Category Archives: Trending Articles

Vaastu-Dosh-and-their-Effects

आपके जीवनसाथी/ लाइफ पार्टनर से अनबन का कारण कहीं आपके घर का वास्तुदोष तो नहीं…???

क्या आपकी अपने जीवनसाथी/लाइफ पार्टनर से आपकी नहीं बनती है? यदि आपका जीवनसाथी आपके रिश्ते को लेकर उदासीन है। जरा जरा सी बात आपसी अनबन का कारण बन जाती है। तो—कहीं इसका कारण आपके घर का वास्तु तो नहीं है ?  घर का खराब वास्तु पति–पत्नी के सीधा संबंधो को प्रभावित करता है। यदि आपके जीवनसाथी या लाइफ पार्टनर से आपकी नहीं बनती तो इसका अर्थ यह हैं की आपके घर या मकान में वास्तुदोष हे। वास्तुशास्त्री पण्डित दयानन्द शास्त्री  के अनुसार वास्तु में न सिर्फ सुख-समृद्धि के अपितु सुखद दाम्पत्य के सूत्र भी छिपे हैं। किसी के भी दाम्पत्य जीवन में बेडरूम काफी खास होता है। यदि बेडरूम में नीचे लिखे वास्तु नियमों का पालन किया जाए तो दाम्पत्य जीवन कहीं अधिक सुखमय हो सकता है। किसी भी घर की आंतरिक रूपरेखा एवं आंतरिक-सज्जा में फर्क होता है। आंतरिक रूप रेखा यूं तो कुछ सामान्य वास्तु नियमों पर आधारित होती है। किन्तु आन्तरिक सज्जा में यह देखना आवश्यक होता है कि घर में कौन-कौन एवं कितने लोग हैं? उस घर के निवासियों की रूचियां एवं जरूरतें क्या-क्या हैं? तथा इसके लिए आपके पास बजट कितना है?कोई भी वस्तु अपने गुण, प्रभाव एवं संरचना के आधार पर सात्विक, तामसिक तथा रजोगुणी होते हैं। इसके साथ ही सभी वस्तुओं पर भी ग्रहों का अलग-अलग प्रभाव रहता है। इसी आधार पर किस वस्तु को किस स्थान पर रखा जाए ताकि उस वस्तु की सकारात्मक ऊर्जा हमारे लिए कल्याणकारी हो, इसी से संबंधित वस्तुओं का विवेचन इस लेख के माध्यम से प्रयास किया जा रहा है। कुछ ऐसे ही वास्तुदोष जिनके होने पर पति-पत्नी के सबंधों को बुरी प्रभावित करते है। इसलिए घर का वातावरण ऐसा होना चाहिए कि ऋणात्मक शक्तियां कम तथा सकारात्मक  शक्तियां अधिक क्रियाशील हो। यह सब वास्तु के द्वारा ही संभव हो सकता है।
किसी भी घर या भवन के ईशान कोण का वास्तुशास्त्रानुसार बहुत ही महत्व है। यदि पति-पत्नी साथ बैठकर पूजा करें तो उनका आपस का अहंकार खत्म होकर संबंधों में मधुरता बढ़ेगी। उस घर की गृहलक्ष्मी द्वारा संध्या के समय तुलसी में दीपक जलाने से नकारात्मक शक्तियों को कम किया जा सकता है। घर के हर कमरे के ईशान कोण को साफ रखें, विशेषकर शयनकक्ष के। सामान्यतया पति-पत्नी में आपस में वैमनस्यता का एक कारण वास्तु नियमानुसार सही दिशा में उनका शयनकक्ष का न होना भी है।
यदि आपके घर के दक्षिण-पश्चिम दिशाओं में स्थित कोने में बने कमरों में आपकी आवास व्यवस्था नहीं है तो प्रेम संबंध अच्छे के बजाए, कटुता भरे हो जाते हैं। शयनकक्ष के लिए दक्षिण दिशा निर्धारित करने का कारण यह है कि इस दिशा का स्वामी यम, शक्ति एवं विश्रामदायक है। घर में आराम से सोने के लिए दक्षिण एवं नैऋत्य कोण उपयुक्त है। शयनकक्ष में पति-पत्नी का सामान्य फोटो होने के बजाए हंसता हुआ हो, तो वास्तु के अनुसार उचित रहता है।
यदि आपके घर के अंदर उत्तर-पूर्व दिशाओं के कोने के कक्ष में अगर शौचालय है तो पति-पत्नी का जीवन बड़ा अशांत रहता है। आर्थिक संकट व संतान सुख में कमी आती है। इसलिए शौचालय हटा देना ही उचित है। अगर हटाना संभव न हो तो शीशे के एक बर्तन में समुद्री नमक रखें। यह अगर सील जाए तो बदल दें। अगर यह संभव न हो तो मिट्टी के एक बर्तन में सेंधा नमक डालकर रखें।
यदि आपके घर के अंदर रसोई सही दिशा में नहीं है तो ऐसी अवस्था में पति-पत्नी के विचार कभी नहीं मिलेंगे। रिश्तों में कड़वाहट दिनों-दिन बढ़ेगी। कारण अग्नि का कहीं ओर जलना। रसोई घर की सही दिशा है आग्नेय कोण। अगर आग्नेय दिशा में संभव नहीं है तो अन्य वैकल्पिक दिशाएं है। आग्नेय एवं दक्षिण के बीच, आग्नेय एवं पूर्व के बीच, वायव्य एवं उत्तर के बीच। यदि आप अपने वैवाहिक जीवन को सुखद एवं समृद्ध बनाना चाहते है और अपेक्षा करते है  कि जीवन के सुंदर स्वप्न को साकार कर सकें तो रखें इन सामान्य वास्तु सिद्धांतों का ध्यान—  यदि आप निम्न वास्तु नियमों का पालन करेंगें तो आप और आपका जीवन साथी/ लाइफ पार्टनर सुखी रह सकते है। पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार आपके शयनकक्ष से संबंधित कुछ महत्त्वपूर्ण वास्तु नियम या तथ्य निम्न हैं –
⇒  गृहस्वामी का शयनकक्ष दक्षिण-पश्चिम दिशा अर्थात् नैऋत्य कोण में होना चाहिए। इस दिशा में अच्छी नींद आती है। इस दिशा में शयनकक्ष होने पर मनोबल, धन एवं यश की वृद्घि होती है।
⇒ शयनकक्ष में स्वर्गवासी पूर्वज, महाभारत-रामायण आदि से संबंधित चित्र तथा देवताओं की तस्वीरें भूलकर भी नहीं लगानी चाहिए।
⇒ शयनकक्ष में बेड इस तरह रखना चाहिए कि सोने वाले सिर दक्षिण दिशा में रहे। यूं तो पूर्व एवं पश्चिम दिशा में भी सिर रखा जा सकता है, लेकिन सर्वाधिक फायदा दक्षिण दिशा या पूर्व-पश्चिम दिशा में सिर रखकर सोने से होता है।
⇒ शयनकक्ष में अगर आईना रखने की आवश्यकता हो तो उसे इस प्रकार लगाना चाहिए कि सोते समय शरीर का प्रतिबिंब उसमें दिखाई न दे। अगर ऐसा होता है तो पति-पत्नी के सामंजस्य में बाधा पहुंचती है।
⇒ शयनकक्ष में खिडकी के ठीक सामने ड्रेसिंग टेबल नहीं लगाना चाहिए। अगर कोई अलमारी शयनकक्ष में रखनी हो तो उसे नैत्रदत्य (दक्षिण-पश्चिम) दिशा में ही रखना चाहिए। इससे लक्ष्मी का स्थायी वास होता है।
  ⇒ टेलीफोन के निकट किसी भी प्रकार का जलपात्र नहीं रखना चाहिए। इससे नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश घर में होता है तथा गृहस्वामी के ऊपर कोई न कोई चिन्ता बनी ही रहती है।
⇒   पति की उम्र अगर पत्नी की उम्र से लगभग पांच साल बडी हो तो बिस्तर की चादर हरी, छह से दस साल बडी हो तो चादर पीली तथा बीस साल बडी हो तो चादर का रंग सफेद होना चाहिए। इससे पति-पत्नी के प्रेम के बीच कोई बाधा उत्पन्न नहीं होती है।
⇒  कमरे में कोई महत्त्वपूर्ण कागजात रखने हो तो उसे उत्तर-पूर्व कोण (ईशान कोण) में ही रखना चाहिए। इससे जरूरत के समय कागजात बहुत जल्दी मिल जाते हैं। बिस्तर के गद्दे के नीचे किसी भी प्रकार का कागज नहीं रखना चाहिए। इससे यौन रोग होनेे की सभावना बनी रहती है।
⇒  शयनकक्ष में जूते-चप्पल का प्रवेश एकदम वर्जित किया जाना चाहिए। जूते-चप्पल के प्रवेश से शयनकक्ष की सार्थक ऊर्जा दूर हो जाती है तथा अनिद्रा एवं तनाव में वृद्घि होने लगती है। पंखे के ठीक नीचे कभी भी बिस्तर नहीं लगाना चाहिए,  इससे हमेशा मन में बुरी भावनाओं का प्रवेश होता रहता है।                    
⇒ यदि आप दाम्पत्य जीवन में खुशी चाहते है तो इस बात का विशेष ध्यान रखें कि बेडरूम शांत, ठंड़ा, हवादार व बिना दबाव वाला होना चाहिए। बेडरू्म में बेकार का सामान नहीं होना चाहिए।
⇒  बेडरूम में निजता कायम रहे। इसके लिए ध्यान रखें कि बेडरूम की खिड़की दूसरे कमरे में न खुले। शयन कक्ष की आवाज बाहर नहीं आनी चाहिए। इससे दाम्पत्य जीवन में मिठास बढ़ती है।
⇒ शयन कक्ष में रंग हल्का व अच्छा हो। दीवारों पर चित्र कम हों, चित्र मोहक होना चाहिए।
⇒ बेडरूम में पलंग आवाज करने वाला न हो तथा सही दिशा में रखा हो। सोते समय सिर दक्षिण की ओर होना चाहिए। आरामदायक व भरपूर नींद से दाम्पत्य जीवन अधिक सुखद बनता है।
⇒  बाथरूम, बेडरूम से लगा हुआ होना चाहिए। बाथरूम का दरवाजा बेडरूम में खुलता हो तो उसे बंद रखना चाहिए। उस पर परदा भी डाल सकते हैं।
⇒  बेडरूम में पेयजल की सुविधा होनी चाहिए ताकि रात को उठकर बाहर न जाना पड़े।
  ⇒ बेडरूम में प्रकाश की उचित व्यवस्था होना चाहिए। सोते समय जीरो वॉट का बल्ब जलाना चाहिए और उसकी रोशनी सीधी पलंग पर नहीं पडऩी चाहिए।

by Pandit Dayanand Shastri.

vikram_samvat

जानिए केसा रहेगा नव संवत्सर (विक्रम संवत्)–2073

नव विक्रमी संवत 2073 का आरंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा यानी नवरात्र के पहले दिन (आठ अप्रैल) से होगा। इस वर्ष का राजा शुक्र और मंत्री बुध है। 60 संवत्सर में ये 43 वॉं सौम्य संवत्सर है जिसका स्वामी चन्द्र है। हालाँकि 23 मई 2016 को 11 बजकर 01 मिनट से साधारण नामक संवत्सर का प्रवेश होगा लेकिन संवत्सर का आरम्भ चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा दिनांक 08 अप्रैल 2016 शुक्रवार के समय सौम्य नामक संवत्सर रहेगा अतः वर्ष पर्यन्त संकल्पादि में सौम्य संवस्तर का ही विनियोग करना चाहिये। और वर्ष पर्यन्त इसी नाम के संवत्सर का फल प्राप्त होगा।
सौम्य संवत्सर होने से इस साल अनुकूल वर्षा होने के साथ ही ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार फैशन जगत के क्षेत्र में नए प्रचलन आने की बात कही है। साथ ही कहा है कि बुध के मंत्री होने से पेट्रोलियम वस्तुओं के भाव बढ़ेंगे। चैत्र नवरात्र के पहले दिन जो वार होता है उसे वर्ष का राजा माना जाता है और बैसाखी के दिन जो वार होता है उसे वर्ष का मंत्री माना जाता है। इस हिसाब से साल का राजा शुक्र और मंत्री बुध है। इसी दिन चैत्र नवरात्र का शुभारंभ हाेगा। और समापन 15 अप्रैल को शुक्रवार के ही दिन होगा। गत वर्ष की तरह इस बार भी चैत्र नवरात्र आठ दिन की ही होगी। इसकी वजह कुछ पंचांगों में चतुर्थी व पंचमी तो किसी में पंचमी व षष्टी तिथि का एक दिन होना है। शुक्रवार से नव संवत्सर का शुभारंभ होना पंडित पूरे वर्ष के लिए लाभकारी मान रहे हैं। इसकी वजह यह है कि शुक्रदेव वैभव,विलासिता व भौतिक सुख साधन देने वाले देव हैं,जबकि इस दिन की अधिपति देवी मां लक्ष्मी हैं,जो सुख,धन व ऐश्वर्य प्रदान करती है।
पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार सौम्य संवत्सर होने से देश में अनुकूल वर्षा होगी। पाकिस्तानअफगानिस्तान आदि देशों में उपद्रव विस्फोट एवं अशांति फैलेगी। तिवारी के अनुसार अतिवृष्टि से बाढ़ आदि का प्रकोप पश्चिमी प्रदेशों में रहेगा। आवश्यक वस्तुओं के मूल्यों में अचानक वृद्धि होगी।
इस वर्ष विक्रम सम्वत् नव संवत्सर( 2073 ) में ग्रहों की सत्ता इस बार शुक्र के हाथ में होगी। दोहरी जिम्मेदारी के रूप में वित्त मंत्रालय भी शुक्र को संभालना होगा। मंत्री का पद बुध के पास आ जाएगा।कानूनव्यवस्था भूमिपुत्र मंगल के जिम्मे होगी। सत्ता के इन चार महत्वपूर्ण पदों में से तीन की जिम्मेदारी सौम्य ग्रहों के पास रहेगी।अभी राजा का पद शनि व मंत्री का जिम्मा मंगल ने संभाल रखा है।आगामी नवसंवत्सर 2073 से सत्ता में बड़ा बदलाव हो रहा है। ग्रहों के नए मंत्रिमंडल में हर ग्रह की जिम्मेदारी बदल जाएगी। इससे पहले संवत 2069 में शुक्र प्रधानमंत्री बने थे।
 8 अप्रेल को विक्रम संवत 2073 शुरू होगा और नवसंवत्सर के पहले दिन से ही नया मंत्रिमंडल प्रभावी हो जाएगा।हालांकि प्रतिपदा एक दिन पूर्व 7 तारीख से शुरू हो जाएगी लेकिन सूर्योदय के समय प्रतिपदा 8 को रहने से नवसंवत्सर इस दिन से शुरू होगा।
  • तिलक की विदाई, सौम्य का राज
नए मंत्रिमण्डल में सत्ता सौम्य ग्रह के पास होने के साथ सवंत्सर का नाम भी सौम्य ही होगा। इसी के साथ पुराने संवत्सर तिलक की विदाई हो जाएगी। जानकारों का कहना है कि सौम्य के राज में जनता में भौतिक सुखसुविधाओं से जीवन यापन करने की प्रवृत्ति बढ़ेगी। इस दौरान सरकार की जनता के प्रति जवाबदेही में भी वृद्धि देखी जाएगी।
  • जानिए ग्रह स्थिति और उसका फल
राजा (प्रधानमंत्री) शुक्र :- धान्य उत्पादन में वृद्धि, समाज में महिलाओं का वर्चस्व तेजी से बढ़ेगा।
मंत्री बुद्ध :— व्यापारियों के लिए विशेष लाभकारी। बैंकों के कारोबार बढऩे के साथ उनका एकीकरण भी बढ़ेगा। प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होगी।
धनेश (वित्त मंत्री) शुक्र :- शेयर मार्केट में उथलपुथल रहेगी। देश के सूचना एवं प्रौद्योगिकी में क्रांतिकारी परिवर्तन आएगा।
दुर्गेश (गृहमंत्री) मंगल :- अपराध में बढ़ोतरी होगी लेकिन नवीन तकनीकों से अपराधियों को पकडऩे की रणनीतियां बढ़ेंगी।
अग्र धान्यधीपो (कृषि मंत्री) शनि :-जनता में रोग व पीड़ा बढ़ेगी। सरकार और जनता में तालमेल की कमी होगी।
पश्च धान्यधीपो (खाद्यमंत्री) गुरु :-कृषि विकास एवं भूमि सुधार होगा।
मेघेश (जलदाय मंत्री) मंगल :- कहीं वर्षा कम तो कहीं अधिक होगी।
रसेश (डेयरी एवं गोपालन मंत्री) सूर्य :- दूधघी के उत्पादन में कमी होगी। डिब्बा बंद सामग्री का प्रचलन बढ़ेगा।
निरसेश (खनिज, परिवहन मंत्री) शनि :- पेट्रोलियम पदार्थ महंगे हो जाएंगे। यातायात के साधन बढ़ेंगे।
फलेश (वन एवं पर्यावरण मंत्री) मंगल :- वृक्षों पर फलफूल कम लगेंगे। 
  • यह रहेगा नया मंत्रिमंडल—
पद अभी ग्रह नए स्वामी
राजा शनि शुक्र
मंत्री मंगल बुध
अग्रधान्यधीपो गुरु शनि
पश्चधान्यधीपो बुध गुरु
मेघेश चंद्रमा मंगल
रसेश शनि सूर्य
निरसेश गुरू शनि
फलेश चंद्रमा मंगल
धनेश गुरू शक्र
दुर्गेश चंद्रमा मंगल

 

  • जानिए सौम्य नामक संवत्सर का फलः
इस संवत्सर में लोग अन्न अधिक होने,महगाई कम होने,वृष्टि अच्छिी होने के कारण प्रसन्नचित रहते है। राजाओं में आपस में बैर नही होता ब्राहमण अपनी परम्परा के अनुसार चलते रहते है।
  • साधारण नामक संवत्सर का फलः
पृथ्वी पर वृष्टि आधी होती है महगाई कम रहती है लेकिन आतंक और भय का वातावरण साधारण आदमी पर छाया रहता है। धनी लोगों को मामूली आमदनी होती है। लेकिन प्रजा प्रसन्न रहती है।
  • इस संवत्सर में प्रत्येक क्षेत्र में बढ़ेगा स्त्रियों का प्रभाव
शुक्र राजा होने से फैशन आदि के क्षेत्र में नए प्रचलन आएंगे।आध्यात्मिक प्रवृत्तियां विकसित होंगी। प्रत्येक क्षेत्र में स्त्रियों का प्रभाव बढ़ेगा। बुध मंत्री होने से पेट्रोलियम वस्तुओं के भाव तेज होंगे।
शनि की दृष्टि उत्तर दिशा की ओर रहेगी, इसके फलस्वरूप उत्तरी प्रांतों बिहार, दिल्ली, उत्तराखंड, पंजाब, हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक प्रकोप एवं पूर्वी राज्यों में सत्ता परिवर्तन की प्रबल संभावनाएं बनेंगी।
वर्ष लग्न:-
                                      वर्ष कुण्डली में बुध लग्नेश और दशमेश होगर अष्टम बैठ जाने से भारत वर्ष के लिये कोई भी उन्नति संबधी कार्य करने के लिये विशेष मेहनत की आवश्यकता होगी कोई भी उन्नति कार्य आसानी से नही बन पायेगें।शुक्र गृह धन भाव एंव भाग्य के स्वामी होकर सप्तम भाव में सूर्य और चन्द्र के साथ बैठकर लग्न को देख रहें है अतः देश की आर्थिक स्थिति एंव धन संचय की योजना बनेगी बहुत सारे कार्य भाग्यवश होने की संभावना बनेगी चूकि सूर्य की उपस्थिति शुक और चन्दमा को थोड़ा कमजोर किये हुये है अतः‘ इन तमाम सभावनाओं को बड़ी मेहनत और होशियारी से ही किया जा सकता है।मंगल गृह वर्ष कुण्डली में स्वग्रही होकर देश की आन्तरिक एंव बाह् सुरक्षा को मजबूत करेगें।गुरू गृह सुख एंव व्यापार का स्वामी होकर द्वादश भाव में राहु के साथ बैठ कर अन्तराष्टीय स्तर पर कारोबार के उन्नति हेतु भारी मशक्कत करनी होगी ।शनि पंचम भाव एंव षष्ठ भाव को स्वामी होकर तृतीय भाव में बैठकर भारत की अन्तराष्ट्रीय स्तर पर भारी मान सम्मान एंव स्वास्थ्य सम्बन्धी क्षेत्र में कुछ अच्छा होने के आसार  हैें।केतु वर्ष कुण्डली में षष्ठम भाव में बैठ कर असभंव कार्य को भी संभव कर देने की क्षमता पैदा करेंगे।
वर्षा योगः
                                    आद्रा प्रवेशांक के विचार से वर्षा के योग लगभग समान्य ही रहने के आसार है।बुध लग्नेश होकर द्वादश भाव में बैठने से जहां तहां सूखे का योग रहेगा। चन्द्रमा की दृष्टि लग्न में होने के कारण वर्षा की स्थिति मे सुधार होने की सभावना रहेगी। पूर्वोत्तर राज्योे में वर्षा अच्छी होने के आसार है। फसलो का उत्पादन लगभग अच्छा ही होने के आसार रहेंगे।
इस वर्ष के राजा शुक का फल:- जिस वर्ष के राजा शुक्र हो उस वष कषि उपज अच्छी होती है। नदियो में भरपूर जल बहाव रहता है। वृक्ष फलों से युत रहतें है। भूजल स्तर अच्छा रहता है। जल वृष्टि अच्छी हो गाये अधिक दूध देवें।
इस वर्ष के मंत्री बुध का फल:- धन किस तरह संचय होगा शत्रुओं को पराजित कैसे किया जाये और अपनी विदेश नीति कैसी को इस सब पर गहन चिन्तन का वष रहेगा। बुध का मंत्री होने के कारण स्त्रियां पति के साथ सुख पूर्वक जीवन बितायेगीं।धन इकठठा होगा।
———————————————————–
  • भारत का संभावित भविष्यफल सम्वत् 2073 में 
भारत वर्ष कि यदि नाम राशि धनु माने तो इस पूरे वर्ष शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव रहेगा इस वर्ष शनि धन एंव पराक्रम के स्वामी होने कारण धन संचय एंव विश्व स्तर पर मान सम्मान बरकरार रखने के लिये कठोर परिश्रम करना पड़ेगा।अन्तराष्ट्रीय व्यापारिक सम्बन्ध मधुर होंगें।विश्व के बड़ी हस्तियों के सहयोग से चारों तरफ मान सम्मान बढ़ेगा।ग्रह योग बताते हैं कि अर्थव्यवस्था पर पूरे नव संवत्सर 2073 के चलते शुक्र का खास प्रभाव दिखाई देगा। भूमि,भवन,वाहन,ज्वैलरी और खाद्यान्न और इलेक्ट्रॉनिक्स वस्तुओं पदार्थों की कीमतों में कभी एकदम तेजी तो कभी भारी गिरावट आएगी।न्याय और प्रशासनिक तंत्र मजबूत होगा। इसकी वजह शुक्र व शनि ग्रह में मित्रता है। शनि को न्याय का देवता माना जाता है। शुक्र व बुध के सामंजस्य की वजह से सत्तारूढ़ दल व विपक्षियों के बीच मतभेद के बावजूद आर्थिक मामलों में सामंजस्य भी बनेगा। दूसरी ओर शुक्र गृह के इस साल का राजा होने के कारण कला व साहित्य के क्षेत्र के लोगों के लिए उन्नतिकारक होगा।शुक्र के राजा रहने पर इलेक्ट्रॉनिक्स वस्तुओं,सौंदर्य प्रसाधन,सिनेमा व्यवसाय में तेजी व लेखन के क्षेत्र में साहित्यकारों की ख्याति बढ़ेगी। दूसरी ओर खाद्यान्न के भावों में कभी तेजी,कभी मंदी रहेगी। कई देशों से भारत की आर्थिक व सामरिक संधियां होंगी। महिलाओं की सुरक्षा व उनके संवैधानिक अधिकार और बढ़ेंगे। महिला कला नेत्रियों को उच्च पद व पुरस्कार मिलेंगे।
***उपरोक्त राशिफल चन्द्र राशि आधारित हैं। देश, काल और परिस्थिति अनुसार परिणाम भिन्न हो सकते हैं। अपनी कुंडली के अनुसार गोचर फल का भी ध्यान रखें।
———————————————————–
राहु एंव केतु गृह की स्थितिः
राहु:- वर्षभर सिंह राशि मे रहकर तुला मिथुन मीन राशि के लिये शुभ रहेगा।
केतुः वर्ष भर मेष धनु एंव कन्या राशि वालों के लिये शुभ रहेगी।
गुरू की स्थिति:-
गुरू 07 अगस्त 2016 की 12.41 रात से गुरू कन्या राशि में चलें जायेगें तारीख 15 जनवरी 2017 करे तुला राशि में जायेगे। फिर वक्री होकर 01 मार्च 2017 को कन्या में वापस आ जायेगें जो संवत्सारन्त कन्या में रहेंगे।
——————————————-
गृहण की स्थितिः
इस वर्ष विश्व में 02 सूर्य गृहण होगें एक 01 सितम्बर 2016 व दूसरा 26 फरवरी 2017  इनमें से कोई भी भारत वर्ष में नहीं दिखंगें ।इस वर्ष विश्व में कोई भी चन्द्र गृहण नही होगें।
—————————————————-
जानिए 12 राशियों का सम्वत् 2073 का सूक्ष्म वर्षफल
मेष राशि –  सामान्य रूप से अच्छा काम रहेगा। बिगाडेगी शनि की अढ़ैया।
वृष राशि –  कुछ दिक्कतों के अतिरिक्त शेष शुभफलकारक रहेगा वर्ष।
मिथुन राशि इन राशि वालों के लिये यह वर्ष शुभफलकारक रहेगा।
कर्क राशि  आर्थिक स्थिति मजबूत होगी ।
सिंह राशि आर्थिक स्थिति कमजोर कर सकती है । शनि की अढ़ैया।
कन्या राशि सम्मान एंव यश मिलेगा।
तुला राशि – शनि की साढे़साती करायेगी धन लाभ।
वृश्चिक राशिमानसिक तनाव पैदा कर सकती है , शनि की साढ़ेसाती ।
धनु राशि धन संचय में सहयोग करेगी शनि की साढ़ेसाती ।
मकर राशि लाभ प्राप्त होने का समय रहेगा 2016 लकिन फरवरी 2017 में इस राशि में शनि की साढ़ेसाती मानसिक तनाव दे सकती है।
कुम्भ राशिः आत्म मंथन एंव चिन्तन का समय मिला जुला रहेगा 2016
मीन राशि सभी प्रकार के सुख प्राप्त होने का समय ।
उपरोक्त राशिफल चन्द्र राशि आधारित हैं। देश, काल और परिस्थिति अनुसार परिणाम भिन्न हो सकते हैं। अपनी कुंडली के अनुसार गोचर फल का भी ध्यान रखें।
———————————————————
by Pandit Dayanand Shastri.

 

vastu-without-demolition

वास्तु का मतलब केवल तोड़फोड़ ही नहीं होता। यह एक सम्पूर्ण विज्ञान है।।

                              वास्तु का मतलब भवन में तोड़फोड़ नहीं होता। यह एक विज्ञान है जो वेदिक काल  से प्रचलन में किन्तु पिछले कुछ समय मिडिया के कारण वास्तु शास्त्र काफी चर्चा में है। इसे लेकर तरह-तरह की भ्रांतियां फैलायी जा रही है। कुछ धंधेबाजों ने इसे पूजा पाठ और कर्मकांड से जो़ड़कर अपने यजमानों को डराना-धमकाना नियम सा बना लिया है।वास्तु दोष का भय दिखाकर वह दोहन तो करते हैं ही भवन में तरह-तरह की तोड़फोड़ भी कराते रहते हैं। वास्तु की चर्चा के दौरान ऐसे लोगों का ध्यान वास्तु शास्त्र की जटिलता पर कम, सामने वाली की जेब पर ज्यादा  होती है। उन्हें सही मायने में यह भी पता नहीं होता कि वास्तु शास्त्र धर्म है, कला है अथवा विज्ञान। इस सवाल पर वे बगले झांकने लगते है।वास्तु के बारे में उनकी अधकचरी जानकारी ने इस एक सार्वभौम और सार्वकालिक वैज्ञानिक पद्यति को लेकर जनमानस में तरह-तरह का भ्रम पैदा कर दिया है।

                         वास्तुशास्त्र को लेकर मे मन में भी तमाम तरह की जिज्ञासा थी। इस दिशा मैं अपने को वास्तुविद् बताने वाले तथा वास्तु समाधान की दुकान खोलकर बैठे कई महानुभावों से मिला लेकिन सबने पण्डे-पुजारियों जैसी बातें की। इसी दौरान मेरी मुलाकात पंडित दयानन्द शास्त्री से हुई ।दयानन्द शास्त्री जी ने ज्योतिषीय अनुभव लेने के बाद वास्तु शास्त्र में रुचि ली, तो गहरे उतरते गये। उन्होंने वड़ोदरा में 2004 में जितेन भट्ट से पायरा वास्तु का प्रशिक्षण प्राप्त किया।मेरठ में डॉक्टर संजीव अग्रवाल से विधिवत अनुभव और प्रशिक्षण प्राप्त किया।उन्होंने इस दिशा में गहन शोध की है । देश के विभिन्न हिस्सों का भ्रमण कर वहां वास्तु शास्त्र से संबंधित विषय वस्तु का अध्ययन किया तथा स्वदेशी मूल के आर्किटेक्चरल इंजीनियर भिलाई से आनंद वर्मा जी, मुम्बई से अशोक सचदेवा जी,उज्जैन से कुलदीप सलूजा जी, उदयपुर से निरंजन भट्ट जी, डॉक्टर श्री कृष्ण जुगनू जी, जयपुर से सतीश शर्मा जी, श्री प्रह्लाद राय काबरा जी, गाजियाबाद से कर्नल त्यागी, पंडित शिव कुमार शर्मा जी, दिल्ली से आइफास संस्थान, सूरतगढ़ से एस.के.सचदेवा जी, दिल्ली से श्री अरुण वंसल जी, पंडित गोपाल शर्मा,डॉक्टर आनन्द भारद्वाज, इंदौर से पंकजअग्रवाल, मुम्बई से नितिन गोठी जी, पुणे से दिलीप नाहर जी और डॉक्टर पाठक, औरंगाबाद से मग्गिरवार सर और लखनऊ से श्री गणेश ताम्रकार जी के साथ साथ अन्य अनेक वास्तु विद्वानों का सानिध्य मिला जिनका वास्तु पर भी बेहतर काम है , के सम्पर्क में रहे तथा उनसे काफी कुछ सीखा।

  • वास्तु को लेकर पंडित दयानन्द शास्त्री ने कई प्रयोग किये जो समय की कसौटी पर खरे उतरे। यहां प्रस्तुत है वास्तु के विविध पहलुओं पर उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश-                   
〉  वास्तु शास्त्र क्या है? 

                         यह बहस का मुद्दा हो सकता है कि वास्तु विज्ञान है अथवा कला लेकिन मेरी दष्टि  से पूर्ण विज्ञान भी है और कला भी। यह हमारी उस वैदिक अवधारणा पर आधारित है जिसमें भारतीय मनीषियों ने समाज में “सर्वे भवंतु सुखिन, सर्वे संतु निरामया” की कल्पना की है। यह एक ऐसा विज्ञान है जिसका उपयोग व्यक्ति के सुखी और स्वास्थ्य जीवन के लिए किया जाता है। यह उर्जा का विज्ञान है जिसमें भवन, उसमें निवास करने वालों तथा उसके परिवेश की उर्जाओं में संतुलन बैठाने की कोशिश की जाती है। वास्तु अंतरिक्ष, भूमि व क्वांटम ऊर्जा में संतुलन बनाने की प्रक्रिया का नाम है। यह संतुलन ही व्यक्ति को सुखी और सम्पन्न बनाता है।               

〉  वास्तु जैसा कोई प्रयोग या विद्या भारत के अतिरिक्त अन्य देशों में है?      

                          पूरी दुनिया की सभी विकसित परम्पराओं में वास्तु उर्जा विज्ञान का प्रयोग भिन्न-भिन्न रूपों में हो रहा है। जर्मन, फ्रांस सहित कई देशों में वास्तु शास्त्र को ‘विल्डिंग बायोलॉजी’ के नाम से जाना जाता है। वहां इस दिशा में निरंतर शोध हो रहे हैं। यूरोपीय देशों में इसे ‘जिओमेंसी’ चीन में इसे ‘फेंगशुई’ तथा रूस ब्रिटेन में इसे ‘सेक्रेड ज्यामेट्री’ के नाम से पुकारते हैं। प्राय: सभी देशों में इस विद्या का मूल उद्देश्य है भूमि, प्रकृति व अंतरिक्ष की उर्जा के साथ भवन का इस प्रकार संतुलन बनाना कि वह अपने निवासियों के लिए अनुकूल हो। इस भवन में रहने वाले लोग सुखी तथा भौतिक व आध्यात्मिक रूप से समृद्ध हो। दरअसल दिशा वास्तु, उर्जा वास्तु, वनस्पति वास्तु, भूमि वास्तु, तथा मानव वास्तु मिलकर वास्तुशास्त्र का निर्माण करते हैं। इन सभी के संतुलन में ही मानव कल्याण निहित है।                               

〉 आप व्यक्ति, भवन अथवा वातावरण की ऊर्जा को कैसे मापते हैं?

                         प्रत्येक आदमी का अपना एक आभामंडल होता है। यह अंगूठे के निशान की भांति नीजी होता है। इसे व्यक्ति की इलेक्ट्रो डायेनेमिक फिल्ड भी कहते हैं। यह फिल्ड या आभामंडल आसपास की ऊर्जा को प्रभावित करता है अथवा प्रभावित होता है। इस आभामंडल को घर अथवा कार्यालय जहां व्यक्ति रहता है वहां की ऊर्जा उद्वेलित करती है। यह उद्वेलन सकारात्मक और नकारात्मक दोनों हो सकता है। इस तरह की ऊर्जा को मापने के यंत्र भी हैं। जर्मनी वैज्ञानिकों द्वारा आविष्कृत लेकर एंटीना एक ऐसा ही यंत्र है जो मानव शरीर की विभिन्न प्रकार की उर्जाओं की प्रकृति तथा उनकी माप को निर्धारित करता है। वास्तु व्यक्ति, भवन तथा वातावरण की उर्जाओं में समन्वय स्थापित करने का विज्ञान है ताकि व्यक्ति सुखी हो।

〉  वास्तु दोष निवारण के नाम पर मकान में प्राय: तोडफ़ोड़ की बात सामने आती है। क्या यह उचित है?

                        वास्तु शास्त्र को लेकर लोगों में बहुत भ्रांतियां हैं। दरअसल वैज्ञानिक रूप से भवन में सकारात्मक उर्जा का संतुलन तथा नकारात्मक उर्जा का रोध ही वास्तु दोष निवारण है। जो वास्तु को सही ढंग से नहीं समझते वह वास्तु दोष निवारण के लिए तोडफ़ोड़ कराते है। सच तो यह है कि ऐसा करके वे एक नया वास्तु दोष पैदा कर देते है। गहन जानकारी के बिना तोडफ़ोड़ करके वास्तु सुधार ठीक वैसे ही है जैसे किसी सामान्य आदमी से कोई जटिल ऑपरेशन कराना। वास्तु में उर्जा की शुद्धि अथवा सकारात्मक उर्जा की आपूर्ति के लिए किसी तरह के तोडफ़ोड़ की जरूरत नहीं पड़ती। सच तो यह है कि मकान में तोडफ़ोड़ करने से लाभ की जगह अधिकांश मामलों में हानि होती है। सामान्यतया कास्मिक, ग्लोबल तथा टेल्युरिक उर्जाओं का संतुलन गृहस्थ जीवन के लिए आवश्यक है। इसके लिए किसी प्रकार की तोडफ़ोड़ की जरूरत नहीं होती।                        

〉 वास्तु सुधार को लेकर इतना आग्रह क्यों?         

                       दरअसल वास्तु शास्त्र व्यक्ति की प्रगति और समृद्धि का विज्ञान है। यह अनुकूल है तो जीवन में सब शुभ-शुभ वरना तरह-तरह की परेशानियां पैदा होती रहती हैं। इसका समय रहते इलाज भी हो जाना चाहिए वरना बढ़ते घाव की तरह उपेक्षा करने पर यह भी नासूर बन जाता है। भवन के आकार , उसकी भौगोलिक तथा देशिक स्थिति, उसका उपयोग करने वालों के कारण उर्जा विशेष प्रकार का रूप तथा गुण धारण कर लेती है। यह भवन का उपयोग करने वालों के अनुकूल या प्रतिकूल हो सकती है। अनुकूलता तो सुखद होती है, लेकिन प्रतिकूलता जीवन के समस्त कारोबार को प्रभावित करती है।      

〉 प्रतिकूल या अनुकूल उर्जा का आंकलन कैसे करेंगे?

                       विदेशों खासकर जर्मनी में इस दिशा में निरंतर शोध हो रहा है। ऐसे-ऐसे यंत्र विकसित हो गये हैं जो भवन की नकारात्मक व सकारात्मक उर्जा के मापन में सक्षम हैं। यह उर्जा सर्वत्र विद्यमान है।इन्हें आकर्षित करने का गुण हमारे अंदर है। हम सकारात्मक उर्जा का आह्वान कर अपने घर का वास्तु दोष दूर कर सकते हैं ।

by Pandit Dayanand Shastri.

happy family photo

यदि रहना हैं सुखी और निरोग तो ध्यान रखें इन कुछ आसान और जरुरी बातों का-

 

  • बहुत सारी ऐसी बातें है जो हम जानते नहीं है या जान बूझ कर नजर अंदाज़ कर देते हैं। जैसे अक्सर हम लोग हमारे मोबाईल फोन में कॉलर ट्यून या हेलो ट्यून कोई भी मन्त्र की लगा लेते हैं जोकि सर्वथा अनुचित है।(अर्थात सही नही )क्यूंकि हर मन्त्र का अपना प्रभाव होता है। अपनी अलग ही तरंगे होती है। जब भी कभी कोई फोन करता है और घंटी की जगह मन्त्र उच्चारित होने लगता है।
  • पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार कई बार फोन/मोबाईल जल्दी में ही उठा लिया जाता है और रिंगटोन मन्त्र आधा ही रह जाता है। यह आधा मन्त्र दोष दायक हो सकता है। आज कल फोन हर जगह ले जाया जाता है। बाथरूम में भी। अब सोचने वाली बात यह है क्या ये जगह मन्त्र के लिए उपयुक्त है???
  • हम अपने इष्ट देव की तस्वीर का भी कवर फोटो फ़ोन पर लगा देते हैं। यह मोबाइल फोन है, कहीं भी कभी आ सकता है। हम झट से उठा लेते हैं। डाइनिंग टेबल हो या बाथरूम।  हमें अशुद्ध हाथों से ईश्वर की तस्वीर छूनी नहीं चाहिए।
  • हम लोग घरों में भी जगह -जगह अपने इष्ट की तस्वीरें टांग देते है। यह तो सभी जानते हैं कि ईश्वर की तस्वीर शयनकक्ष में नहीं होनी चाहिए। लेकिन हम शयन कक्ष के अलावा भी अन्य कमरों में रसोई आदि में ईश्वर की तस्वीरे लगा देते हैं। बेशक ये हमारी धार्मिक प्रवृत्ति दर्शाती है  लेकिन यह प्रवृत्ति उचित नहीं है। घर में हर वस्तु का एक नियत स्थान होता है, जहां आपने इसके लिये उपयुक्त जगह बनाई है वही पर स्थान पर लगाये तो अच्छा है। बैठक हो या भोजन कक्ष , यहां पर परिवार की हंसती खुशनुमा तस्वीर होनी चाहिए। हमारी बैठक(ड्राइंग रुम) में सभी तरह के लोग मिलने आते जाते है। आज -कल उनके स्वागत के लिए विभिन्न प्रकार के ‘पेय ‘पदार्थ भी दिए जाते हैं या छोटी -बड़ी पार्टियाँ भी की जाती है ।ऐसे में वहां भगवान की तस्वीर लगाने से बचे,  ऐसे में नकारात्मकता ही बढती है।रसोई में अगर चित्र लगाना हो तो अन्नपूर्णा देवी का लगाया जा सकता है। वह भी इस शर्त पर वहां मांसाहार न पकाया जाता हो।ईश्वर के लिए घर में जहाँ मंदिर या अन्य स्थान दिया होता है। वहीँ होना चाहिए। सुबह शाम धूप -दीप किया जाना चाहिए। पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार अक्सर लोगो के घरों में पत्थर के बने मदिर भी पाए जाते हैं । यह भी गलत है। मूर्तियों की स्थापना भी करते हैं।
  •  घर अगर घर बना रहे तो ही अच्छा है , मूर्तियों के लिए देवालय बने हैं। अगर मूर्ति रखनी ही है उसकी  तो ऊँचाई 4 इंच से बड़ी ना रखें। ऐसे बहुत सारी बातें और भी है जिन पर हम दृष्टि डाल कर भी अनदेखा कर देते हैं जो उचित नही है। ऐसी अमूल्य या उचित बातों की अनदेखी के कारण ही हम लोग कई बार परेशानियों से घिर जाते हैं अतः थोड़ी सी समझदारी द्वारा अनेकानेक परेशानियों से मुक्ति पाई जा सकती हैं।

by Pandit Dayanand Shastri.

vastu color

आइये जाने वास्तु में रंगों का महत्व (by Pt. Dayanand Shastri).

 किसी भवन की ऊर्जा को संतुलित करना वास्तुं का मूल ध्येय है। ऊर्जा विज्ञान की एक उप शाखा है कम्पन विज्ञान। यदि कम्पन विज्ञान पर नजर डालें तो ज्ञात होता है कि ब्रहमाण्‍ड तो कम्पन का अथाह महासागर है। वस्तुओं की प्रकृतियां उनके कम्पनों के मुताबिक होती हैं। इस सत्य को अगर हम वास्तु के संदर्भ में अध्ययन करें और गंभीरता से देखें तो विदित होता है कि हम अपने चारों तरफ व्याप्त कम्पनों से प्रभावित हो रहे हैं। विभिन्न‍ प्रकार के ये कम्पन विद्युत चुम्‍बकीय क्वां टम अथवा एस्ट्रषल स्तर पर हो सकते हैं। रंग और ध्‍वनि के स्तर से ये हमको प्रभावित करते हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि रंग और ध्वनि इस प्रकार की ऊर्जाएं हैं जिन्होंने प्रकृति एवं वातावरण के माध्यम से हमें अपने वर्तुल में घेर रखा है। यही कारण है कि वास्तु् विज्ञान में ध्वनियों तथा रंगों का स्‍थान अत्यंधिक महत्वपूर्ण है।

वास्तुविद पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार शुभ रंग भाग्योदय कारक होते हैं और अशुभ रंग भाग्य में कमी करते हैं। विभिन्न रंगों को वास्तु के विभिन्न तत्वों का प्रतीक माना जाता है। नीला रंग जल का, भूरा पृथ्वी का और लाल अग्नि का प्रतीक है। वास्तु और फेंगशुई में भी रंगों को पांच तत्वों जल, अग्नि, धातु, पृथ्वी और काष्ठ से जोड़ा गया है। इन पांचों तत्वों को अलग-अलग शाखाओं के रूप में जाना जाता है। इन शाखाओं को मुख्यतः दो प्रकारों में में बाँटा जाता है, ‘दिशा आधारित शाखाएं’ और ‘प्रवेश आधारित शाखाएं’।

दिशा आधारित शाखाओं में उत्तर दिशा हेतु जल तत्व का प्रतिनिधित्व करने वाले रंग नीले और काले माने गए हैं। दक्षिण दिशा हेतु अग्नि तत्व का प्रतिनिधि काष्ठ तत्व है जिसका रंग हरा और बैंगनी है। प्रवेश आधारित शाखा में प्रवेश सदा उत्तर से ही माना जाता है, भले ही वास्तविक प्रवेश कहीं से भी हो। इसलिए लोग दुविधा में पड़ जाते हैं कि रंगों का चयन वास्तु के आधार पर करें या वास्तु और फेंगशुई के अनुसार। यदि फेंगशुई का पालन करना हो, तो दुविधा पैदा होती है कि रंग का दिशा के अनुसार चयन करें या प्रवेश द्वार के आधार पर। दुविधा से बचने के लिए वास्तु और रंग-चिकित्सा की विधि के आधार पर रंगों का चयन करना चाहिए। रंग चिकित्सा पद्दति का उपयोग किसी कक्ष के विशेष उद्देश्य और कक्ष की दिशा पर निर्भर करती है। रंग चिकित्सा पद्दति का आधार सूर्य के प्रकाश के सात रंग हैं। इन रंगों में बहुत सी बीमारियों को दूर करने की शक्ति होती है। इस दृष्टिकोण से उत्तर पूर्वी कक्ष, जिसे घर का सबसे पवित्र कक्ष माना जाता है, में सफेद या बैंगनी रंग का प्रयोग करना चाहिए। इसमें अन्य गाढे़ रंगों का प्रयोग कतई नहीं करना चाहिए। दक्षिण-पूर्वी कक्ष में पीले या नारंगी रंग का प्रयोग करना चाहिए, जबकि दक्षिण-पश्चिम कक्ष में भूरे, ऑफ व्हाइट या भूरा या पीला मिश्रित रंग प्रयोग करना चाहिए। यदि बिस्तर दक्षिण-पूर्वी दिशा में हो, तो कमरे में हरे रंग का प्रयोग करना चाहिए। उत्तर पश्चिम कक्ष के लिए सफेद रंग को छोड़कर कोई भी रंग चुन सकते हैं।

रंगों का महत्व हमारे जीवन पर बहुत गहरा होता है। रंग हमारे विचारों को प्रभावित करते हैं तथा हमारी सफलता व असफलता के कारक भी बनते हैं। आइए वास्तुविद पण्डित दयानन्द शास्त्री से जानते हैं कि किस रंग का वास्तु में क्या महत्व है|

  • पीला रंग:-  यह रंग हमें गर्माहट का अहसास देता है। इस रंग से कमरे का आकार पहले से थोड़ा बड़ा लगता है तथा कमरे में रोशनी की भी जरूरत कम पड़ती है। अत: जिस कमरे में सूर्य की रोशनी कम आती हो, वहाँ दीवारों पर हमें पीले रंग का प्रयोग करना चाहिए। पीला रंग सुकून व रोशनी देने वाला रंग होता है। घर के ड्राइंग रूम, ऑफिस आदि की दीवारों पर यदि आप पीला रंग करवाते हैं तो वास्तु के अनुसार यह शुभ होता है।

 

  • गुलाबी रंग:- यह रंग हमें सुकून देता है तथा परिवारजनों में आत्मीयता बढ़ाता है। बेडरूम के लिए यह रंग बहुत ही अच्छा है।

 

  • नीला रंग:- यह रंग शांति और सुकून का परिचायक है। यह रंग घर में आरामदायक माहौल पैदा करता है। यह रंग डिप्रेशन को दूर करने में भी मदद करता है।

 

  •  जामुनी रंग:- यह रंग धर्म और अध्यात्म का प्रतीक है। इसका हल्का शेड मन में ताजगी और अद्‍भुत अहसास जगाता है। बेहतर होगा यदि हम इसके हल्के शेड का ही दीवारों पर प्रयोग करें।

 

  •  नारंगी रंग:- यह रंग लाल और पीले रंग के समन्वय से बनता है। यह रंग हमारे मन में भावनाओं और ऊर्जा का संचार करता है। इस रंग के प्रभाव से जगह थोड़ी सँकरी लगती है परंतु यह रंग हमारे घर को एक पांरपरिक लुक देता है।

 

  • अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिए आपको अपने कमरे की उत्तरी दीवार पर हरा रंग करना चाहिए।
  • आसमानी रंग जल तत्व को इंगित करता है। घर की उत्तरी दीवार को इस रंग से रंगवाना चाहिए।
  • घर के खिड़की दरवाजे हमेशा गहरे रंगों से रंगवाएँ। बेहतर होगा कि आप इन्हें डार्क ब्राउन रंग से रंगवाएँ।

जहाँ तक संभव हो सके घर को रंगवाने हेतु हमेशा हल्के रंगों का प्रयोग करें।

किसी भी भवन में गृहस्वामी का शयनकक्ष तथा तमाम कारखानों, कार्यालयों या अन्य भवनों में दक्षिणी-पश्चिम भाग में जी भी कक्ष हो, वहां की दीवारों व फर्नीचर आदि का रंग हल्का गुलाबों अथवा नींबू जैसा पीला हो, तो श्रेयस्कर रहता है। पिंक या गुलाबी रंग को प्रेम का प्रतीक माना जाता है। यह आपसी सामंजस्य तथा सौहार्द में वृद्धि करता है। इस रंग के क्षेत्र में वास करने वाले जातकों की मनोभावनाओं पर इसका गहरा प्रभाव पड़ता है। यही वजह है कि होली जैसे, पवित्र त्यौहार पर गुलाबी रंग का प्रयोग सबसे ज्यादा किया जाता है। इस भाग में गहरे लाल तथा गहरे हरे रंगों का प्रयोग करने से जातक की मनोवृत्तियों पर प्रतिकूल असर पड़ता है।

इसी प्रकार उत्तर-पश्चिम के भवन में हल्के स्लेटी रंग का प्रयोग करना उचित रहता है। वास्तुविद पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार यह भाग घर की अविवाहित कन्याओं के रहने या अतिथियों के ठहरने हेतु उचित माना जाता हैं।

इस स्थान का प्रयोग मनोरंजन कक्ष, के रूप में भी किया जा सकता है। किसी कार्यालय के उत्तर-पश्चिम भाग में भी स्लेटी रंग का उपयोग करने की सलाह दी जाती है। इस स्थान का उपयोग कर्मचारियों के मनोरंजन कक्ष के रूप में किया जा सकता है। वास्तु या भवन के दक्षिण में बना हुआ कक्ष छोटे बच्चों के लिए उपयुक्त माना जाता है। चूंकि चंचलता बच्चों का स्वभाव है, इसलिए इस भाग में नारंगी रंग का प्रयोग करना उचित माना जाता है। इस रंग के प्रयोग से बच्चों के मन में स्फूर्ति एवं उत्साह का संचार होता है। इसके ठीक विपरीत इस भाग में यदि हल्के रंगों का प्रयोग किया जाता है, तो बच्चों में सुस्ती एवं आलस्य की वृद्धि होती है। वास्तु या भवन में पूरब की ओर बने हुए कक्ष का उपयोग यदि अध्ययन कक्ष के रूप में किया जाए, तो उत्तम परिणाम पाया जा सकता है। सामान्यतः सफेद रंग सुख समृद्धि तथा शांति का प्रतीक है यह मानसिक शांन्ति प्रदान करता है। लाल रंग उत्तेजना तथा शक्ति का प्रतीक होता है। यदि पति-पत्नि में परस्पर झगड़ा होता हो तथा झगडे की पहल पति की ओर से होती हो तब पति-पत्नि अपने शयनकक्ष में लाल, नारंगी, ताम्रवर्ण का अधिपत्य रखें इससे दोनों में सुलह तथा प्रेम रहेगा। काला, ग्रे, बादली, कोकाकोला, गहरा हरा आदि रंग नकारात्मक प्रभाव छोडते हैं। अतः भवन में दिवारों पर इनका प्रयोग यथा संभव कम करना चाहिये। गुलाबी रंग स्त्री सूचक होता है। अतः रसोईघर में, ड्राईंग रूम में, डायनिंग रूम तथा मेकअप रूम में गुलाबी रंग का अधिक प्रयोग करना चाहिये। शयन कक्ष में नीला रंग करवायें या नीले रंग का बल्व लगवायें नीला रंग अधिक शांतिमय निद्रा प्रदान करता है। विशेष कर अनिद्रा के रोगी के लिये तो यह वरदान स्वरूप है। अध्ययन कक्ष में सदा हरा या तोतिया रंग का उपयोग करें।

रंग चिकित्सा पद्दति का उपयोग किसी कक्ष के विशेष उद्देश्य और कक्ष की दिशा पर निर्भर करती है। रंग चिकित्सा पद्दति का आधार सूर्य के प्रकाश के सात रंग हैं। इन रंगों में बहुत सी बीमारियों को दूर करने की शक्ति होती है। इस दृष्टिकोण से उत्तर पूर्वी कक्ष, जिसे घर का सबसे पवित्र कक्ष माना जाता है, में सफेद या बैंगनी रंग का प्रयोग करना चाहिए। इसमें अन्य गाढे़ रंगों का प्रयोग कतई नहीं करना चाहिए। दक्षिण-पूर्वी कक्ष में पीले या नारंगी रंग का प्रयोग करना चाहिए, जबकि दक्षिण-पश्चिम कक्ष में भूरे, ऑफ व्हाइट या भूरा या पीला मिश्रित रंग प्रयोग करना चाहिए। यदि बिस्तर दक्षिण-पूर्वी दिशा में हो, तो कमरे में हरे रंग का प्रयोग करना चाहिए। उत्तर पश्चिम कक्ष के लिए सफेद रंग को छोड़कर कोई भी रंग चुन सकते हैं। वास्तुविद पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार सभी रंगों के अपने सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव हैं।

इस प्रकार रंगों का हमारे जीवन व स्वास्थ्य पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। घर की दीवारों पर रंगों का उचित संयोजन करके अपने जीवन को इसी प्रकार वास्तु या भवन में उत्तर का भाग जल तत्व का माना जाता है। इसे धन यानी लक्ष्मी का स्थान भी कहा जाता है। अतः इस स्थान को अत्यंत पवित्र व स्वच्छ रखना चाहिए और इसकी साज-सज्जा में हरे रंग का प्रयोग किया जाना चाहिए| सभी जानते हे कि रंग नेत्रों के माध्यम से हमारे मानस में प्रविष्ट होते हैं एवं हमारे स्वास्थ्य, चिंतन, आचार-विचार आदि पर इनका गहरा प्रभाव पड़ता है। अतः उचित रंगों का प्रयोग सही स्थान पर करके हम वांछित लाभ पा सकते हैं।

 

by Pandit Dayanand Shastri.

जानिए 12 ज्योतिर्लिंग और उनकी विशेषता :

शिवमहापुराण के अनुसार एकमात्र भगवान शिव ही ऐसे देवता है, जो निष्कल व सकल दोनो है, यही कारण है कि एकमात्र शिव का पूजन लिंग व मूर्ति दोनो रूपों में किया जाता है।
यदि भगवान शिव के ज्योतिर्लिंगो के दर्शन किए जाएं तो जन्म-जन्म के कष्ट दूर हो जाते हैं, प्रमुख बारह ज्योतिर्लिंगों के दर्शन करने के लिए श्रद्धालुओ का सैलाब उमड़ता है।
1. सोमनाथ ज्योतिर्लिंग :
भारत का ही नहीं अपितु इस पृथ्वी का पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है, यह मंदिर गुजरात राज्य के सौराष्ट्र क्षेत्र में स्थित है। इस मंदिर के बारे में मान्यता है, कि जब चंद्रमा को दक्ष प्रजापति ने श्राप दिया था, तब चंद्रमा ने इसी स्थान पर तप कर इस श्राप से मुक्ति पाई थी। ऐसा भी कहा जाता है कि इस शिवलिंग की स्थापना स्वयं चन्द्र देव ने की था, विदेशी आक्रमणों के कारण यह 17 बार नष्ट हो चुका है, हर बार यह बिगड़ता और बनता रहा है।
2. मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग :
आंध्रप्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर श्रीशैल नाम के पर्वत पर स्थित है, इस मंदिर का महत्व भगवान शिव के कैलाश पर्वत के समान कहा गया है। अनेक धार्मिक शास्त्र इसके धार्मिक और पौराणिक महत्व की व्याख्या करते है, कहते हैं कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने मात्र से ही व्यक्ति को उसके सभी पापों से मुक्ति मिलती है। एक पौराणिक कथा के अनुसार जहां पर यह ज्योतिर्लिंग है, उस पर्वत पर आकर शिव का पूजन करने से व्यक्ति को अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य फल प्राप्त होते हैं।
3. महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग :
मध्यप्रदेश की धार्मिक राजधानी कही जाने वाली उज्जैन नगरी में स्थित है, महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की विशेषता है कि ये एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है, यहां प्रतिदिन सुबह की जाने वाली भस्मारती विश्व भर में प्रसिद्ध है।महाकालेश्वर की पूजा विशेष रूप से आयु वृद्धि और आयु पर आए हुए संकट को टालने के लिए की जाती है, उज्जैनवासी मानते हैं कि भगवान महाकालेश्वर ही उनके राजा हैं और वे ही उज्जैन की रक्षा कर रहे हैं।
4. ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग :
मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध शहर इंदौर के समीप स्थित है, जिस स्थान पर यह ज्योतिर्लिंग स्थित है, उस स्थान पर नर्मदा नदी बहती है और पहाड़ी के चारों ओर नदी बहने से यहां ऊं का आकार बनता है, ऊं शब्द की उत्पति ब्रह्मा के मुख से हुई है। इसलिए किसी भी धार्मिक शास्त्र या वेदों का पाठ ऊं के साथ ही किया जाता है, यह ज्योतिर्लिंग ॐकार अर्थात ऊं का आकार लिए हुए है, इस कारण इसे ओंकारेश्वर नाम से जाना जाता है।
5. केदारनाथ ज्योतिर्लिंग :
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग स्थित ज्योतिर्लिंग उत्तराखंड में स्थित है, बाबा केदारनाथ का मंदिर बद्रीनाथ के मार्ग में स्थित है, केदारनाथ का वर्णन स्कन्द पुराण एवं शिव पुराण में भी मिलता है। यह तीर्थ भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है, जिस प्रकार कैलाश का महत्व है उसी प्रकार का महत्व शिव जी ने केदार क्षेत्र को भी दिया है।
6. भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग:
महाराष्ट्र के पूणे जिले में सह्याद्रि नामक पर्वत पर स्थित है, भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग को मोटेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर के विषय में मान्यता है कि जो भक्त श्रद्धा से इस मंदिर का दर्शन प्रतिदिन सुबह सूर्य निकलने के बाद करता है, उसके सात जन्मों के पाप दूर हो जाते हैं तथा उसके लिए स्वर्ग के मार्ग खुल जाते है।
7. विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग :
काशी नामक स्थान पर स्थित है, काशी सभी धर्म स्थलों में सबसे अधिक महत्व रखती है, इसलिए सभी धर्म स्थलों में काशी का अत्यधिक महत्व कहा गया है। इस स्थान की मान्यता है कि प्रलय आने पर भी यह स्थान बना रहेगा, इसकी रक्षा के लिए भगवान शिव इस स्थान को अपने त्रिशूल पर धारण कर लेंगे और प्रलय के टल जाने पर काशी को उसके स्थान पर पुन: रख देंगे।
8. त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग :
गोदावरी नदी के करीब महाराष्ट्र राज्य के नासिक जिले में स्थित है, इस ज्योतिर्लिंग के सबसे अधिक निकट ब्रह्मागिरि नाम का पर्वत है। इसी पर्वत से गोदावरी नदी शुरू होती है, भगवान शिव का एक नाम त्र्यंबकेश्वर भी है, कहा जाता है कि भगवान शिव को गौतम ऋषि और गोदावरी नदी के आग्रह पर यहां ज्योतिर्लिंग रूप में रहना पड़ा।
9. श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग :
श्री वैद्यनाथ शिवलिंग का समस्त ज्योतिर्लिंगों की गणना में नौवां स्थान बताया गया है, भगवान श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का मन्दिर जिस स्थान पर अवस्थित है, उसे वैद्यनाथ धाम कहा जाता है।
10. नागेश्वर ज्योतिर्लिंग :
गुजरात के बाहरी क्षेत्र में द्वारिका स्थान में स्थित है, धर्म शास्त्रों में भगवान शिव नागों के देवता है और नागेश्वर का पूर्ण अर्थ नागों का ईश्वर है, भगवान शिव का एक अन्य नाम नागेश्वर भी है। इस ज्योतिर्लिंग की महिमा में कहा गया है कि जो व्यक्ति पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ यहां दर्शन के लिए आता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है।
11.  रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग :
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु राज्य के रामनाथपुरं नामक स्थान में स्थित है, इस ज्योतिर्लिंग के विषय में यह मान्यता है कि इसकी स्थापना स्वयं भगवान श्रीराम ने की थी। भगवान राम के द्वारा स्थापित होने के कारण ही इस ज्योतिर्लिंग को भगवान राम का नाम रामेश्वरम दिया गया है।
12. घृष्णेश्वर महादेव ज्योतिर्लिंग :
घृष्णेश्वर महादेव का प्रसिद्ध मंदिर महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर के समीप दौलताबाद के पास स्थित है, इसे घृसणेश्वर या घुश्मेश्वर के नाम से भी जाना जाता है, दूर-दूर से लोग यहां दर्शन के लिए आते हैं और आत्मिक शांति प्राप्त करते हैl

Shaktipith

🙏🚩51 शक्ति पीठो का विवरण🚩🙏 (Details of 51 Shakti Peethas) :

1.किरीट शक्तिपीठ (Kirit Shakti Peeth) :
किरीट शक्तिपीठ, पश्चिम बंगाल के हुगली नदी के तट लालबाग कोट पर स्थित है।यहां सती माता का किरीट यानी शिराभूषण या मुकुट गिरा था। यहां की शक्ति विमला अथवा भुवनेश्वरी तथा भैरव संवर्त हैं। (शक्ति का मतलब माता का वह रूप जिसकी पूजा की जाती है तथा भैरव का मतलब शिवजी का वह अवतार जो माताके इस रूप के स्वांगी है )
2. कात्यायनी शक्तिपीठ (Katyayani Shakti Peeth ) :
वृन्दावन, मथुरा के भूतेश्वर में स्थित है कात्यायनी वृन्दावन शक्तिपीठ जहां सती का केशपाश गिरा था। यहां की शक्ति देवी कात्यायनी हैं तथा भैरव भूतेश है।
3. करवीर शक्तिपीठ (Karveer shakti Peeth) :
महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां माता का त्रिनेत्र गिरा था। यहां की शक्ति महिषासुरमदिनी तथा भैरव क्रोधशिश हैं। यहां महालक्ष्मी का निज निवास माना जाता है।
4. श्री पर्वत शक्तिपीठ (Shri Parvat Shakti Peeth) :
इस शक्तिपीठ को लेकर विद्वानों में मतान्तर है कुछ विद्वानों का मानना है कि इस पीठ का मूल स्थल लद्दाख है, जबकि कुछ का मानना है कि यह असम के सिलहट में है जहां माता सती का दक्षिण तल्प यानी कनपटी गिरा था। यहां की शक्ति श्री सुन्दरी एवं भैरव सुन्दरानन्द हैं।
5. विशालाक्षी शक्तिपीठ (Vishalakshi Shakti Peeth) :
उत्तर प्रदेश, वाराणसी के मीरघाट पर स्थित है शक्तिपीठ जहां माता सती के दाहिने कान के मणि गिरे थे। यहां की शक्ति विशालाक्षी तथा भैरव काल भैरव हैं।
6. गोदावरी तट शक्तिपीठ (Godavari Coast Shakti Peeth) :
आंध्रप्रदेश के कब्बूर में गोदावरी तट पर स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां माता का वामगण्ड यानी बायां कपोल गिरा था। यहां की शक्ति विश्वेश्वरी या रुक्मणी तथा भैरव दण्डपाणि हैं।
7. शुचीन्द्रम शक्तिपीठ (Suchindram shakti Peeth) :
तमिलनाडु, कन्याकुमारी के त्रिासागर संगम स्थल पर स्थित है यह शुची शक्तिपीठ, जहां सती के उफध्र्वदन्त (मतान्तर से पृष्ठ भागद्ध गिरे थे। यहां की शक्ति नारायणी तथा भैरव संहार या संकूर हैं।
8. पंच सागर शक्तिपीठ (Panchsagar Shakti Peeth) :
इस शक्तिपीठ का कोई निश्चित स्थान ज्ञात नहीं है लेकिन यहां माता का नीचे के दान्त गिरे थे। यहां की शक्ति वाराही तथा भैरव महारुद्र हैं।
9. ज्वालामुखी शक्तिपीठ (Jwalamukhi Shakti Peeth):
हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा में स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां सती का जिह्वा गिरी थी। यहां की शक्ति सिद्धिदा व भैरव उन्मत्त हैं।
10. भैरव पर्वत शक्तिपीठ (Bhairavparvat Shakti Peeth) :
इस शक्तिपीठ को लेकर विद्वानों में मतदभेद है। कुछ गुजरात के गिरिनार के निकट भैरव पर्वत को तो कुछ मध्य प्रदेश के उज्जैन के निकट क्षीप्रा नदी तट पर वास्तविक शक्तिपीठ मानते हैं, जहां माता का उफध्र्व ओष्ठ गिरा है। यहां की शक्ति अवन्ती तथा भैरव लंबकर्ण हैं।
11. अट्टहास शक्तिपीठ ( Attahas Shakti Peeth) :
अट्टहास शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के लाबपुर में स्थित है। जहां माता का अध्रोष्ठ यानी नीचे का होंठ गिरा था। यहां की शक्ति पफुल्लरा तथा भैरव विश्वेश हैं।
12. जनस्थान शक्तिपीठ (Janasthan Shakti Peeth) :
महाराष्ट्र नासिक के पंचवटी में स्थित है जनस्थान शक्तिपीठ जहां माता का ठुड्डी गिरी थी। यहां की शक्ति भ्रामरी तथा भैरव विकृताक्ष हैं।
13. कश्मीर शक्तिपीठ या अमरनाथ शक्तिपीठ (Kashmir Shakti Peeth or Amarnath Shakti Peeth) :
जम्मू-कश्मीर के अमरनाथ में स्थित है यह शक्तिपीठ जहां माता का कण्ठ गिरा था। यहां की शक्ति महामाया तथा भैरव त्रिसंध्येश्वर हैं।
14. नन्दीपुर शक्तिपीठ (Nandipur Shakti Peeth) :
पश्चिम बंगाल के सैन्थया में स्थित है यह पीठ, जहां देवी की देह का कण्ठहार गिरा था। यहां कि शक्ति निन्दनी और भैरव निन्दकेश्वर हैं।
15. श्री शैल शक्तिपीठ (Shri Shail Shakti Peeth ) :
आंध्रप्रदेश के कुर्नूल के पास है श्री शैल का शक्तिपीठ, जहां माता का ग्रीवा गिरा था। यहां की शक्ति महालक्ष्मी तथा भैरव संवरानन्द अथव ईश्वरानन्द हैं।
16. नलहटी शक्तिपीठ (Nalhati Shakti Peeth) :
पश्चिम बंगाल के बोलपुर में है नलहटी शक्तिपीठ, जहां माता का उदरनली गिरी थी। यहां की शक्ति कालिका तथा भैरव योगीश हैं।
17. मिथिला शक्तिपीठ (Mithila Shakti Peeth ) :
इसका निश्चित स्थान अज्ञात है। स्थान को लेकर मन्तारतर है तीन स्थानों पर मिथिला शक्तिपीठ को माना जाता है, वह है नेपाल के जनकपुर, बिहार के समस्तीपुर और सहरसा, जहां माता का वाम स्कंध् गिरा था। यहां की शक्ति उमा या महादेवी तथा भैरव महोदर हैं।
18. रत्नावली शक्तिपीठ (Ratnavali Shakti Peeth) :
इसका निश्चित स्थान अज्ञात है, बंगाज पंजिका के अनुसार यह तमिलनाडु के चेन्नई में कहीं स्थित है रत्नावली शक्तिपीठ जहां माता का दक्षिण स्कंध् गिरा था। यहां की शक्ति कुमारी तथा भैरव शिव हैं।
19. अम्बाजी शक्तिपीठ (Ambaji Shakti Peeth) :
गुजरात गूना गढ़ के गिरनार पर्वत के शिखर पर देवी अम्बिका का भव्य विशाल मन्दिर है, जहां माता का उदर गिरा था। यहां की शक्ति चन्द्रभागा तथा भैरव वक्रतुण्ड है। ऐसी भी मान्यता है कि गिरिनार पर्वत के निकट ही सती का उध्र्वोष्ठ गिरा था, जहां की शक्ति अवन्ती तथा भैरव लंबकर्ण है।
20. जालंध्र शक्तिपीठ (Jalandhar Shakti Peeth) :
पंजाब के जालंध्र में स्थित है माता काजालंध्र शक्तिपीठ जहां माता का वामस्तन गिरा था। यहां की शक्ति त्रिापुरमालिनी तथा भैरव भीषण है।
21. रामागरि शक्तिपीठ (Ramgiri Shakti Peeth) :
इस शक्ति पीठ की स्थिति को लेकर भी विद्वानों में मतान्तर है। कुछ उत्तर प्रदेश के चित्राकूट तो कुछ मध्य प्रदेश के मैहर में मानते हैं, जहां माता का दाहिना स्तन गिरा था। यहा की शक्ति शिवानी तथा भैरव चण्ड हैं।
22. वैद्यनाथ शक्तिपीठ (Vaidhnath Shakti Peeth) :
झारखण्ड के गिरिडीह, देवघर स्थित है वैद्यनाथ हार्द शक्तिपीठ, जहां माता का हृदय गिरा था। यहां की शक्ति जयदुर्गा तथा भैरव वैद्यनाथ है। एक मान्यतानुसार यहीं पर सती का दाह-संस्कार भी हुआ था।
23. वक्त्रोश्वर शक्तिपीठ (Varkreshwar Shakti Peeth) :
माता का यह शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के सैन्थया में स्थित है जहां माता का मन गिरा था। यहां की शक्ति महिषासुरमदिनी तथा भैरव वक्त्रानाथ हैं।
24. कण्यकाश्रम कन्याकुमारी शक्तिपीठ (Kanyakumari Shakti Peeth) :
तमिलनाडु के कन्याकुमारी के तीन सागरों हिन्द महासागर, अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ीद्ध के संगम पर स्थित है कण्यकाश्रम शक्तिपीठ, जहां माता का पीठ मतान्तर से उध्र्वदन्त गिरा था। यहां की शक्ति शर्वाणि या नारायणी तथा भैरव निमषि या स्थाणु हैं।
25. बहुला शक्तिपीठ (Bahula Shakti Peeth) :
पश्चिम बंगाल के कटवा जंक्शन के निकट केतुग्राम में स्थित है बहुला शक्तिपीठ, जहां माता का वाम बाहु गिरा था। यहां की शक्ति बहुला तथा भैरव भीरुक हैं।
26. उज्जयिनी शक्तिपीठ (Ujjaini Shakti Peeth) :
मध्य प्रदेश के उज्जैन के पावन क्षिप्रा के दोनों तटों पर स्थित है उज्जयिनी शक्तिपीठ। जहां माता का कुहनी गिरा था। यहां की शक्ति मंगल चण्डिका तथा भैरव मांगल्य कपिलांबर हैं।
27. मणिवेदिका शक्तिपीठ (Manivedika Shakti Peeth) :
राजस्थान के पुष्कर में स्थित है मणिदेविका शक्तिपीठ, जिसे गायत्री मन्दिर के नाम से जाना जाता है यहीं माता की कलाइयां गिरी थीं। यहां की शक्ति गायत्री तथा भैरव शर्वानन्द हैं।
28. प्रयाग शक्तिपीठ (Prayag Shakti peeth) :
उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में स्थित है। यहां माता की हाथ की अंगुलियां गिरी थी। लेकिन, स्थानों को लेकर मतभेद इसे यहां अक्षयवट, मीरापुर और अलोपी स्थानों गिरा माना जाता है। तीनों शक्तिपीठ की शक्ति ललिता हैं तथा भैरव भव है।
29. विरजाक्षेत्रा, उत्कल शक्तिपीठ (Utakal Shakti Peeth) :
उड़ीसा के पुरी और याजपुर में माना जाता है जहां माता की नाभि गिरा था। यहां की शक्ति विमला तथा भैरव जगन्नाथ पुरुषोत्तम हैं।
30. कांची शक्तिपीठ (Kanchi Shakti Peeth) :
तमिलनाडु के कांचीवरम् में स्थित है माता का कांची शक्तिपीठ, जहां माता का कंकाल गिरा था। यहां की शक्ति देवगर्भा तथा भैरव  हैं।
31. कालमाध्व शक्तिपीठ (Kalmadhav Shakti Peeth) :
इस शक्तिपीठ के बारे कोई निश्चित स्थान ज्ञात नहीं है। परन्तु, यहां माता का वाम नितम्ब गिरा था। यहां की शक्ति काली तथा भैरव असितांग है।
32. शोण शक्तिपीठ (Shondesh Shakti Peeth) :
मध्य प्रदेश के अमरकंटक के नर्मदा मन्दिर शोण शक्तिपीठ है। यहां माता का दक्षिण नितम्ब गिरा था। एक दूसरी मान्यता यह है कि बिहार के सासाराम का ताराचण्डी मन्दिर ही शोण तटस्था शक्तिपीठ है। यहां सती का दायां नेत्रा गिरा था ऐसा माना जाता है। यहां की शक्ति नर्मदा या शोणाक्षी तथा भैरव भद्रसेन हैं।
33. कामाख्या शक्तिपीठ (Kamakhya Shakti peeth) :
कामगिरि असम गुवाहाटी के कामगिरि पर्वत पर स्थित है यह शक्तिपीठ, जहां माता का योनि गिरा था। यहां की शक्ति कामाख्या तथा भैरव उमानन्द हैं।
34. जयन्ती शक्तिपीठ (Jayanti Shakti Peeth) :
जयन्ती शक्तिपीठ मेघालय के जयन्तिया पहाडी पर स्थित है, जहां माता का वाम जंघा गिरा था। यहां की शक्ति जयन्ती तथा भैरव क्रमदीश्वर हैं।
35. मगध् शक्तिपीठ (Magadh Shakti Peeth) :
बिहार की राजधनी पटना में स्थित पटनेश्वरी देवी को ही शक्तिपीठ माना जाता है जहां माता का दाहिना जंघा गिरा था। यहां की शक्ति सर्वानन्दकरी तथा भैरव व्योमकेश हैं।
36. त्रिस्तोता शक्तिपीठ (Trishota Shakti Peeth) :
पश्चिम बंगाल के जलपाइगुड़ी के शालवाड़ी गांव में तीस्ता नदी पर स्थित है त्रिस्तोता शक्तिपीठ, जहां माता का वामपाद गिरा था। यहां की शक्ति भ्रामरी तथा भैरव ईश्वर हैं।
37. त्रिपुरी सुन्दरी शक्तित्रिपुरी पीठ (Tripura Sundari Shakti Peeth) :
त्रिपुरा के राध किशोर ग्राम में स्थित है त्रिपुरे सुन्दरी शक्तिपीठ, जहां माता का दक्षिण पाद गिरा था। यहां की शक्ति त्रिापुर सुन्दरी तथा भैरव त्रिपुरेश हैं।
38 . विभाष शक्तिपीठ (Vibhasha Shakti Peeth) :
पश्चिम बंगाल के मिदनापुर के ताम्रलुक ग्राम में स्थित है विभाष शक्तिपीठ, जहां माता का वाम टखना गिरा था। यहां की शक्ति कापालिनी, भीमरूपा तथा भैरव सर्वानन्द हैं।
39. देवीकूप पीठ कुरुक्षेत्र शक्तिपीठ (Kurukshetra Shakti Peeth) :
हरियाणा के कुरुक्षेत्र जंक्शन के निकट द्वैपायन सरोवर के पास स्थित है कुरुक्षेत्र शक्तिपीठ, जिसे श्रीदेवीकूप भद्रकाली पीठ के नाम से भी जाना जाता है। यहां माता के दहिने चरण (गुल्पफद्ध) गिरे थे। यहां की शक्ति सावित्री तथा भैरव स्थाणु हैं।
40. युगाद्या शक्तिपीठ, क्षीरग्राम शक्तिपीठ (Ughadha Shakti Peeth) :
पश्चिम बंगाल के बर्दमान जिले के क्षीरग्राम में स्थित है युगाद्या शक्तिपीठ, यहां सती के दाहिने चरण का अंगूठा गिरा था। यहां की शक्ति जुगाड़या और भैरव क्षीर खंडक है।
41. विराट का अम्बिका शक्तिपीठ (Virat Nagar Shakti Peeth) :
राजस्थान के गुलाबी नगरी जयपुर के वैराटग्राम में स्थित है विराट शक्तिपीठ, जहाँ सती के ‘दायें पाँव की उँगलियाँ’ गिरी थीं।। यहां की शक्ति अंबिका तथा भैरव अमृत हैं।
42. कालीघाट शक्तिपीठ (Kalighat Shakti Peeth) :
पश्चिम बंगाल, कोलकाता के कालीघाट में कालीमन्दिर के नाम से प्रसिध यह शक्तिपीठ, जहां माता के दाएं पांव की अंगूठा छोड़ 4 अन्य अंगुलियां गिरी थीं। यहां की शक्ति कालिका तथा भैरव नकुलेश हैं।
43. मानस शक्तिपीठ (Manasa Shakti Peeth) :
तिब्बत के मानसरोवर तट पर स्थित है मानस शक्तिपीठ, जहां माता का दाहिना हथेली का निपात हुआ था। यहां की शक्ति की दाक्षायणी तथा भैरव अमर हैं।
44. लंका शक्तिपीठ (Lanka Shakti Peeth) :
श्रीलंका में स्थित है लंका शक्तिपीठ, जहां माता का नूपुर गिरा था। यहां की शक्ति इन्द्राक्षी तथा भैरव राक्षसेश्वर हैं। लेकिन, उस स्थान ज्ञात नहीं है कि श्रीलंका के किस स्थान पर गिरे थे।
45. गण्डकी शक्तिपीठ (Gandaki Shakti Peeth) :
नेपाल में गण्डकी नदी के उद्गम पर स्थित है गण्डकी शक्तिपीठ, जहां सती के दक्षिणगण्ड(कपोल) गिरा था। यहां शक्ति `गण्डकी´ तथा भैरव `चक्रपाणि´हैं।
46. गुह्येश्वरी शक्तिपीठ (Guhyeshwari Shakti Peeth) :
नेपाल के काठमाण्डू में पशुपतिनाथ मन्दिर के पास ही स्थित है गुह्येश्वरी शक्तिपीठ है, जहां माता सती के दोनों जानु (घुटने) गिरे थे। यहां की शक्ति `महामाया´ और भैरव `कपाल´ हैं।
47. हिंगलाज शक्तिपीठ (Hinglaj Shakti Peeth) :
पाकिस्तान के ब्लूचिस्तान प्रान्त में स्थित है माता हिंगलाज शक्तिपीठ, जहां माता का ब्रह्मरन्ध्र (सर का ऊपरी भाग) गिरा था। यहां की शक्ति कोट्टरी और भैरव भीमलोचन है।
48. सुगंध शक्तिपीठ (Sugandha Shakti Peeth) :
बांग्लादेश के खुलना में सुगंध नदी के तट पर स्थित है उग्रतारा देवी का शक्तिपीठ, जहां माता का नासिका गिरा था। यहां की देवी सुनन्दा है तथा भैरव त्रयम्बक हैं।
49. करतोयाघाट शक्तिपीठ (Kartoyatat Shakti Peeth) :
बंग्लादेश भवानीपुर के बेगड़ा में करतोया नदी के तट पर स्थित है करतोयाघाट शक्तिपीठ, जहां माता का वाम तल्प गिरा था। यहां देवी अपर्णा रूप में तथा शिव वामन भैरव रूप में वास करते हैं।
50. चट्टल शक्तिपीठ (Chatal Shakti Peeth) :
बंग्लादेश के चटगांव में स्थित है चट्टल का भवानी शक्तिपीठ, जहां माता का दाहिना बाहु यानी भुजा गिरा था। यहां की शक्ति भवानी तथा भेरव चन्द्रशेखर हैं।
51. यशोर शक्तिपीठ (Yashor Shakti Peeth) :
बांग्लादेश के जैसोर खुलना में स्थित है माता का यशोरेश्वरी शक्तिपीठ, जहां माता का बायीं हथेली गिरा था। यहा में आपको बता दूं की ये शिवपुराण वर्णित है देवी भगवत के और अन्य के अनुसार 108 और 52 भी कहे गये हैं।
ekadashi

Ekadashi

> षटतिला एकादशी व्रत कथा:-

षटतिला एकादशी(4 फरवरी)

> एक समय दालभ्य ऋषि ने पुलस्त्य ऋषि से पूछा कि हे महाराज, पृथ्वी लोक में मनुष्य ब्रह्महत्यादि महान पाप करते हैं, पराए धन की चोरी तथा दूसरे की उन्नति देखकर ईर्ष्या करते हैं। साथ ही अनेक प्रकार के व्यसनों में फँसे रहते हैं, फिर भी उनको नर्क प्राप्त नहीं होता, इसका क्या कारण है?

> वे न जाने कौन-सा दान-पुण्य करते हैं जिससे उनके पाप नष्ट हो जाते हैं। यह सब कृपापूर्वक आप कहिए। पुलस्त्य मुनि कहने लगे कि हे महाभाग! आपने मुझसे अत्यंत गंभीर प्रश्न पूछा है। इससे संसार के जीवों का अत्यंत भला होगा। इस भेद को ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र तथा इंद्र आदि भी नहीं जानते परंतु मैं आपको यह गुप्त तत्व अवश्य बताऊँगा।

> उन्होंने कहा कि माघ मास लगते ही मनुष्य को स्नान आदि करके शुद्ध रहना चाहिए। इंद्रियों को वश में कर काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या तथा द्वेष आदि का त्याग कर भगवान का स्मरण करना चाहिए। पुष्य नक्षत्र में गोबर, कपास, तिल मिलाकर उनके कंडे बनाना चाहिए। उन कंडों से 108 बार हवन करना चाहिए।

> उस दिन मूल नक्षत्र हो और एकादशी तिथि हो तो अच्छे पुण्य देने वाले नियमों को ग्रहण करें। स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर सब देवताओं के देव श्री भगवान का पूजन करें और एकादशी व्रत धारण करें। रात्रि को जागरण करना चाहिए।

> उसके दूसरे दिन धूप-दीप, नैवेद्य आदि से भगवान का पूजन करके खिचड़ी का भोग लगाएँ। तत्पश्चात पेठा, नारियल, सीताफल या सुपारी का अर्घ्य देकर स्तुति करनी चाहिए-

> हे भगवान! आप दीनों को शरण देने वाले हैं, इस संसार सागर में फँसे हुअओं का उद्धार करने वाले हैं। हे पुंडरीकाक्ष! हे विश्वभावन! हे सुब्रह्मण्य! हे पूर्वज! हे जगत्पते! आप लक्ष्मीजी सहित इस तुच्छ अर्घ्य को ग्रहण करें।

> इसके पश्चात जल से भरा कुंभ (घड़ा) ब्राह्मण को दान करें तथा ब्राह्मण को श्यामा गौ और तिल पात्र देना भी उत्तम है। तिल स्नान और भोजन दोनों ही श्रेष्ठ हैं। इस प्रकार जो मनुष्य जितने तिलों का दान करता है, उतने ही हजार वर्ष स्वर्ग में वास करता है।

> 1. तिल स्नान, 2. तिल का उबटन, 3. तिल का हवन, 4. तिल का तर्पण, 5 तिल का भोजन और 6. तिलों का ‍दान- ये तिल के 6 प्रकार हैं। इनके प्रयोग के कारण यह षटतिला एकादशी कहलाती है। इस व्रत के करने से अनेक प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। इतना कहकर पुलस्त्य ऋषि कहने लगे कि अब मैं तुमसे इस एकादशी की कथा कहता हूँ।

> एक समय नारदजी ने भगवान श्रीविष्णु से यही प्रश्न किया था और भगवान ने जो षटतिला एकादशी का माहात्म्य नारदजी से कहा- सो मैं तुमसे कहता हूँ। भगवान ने नारदजी से कहा कि हे नारद! मैं तुमसे सत्य घटना कहता हूँ। ध्यानपूर्वक सुनो।

> प्राचीनकाल में मृत्युलोक में एक ब्राह्मणी रहती थी। वह सदैव व्रत किया करती थी। एक समय वह एक मास तक व्रत करती रही। इससे उसका शरीर अत्यंत दुर्बल हो गया। यद्यपि वह अत्यंत बुद्धिमान थी तथापि उसने कभी देवताअओं या ब्राह्मणों के निमित्त अन्न या धन का दान नहीं किया था। इससे मैंने सोचा कि ब्राह्मणी ने व्रत आदि से अपना शरीर शुद्ध कर लिया है, अब इसे विष्णुलोक तो मिल ही जाएगा परंतु इसने कभी अन्न का दान नहीं किया, इससे इसकी तृप्ति होना कठिन है।

> भगवान ने आगे कहा- ऐसा सोचकर मैं भिखारी के वेश में मृत्युलोक में उस ब्राह्मणी के पास गया और उससे भिक्षा माँगी। वह ब्राह्मणी बोली- महाराज किसलिए आए हो? मैंने कहा- मुझे भिक्षा चाहिए। इस पर उसने एक मिट्टी का ढेला मेरे भिक्षापात्र में डाल दिया। मैं उसे लेकर स्वर्ग में लौट आया। कुछ समय बाद ब्राह्मणी भी शरीर त्याग कर स्वर्ग में आ गई। उस ब्राह्मणी को मिट्टी का दान करने से स्वर्ग में सुंदर महल मिला, परंतु उसने अपने घर को अन्नादि सब सामग्रियों से शून्य पाया।

> घबराकर वह मेरे पास आई और कहने लगी कि भगवन् मैंने अनेक व्रत आदि से आपकी पूजा की परंतु फिर भी मेरा घर अन्नादि सब वस्तुओं से शून्य है। इसका क्या कारण है? इस पर मैंने कहा- पहले तुम अपने घर जाओ। देवस्त्रियाँ आएँगी तुम्हें देखने के लिए। पहले उनसे षटतिला एकादशी का पुण्य और विधि सुन लो, तब द्वार खोलना। मेरे ऐसे वचन सुनकर वह अपने घर गई। जब देवस्त्रियाँ आईं और द्वार खोलने को कहा तो ब्राह्मणी बोली- आप मुझे देखने आई हैं तो षटतिला एकादशी का माहात्म्य मुझसे कहो।

> उनमें से एक देवस्त्री कहने लगी कि मैं कहती हूँ। जब ब्राह्मणी ने षटतिला एकादशी का माहात्म्य सुना तब द्वार खोल दिया। देवांगनाओं ने उसको देखा कि न तो वह गांधर्वी है और न आसुरी है वरन पहले जैसी मानुषी है। उस ब्राह्मणी ने उनके कथनानुसार षटतिला एकादशी का व्रत किया। इसके प्रभाव से वह सुंदर और रूपवती हो गई तथा उसका घर अन्नादि समस्त सामग्रियों से युक्त हो गया।

> अत: मनुष्यों को मूर्खता त्यागकर षटतिला एकादशी का व्रत और लोभ न करके तिलादि का दान करना चाहिए। इससे दुर्भाग्य, दरिद्रता तथा अनेक प्रकार के कष्ट दूर होकर मोक्ष की प्राप्ति होती है।

mantra

Mantra

🌅🔔🌿प्रतिदिन स्मरण योग्य शुभ सुंदर मंत्र। संग्रह

 

🔹 प्रात: कर-दर्शनम्🔹
कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती।
करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम्॥
🔸पृथ्वी क्षमा प्रार्थना🔸
समुद्र वसने देवी पर्वत स्तन मंडिते।
विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं पाद स्पर्शं क्षमश्वमेव॥
🔺त्रिदेवों के साथ नवग्रह स्मरण🔺
ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानु: शशी भूमिसुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्र: शनिराहुकेतव: कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्॥
♥ स्नान मन्त्र ♥
गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु॥
♥ सूर्यनमस्कार ♥
ॐ सूर्य आत्मा जगतस्तस्युषश्च।
आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने॥
दीर्घमायुर्बलं वीर्यं व्याधि शोक विनाशनम्।
सूर्य पादोदकं तीर्थ जठरे धारयाम्यहम्॥
ॐ मित्राय नम:
ॐ रवये नम:
ॐ सूर्याय नम:
ॐ भानवे नम:
ॐ खगाय नम:
ॐ पूष्णे नम:
ॐ हिरण्यगर्भाय नम:
ॐ मरीचये नम:
ॐ आदित्याय नम:
ॐ सवित्रे नम:
ॐ अर्काय नम:
ॐ भास्कराय नम:
ॐ श्री सवितृ सूर्यनारायणाय नम:
आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीदमम् भास्कर।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते॥
🔥दीप दर्शन🔥
शुभं करोति कल्याणम् आरोग्यम् धनसंपदा।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपज्योति नमोऽस्तु ते॥
दीपो ज्योति परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दनः।
दीपो हरतु मे पापं संध्यादीप नमोऽस्तु ते॥
🌷 गणपति स्तोत्र 🌷
गणपति: विघ्नराजो लम्बतुन्ड़ो गजानन:।
द्वै मातुरश्च हेरम्ब एकदंतो गणाधिप:॥
विनायक: चारूकर्ण: पशुपालो भवात्मज:।
द्वादश एतानि नामानि प्रात: उत्थाय य: पठेत्॥
विश्वम तस्य भवेद् वश्यम् न च विघ्नम् भवेत् क्वचित्।
विघ्नेश्वराय वरदाय शुभप्रियाय।
लम्बोदराय सकलाय जगद्रिताय॥
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय।
गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥
शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजं।
प्रसन्नवदनं ध्यायेतसर्वविघ्नोपशान्तये॥
⚡आदिशक्ति वंदना ⚡
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥
🔴 शिव स्तुति 🔴
कर्पूर गौरम करुणावतारं।
संसार सारं भुजगेन्द्र हारं॥
सदा वसंतं हृदयार विन्दे।
भवं भवानी सहितं नमामि॥
🔵 विष्णु स्तुति 🔵
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं।
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम्॥
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्।
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥
⚫ श्री कृष्ण स्तुति ⚫
कस्तुरी तिलकम ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम।
नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले, वेणु करे कंकणम॥
सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम, कंठे च मुक्तावलि।
गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूडामणी॥
मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम्‌।
यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम्‌॥
⚪ श्रीराम वंदना ⚪
लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये॥
♦श्रीरामाष्टक♦
हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशवा।
गोविन्दा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा॥
हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते।
बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम्॥
🔱 एक श्लोकी रामायण 🔱
आदौ रामतपोवनादि गमनं हत्वा मृगं कांचनम्।
वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीवसम्भाषणम्॥
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनम्।
पश्चाद्रावण कुम्भकर्णहननं एतद्घि श्री रामायणम्॥
🍁सरस्वती वंदना🍁
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वींणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपदमासना॥
या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा माम पातु सरस्वती भगवती
निःशेषजाड्याऽपहा॥
🔔हनुमान वंदना🔔
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम्‌।
दनुजवनकृषानुम् ज्ञानिनांग्रगणयम्‌।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम्‌।
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥
मनोजवं मारुततुल्यवेगम जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणम् प्रपद्ये॥
🌹 स्वस्ति-वाचन 🌹
ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवाः
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्ट्टनेमिः
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥
❄ शांति पाठ ❄
ऊँ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्‌ पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥
ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष (गुँ) शान्ति:,
पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,
सर्व (गुँ) शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥

॥ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥

vastubeda

Vastu tips for the master bedroom

After a whole busy day you expect a complete rest for your body & mind. And bedroom is the place where you get the relief from your stress, workout and other tension. So it becomes very necessary to take utmost care while placing the interiors for your bedroom according to the vastu shastra precepts.
♦Some general vastu shastra principles relating to the Bedroom are as follows:
The master bedroom is the place where the head of the family gets peace and privacy. Thus it is preferred in the Southwest or South since it is considered to be cool place. Avoid constructing the master bedroom in the Northeast direction. Southeast is also not recommended for this room. While placing mirror in your bedroom see to it that no part of your body is directly visible in the mirror while sleeping. Because that part of your body might face health problems e.g. if your head is visible in the mirror while sleeping it may cause migraine or if your legs are visible then you may face problem such as joints pain, etc.
Always keep your feet away from the main door, while sleeping it should not face the main door. Place the bed in the Southwest of the room but it should not obstruct the door of the room. Do not sleep keeping your head towards the north. Avoid having bedroom near the drawing room. Always keep room well-maintained, along with some scenery. Keep it well-lit and pleasant looking. Always sleep with your head towards south. See that the bed never touches the wall. People sleeping in South-East in East bedrooms suffer from sleeplessness, anxiety and short temper.
The owner sleeping in North-West bed rooms suffers instability. It is best for the house owner to sleep in the South-West room and in case not possible in the South-West room and then arrangements can be made in the South or West rooms.Square and rectangular shaped bedrooms are the best, so construct according to this method, the unsystematic typed bedrooms may not be fulfilled the inmates needs. Care has to take on bed room construction because a place to unwind,let your hair down and put up your feet-all very casual and private activities.For all the time spent and the intimacy it demands,a bedroom takes very careful and detailed planning.Not because it is the most personal room in a house but because it is a room WHERE YOU DREAM.
The bedrooms of the head of the family should be in the south-west corner of the west side. If there are more than one floor, the head of the family should have a bed room on the upper store in the south-west corner of the west direction. This room is also good for adult married children. But under no condition it should be a bedroom of the younger children. There are clashes and unnecessary quarrels in the house. A bedroom in the south direction can also be tolerated. Avoid placing the divine idols in the bedroom., and also divine photo frames As a part of Vastu guidelines for bedroom, if you want to have a bookshelf in your bedroom, then west or southwest corner is apt for this purpose.
The beds should be of good quality wood. They should be solid and must not be shaky. The mattress should provide good support to the body while resting. Box beds are ideally not recommended, but due to paucity of space in houses these days, getting rid of box beds is easier said than done. Make sure you de-clutter and sort out things kept in the box-beds from time to time. Shoes should not be kept under a bed try to keep the area under the bed, as clean as possible. Your bedroom should be a place where you can totally relax. Keep objects that remind you of unfinished tasks out of the room, or at least out of sight. A bedroom should be aesthetically designed with soothing colors and pictures. Have pleasant pictures associated with happy memories around you. The foot of the bed should not directly face the door of the room.
The bed should not be placed under a beam. The South-West area of the bedroom should not be kept empty. Keep heavy furniture or an cupboard here. Do not have your temple in the bedroom.
Avoid fixing doors in the South-West of the bedroom, otherwise you will suffer with ill health, sudden damage to your sovereignty . Finance weak. Disturbed life with no peace etc. Bedrooms on the northeast side of the house will also cause trouble. Upon rising from bed, the right foot should be placed on the floor first. If one is to study in the
bedroom, the east side should be used. The wardrobe should be located on the northwest or southwest side of the bedroom. TV, heaters, and air conditioners should be located in the southeast corner.