान लिया तो संतान को निश्चित कष्ट होगा। धर्म का कार्य यदि आप निःस्वार्थ भाव से करेंगे तो संतान काफी सुखी-संपन्न रहेगी। केतु के भी उपाय निरंतर करते रहे। मांस, मदिरा तथा परस्त्री गमन से दूर रहे। संत, महात्मा तथा संन्यासियों की सेवा करे तथा मंदिर की कम से कम महीने मे एक बार सफाई अवश्य करे।
6. यदि पंचम भाव मे शुक्र स्थित हो तो :
गोमाता तथा श्रीमाता जी की पूर्ण निष्ठा के साथ सेवा करे। किसी के लिए हृदय मे दुर्भावना न रखे तथा शत्रुओं के प्रति भी शत्रुता की भावना न रखे। चांदी के बर्तन मे रात मे शुद्ध दूध पिया करे।
7. यदि पंचम भाव मे शनि स्थित हो तो :
(क) पैतृक भवन की अंधेरी कोठरी मे सूर्य संबंधी वस्तुएं जैसे गुड़-तांबा, मंगल संबंधी वस्तुएं जैसे सौफ, खांड, शहद तथा लाल मूंगे व हथियार, चंद्र संबंधी वस्तुएं जैसे चावल, चांदी तथा दूब स्थापित करे। अपने भार के दशांश के तुल्य बादाम बहते हुए पानी मे डाले और उनके आधे घर मे लाकर रखे लेकिन खाएं नहीं। यदि संतान का जन्म हो तो मिठाई न बांट कर नमकीन बांटे। यदि मिठाई बांटना जरूरी हो, तो अंशमात्र नमक का भी समावेश कर दे। काला कुत्ता पाले और उसे नित्य एक चुपड़ी रोटी दे। बुध संबंधी उपाय करते रहे।
8. यदि पंचम भाव मे राहु उपस्थित हो तो :
अपनी पत्नी के साथ दुबारा फेरे लेने से राहु की अशुभता समाप्त हो जाती है। एक छोटा सा चांदी का हाथी निर्मित करा कर घर के पूजा स्थल मे रखे। मांस, मदिरा व परस्त्री गमन से दूर रहे। जातक की पत्नी अपने सिरहाने पांच मूलियां रखकर सोएं और अगले दिन प्रातः उन्हे किसी मंदिर मे दान कर दे। घर के प्रवेश द्वार की दहलीज के नीचे चांदी की एक छोटी सी चादर/पत्तर दबाएं।
9. यदि केतु पंचम भाव मे उपस्थित हो तो :
चंद्र व मंगल की वस्तुएं दूध-खांड इत्यादि का दान करे। बृहस्पति संबंधी सारे उपाय करे। घर मे यदि कोई शनि संबंधी वस्तु (काली वस्तुएं) हो तो उसे ताले मे ही रखे।
दीपावाली की तैयारी यूं तो दशहरे के दिन से ही शुरू जाती है। लोग अपने घर को खूब सजाना चाहते है , ताकि लक्ष्मी माता प्रसन्न होकर उनके घर मे प्रवेश करे। लेकिन कई बार घर को ज्यादा सुंदर बनाने के चक्कर मे ऐसी गलतियां कर बैठते है कि वास्तु के विपरीत स्थितियां बन जाती है इसलिए घर को सजाते समय वास्तु का ध्यान भी जरूर रखे। वास्तुशास्त्र या वास्तुवेद, ऐसी परंपरागत प्रणाली है, जो वस्तुओ की दिशात्मक नियुक्ति के सिद्धांत पर निर्भर करती है। कुछ लोग दीपावली के दिन अपनी किस्मत आजमाते है, तो कुछ उसे संवारने का यथा संभव प्रयास करते है।
किसी भी व्यापार की समृद्धि मे ‘ धनात्मक ऊर्जा ‘ का बहुत महत्व होता है। जैसा कि नाम से स्पष्ट है ‘ धनात्मक ऊर्जा ‘ धन से भी सम्बन्ध रखती है। चाहे घर की खुशहाली हो अथवा व्यापार की समृद्धि, दोनों ही बिना धन के अधूरे रहते हैं। दीपावली एवं उससे सम्बन्धित सभी त्यौहार धन वृद्धि के ही उद्देश्य की पूर्ति करते है।
आप यह तो जानते ही होगे कि किस्मत लक्ष्मी के नाम से मशहूर है। दिवाली के दिन धन की देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए आप अपने घर व ऑफिस दोनों ही स्थान पर वास्तु के अनुसार पूजन कर सकते है। वास्तु से आपके घर मे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। और यह भी जानी-मानी बात है कि माता लक्ष्मी उसी के घर पर आती है जिसका घर उन्हे साफ-सुथरा मिलता है। वास्तु के हिसाब से काली चौदस यानी की दिवाली के दूसरे दिन भी घर को साफ करना चाहिये। हम सभी जानते है कि वास्तु मे मुख्य द्वार की विशेष भूमिका है। इसलिए दिवाली पर मां लक्ष्मी को खुश करने के लिए मुख्य द्वार की साफ-सफाई से लेकर दरवाजे को सजाने का विशेष ध्यान रखा जाता है। वास्तु मे स्थान की सफ़ाई एवं स्वच्छता को विशेष महत्व दिया गया है। कबाड़ मे रखी वस्तुओं से नकारात्मक उर्जा का संचार होता है। घर की सुंदरता और सजावट देखकर अगर लक्ष्मी माता आपके घर आ भी जाएंगी तो कबाड़ से निकलने वाली नकारात्मक उर्जा के प्रभाव के कारण वापस लौट जाएंगी।
उनके अनुसार दूसरी बात यह याद रखे कि घर को महल की तरह सजा ले और घर के चारो तरफ और छत पर गंदगी को कूड़ा जमा हो तब मां लक्ष्मी आपके घर की ओर देखेंगी भी नही। यह उसी प्रकार गलत प्रभाव डालता है जैसे बाहर से गंदी गिलास मे आप किसी को शरबत दे। व्यक्ति गिलास को देखकर ही शरबत पीने से इंकार कर देगा। यदि आपके घर के आगे या उत्तर दिशा की ओर गड्ढ़ा है तो उसे भरवाकर समतल करवा दे । इससे वास्तु दोष दूर होगा और अनुकूल स्थितियां बनेंगी। जिन लोगों के घर का मुख्य द्वार दक्षिण दिशा की ओर है उन्हें मुख्य द्वार पर पिरामिड या लक्ष्मी गणेश की तस्वीर लगानी चाहिए। आपके घर का मुख्य द्वार पूर्व दिशा या उत्तर दिशा की ओर है तो उत्तर पू्र्व दिशा को विशेष रूप से सजाएं।
♦ घर दरवाजे और खिड़कियो पर सरसो तेल लगाकर उन पर स्वास्तिक चिन्ह बनाएं और शुभ लाभ लिखें। दरवाजे मे तेल लगाने के पीछे एक बड़ा कारण यह है कि दरवाजा खुलते और बंद होते समय आवाज नहीं आए।
♦ दीपावली के मौके पर बहुत से लोग टीवी और फ्रीज की खरीदारी करते है। टीवी और फ्रीज को उत्तर अथवा पूर्व दिशा की ओर मुख करके लगाएं। ड्राइंग रूम मे भारी समानों को दक्षिण या पश्चिम दिशा की दीवार से सटाकर रखे।
♦ वास्तु के अनुसार दरवाजे पर तोरण लगाने से घर मे नकारात्मक ऊर्जा नहीं आती वहीं चांदी का स्वस्तिक लगाने से सभी का ध्यान रखना चाहिए। दिवाली से पहले घर के दरवाजे पर सुंदर और कलरफुल तोरण बांधना चाहिए। कोशिश करें कि तोरण आम की पत्ती, पीपल, अशोक के पेड़ कनेर के पत्तों का होना चाहिए। कहा जाता है इन चीजों के तोरण बनाने से घर मे नकारात्मक ऊर्जा नहीं आती।
♦ आइए जाने दिवाली पर वास्तु अनुसार क्या चीजे रखे जिससे मां लक्ष्मी आपके घर जरूर आएं।
♦ घर के दरवाजे पर मां लक्ष्मी के पैर का चिन्ह जरूर लगाने चाहिए। लेकिन इस बात का ध्यान रखे कि पैर की दिशा अंदर की तरफ होनी चाहिए। घर के दरवाजे पर चांदी का स्वस्तिक लगाना बेहद शुभ माना जाता है। वास्तु के अनुसार इससे घर मे बीमारी नहीं आती।
♦ पानी मे नमक मिलाइये और इसे पूरे घर के कोने-कोने मे छिड़किये। वास्तु के हिसाब से नमक घर की बुरी ऊर्जा को सोख लेता है।
♦ घर मे उत्तर दिशा को कुबेर स्थान बोला जाता है। सुनिश्चित करे कि माता लक्ष्मी की मूर्ति यही पर रखी जाए और गणेश जी की मूर्ति उनके दाहिने साइड मे हो। इसके अलावा मूर्तियों को लाल रंग के कपडे़ मे सजाइये।
♦ कहा जाता है कि बहता हुआ पानी घर की सारी नकारात्मक ऊर्जा को अपने साथ बहा ले जाता है। तो ऐसे मे आपभी अपने घर मे कोई छोटा सा झरना लगाइये और यह झरना घर के नार्थ-ईस्ट दिशा मे लगा होना चाहिये।
♦ दिवाली से पहले घर मे अष्ठमंगला का चिन्ह जरूर लगाएं। अष्ठमंगला के ऊपर दरअसल कमल रखा जाता है और कमल पर मां लक्ष्मी विराजती है।
♦ अगर घर के दरवाजे पर रंगोली स्वास्तिक या फिर ओम का चिन्ह बना रहे है तो इस बात का ध्यान रखे कि इन्हे घर के पूर्व और उत्तर मे ही बनाएं।
♦ घर के दरवाजे पर एक ट्रे मे पानी और फूल भरकर पूर्व और उत्तर दिशा की तरफ रखने से घर के मालिक को काफी फायदा होता है।
♦ इसके अलावा निम्न बातो का भी रखे ध्यान :
♦ फेंकने योग्य सामान: ऐसी किताबो, अखबारो, खिलौनो व बर्तनो को दान कर दे, जो आपकी जरूरत के नहीं है। ऐसा करके आप पुण्य के भागी तो बनेंगे ही, नकारात्मक ऊर्जा से भी बच सकेंगे। अगर आप घर रंगवा सकते है, तो यह और भी अच्छा है।
♦ रंगोली: देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए घर के प्रवेश द्वार पर रंगोली बनाये, इसके लिए आप चावल, बालू या रंगीन पाउडर का प्रयोग कर सकते है।
♦ सौंदर्यीकरण: मुख्य द्वार को फूलो या पत्तियों से सजाये, दरवाजो पर रंगीन पर्दे लगाये और लक्ष्मी का स्वागत करे।
♦ दीये : घर की चाहरदीवारी पर चार दीयों को एक साथ रखे क्योकि चार दीयों का अर्थ है लक्ष्मी, गणेश, कुबेर और इंद्र।
♦ पूजा: देश के उत्तरी भाग मे दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजा जरूरी मानी जाती है। पूजा के लिए घर मे अच्छी खुशबू वाली अगरबत्ती जलायें और भगवान गणेश और लक्ष्मी का पूजन करे।
♦ दीपावली के उपहार: मिठाइयां बाटें, लेकिन पटाखे ना बांटे। उपहार मे चाकू या चमड़े के सामान ना दे। काले कपड़े ना भेंट करे।
इस दीपावली पर आप सभी को ढेरो शुभकामनाएँ। आपके जीवन मे भी स्वर्ण के साथ-साथ खुशियों और समृद्धि की बरसात होती रहे। ईश्वर से मेरी यही शुभ मंगल कामना है।
आज जीवन के हर मोड़ पर आम आदमी स्वयं को खोया हुआ महसूस करता है। विशेष रूप से वह विद्यार्थी जिसने हाल ही मे दसवीं या बारहवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की है, उसके सामने सबसे बड़ा संकट यह रहता है कि वह कौन से विषय का चयन करे जो उसके लिए लाभदायक हो। एक अनुभवी ज्योतिषी आपकी अच्छी मदद कर सकता है। जन्मपत्रिका मे पंचम भाव से शिक्षा तथा नवम भाव से उच्च शिक्षा तथा भाग्य के बारे मे विचार किया जाता है।सबसे पहले जातक की कुंडली मे पंचम भाव तथा उसका स्वामी कौन है तथा पंचम भाव पर किन-किन ग्रहो की दृष्टि है, ये ग्रह शुभ-अशुभ है अथवा मित्र-शत्रु, अधिमित्र है विचार करना चाहिए। दूसरी बात नवम भाव एवं उसका स्वामी, नवम भाव स्थित ग्रह, नवम भाव पर ग्रह दृष्टि आदि शुभाशुभ का जानना।
बुध और गुरु उस क्षेत्र की बुद्धि और शिक्षा प्रदान करते है। यद्यपि क्षेत्र इनका भी निश्चित है, लेकिन इन पर जिम्मेदारियां ज्यादा रहती है। इसलिये कुंडली मे इनकी शक्ति महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। आज हम किसी एक या दो ग्रहो के करियर पर प्रभाव की चर्चा करेगे। जन्मकुंडली मे वैसे तो सभी बारह भाव एक दूसरे को पूरक है, किंतु पराक्रम, ज्ञान, कर्म और लाभ इनमे महत्?वपूर्ण है। इसके साथ ही इन सभी भावों का प्रभाव नवम भाग्य भाव से तय होता है। अत: यह परम भाव है।
♦ प्रशासनिक अधिकारी बनकर सफलता पाने के लिए सूर्य, गुरु, मंगल, राहु व चन्द्र आदि ग्रह बली होने चाहिए। मंगल से जातक मे साहस एवं पराक्रम आता है जोकि अत्यन्त आवश्यक है। सूर्य से नेतृत्व करने की क्षमता मिलती है, गुरु से विवेक सम्मत निर्णय लेने की क्षमता मिलती है और चन्द्र से शालीनता आती है एवं मस्तिष्क स्थिर रहता है।
♦ यदि कुण्डली मे अमात्यकारक ग्रह बली है अर्थात् स्वराशि, उच्च या वर्गोत्तम मे है एवं केन्द्र मे हो या तीसरे या दसवें हो तो अत्यन्त उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है।
♦ अमात्यकारक ग्रह नवांश मे आत्मकारक ग्रह से केन्द्र, तीसरे या एकादशा भाव मे हो तो जातक बाधा रहित नौकरी करता है।
♦ एकादशेश नौवे भाव मे हो या दशमेश के साथ युत हो या दृष्ट हो तो जातक मे प्रशासनिक अधिकारी बनने की संभावना अधिक होती है।
♦ पंचम भाव मे उच्च का गुरु या शुक्र हो और उस पर शुभ ग्रहो का प्रभाव हो एवं सूर्य अच्छी स्थिति मे हो तो जातक इन दशाओं मे उच्च प्रशासनिक अधिकारी बनता है।
♦ सूर्य और मंगल यानी सोच और साहस के परम शुभ ग्रह माने गये है। सूर्य को कुंडली की आत्मा कहा गया है। और शोधपरक, आविष्कारक, रचनात्मक क्षेत्र से संबंधित कार्यों मे इनका खास दखल रहता है। मशीनरी अथवा वैज्ञानिक कार्यों की सफलता सूर्यदेव के बगैर संभव ही नहीं है। जब यही सूक्ष्म कार्य मानव शरीर से जुड़ जाता है तो शुक्र का रोल आरंभ हो जाता है, क्योंकि मेडिकल एस्ट्रोजॉली मे शुक्र तंत्रिका तंत्र विज्ञान के कारक है। यानी शुक्र को न्यूरोलॉजी और गुप्त रोग का ज्ञान देने वाला माना गया है। सजीव मे शुक्र का रोल अधिक रहता है और निर्जीव मे सूर्य का रोल अधिक रहता है। लेकिन, जब इन्हीं सूर्य के साथ मंगल मिले है, तो पुलिस, सेना, इंजीनियर, अग्निशमन विभाग, कृषि कार्य, जमीन-जायदाद, ठेकेदारी, सर्जरी, खेल, राजनीति तथा अन्य प्रबंधन कार्य के क्षेत्र मे अपना भाग्य आजमा सकते है। यदि इनकी युति पराक्रम भाव मे दशम अथवा एकादश भाव मे हो इंजीनियरिंग, आईआईटी वैज्ञानिक बनने के साथ-साथ अच्छे खिलाड़ी और प्रशासक बनना लगभग सुनिश्चित कर देती है। अधिकतर वैज्ञानिक, खिलाडिय़ों और प्रभावशाली व्यक्तियों की कुंडली मे यह युति और योग देखे जा सकते है। आज के प्रोफेशनल युग मे इनका प्रभाव और फल चरम पर रहता है। इसलिये यह मानकर चलें कि यदि कुंडली मे मंगल, सूर्य तीसरे दसवे या ग्याहरवें भाव मे हो तो अन्य ग्रहो के द्वारा बने हयु योगों को ध्यान मे रखकर उपरोक्त कहे गये क्षेत्रो मे अपना भाग्य आजमाना चाहिये। यदि इनके साथ बुध भी जुड़ जाये तो एजुकेशन, बैंक और बीमा क्षेत्र मे किस्मत आजमा सकते हैं। लेकिन, इसके लिये कुंडली मे बुध ओर गुरु की स्थिति पर ध्यान देने की जरूरत है।
♦लग्नेश और दशमेश स्वराशि या उच्च का होकर केन्द्र या त्रिकोण मे स्थित हो और गुरु उच्च या स्वराशि मे हो तो जातक प्रशासनिक अधिकारी बनता है।
♦ लग्न मे सूर्य और बुध हो और गुरु की शुभ दृष्टि इन पर हो तो जातक प्रशासनिक सेवा मे उच्च पद प्राप्त करने मे सफल रहता है।
♦ कुण्डली मे नौकरी मे सफलता मिलने की संभावनाएं और अधिक हो जाती है यदि इन कारक ग्रहों की दशाएं भी मिल जाएं।
♦ आई.ए.एस. बनने के लिये तृतीयेश, षष्ठेश, दशमेश व एकादशेश की दशा मिलनी सोने मे सुहागा होता है अर्थात् सफलता निश्चित है।
♦ दशम भाव मे सर्वाष्टक वर्ग की संख्या से कम संख्या पंचम भाव मे होनी चाहिए। ऐसा हो तो नौकरी मे कैरियर अच्छा रहता है।
♦ दशम मे कम एवं एकादश मे सर्वाष्टक वर्ग की संख्या अधिक होनी चाहिए। यह अन्तर जितना अधिक होता है ऐसा होने पर अल्प श्रम मे अधिक लाभ्ा होता है।
♦ तीसरे, छठे, दसवें, एकादश मे सर्वाष्टक वर्ग की संख्या बढ़ते क्रम मे हो तो प्रशासनिक सेवाओं मे धन, यश एवं उन्नति तीनों एक साथ मिलते है । ऐसे अधिकारी की सभी प्रशंसा करते है।
♦ उक्त ज्योतिष योग कुण्डली मे विचार कर आप जातक के प्रशासनिक सेवाओं मे सफलता का निर्णय करके जातक को उचित सलाह देकर यश एवं धन के भागी बन सकते है। ये योग इस क्षेत्र मे अच्छा कैरियर बनाते है। कुण्डली मे ग्रहों से बनने वाले ज्योतिष योग ही जातक की आजीविका का क्षेत्र बताते है। अधिकांश लोग प्रशासनिक सेवाओं मे अपना कैरियर बनाकर सफलता पाना चाहते है। आई. ए. एस. जैसे उच्च पद की प्राप्ति के लिये व्यक्ति की कुण्डली मे सर्वप्रथम शिक्षा का स्तर सर्वोत्तम होना चाहिए। कुंडली के दूसरे, चतुर्थ, पंचम एवं नवम भाव व भावेशों के बली होने पर जातक की शिक्षा उतम होती है। शिक्षा के कारक ग्रह बुध, गुरु व मंगल बली होने चाहिएं, यदि ये बली है तो विशिष्ट शिक्षा मिलती है और जातक के लिए सफलता का मार्ग खोलती है।
♦ छठा, पहला व दशम भाव व भावेश बली हो तो प्रतियोगी परीक्षा मे सफलता अवश्य मिलती है। सफलता के लिये समर्पण, एकाग्रता एवं परिश्रम की आवश्यकता होती है। इसका बोध तीसरे भाव एवं तृतीयेश के बली होने पर होता है। यदि ये बली है तो जातक मे समर्पण, एकाग्रता एवं परिश्रम करने की क्षमता होती है और व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा मे सफलता की मिलने की संभावना भी बढ़ जाती है।
♦ सूर्य को राजा और गुरु को ज्ञान का कारक कहा गया है। ये दोनो ग्रह मुख्य रूप से प्रशासनिक प्रतियोगिताओं मे सफलता और उच्च पद प्राप्ति मे सहायक है। जनता से अधिक वास्ता पड़ता है इसलिए शनि का बली होना अत्यन्त आवश्यक है। शनि जनता व प्रशासनिक अधिकारियो के बीच की कड़ी है। मंगल को स्याही व बुध को कलम कहा जाता है और ये बली हों तो जातक अपनी कलम का लोहा नौकरी मे अवश्य मनवाता है। कुण्डली मे बनने वाले योग ही बताते है कि व्यक्ति की आजीविका का क्षेत्र क्या रहेगा। प्रशासनिक सेवाओं मे प्रवेश की लालसा अधिकांश लोगो मे रहती है। आईये देखे कि कौन से योग प्रशासनिक अधिकारी के कैरियर मे आपको सफलता दिला सकते है :
1. उच्च शिक्षा के योग :
आई. ए. एस. जैसे उच्च पद प्राप्ति के लिये व्यक्ति की कुण्डली मे शिक्षा का स्तर अच्छा होना चाहिए। शिक्षा के लिये शिक्षा के भाव दूसरा, चतुर्थ भाव, पंचम भाव व नवम भाव को देखा जाता है। इन भाव/भावेशो के बली होने पर व्यक्ति की शिक्षा उतम मानी जाती है। शिक्षा से जुडे ग्रह है बुध, गुरु व मंगल इसके अतिरिक्त शिक्षा को विशिष्ट बनाने वाले योग भी व्यक्ति की सफलता का मार्ग खोलते है। शिक्षा के अच्छे होने से व्यक्ति नौकरी की परीक्षा मे बैठने के लिये योग्यता आती है।
2. आवश्यक भाव: छठा, पहला व दशम घर :
किसी भी प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षा मे सफलता के लिये लग्न, षष्टम, तथा दशम भावो/ भावेशों का शक्तिशाली होना तथा इनमे पारस्परिक संबन्ध होना आवश्यक है। ये भाव/ भावेश जितने समर्थ होगें और उनमे पारस्परिक सम्बन्ध जितने गहरे होगें उतनी ही उंचाई तक व्यक्ति अपनी नौकरी मे जा सकेगा.इसके अतिरिक्त सफलता के लिये पूरी तौर से समर्पण तथा एकाग्र मेहनत की आवश्यकता होती है। इन सब गुणौ का बोध तीसरा घर कराता है। जिससे पराक्रम के घर के नाम से जाना जाता है। तीसरा भाव इसलिये भी बहुत महत्वपूर्ण है क्योकी यह दशम घर से छठा घर है। इस घर से व्यवसाय के शत्रु देखे जाते है। इसके बली होने से व्यक्ति मे व्यवसाय के शत्रुओं से लडने की क्षमता आती है। यह घर उर्जा देता है। जिससे सफलता की उंचाईयों को छूना संभव हो पाता है।
3. आवश्यक ग्रह :
कुण्डली के सभी ग्रहो मे सूर्य को राजा की उपाधि दी गई है। तथा गुरु को ज्ञान का कारक कहा गया है। ये दो ग्रह मुख्य रुप से प्रशासनिक प्रतियोगिताओं मे सफलता और उच्च पद प्राप्ति मे सहायक ग्रह माना जाता है। एसे अधिकारियो के लिये जिनका कार्य मुख्य रुप से जनता की सेवा करना है। उनके लिये शनि का महत्व अधिक हो जाता है। क्योकि शनि जनता व प्रशासनिक अधिकारियों के बीच के सेतू है। कई प्रशासनिक अधिकारी नौकरी करते समय भी लेखन को अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने मे सफल हुए है। यह मंगल व बुध की कृपा के बिना संभव नहीं है। मंगल को स्याही व बुध को कलम कहा जाता है। प्रशासनिक अधिकारी मे चयन के लिये सूर्य, गुरु, मंगल, राहु व चन्द्र आदि ग्रह बलिष्ठ होने चाहिए। मंगल से व्यक्ति मे साहस, पराक्रम व जोश आता है। जो प्रतियोगीताओ मे सफलता की प्राप्ति के लिये अत्यन्त आवश्यक है।
4. अमात्यकारक ग्रह की भूमिका :
प्रशासनिक अधिकारी के पद की प्राप्ति के लिये अमात्यकारक ग्रह बडी भूमिका निभाता है। अगर किसी कुण्डली मे अमात्यकारक बली है। (स्वग्रही, उच्च के, वर्गोतम) आदि स्थिति मे हो तथा केन्द्र मे है।इसके अतिरिक्त बलशाली अमात्यकार तीसरे व एकादश घरो मे होने पर व्यक्ति को अपने जीवन काल मे काफी उंचाई तक जाने का मौका मिलता है। इस स्थिति मे व्यक्ति को एसे काम करने के अवसर मिलते है। जिनमे वह आनन्द का अनुभव कर पाता है। अमात्यकारक नवाशं मे आत्मकारक से केन्द्र अथवा तीसरे या एकादश भाव मे हो तो व्यक्ति को सुन्दर व बाधा रहित नौकरी मिलती है। इसलिये अमात्यकारक की नवाशं मे स्थिति भी देखी जाती है।
5. दशायें :
व्यक्ति की कुण्डली मे नौकरी मे सफलता मिलने की संभावनाएं अधिक है और दशा भी उन्ही ग्रहों से संबन्धित मिल जाये तो सफलता अवश्य मिलती है। व्यक्ति को आई.ए.एस. बनने के लिये दशम, छठे, तीसरे व लग्न भाव/भावेशो की दशा मिलनी अच्छी होगी ।
6 अन्य योग :
क) भाव एकादश का स्वामी नवम घर मे हो या दशम भाव के स्वामी से युति या दृ्ष्ट हो तो व्यक्ति के प्रशासनिक अधिकारी बनने की संभावना बनती है।
ख) पंचम भाव मे उच्च का गुरु या शुक्र होने पर उसपर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तथा सूर्य भी अच्छी स्थिति मे हो तो व्यक्ति इन्ही ग्रहों की दशाओं मे उच्च प्रशासनिक अधिकारी बनता है।
ग) लग्नेश और दशमेश स्वग्रही या उच्च के होकर केन्द्र या त्रिकोण मे हो और गुरु उच्च का या स्वग्रही हो तो भी व्यक्ति की प्रशासनिक अधिकारी बनने की प्रबल संभावना होती है।
घ) कुण्डली के केन्द्र मे विशेषकर लग्न मे सूर्य, और बुध हो और गुरु की शुभ दृ्ष्टि इन पर हो तो जातक प्रशासनिक सेवा मे उच्च पद प्राप्त करने मे सफल रहता है। ग्रहानुसार करें विषय चयन :
♦ यदि चौथे व पाँचवे भाव पर हो :
1 सूर्य का प्रभाव – आर्ट्स, विज्ञान
2 मंगल का प्रभाव – जीव विज्ञान
3. चंद्रमा का प्रभाव – ट्रेवलिंग, टूरिज्म
४. बृहस्पति का प्रभाव – किसी विषय मे अध्यापन की डिग्री
5 बुध का प्रभाव – कॉमर्स, कम्प्यूटर
6 शुक्र का प्रभाव- मीडिया, मास कम्युनिकेशन, गायन, वादन
7 शनि का प्रभाव- तकनीकी क्षेत्र, गणित
इन मुख्य ग्रहों के अलावा ग्रहों की युति-प्रतियुति का भी अध्ययन करें, तभी किसी निष्कर्ष पर पहुँचें। (जैसे शुक्र और बुध हो तो होम्योपैथी या आयुर्वेद पढ़ाएँ) ताकि चुना गया विषय बच्चे को आगे सफलता दिला सके। उक्त ज्योतिष योग कुण्डली मे विचार कर आप जातक के प्रशासनिक सेवाओं मे सफलता का निर्णय करके जातक को उचित सलाह देकर यश एवं धन के भागी बन सकते है। ये योग इस क्षेत्र मे अच्छा कैरियर बनाते है।
सुन्दर व अच्छा घर बनाना या उसमे रहना हर व्यक्ति की इच्छा होती है। लेकिन थोड़ा सा वास्तु दोष आपको काफी कष्ट दे सकता है। लेकिन वास्तु दोष निवारण के महंगे उपायो को अपनाने से पहले विघ्नहर्ता गजानन के आगे मस्तक जरूर टेक ले। क्योंकि आपके कई वास्तु दोषो का ईलाज गणपति पूजा से ही हो जाता है।
वास्तु पुरुष की प्रार्थना पर ब्रह्मजी ने वास्तुशास्त्र के नियमो की रचना की थी। यह मानव कल्याण के लिए बनाया गया था, इसलिए इनकी अनदेखी करने पर घर के सदस्यों को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक हानि भी उठानी पड़ती है। अत: वास्तु देवता की संतुष्टि के लिए भगवान गणेश जी को पूजना बेहतर लाभ देगा। इनकी आराधना के बिना वास्तुदेवता को संतुष्ट नहीं किया जा सकता। बिना तोड़-फोड़ अगर वास्तु दोष को दूर करना चाहते है तो इन्हें आजमाएं।
♦ गणपति जी का वंदन कर वास्तुदोषो को शांत किए जाने मे किसी प्रकार का संदेह नहीं होता है। मान्यता यह है कि नियमित गणेश जी की आराधना से वास्तु दोष उत्पन्न होने की संभावना बहुत कम होती है। इससे घर मे खुशहाली आती है और तरक्की होती है।
♦ सुख, शांति, समृद्धि की चाह रखने वालो के लिए सफेद रंग के विनायक की मूर्ति, चित्र लगाना चाहिए।
♦ घर या कार्यस्थल के किसी भी भाग मे वक्रतुण्ड की प्रतिमा अथवा चित्र लगाए जा सकते है। यह ध्यान रखे कि किसी भी स्थिति मे इनका मुँह दक्षिण दिशा या नैऋत्य कोण मे नहीं होना चाहिए।
♦ घर मे बैठे हुए गणेशजी तथा कार्यस्थल पर खड़े गणपतिजी का चित्र लगाना चाहिए, किन्तु यह ध्यान रखे कि खड़े गणेशजी के दोनों पैर जमीन का स्पर्श करते हुए हो। इससे कार्य मे स्थिरता आने की संभावना रहती है।
♦ यदि घर के मुख्य द्वार पर एकदंत की प्रतिमा या चित्र लगाया गया हो तो उसके दूसरी तरफ ठीक उसी जगह पर गणेश जी की प्रतिमा इस प्रकार लगाए कि दोनों गणेशजी की पीठ मिली रहे। इस प्रकार से दूसरी प्रतिमा या चित्र लगाने से वास्तु दोषो का शमन होता है। भवन के जिस भाग मे वास्तु दोष हो उस स्थान पर घी मिश्रित सिंदूर से स्वस्तिक दीवार पर बनाने से वास्तु दोष का प्रभाव कम होता है।
♦ घर या कार्यस्थल के किसी भी भाग मे वक्रतुण्ड की प्रतिमा अथवा चित्र लगाए जा सकते है। किंतु प्रतिमा लगाते समय यह ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि किसी भी स्थिति मे इनका मुंह दक्षिण दिशा या नैर्ऋ त्य कोण मे नहीं हो। इसका विपरीत प्रभाव होता है।
♦ दाएँ हाथ की ओर घुमी हुई सूँड वाले गणेशजी हठी होते है तथा उनकी साधना-आराधना कठिन होती है। वे देर से भक्तो पर प्रसन्न होते है।
♦ मंगल मूर्ति को मोदक एवं उनका वाहन मूषक अतिप्रिय है। अतः चित्र लगाते समय ध्यान रखे कि चित्र मे मोदक या लड्डू और चूहा अवश्य होना चाहिए।
♦ घर मे नियमित रूप से गणेशजी की आराधना से वास्तु दोष उत्पन्न होने की संभावना बहुत कम होती है।
♦ भवन के ब्रह्म स्थान अर्थात् केद्र मे, ईशान कोण एवं पूर्व दिशा मे सुखकर्ता की मूर्ति अथवा चित्र लगाना शुभ रहता है। किंतु टॉयलेट अथवा ऐसे स्थान पर गणेशजी का चित्र नहीं लगाना चाहिए जहां लोगों को थूकने आदि से रोकना हो। यह गणेशजी के चित्र का अपमान होगा। सुख, शांति, समृद्धि की चाह रखने वालो के लिए घर मे सफेद रंग के विनायक की मूर्ति, चित्र लगाना चाहिए।
♦ सर्व मंगल की कामना करने वालो के लिए सिन्दूरी रंग के गणपति की आराधना अनुकूल रहती है।
♦ विघ्नहर्ता की मूर्ति अथवा चित्र मे उनके बाएँ हाथ की और सूँड घुमी हुई हो इस बात का ध्यान रखना चाहिए।
♦ भवन के जिस भाग मे वास्तु दोष हो उस स्थान पर घी मिश्रित सिन्दूर से स्वस्तिक दीवार पर बनाने से वास्तु दोष का प्रभाव कम होता है।
♦ भवन के ब्रह्म स्थान अर्थात केंद्र मे, ईशान कोण एवं पूर्व दिशा मे सुखकर्ता की मूर्ति अथवा चित्र लगाना शुभ रहता है।
♦ सर्व मंगल की कामना करने वालो के लिए सिंदूरी रंग के गणपति की आराधना अनुकूल रहती है। इससे शीघ्र फल की प्राप्ति होती है। विघ्नहर्ता की मूर्ति अथवा चित्र मे उनके बाएं हाथ की ओर सूंढ़ घुमी हुई हो इस बात का ध्यान रखना चाहिए। दाएं हाथ की ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेश जी हठी होते है तथा उनकी साधना-आराधना कठिन होती है। शास्त्रो मे कहा गाया है कि दाएं सूंड वाले गणपति देर से भक्तो पर प्रसन्न होते है।
♦ मंगल मूर्ति भगवान को मोदक एवं उनका वाहन मूषक अतिप्रिय है। अत: घर मे चित्र लगाते समय ध्यान रखे कि चित्र मे मोदक या लड्डू और चूहा अवश्य होना चाहिए। इससे घर मे बरकत होती है। इस तरह आप भी बिना तोड़-फोड़ के गणपति पूजन के द्वारा से घर के वास्तुदोष को दूर कर सकते हैं।
♦ स्वास्तिक का अर्थ है शुभ, मंगल एवं कल्याण करने वाला। स्वास्तिक के चारों ओर की चार सीधीं रेखाएं चारों दिशाओं का प्रतिक है। यह शुभ प्रतिक अनादि काल से विद्यमान होकर सम्पूर्ण सृष्टि मे व्याप्त रहा है।
♦ हमारे भारतीय समाज मे सभी व्रत, पर्व, त्यौहार, पूजा एवं मांगलिक कार्यो के अवसर पर सिन्दूर या कुमकुम से स्वास्तिक बनाया जाता है। विष्णु पुराण एवं गणेश पुराण मे स्वास्तिक को भगवान विष्णु एवं श्री गणेश का प्रतिक बताया गया है।
♦ स्वास्तिक से वास्तु दोष भी दूर होते है। वास्तु शास्त्र भी दोष निवारण के लिए स्वास्तिक का उपयोग मानता है। स्वास्तिक वास्तु दोष दूर करने का महामंत्र है। स्वास्तिक ग्रह शान्ति मे लाभदायक है।
♦ आपको भी अपने घर मे वास्तु दोष दूर करने के लिए और धन वृद्धि के साथ स्वास्तिक के सभी लाभ उठाने के लिए अष्टधातु से निर्मित स्वास्तिक पिरामिड यन्त्र को पूर्व की तरफ दीवार पर बीच मे टांगना चाहिए।
हमारे हिन्दू शास्त्रो और समाज मे एक विवाह प्रथा प्रचलित है। अतः आप सभी से मेरा निवेदन है की गुण मिलान एवं कुंडली मिलान के उपरांत किसी योग्य, अनुभवी और विद्वान ज्योतिषी से यह भी अवश्य ज्ञात कर वाले कि कहीं लडका या लड़कीं कि कुंडली मे अन्य स्त्री-पुरुष से नाजायज संबंध बनने के योग तो नहीं है।
आजकल विवाहोपरांत पति-पत्नी के झगड़े तो आम बात बन गये है। पति-पत्नी मे सामान्य नोंक-झोंक से तो प्रेम और बढ़ता है। लेकिन नाजायज संबंधों के कारण उत्पन्न होने वाले झगड़े दोनो के बिच मे गाली गलोच-मारपीट, अलगाव, कोर्ट कचेरी के चक्कर एवं तलाक, आत्महत्या, कत्ल तक पहुंच जाती है। कई लडके-लड़की को ऐसा जीवन साथी मिलता है, जो अपने नाजायज संबंधों के कारण अपने पति-पत्नी को विभिन्न तरह कि यातनाएं देता है। ऐसी समस्याओ को भारतीय ज्योतिष शास्त्र के मूल सिद्धांतो से ज्ञात किया जा सकता है की लडका या लड़की को कैसा पति-पत्नी मिलेगी ?
यदि किसी जन्म कुंडली मे शुक्र उच्च का हो तो ऐसे व्यक्ति के कई प्रेम प्रसंग हो सकते है, जो कि विवाह के बाद भी जारी रहते है। मारपीट करने वाला कई स्त्री-पुरुष से नाजायज संबंध रखने वाला जीवनसाथी मिलने के योग होने पर उन्हे मंत्र-यंत्र-तंत्र, रत्न इत्यादि उपाय करके ऐसे योग का प्रभाव कम किया जा सकता है। जन्म कुंडली के सप्तम भाव मे मंगल चारित्रिक दोष उत्पन्न करता है स्त्री-पुरुष के विवाहेत्तर संबंध भी बनाता है। संतान पक्ष के किये कष्टकारी होता है। मंगल के अशुभ प्रभाव के कारण पति-पत्नी मे दूरियां बढ़ती है। जन्म कुंडली के द्वादश भाव मे मंगल शैय्या सुख, भोग, मे बाधक होता है। इस दोष के कारण पति पत्नी के सम्बन्ध मे प्रेम एवं सामंजस्य का अभाव रहता है। यदि मंगल पर ग्रहों का शुभ प्रभाव नहीं हो, तो व्यक्ति मे चारित्रिक दोष और गुप्त रोग उत्पन्न कर सकता है। व्यक्ति जीवनसाथी को घातक नुकसान भी कर सकता है।
ध्यान रखे, जन्म कुंडली मे सप्तम भाव मे शुक्र स्थित व्यक्ति को अत्याअधिक कामुक बनाता है, जिससे विवाहेत्तर सम्बन्ध बनने कि संभावना प्रबल रहती है। जिस्से वैवाहिक जीवन का सुख नष्ट होता है। यदि जन्म कुंड़ली के सप्तम भाव मे सूर्य हो, तो अन्य स्त्री-पुरुष से नाजायज संबंध बनाने वाला जीवनसाथी मिलता है। यदि जन्म कुंड़ली मे शत्रु राशि मे मंगल या शनि हो, अथवा क्रूर राशि मे स्थित होकर सप्तम भाव मे स्थित हो, तो क्रूर, मारपीट करने वाले जीवनसाथी कि प्राप्ति होती है।
यदि जन्म कुंड़ली मे सप्तम भाव मे चन्द्रमा के साथ शनि की युति होने पर व्यक्ति अपने जीवनसाथी के प्रति प्रेम नहीं रखता एवं किसी अन्य से प्रेम कर अवैध संबंध रखता है। यदि जन्म कुंड़ली मे सप्तम भाव मे राहु होने पर जीवनसाथी धोखा देने वाला कई स्त्री-पुरुष से संबंध रखने वाला व्यभिचारी होता है व विवाह के बाद अवैध संबंध बनाता है। उक्त ग्रह दोष के कारण ऐसा जीवनसाथी मिलता है जिसके कई स्त्री-पुरुष के साथ अवैध संबंध होते है। जो अपने दांपत्य जीवन के प्रति अत्यंत लापरवाह होते है। यदि जन्म कुंड़ली मे सप्तमेश यदि अष्टम या षष्टम भाव मे हो, तो यह पति-पत्नी के मध्य मतभेद पैदा होता है। इस योग के कारणा पति-पत्नी एक दूसरे से अलग भी हो सकते है।
इस योग के प्रभाव से पति-पत्नी दोंनो के विवाहेत्तर संबंध बन सकते है। इस लिये जिन पुरुष और कन्या कि कुंडली मे इस तरह का योग बन रहा हो उन्हे एक दूसरे कि भावनाओ का सम्मान करते हुवे अपने अंदर समर्पण कि भावना रखनी चाहिए।