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क्या आसानी से मिलेगा मकान?

सभी का सपना होता है कि उसका एक सुंदर सा घर हो। इसके लिए वह दिनरात मेहनत करता है। कई बार ऐसा भी होता है कि कोई जीवन भर मेहनत कर स्वयं का मकान नहीं बना पाता जबकि किसी को बिना मेहनत के ही कई मकान मिल जाते है। नीचे कुछ योग दिए गए है। जिनके भाग्य में यह योग होते है उन्हे सहजता के भवन की प्राप्ति होती है।

1- पहले व सातवें भाव का स्वामी पहले (लग्न) भाव मे हो तथा चौथे भाव पर शुभ ग्रहो की दृष्टि हो तो व्यक्ति को बिना प्रयास के ही भवन प्राप्त हो जाता है।

2- जन्मकुण्डली के चौथे भाव का स्वामी उच्च, मूलत्रिकोण या स्वराशि मे हो तथा नौवें भाव का स्वामी केंद्र (1, 4, 7, 10) मे हो तो ऐसे जातक को सरलता से भवन की प्राप्ति हो जाती है।

3- जन्मकुण्डली के पहले और सातवें भाव का स्वामी पहले या चौथे भाव मे हो और शुभ ग्रहो से युक्त हो, नौवें भाव का स्वामी केंद्र (1, 4, 7, 10) भाव मे हो और चौथे भाव का स्वामी उच्च, मूल त्रिकोण या स्वराशि का हो तो ऐसा व्यक्ति अल्प प्रयास से अच्छा भवन प्राप्त कर लेता है। शुभ होता है घर के सामने बगीचा वास्तु ऐसा माध्यम है जिससे आप जान सकते हैं कि किस प्रकार आप अपने घर को सुखी व समृद्धशाली बना सकते है।

यहाँ वास्तु सम्मत ऐसी ही जानकारी दी जा रही है जो आपके लिए उपयोगी होगी :

1- ऐसे मकान जिनके सामने एक बगीचा हो, भले ही वह छोटा हो, अच्छे माने जाते है, जिनके दरवाजे सीधे सड़क की ओर खुलते हो क्योंकि बगीचे का क्षेत्र प्राण के वेग के लिए अनुकूल माना जाता है। घर के सामने बगीचे में ऐसा पेड़ नहीं होना चाहिए, जो घर से ऊंचा हो।

2- वास्तु नियम के अनुसार हर दो घरो के बीच खाली जगह होना चाहिए। हालांकि भीड़भाड़ वाले शहर मे कतारबद्ध मकान बनाना किफायती होता है लेकिन वास्तु के नियमों के अनुसार यह नुकसानदेय होता है क्योंकि यह प्रकाश, हवा और ब्रह्माण्डीय ऊर्जा के आगमन को रोकता है।

3- आमतौर पर उत्तर दिशा की ओर मुंह वाले कतारबद्ध घरों मे तमाम अच्छे प्रभाव प्राप्त होते हैं जबकि दक्षिण दिशा की ओर मुंह वाले मकान बुरे प्रभावों को बुलावा देते है। हालांकि पूर्व और पश्चिम की ओर मुंह वाले कतारबद्ध मकान अनुकूल स्थिति मे माने जाते है क्योंकि पश्चिम की ओर मुंह वाले मकान सामान्य ढंग के न्यूट्रल होते है।

4- पूर्व की ओर मुंह वाले घर लाभकारी होते है। कतार के आखिरी छोर वाले मकान लाभकारी हो सकते है यदि उनका दक्षिणी भाग किसी अन्य मकान से जुड़ा हो या पूरी तरह बंद हो। ऐसी स्थिति मे जहां कतारबद्ध घर एकदूसरे के सामने हो, वहां सीध में फाटक या दरवाजे लगाने से बचना चाहिए।

5- यह भी ध्यान रखना चाहिए कि दक्षिण की ओर मुंह वाले घर यदि सही तरीके से बनाए जाएं तो लाभकारी परिणाम हांसिल किए जा सकते है।

by Pandit Dayanand Shastri.

जानिए की ज्योतिष शास्त्र के अनुसार क्या है गुरुपूर्णिमा विशेष महत्व ?????

पण्डित “विशाल” दयानंद शास्त्री के अनुसार जिन लोगों की कुंडली मे गुरुप्रतिकूल स्थान पर होता है, उनके जीवन मे कई उतार-चढ़ाव आते है। वे लोग यदि गुरु पूर्णिमा के दिन नीचे लिखे उपाय करे तो उन्हें इससे काफी लाभ होता है। वैदिक ज्योतिष और स्वयं की कुंडली के आधार पर नीचे दी गयी स्थिति मे गुरु यंत्र रखना चाहिए एवं गुरु यंत्र की पूजा करनी चाहिए- 

♦ आपकी कुंडली मे गुरु नीचस्थ राशि में यानि की मकर राशि मे है तो गुरु यंत्र की पूजा करनी चाहिए। 

♦ गुरु-राहु, गुरु-केतु या गुरु-शनि युति मे होने पर भी यह यंत्र लाभदायी है। 

♦ आपकी कुंडली मे गुरु नीचस्थ स्थान मे यानि कि ६, ८ या १२ वे स्थान मे है तो आपको गुरु यंत्र रखना चाहिए एवं उसकी नियमित तौर पर पूजा करनी चाहिए। 

♦ भोजन मे केसर का प्रयोग करे और स्नान के बाद नाभि तथा मस्तक पर केसर का तिलक लगाएं।

♦ साधु, ब्राह्मण एवं पीपल के वृक्ष की पूजा करे।

♦ गुरु पूर्णिमा के दिन स्नान के जल में नागरमोथा नामक वनस्पति डालकर स्नान करे।

♦ पीले रंग के फूलों के पौधे अपने घर मे लगाएं और पीला रंग उपहार मे दे।

♦ केले के दो पौधे विष्णु भगवान के मंदिर मे लगाएं।

♦ गुरु पूर्णिमा के दिन साबूत मूंग मंदिर मे दान करे और 12 वर्ष से छोटी कन्याओं के चरण स्पर्श करके उनसे आशीर्वाद ले।

♦शुभ मुहूर्त मे चांदी का बर्तन अपने घर की भूमि में दबाएं और साधु संतों का अपमान नहीं करे।

♦जिस पलंग पर आप सोते हैं, उसके चारों कोनों में सोने की कील अथवा सोने का तार लगाएं ।

♦कुंडली मे गुरु वक्री या अस्त है तो गुरु अपना बल प्राप्त नहीं कर पाता, इसलिए आपको इस यंत्र की पूजा करनी चाहिए। 

♦ जिनकी कुंडली मे विद्याभ्यास, संतान, वित्त एवं दाम्पत्यजीवन सम्बंधित तकलीफ है तो उन्हें विद्वान ज्योतिष की सलाह लेकर गुरु का रत्न पुखराज कल्पित करना आवश्यक है। 

♦ इस के अलावा आपकी कुंडली मे हो रहे हर तरह के वित्तीय दोष को दूर करने के लिए आप श्री यंत्र की पूजा करेंगे तो अधिक लाभ होगा। 

by Pandit Dayanand Shastri.

जानिए आपकी जन्म कुंडली मे विदेश यात्रा योग –

एक समय ऐसा था जब घर से दूर रहकर काम करने को अच्छा नहीं समझा जाता था विदेशो मे काम करने या रहने को घर से दूर होने के कारण एक समस्या या दुःख के रूप मे देखा जाता था परन्तु वर्तमान समय मे विदेश यात्रा या विदेश-वास को लेकर सामाजिक दृष्टिकोण पूर्णतया बदल गया है आज-कल विदेश-यात्रा और विदेशो मे काम करने को एक सुअवसर के रूप में देखा जाता है अधिकांश लोग विदेशों से जुड़कर कार्य करना चाहते है तो कुछ विदेश यात्रा को केवल आनंद या एक नये अनुभव के लिए करना चाहते हैं। हममें से अधिकांश की इच्छा होती है कि कम से कम एक बार तो विदेश यात्रा कर ही ले। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जातक जन्मकुंडली में कई योग संयोग देखकर पता लगाया जा सकता है कि उसके जीवन में विदेश यात्रा का अवसर है या नहीं। 

जन्म कुंडली मे बहुत से शुभ-अशुभ योगो के साथ विदेश यात्रा के योग भी मौजूद होते है। जन्मकुंडली से अध्ययन से बताया जा सकता है कि किसी जातक की कुंडली मे विदेश यात्रा का योग है या नहीं। किसी भी कुंडली के अष्टम भाव, नवम, सप्तम, बारहवां भाव विदेश यात्रा से संबंधित होते है जिनके आधार पर पता लगाया जा सकता है कि कब विदेश यात्रा का योग बन रहा है।

इसी तरह से जन्मकुंडली के तृतीय भाव से भी जीवन मे होने वाली यात्राओ के बारे मे बताया जा सकता है। कुंडली मे अष्टम भाव समुद्री यात्रा का प्रतीक होता है और सप्तम तथा नवम भाव लंबी विदेश यात्राओ या विदेशो मे व्यापार, व्यवसाय एवं दीर्घ प्रवास बताते है। जातक यदि विदेश मे अपना कोई कार्य करने की योजना बना रहा है तो इस अध्ययन के आधार पर परिणाम का आकलन किया जा सकता है।

ज्योतिषीय दृष्टिकोण में देखे तो हमारी कुंडली में बने कुछ विशेष ग्रह-योग ही हमारे जीवन में विदेश से जुड़कर काम करने या विदेश यात्रा का योग बनाते हैं —

“हमारी जन्मकुंडली मे बारहवे भाव का सम्बन्ध विदेश और विदेश यात्रा से जोड़ा गया है इसलिए दुःख भाव होने पर भी आज के समय मे कुंडली के बारहवे भाव को एक सुअवसर के रूप मे देखा जाता है।जन्म कुंडली मे सूर्य लग्न मे स्थित हो तब व्यक्ति विदेश यात्रा करने की संभावना रहती है। कुंडली मे शनि बारहवें भाव मे स्थित हो तब भी विदेश यात्रा के योग बनते हैं। वहीं कुंडली मे बुध आठवें भाव मे स्थित हो या कुंडली मे बृहस्पति चतुर्थ, छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित है तब भी विदेश यात्रा के योग होते है। इसी तरह कुंडली मे चंद्रमा ग्यारहवें या बारहवें भाव मे स्थित हो तब भी विदेश यात्रा के योग बनते हैं। वहीं शुक्र जन्म कुंडली के छठे, सातवें या आठवें भाव मे स्थित हो या राहु कुंडली के पहले, सातवें या आठवें भाव में स्थित हो, तब विदेश जाने का सुख मिलता है।

पारंपरिक भारतीय ज्योतिष के अनुसार तीसरे भाव और बारहवें के अधिपति की दशा या अंतरदशा मे जातक छोटी यात्राएं करता है। वहीं नौंवे और बारहवें भाव के अधिपति की दशा या अंतरदशा मे लंबी यात्राओ के योग बनते हैं। 

छोटी और लंबी यात्रा का पैमाना सापेक्ष है। छोटी यात्रा कुछ सप्ताह से लेकर कुछ महीनो तक की हो सकती है तो लंबी यात्रा कुछ महीनो से सालो तक की। इसी के साथ छोटी यात्रा जन्म या पैतृक निवास से कम दूरी के स्थानो के लिए हो सकती है तो लंबी यात्राएं घर से बहुत अधिक दूरी की यात्राएं भी मानी जा सकती हैं। 

किसी जन्म कुंडली के लग्न विशेष मे तीसरे भाव के अधिपति और बारहवें भाव के अधिपति की दशा या अंतरदशा आने पर जातक को घर से बाहर निकलना पड़ता है। जब तक यह दशा रहती है, जातक घर से दूर रहता है। अधिकतर मामलो मे दशा बीत जाने के बाद जातक फिर से घर लौट आता है। जिस व्यक्ति की कुंडली मे लग्न और बारहवें भाव के अधिपतियो का अंतर्सबंध होता है वे न केवल घर से दूर जाकर सफल होते हैं, बल्कि परदेस में ही बस भी जाते हैं। 

इसके अलावा लग्नेश और नवमेश दोनो मे आपस मे राशि परिवर्तन होने पर भी विदेश यात्रा होती है। लग्नेश और चंद्र राशि दोनो ही चर राशियो मे स्थित हो तब भी व्यक्ति विदेश यात्रा करता है। चन्द्रमाँ को विदेश-यात्रा का नैसर्गिक कारक माना गया है। कुंडली का दशम भाव हमारी आजीविका को दिखाता है तथा शनि आजीविका का नैसर्गिक कारक होता है अतः विदेश-यात्रा के लिये कुंडली का बारहवां भाव, चन्द्रमाँ, दशम भाव और शनि का विशेष महत्व होता है” |

◊ जानिए कुंडली में विदेश यात्रा (कारक भाव ):

♦ अष्ठम भाव -जल यात्रा ,समुद्र यात्रा का कारक |

♦ द्वादश भाव -विदेश यात्रा ,समुद्र यात्रा ,अनजानी जगह पर यात्रा |

 ♦ सप्तम भाव -व्यवसाईक यात्रा |

♦ नवम भाव -लंबी यात्रा ,धार्मिक यात्रा |

♦ तृतीय भाव -छोटी यात्रा |

◊ जानिए विदेश यात्रा के कारक- ग्रह / दिशा:

♦ पूर्व -सूर्य

♦ पश्चिम-शनि

♦ उत्तर -बुध्ध

♦ दक्षिण -मंगल

♦ इशान -गुरु

♦ अग्नि-शुक्र

♦ वायव्य -चन्द्र

♦ नैरुत्य-राहू /केतु
◊ जानिए विदेश/लम्बी यात्रा के करक मुख्य गृह:

♦ चंद्र -समुद्र यात्रा का करक (विदेश गमन )

♦ गुरु -हवाई यात्रा (यात्रा )

♦ शनि -हवाई यात्रा (विदेश गमन )

♦ राहू -हवाई यात्रा (विदेश गमन )

◊ विदेश यात्रा के लिए किसी भी जन्म कुंडली में बनने वाले मुख्य योग/कारक–

1. यदि चन्द्रमाँ कुंडली के बारहवे भाव मे स्थित हो तो विदेश यात्रा या विदेश से जुड़कर आजीविका का योग होता है।

2. चन्द्रमाँ यदि कुंडली के छठे भाव मे हो तो विदेश यात्रा योग बनता है।

3. चन्द्रमाँ यदि दशवे भाव मे हो या दशवे भाव पर चन्द्रमाँ की दृष्टि हो तो विदेश यात्रा योग बनता है।

4. चन्द्रमाँ यदि सप्तम भाव या लग्न मे हो तो भी विदेश से जुड़कर व्यपार का योग बनता है।

5. शनि आजीविका का कारक है अतः कुंडली मे शनि और चन्द्रमाँ का योग भी विदेश यात्रा या विदेश मे आजीविका का योग बनाता है।

6. यदि कुंडली मे दशमेश बारहवे भाव और बारहवे भाव का स्वामी दशवे भाव मे हो तो भी विदेश मे या विदेश से जुड़कर काम करने का योग होता है।

7. यदि भाग्येश बारहवे भाव मे और बारहवे भाव का स्वामी भाग्य स्थान      ( नवा भाव ) मे हो तो भी विदेश यात्रा का योग बनता है।

8.यदि लग्नेश बारहवे भाव मे और बारहवे भाव का स्वामी लग्न मे हो तो भी व्यक्ति विदेश यात्रा करता है।

9. भाग्य स्थान मे बैठा राहु भी विदेश यात्रा का योग बनाता है।

10. यदि सप्तमेश बारहवे भाव मे हो और बारहवे भाव का स्वामी सातवें भाव मे हो तो भी विदेश यात्रा या विदेश से जुड़कर व्यापार करने का योग बनता है।

11 .मंगल भूमि पुत्र है , अगर जन्म कुंडली मे विदेश यात्रा के योग है और मंगल की दृष्टिचतुर्थ भाव में हो या मंगल चतुर्थ भाव में हो ,या चतुर्थेश के साथ मंगल का सम्बन्ध हो तो जातक विदेश में स्थाई नही रहेता …

12 . नवम भाव , तृतीय भाव , द्वादश भाव का सम्बन्ध ..प्रबल विदेश योग बनता है।

13 . द्वादश भाव मे राहू है।

14 . चतुर्थ भाव मात्रु भूमि का भाव है जब यह भाव पाप करतारी मे हो या इस भाव मे पाप ग्रहों का प्रभाव हो तो जातक अपने वतन से दूर रहेता है।

15 . भाग्येश ,सप्तमेश के साथ सप्तम भाव मे हो तो जातक विदेश मे व्यवसाय करता है।

16 . सप्तमेश की युति कोई भी शुभ ग्रह  के लग्न मे हो तो जातक को बार बार विदेश जाने का योग बनता है। (जेसे पायलट ,एर होस्टेस ).

17 . द्वादशेश ,सप्तमेश का परिवर्तन योग ,या इन दोनो भावो का सम्बन्ध किसी भी प्रकार से हो तो जीवन साथी विदेश से मिलता हे शादी के द्वारा विदेश योग बनता हे ….इसी योग के साथ अगर तृतीयेश का सम्बन्ध हो जाये तो विज्ञापन/एडवर्टाइजमेंट के द्वारा शादी होती है और विदेश योग बनता है। (जेसे अखबार के माध्यम से ).

18 . भाग्येश द्वादश भाव मे हो तो जातक धर्म कार्य के लिए विदेश योग बनता है।

19 . पंचमेश का सम्बन्ध ,द्वआदश भाव ,नवम भाव ,तृतीय भाव से हो तो जातक स्टडी के लिए विदेश जाता है।

20 . यदि चर राशि मे ज्यादा ग्रह हो तो विदेश योग बनता है।

21 . जब कुंडली मे वायु तत्व राशि मे ज्यादा ग्रह हो तो हवाई यात्रा ,जल तत्व राशि मे ज्यादा ग्रह हो तो समुद्र यात्रा ,पृथ्वी तत्व राशि मे ज्यादा ग्रह हो तो …रोड यात्रा …यह अनुमान लगाया जा सकता है।

२२. जब कुंडली में केतु ग्रह सूर्य से 6th ,8th ,12th भाव मे हो तो सूर्य दशा केतु अंतर दशा में विदेश योग बनता है।

by Pandit Dayanand Shastri.

वास्तु उपायो द्वारा ऐसे आएं परीक्षा मे अव्वल

वास्तुविद पंडित दयानंद शास्त्री के अनुसार  आजकल अभिभावक बच्चों की पढ़ाई के लिए अत्यधिक चिंतित रहते है। अधिक अंक लाने के लिए बच्चों मे शिक्षा के प्रति एकाग्रता का होना आवश्यक होता है। अगर आप भी चाहते है कि आपके बच्चे परीक्षा मे अव्वल नंबरों से पास हो  तो…..
नीचे लिखे वास्तु टिप्स का उपयोग करे: 

1- बच्चों का अध्ययन कक्ष हंमेशा पश्चिम या दक्षिण दिशा मे बनाना चाहिए, क्योंकि इससे स्थायित्व रहता है।

2- बच्चों के अध्ययन कक्ष मे अध्ययन करने की मेज कभी भी कोने मे नहीं होनी चाहिए। अध्ययन के लिए मेज कक्ष के मध्य (दीवार के मध्य) मे होनी चाहिए। दीवार से कुछ दुरी पर होनी चाहिए।

3- पढ़ाइ करते समय बच्चे का मुंह पूर्व या उत्तर दिशा मे रहना चाहिए। इससे अध्ययन मे एकाग्रता बनी रहती है।

4- पुस्तको को हमेशा दक्षिण-पश्चिम, दक्षिण या पश्चिम दीवार के साथ आलमारी मे रखनी चाहिए। पूर्व, पूर्व-उत्तर या उत्तर दिशा मे पुस्तके नही रखनी चाहिए।

5- पुस्तको को कभी भी खुला तथा इधर-उधर नही रखना चाहिए। इससे नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है।

6- अध्ययन के लिए मेज पर भी अधिक अनावश्यक पुस्तके नही होनी चाहिए। जिस विषय का अध्ययन करना हो, उससे संबंधित पुस्तक को निकालकर पढ़े और बाद मे उसे यथास्थान रख दे।

7- भारतीय परंपरा के अनुसार पढ़ाई की मेज के सामने मां सरस्वती और गणेशजी की तस्वीर होनी चाहिए।

8- फेंगशुई के अनुसार मेज पर अमेथिस्ट या क्रिस्टल का एज्युकेशन टॉवर रखे, जिससे ऊपर उठने की प्रेरणा मिलती रहती है और एकाग्रता बढ़ती है।

by Pandit Dayanand Shastri.

इन वास्तु दोष का रखेंगे ध्यान तो बिजनेस/ व्यापार मे नहीं होगा घाटा…

यदि आप सफल बिजनेसमैन बनना चाहते है तो इसमे सालो लग सकते है। वहीं आपकी एक छोटी सी गलती से बिजनेस को बड़ा घाटा हो सकता है। कई बार वास्तुदोष भी इसका कारण होता है वास्तुविद अनुसार वास्तु शास्त्र के सिद्धांत सिर्फ घर पर ही नहीं बल्कि ऑफिस व दुकान पर भी लागू होते है। यदि दुकान या ऑफिस मे वास्तु दोष हो तो व्यापार-व्यवसाय मे सफलता नहीं मिलती। किस दिशा मे बैठकर आप लेन-देन आदि कार्य करते है, इसका प्रभाव भी व्यापार मे पड़ता है। दुनिया मे बहुत सारे लोग ऐसे है जो वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों को मानते है और उसी हिसाब से अपना घर और कारोबार शुरू करते हैं। लोग घर और दुकानों के नक्शे वास्तुशास्त्र के अनुसार बनाते है।
वास्तु शास्त्र प्रकृति के साथ सामंजस्य एवं समरसता रखकर भवन निर्माण के सिद्धांतो का प्रतिपादन करता है। ये सिद्धांत मनुष्य जीवन से गहरे जुड़े है।
♦अथर्ववेद मे कहा गया है-
 ” पन्चवाहि वहत्यग्रमेशां प्रष्टयो युक्ता अनु सवहन्त।
   अयातमस्य दस्ये नयातं पर नेदियोवर दवीय ॥ 10 /8 ॥ “
सृष्टिकर्ता परमेश्वर पृथ्वी, जल, तेज (अग्नि), प्रकाश, वायु व आकाश को रचकर, उन्हे संतुलित रखकर संसार को नियमपूर्वक चलाते हैं। मननशील विद्वान लोग उन्हे अपने भीतर जानकर संतुलित हो प्रबल प्रशस्त रहते है। इन्हीं पांच संतुलित तत्वों से निवास गृह व कार्य गृह आदि का वातावरण तथा वास्तु शुद्ध व संतुलित होता है, तब प्राणी की प्रगति होती है।
♦ ऋग्वेद मे कहा गया है-
” ये आस्ते पश्त चरति यश्च पश्यति नो जनः। तेषां सं हन्मो अक्षणि यथेदं हर्म्थ तथा। प्रोस्ठेशया वहनेशया नारीर्यास्तल्पशीवरीः। स्त्रिायो या : पुण्यगन्धास्ता सर्वाः स्वायपा मसि ।। “
हे गृहस्थ जनो । गृह निर्माण इस प्रकार का हो कि सूर्य का प्रकाश सब दिशाओ से आए तथा सब प्रकार से ऋतु अनुकूल हो, ताकि परिवार स्वस्थ रहे। राह चलता राहगीर भी अंदर न झांक पाए, न ही गृह मे वास करने वाले बाहर वालों को देख पाएं। ऐसे उत्तम गृह मे गृहिणी की निज संतान उत्तम ही उत्तम होती है। वास्तु शास्त्र तथा वास्तु कला का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक आधार वेद और उपवेद हैं। भारतीय वाड्.मय मे आधिभौतिक वास्तुकला (आर्किटेक्चर) तथा वास्तु-शास्त्र का जितना उच्चकोटि का विस्तृत विवरण ऋग्वेद, अथर्ववेद, यजुर्वेद मे उपलब्ध है, उतना अन्य किसी साहित्य मे नहीं।
वास्तु शास्त्र मे इन्हीं पॉंच महाभूतो का अनुपात मे तालमेल बैठाकर प्रयोग कर जीवन मे चेतना का विकास संभव है।
(1) क्षिति/धरती/पृथ्वी
(2) जल
(3) पावक
(4) गगन
(5) समीरा अर्थात् , पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश।
चुंबकीय उत्तर क्षेत्र कुबेर का स्थान माना जाता है। जो कि धन वृद्धि के लिए शुभ है। यदि कोइ व्यापारिक वार्ता, परामर्श, लेन-देन या कोई बड़ा सौदा करे तो मुख उत्तर की ओर रखे। इससे व्यापार मे काफी लाभ होता है। इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी है कि इस ओर चुंबकीय तरंगे विद्यमान रहती हैं जिससे मस्तिष्क की कोशिकाएं सक्रिय रहती हैं और शुद्ध वायु के कारण भी अधिक ऑक्सीजन मिलती है जो मस्तिष्क को सक्रिय करके स्मरण शक्ति बढ़ाती हैं। 
सक्रियता और स्मरण शक्ति व्यापारिक उन्नति और कार्यों को सफल करते है। व्यापारियो के लिए चाहिए कि वे जहां तक हो सके व्यापार आदि मे उत्तर दिशा की ओर मुख रखे तथा कैश बॉक्स और महत्वपूर्ण कागज चैक-बुक आदि दाहिनी ओर रखे। इन उपायों से धन लाभ तो होता ही है साथ ही समाज मे मान-प्रतिष्ठा भी बढ़ती है।
वास्तुशास्त्र मे पूर्व,पश्चिम,उत्तर,दक्षिण तथा अग्रेय,नैऋत्य,वायव्य एवं ईशान्य-इन आठों ही दिशाओं-उपदिशाओं का महत्व है। वास्तुशास्त्र के आधार पर किसी को प्लॉट,बंगला,मकान या बड़ी इमारत बनानी हो या रहने के लिए जाना हो तो सर्वप्रथम उस जगह की दिशाओं को विचार करना आवश्यक है। प्लॉट,बंगला,इमारत या इमारत के अंदर के ब्लॉक का प्रवेशद्वार किस दिशा मे है- इसका विचार करना चाहिए। पूर्व दिशा आमतौर पर सूर्योदयवाली मानी जाती है किंतु केवल सूर्योदय की दिशा को पूर्व दिशा न मानकर दिशाबोधक यंत्र के माध्यम से ही दिशा निश्चित करनी चाहिए। पृथ्वी सूर्य के इर्द-गिर्द घूमती रहने से उदित सूर्य की पूर्व दिशा मे थोड़ा अंतर हो सकता है। किंतु चुंबकीय गुणोवाले दिशाबोधक यंत्र के उपयोग से पूर्व,पश्चिम,उत्तर, दक्षिण के संबंध मे अचूक अनुमान लगाया जा सकता है।
♦ दुकान या ऑफिस या कोई भी व्यापारिक संस्थान पूर्व दिशा मे है तो यह बहुत उत्तम है |
♦ यदि  पश्चिम दिशा मे है तो व्यवसाय मे कभी तेजी और कभी मंदी रहेगी |
♦ उत्तरमुखी दुकान या ऑफिस या कोई भी व्यापारिक संस्थान से धन-धान्य की वृद्धि होती है |  मान सम्मान बढ़ता है  |
♦ दक्षिण  दिशा मे दुकान या ऑफिस या कोई भी व्यापारिक संस्थान हो तो जातक की दशा अगर ख़राब हो तो व्यापार मे बाधाएं आती है | लेकिन अगर जातक की कुंडली मे राहु बलिष्ट या शुभ हो तो दक्षिण दिशा मे दुकान या ऑफिस या कोई भी व्यापारिक संस्थान अत्यंत लाभ देता है |
♦ अगर आपकी दुकान या ऑफिस या  व्यापारिक संस्थान मे  वास्तु दोष हो अर्थात दुकान की दीवारे तिरछी हो, एक छोटी और एक बड़ी दीवार हो तो मालिक को अशांति बनी रहेगी, व्यापार नहीं चलेगा | इसके लिए वास्तुवि से परामर्श करके विधि पूर्वक श्रीयंत्र की स्थापना करनी चाहिए |
♦ दुकान या ऑफिस के प्रवेश द्वार पर कोई अवरोध नहीं होना चाहिए, यदि है तो  समतल होना चाहिए | ढलान वाला अवरोध है तो लक्ष्मी स्थिर नहीं रहेगी |
♦ दुकान या ऑफिस या किसी  भी व्यापारिक संस्थान का मुहूर्त स्थिर लग्न मे करना चाहिए | ज्योतिषाचार्य से चन्द्र और नक्षत्र आदि का विचार करके मुहूर्त निकलवाना चाहिए |
♦ शुभ मुहूर्त मे सबसे पहले अपने कुलदेवता, स्थान देवता, इष्ट देवता का ध्यान करते हुए विघ्न नाशक भगवन गणपति की स्थापना करनी चाहिए|
♦ गौमुखी दुकान धन और लाभ की दृष्टि से उत्तम होती है |
♦ किसी बीम के नीचे ऑफिस या दुकान नहीं होनी चाहिए, यह जातक के लिए प्रतिकूल परिस्थिति पैदा करेगा और चलते काम मे रूकावट देगा, अगर संभव नहीं है तो बीम के दोनो ओर  हरे रंग के गणपति लगाये |
♦ कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री (बिल्डर) के लिए वास्तु टिप्स बिल्डिंग की वेस्ट या ईस्ट डायरेक्शन मे अपनी साइट ऑफिस बनाएं प्लॉट के नॉर्थ-ईस्ट दिशा मे रॉ-मैटेरियल ना रखे।
♦ दक्षिण-पश्चिम मे अधिक खुला स्थान घर के पुरूष सदस्यों के लिए अशुभ होता है, उद्योग धंधों मे यह वित्तीय हानि और भागीदारों मे झगड़े का कारण बनता है।
♦घर या कारखाने का उत्तर-पूर्व (ईशान) भाग बंद होने पर ईश्वर के आशीर्वाद का प्रवाह उन स्थानों तक नहीं पहुंच पाता। इसके कारण परिवार मे तनाव, झगड़े आदि पनपते हैं और परिजनों की उन्नति विशेषकर गृह स्वामी के बच्चों की उन्नति अवरूद्ध हो जाती है। ईशान मे शौचालय या अग्नि स्थान होना वित्तीय हानि का प्रमुख कारण है ।
♦ व्यापार मे आने वाली बाधाओं और किसी प्रकार के विवाद को निपटाने के लिए घर मे क्रिस्टल बॉल एवं पवन घंटियां लटकाएं।

by Pandit Dayanand Shastri

जानिए की क्या है वास्तु ???

वास्तु शास्त्र वह है जिसके तहत ब्रह्मांड की विभिन्न ऊर्जा जैसे घर्षण, विद्युतचुम्बकीय शक्ति और अलौकिक ऊर्जा के साम्य के साथ मनुष्य जिस वातावरण मे रहता है, उसकी बनावट और निर्माण का अध्ययन किया जाता है। हालाकि वास्तु आधारभूत रूप से फेंग शुई से काफी मिलता जुलता है जिसके अंतर्गत घर के द्वारा ऊर्जा के प्रवाह को अपने अनुरूप करने का प्रयास किया जाता है। हालाकि फेंग शुई घर की वस्तुओं की सजावट, सामान रखने की स्थिती तथा कमरे आदि की बनावट के मामले मे वास्तु शास्त्र से भिन्न है।
वास्तु की श्रेणिया: भूमि- धरती, घर के लिए जमीन प्रासाद- भूमि पर बनाया गया ढांचा यान- भूमि पर चलने वाले वाहन शयन- प्रासाद के अन्दर रखे गए फर्नीचर ये सभी श्रेणिया वास्तु के नियम दर्शाती हैं, जोकि बड़े स्तर से छोटे स्तर तक होते हैं। इसके अंतर्गत भूमि का चुनाव, भूमि की योजना और अनुस्थापन, क्षेत्र और प्रबन्ध रचना, भवन के विभिन्न हिस्सो के बीच अनुपातिक सम्बन्ध और भवन के गुण आते हैं। वास्तु का तर्क: वास्तु शास्त्र, क्षेत्र (सूक्ष्म ऊर्जा) पर आधारित है, जोकि ऐसा गतिशील तत्व है जिस पर पृथ्वी के सभी प्राणी अस्तित्व मे आते हैं और वही पर समाप्त भी हो जाते है। इस ऊर्जा का कंपन प्रकृति के सभी प्राणियो की विशेष लय और समय पर आधारित होता है। वास्तु का मुख्य उद्देश्य प्रकृति के सानिध्य मे रहकर भवनो का निर्माण करना है। वास्तु विज्ञान और तकनीकी में निपुण कोई भी भवन निर्माता, भवन का निर्माण इस प्रकार करता है जिससे भवन धारक के जन्म के समय सितारो का कंपन आंकिक रूप से भवन के कंपन के बराबर रहे।
वास्तु पुरुष मंडल: वास्तु ‘पुरुष मंडल’ वास्तु शास्त्र का अटूट हिस्सा है। इसमें मकान की बनावट की उत्पत्ति गणित और चित्रों के आधार पर की जाती है। जहां ‘पुरुष’ ऊर्जा, आत्मा और ब्रह्मांडीय व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। वहीं ‘मंडल’ किसी भी योजना के लिए जातिगत नाम है। वास्तु ‘पुरुष मंडल’ वास्तु शास्त्र में प्रयोग किया जाने वाला विशेष मंडल है। यह किसी भी भवन/मन्दिर/भूमि की आध्यात्मिक योजना है जोकि आकाशीय संरचना और अलौकिक बल को संचालित करती है।
दिशा और देवता: हर दिशा एक विशेष देव द्वारा संचालित होती है। यह देव हैं:
♦  उत्तरी पूर्व – यह दिशा भगवान शिव द्वारा संचालित की जाती है।            
♦  पूर्व – इस दिशा मे सूर्य भगवान का वास होता है।
♦  दक्षिण पूर्व – इस दिशा मे अग्नि का वास होता है। –
♦ दक्षिण – इस दिशा  मे यम का वास होता है।
♦  दक्षिण पश्चिम – इस दिशा मे पूर्वजों का वास होता है।
♦  पश्चिम – वायु देवता का वास होता है।
♦  उत्तरधन के देवता का वास होता है।
♦  केन्द्र – ब्रह्मांड के उत्पन्नकर्ता का वास होता है।

 

by Pandit Dayanand Shastri.

क्या आपको पता है की आपके घर/ दुकान/ फेक्ट्री में नोकर/ कर्मचारी, वहां लगी बंद घड़ियो के कारण नहीं रुकते हैं ??

वेदिक वास्तु शास्त्र के अनुसार बंद उपकरणों को घर में नहीं रखना चाहिये क्योंकि बंद व खराब उपकरणों के द्वारा गृहस्वामी पर अनेक प्रकार की आपत्तियां आ जाती है। घरेलू उपकरणों के बंद होने पर गृहस्वामी पर अनेक प्रकार की चिंता बनी रहती है।
इसके साथ-साथ घर के अंदर दीवार या हाथ की घड़ियां बंद पडी हो तो गृहस्वामी को घरेलू नौकरों के द्वारा अनेक प्रकार की क्षति करवाती हैं। फलस्वरूप गृहस्वामी को घरेलू काम काज के लिये नौकर या तो मिलते ही नहीं है या मिलते है तो गृहस्वामी पर हमेशा सवार रहते हैं। अगर कुछ कहा जाय तो घर का काम काज छोडकर चलने को तत्पर रहते हैं, इसीलिये घर / दुकान/ फेक्ट्री के अंदर बंद घड़ियाँ नहीं होनी चाहिये।
यह अति आवश्यक है कि घर की पुरानी बंद घड़ियोंं को हंमेशा घर से अलग ही रखा जाये। इसके साथ-साथ यह भी ध्यान रखा जाय कि किसी भी शयन कक्ष की घडी बंद नहीं होनी चाहिये क्योंकि शयन कक्ष की बंद घड़ियाँ उस गृहस्वामी को व्यर्थ चिंताग्रस्त करेंगी व उसके स्वास्थ्य में गिरावट करेंगी।
ध्यान दीजिये—
वास्तुविद पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार यदि घडी को उतार करके हम अपने बिस्तर में तकिये के नीचे रखते हैं तो बीमारी /रोग/ व्यर्थ चिंता होने की संभावनाये रहती हैं अत: घडी व धनराशि कभी भी तकिये के नीचे नहीं रखना चाहिये क्योंकि इससे नींद नहीं आती तथा बेचैनी होने लगती है। वैसे तो ड्रेसिंग टेबल, टी.वी. आदि होने से भी स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पडता है। अगर जगह की कमी हो तो उनको सिर के पीछे वाली साईड पर रखा जा सकता है। सामने या दांई तरफ डे्रसिंग टेबल लगना निषेध माना गया है।
घर में पडी बंद घड़ियाँ गृहस्वामी को अनेक प्रकार की आर्थिक तथा मानसिक परेशानी देती हैं। व्यर्थ की चिंता, भागदौड व घर के नौकरों से वादविवाद घर की बंद घडीयां ही कराती हैं जिससे घर के नौकरों द्वारा गृहस्वामी के अनेक प्रकार की कुचर्चाओ के मामले प्रकाश में आते हैं।
इसीलिये यह अति आवश्यक है कि बन्द घडी न तो दीवार पर लगानी चाहिये, न ही शयनकक्ष में तकिये आदि के नीचे रखनी चाहिये क्योंकि बंद घडीयां गृहस्वामी के मान सम्मान में कमी कराने में सहायक होती है।
इसीलिये यदि हम घरेलू पुराने उपकरणों व बन्द घडीयों को यदि घर से अलग रखें तो गृहस्वामी का मान सम्मान निरंतर बढेंगा। सुख, वैभव और समृद्धि में निरंतर बढ़ोत्तरी होती रहेगी।
। शुभम् भवतु ।  कल्याण हो।
by Pandit Dayanand Shastri

 

सिंगापुरी कछुए का बढ़ता चलन

फेंगशुई के रूप में हो रहे प्रसिद्ध 200 वर्ष तक जीने वाले और अपने पूरे जीवनकाल में 3 इंच से अधिक नहीं बढ़ने वाले सिंगापुरी कछुए फेंगशुई के रूप में घरो-दुकानो में रखे जाने लगे हैं। चीनी मान्यता के अनुसार कछुए की लंबी उम्र के कारण इसे घर-दुकान पर रखने से सुख, शांति, उन्नति के साथ ही घर के सदस्यों की उम्र भी लंबी होती है। आजकल कई व्यापारी अपनी कपड़े की दुकान पर सिंगापुरी कछुए को फेंगशुई के रूप में रखते है। लगभग 500 रु. में मिलने वाले दो से ढाई इंच लंबे इन कछुओं की उम्र 200 वर्ष होती है, पर अपन पूरे जीवन में ये तीन इंच से अधिक नहीं बढ़ते। दिखने मे अत्यंत आकर्षक इन कछुओं की खुराक बाजार में 90 रु. में 45 ग्राम मिलने वाला रेडीमेड फूड है और यह 45 ग्राम फूड 1 माह तक चलता है। एक व्यापारी को दो माह पूर्व एक मित्र द्वारा भेंट किए गए इस कछुए को वे दिनभर अपने काउंटर पर काँच के पानी भरे जार मे रखते है, किंतु दुकान बंद करने के बाद उसे पक्की फर्श पर छोड़ देते हैं। यह अभयचर प्राणी अत्यंत कुशलता से दोनों स्थानों पर अपने आपको ढाल लेता है। इन दिनों सिंगापुरी कछुए की माँग काफी बढ़ गई है। 

by Pandit Dayanand Shastri.

वास्तु और योग:-

♦ वास्तुशास्त्र योग के सिद्धांत से काफी मिलता-जुलता है। जिस प्रकार किसी योगी के शरीर से प्राण (ऊर्जा) मुक्त रूप से प्रवाहित होता है। उसी प्रकार वास्तु गृह भी इस तरह से बनाया जाता है कि उसमें ऊर्जा का मुक्त प्रवाह हो। वास्तु शास्त्र के अनुसार एक आदर्श ढांचा वह होता है जहां ऊर्जा के प्रवाह में गतिशील साम्य हो। यदि यह साम्य नहीं बैठता है तो जीवन में भी उचित तालमेल नहीं बैठ पाता है।
♦ वास्तु शास्त्र का दृढ़ता से मानना है कि प्रत्येक भवन चाहे वह घर हो, गोदाम हो, फैक्टरी हो या फिर कार्यालय हो, वहां अविवेकपूर्ण विस्तार तथा फेरबदल आदि नहीं होने चाहिए।
♦ मुख्य द्वार:  
♦ भवन में ‘प्राण’ (जीवन-ऊर्जा) के प्रवेश के लिए द्वार की स्थिति और उसके खुलने की दिशा वास्तु की विशेष गणना द्वारा चुनी जाती है। इसके सही चयन से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ाया जा सकता है। घर का अगला व पिछला द्वार एक ही सीध में होना चाहिए, जिससे ऊर्जा का प्रवाह बिना किसी रुकावट के चलता रहे।
♦ ऊर्जा के इस मार्ग को ‘वम्स दंडम’ कहा जाता है जिसका मानवीकरण करने पर उसे रीढ़ की संज्ञा दी जाती है। इसका ताथ्यिक लाभ घर में शुद्ध हवा का आवागमन है, जबकि आत्मिक महत्व के तहत सौर्य ऊर्जा का मुख्य द्वार से प्रवेश और पिछले द्वार से निर्गम होने से, घर में ऊर्जा का प्रवाह बिना रुकावट निरंतर बना रहता है।
♦ घर और वास्तु शास्त्र:-  
♦ घर केवल रहने की जगह मात्र नहीं होता है। यह हमारे मानसिक पटल का विस्तार और हमारे व्यक्तित्व का दर्पण भी होता है।
♦ जिस प्रकार हम अपनी पसंद के अनुसार इसकी बनावट व आकार देते हैं, सजाते और इसकी देखभाल करते है, उसी प्रकार यह हमारे स्वभाव, विचार, जैव ऊर्जा, निजी और सामाजिक जीवन, पहचान, व्यावसायिक सफलता और वास्तव में हमारे जीवन के हर पहलू से गहराई से जुड़ा हुआ होता है।
♦ ऑफिस और वास्तु शास्त्र:–
♦ जब वास्तु को सही तरह से लागू किया जाता है तो वह व्यापारिक वृद्धि में भी  मददगार सिद्ध होता हैं।

by Pandit Dayanand Shastri.

वास्तु दोष करे दूर :

हमारे जीवन में वास्तु का महत्व बहुत ही आवश्यक है। इस विषय मे ज्ञान अति आवश्यक है। वास्तु दोष से व्यक्ति के जीवन में बहुत ही संकट आते है। ये समस्याएँ घर की सुख-शांति पर प्रभाव डालती हैं। आप निम्न व्यवसाय स्थल तथा निवास में परिवर्तन कर लाभ उठा सकते है।
♦ शयन कक्ष में जूठे बर्तन रखने से घर की महिला के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है तथा परिवार में क्लेश भी होता है।
♦ शयन कक्ष में पानी या भारी वस्तु न रखे।
♦ शयन कक्ष में गंदे व्यसन करने से आपकी तरक्की में बाधा आएगी।
♦ सीढ़ी के नीचे बैठकर कोई भी कार्य न करे।
♦ किसी भी द्वार पर अवरोध नहीं होना चाहिए।
♦ प्रवेश द्वार की ओर पैर रख कर नहीं सोना चाहिए। इससे लक्ष्मी का अपमान होता है।
♦ कोर्ट केस की फाइल मंदिर में रखने से मुकदमा जीतने में सहायता होती है।
♦ स्वर्गवासी वृद्धों की तस्वीर हमेशा दक्षिण दिशा मे ही लगानी चाहिए। घर मे घड़ी के सेल पर विशेष ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि उसके धीरे होने से घड़ी भी धीरे चलेगी तो गृहस्वामी का भाग्य भी धीमे चलेगा।
♦ पलंग कभी दीवार से मिलाकर न रखें। इससे पत्नी-पति में तकरार होती है।
♦ किसी भी भवन का तीन राहो पर होना अशुभ होता है। इस दोष के लिए चारों दीवारों पर दर्पण होना चाहिए।
♦ यदि कोई अधिक समय से बीमार है तो नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम का कोना) में सुलाना चाहिए। ईशान कोण में शीतल जल रखने से व्यक्ति बहुत ही जल्दी स्वस्थ होता है।
♦  घर के मुख्य द्वार पर काले घोड़े की नाल, दुर्गा यंत्र, त्रिशक्ति, अंदर व बाहर की ओर गणपति अथवा दक्षिणमुखी द्वार पर हनुमानजी की तस्वीर अथवा भैरव यंत्र लाभकारक हो सकता है। इनको लगाने से ऊपरी हवा से बचा जा सकता है।
♦ दवा हमेशा ईशान कोण में रखना चाहिए। दवा लेते समय मुख भी इसी कोण में रखना चाहिए। इससे दवा शीघ्र असर करती है। इससे रोगी जल्दी ही स्वस्थ होता है।
♦ यदि कोई भवन एस मोड़ पर है तो बहुत शुभ है।

by Pandit Dayanand Shastri.