एक समय ऐसा था जब घर से दूर रहकर काम करने को अच्छा नहीं समझा जाता था विदेशो मे काम करने या रहने को घर से दूर होने के कारण एक समस्या या दुःख के रूप मे देखा जाता था परन्तु वर्तमान समय मे विदेश यात्रा या विदेश-वास को लेकर सामाजिक दृष्टिकोण पूर्णतया बदल गया है आज-कल विदेश-यात्रा और विदेशो मे काम करने को एक सुअवसर के रूप में देखा जाता है अधिकांश लोग विदेशों से जुड़कर कार्य करना चाहते है तो कुछ विदेश यात्रा को केवल आनंद या एक नये अनुभव के लिए करना चाहते हैं। हममें से अधिकांश की इच्छा होती है कि कम से कम एक बार तो विदेश यात्रा कर ही ले। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जातक जन्मकुंडली में कई योग संयोग देखकर पता लगाया जा सकता है कि उसके जीवन में विदेश यात्रा का अवसर है या नहीं।
जन्म कुंडली मे बहुत से शुभ-अशुभ योगो के साथ विदेश यात्रा के योग भी मौजूद होते है। जन्मकुंडली से अध्ययन से बताया जा सकता है कि किसी जातक की कुंडली मे विदेश यात्रा का योग है या नहीं। किसी भी कुंडली के अष्टम भाव, नवम, सप्तम, बारहवां भाव विदेश यात्रा से संबंधित होते है जिनके आधार पर पता लगाया जा सकता है कि कब विदेश यात्रा का योग बन रहा है।
इसी तरह से जन्मकुंडली के तृतीय भाव से भी जीवन मे होने वाली यात्राओ के बारे मे बताया जा सकता है। कुंडली मे अष्टम भाव समुद्री यात्रा का प्रतीक होता है और सप्तम तथा नवम भाव लंबी विदेश यात्राओ या विदेशो मे व्यापार, व्यवसाय एवं दीर्घ प्रवास बताते है। जातक यदि विदेश मे अपना कोई कार्य करने की योजना बना रहा है तो इस अध्ययन के आधार पर परिणाम का आकलन किया जा सकता है।
ज्योतिषीय दृष्टिकोण में देखे तो हमारी कुंडली में बने कुछ विशेष ग्रह-योग ही हमारे जीवन में विदेश से जुड़कर काम करने या विदेश यात्रा का योग बनाते हैं —
“हमारी जन्मकुंडली मे बारहवे भाव का सम्बन्ध विदेश और विदेश यात्रा से जोड़ा गया है इसलिए दुःख भाव होने पर भी आज के समय मे कुंडली के बारहवे भाव को एक सुअवसर के रूप मे देखा जाता है।जन्म कुंडली मे सूर्य लग्न मे स्थित हो तब व्यक्ति विदेश यात्रा करने की संभावना रहती है। कुंडली मे शनि बारहवें भाव मे स्थित हो तब भी विदेश यात्रा के योग बनते हैं। वहीं कुंडली मे बुध आठवें भाव मे स्थित हो या कुंडली मे बृहस्पति चतुर्थ, छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित है तब भी विदेश यात्रा के योग होते है। इसी तरह कुंडली मे चंद्रमा ग्यारहवें या बारहवें भाव मे स्थित हो तब भी विदेश यात्रा के योग बनते हैं। वहीं शुक्र जन्म कुंडली के छठे, सातवें या आठवें भाव मे स्थित हो या राहु कुंडली के पहले, सातवें या आठवें भाव में स्थित हो, तब विदेश जाने का सुख मिलता है।
पारंपरिक भारतीय ज्योतिष के अनुसार तीसरे भाव और बारहवें के अधिपति की दशा या अंतरदशा मे जातक छोटी यात्राएं करता है। वहीं नौंवे और बारहवें भाव के अधिपति की दशा या अंतरदशा मे लंबी यात्राओ के योग बनते हैं।
छोटी और लंबी यात्रा का पैमाना सापेक्ष है। छोटी यात्रा कुछ सप्ताह से लेकर कुछ महीनो तक की हो सकती है तो लंबी यात्रा कुछ महीनो से सालो तक की। इसी के साथ छोटी यात्रा जन्म या पैतृक निवास से कम दूरी के स्थानो के लिए हो सकती है तो लंबी यात्राएं घर से बहुत अधिक दूरी की यात्राएं भी मानी जा सकती हैं।
किसी जन्म कुंडली के लग्न विशेष मे तीसरे भाव के अधिपति और बारहवें भाव के अधिपति की दशा या अंतरदशा आने पर जातक को घर से बाहर निकलना पड़ता है। जब तक यह दशा रहती है, जातक घर से दूर रहता है। अधिकतर मामलो मे दशा बीत जाने के बाद जातक फिर से घर लौट आता है। जिस व्यक्ति की कुंडली मे लग्न और बारहवें भाव के अधिपतियो का अंतर्सबंध होता है वे न केवल घर से दूर जाकर सफल होते हैं, बल्कि परदेस में ही बस भी जाते हैं।
इसके अलावा लग्नेश और नवमेश दोनो मे आपस मे राशि परिवर्तन होने पर भी विदेश यात्रा होती है। लग्नेश और चंद्र राशि दोनो ही चर राशियो मे स्थित हो तब भी व्यक्ति विदेश यात्रा करता है। चन्द्रमाँ को विदेश-यात्रा का नैसर्गिक कारक माना गया है। कुंडली का दशम भाव हमारी आजीविका को दिखाता है तथा शनि आजीविका का नैसर्गिक कारक होता है अतः विदेश-यात्रा के लिये कुंडली का बारहवां भाव, चन्द्रमाँ, दशम भाव और शनि का विशेष महत्व होता है” |
◊ जानिए कुंडली में विदेश यात्रा (कारक भाव ):
♦ अष्ठम भाव -जल यात्रा ,समुद्र यात्रा का कारक |
♦ द्वादश भाव -विदेश यात्रा ,समुद्र यात्रा ,अनजानी जगह पर यात्रा |
♦ सप्तम भाव -व्यवसाईक यात्रा |
♦ नवम भाव -लंबी यात्रा ,धार्मिक यात्रा |
♦ तृतीय भाव -छोटी यात्रा |
◊ जानिए विदेश यात्रा के कारक- ग्रह / दिशा:
♦ पूर्व -सूर्य
♦ पश्चिम-शनि
♦ उत्तर -बुध्ध
♦ दक्षिण -मंगल
♦ इशान -गुरु
♦ अग्नि-शुक्र
♦ वायव्य -चन्द्र
♦ नैरुत्य-राहू /केतु
◊ जानिए विदेश/लम्बी यात्रा के करक मुख्य गृह:
♦ चंद्र -समुद्र यात्रा का करक (विदेश गमन )
♦ गुरु -हवाई यात्रा (यात्रा )
♦ शनि -हवाई यात्रा (विदेश गमन )
♦ राहू -हवाई यात्रा (विदेश गमन )
◊ विदेश यात्रा के लिए किसी भी जन्म कुंडली में बनने वाले मुख्य योग/कारक–
1. यदि चन्द्रमाँ कुंडली के बारहवे भाव मे स्थित हो तो विदेश यात्रा या विदेश से जुड़कर आजीविका का योग होता है।
2. चन्द्रमाँ यदि कुंडली के छठे भाव मे हो तो विदेश यात्रा योग बनता है।
3. चन्द्रमाँ यदि दशवे भाव मे हो या दशवे भाव पर चन्द्रमाँ की दृष्टि हो तो विदेश यात्रा योग बनता है।
4. चन्द्रमाँ यदि सप्तम भाव या लग्न मे हो तो भी विदेश से जुड़कर व्यपार का योग बनता है।
5. शनि आजीविका का कारक है अतः कुंडली मे शनि और चन्द्रमाँ का योग भी विदेश यात्रा या विदेश मे आजीविका का योग बनाता है।
6. यदि कुंडली मे दशमेश बारहवे भाव और बारहवे भाव का स्वामी दशवे भाव मे हो तो भी विदेश मे या विदेश से जुड़कर काम करने का योग होता है।
7. यदि भाग्येश बारहवे भाव मे और बारहवे भाव का स्वामी भाग्य स्थान ( नवा भाव ) मे हो तो भी विदेश यात्रा का योग बनता है।
8.यदि लग्नेश बारहवे भाव मे और बारहवे भाव का स्वामी लग्न मे हो तो भी व्यक्ति विदेश यात्रा करता है।
9. भाग्य स्थान मे बैठा राहु भी विदेश यात्रा का योग बनाता है।
10. यदि सप्तमेश बारहवे भाव मे हो और बारहवे भाव का स्वामी सातवें भाव मे हो तो भी विदेश यात्रा या विदेश से जुड़कर व्यापार करने का योग बनता है।
11 .मंगल भूमि पुत्र है , अगर जन्म कुंडली मे विदेश यात्रा के योग है और मंगल की दृष्टिचतुर्थ भाव में हो या मंगल चतुर्थ भाव में हो ,या चतुर्थेश के साथ मंगल का सम्बन्ध हो तो जातक विदेश में स्थाई नही रहेता …
12 . नवम भाव , तृतीय भाव , द्वादश भाव का सम्बन्ध ..प्रबल विदेश योग बनता है।
13 . द्वादश भाव मे राहू है।
14 . चतुर्थ भाव मात्रु भूमि का भाव है जब यह भाव पाप करतारी मे हो या इस भाव मे पाप ग्रहों का प्रभाव हो तो जातक अपने वतन से दूर रहेता है।
15 . भाग्येश ,सप्तमेश के साथ सप्तम भाव मे हो तो जातक विदेश मे व्यवसाय करता है।
16 . सप्तमेश की युति कोई भी शुभ ग्रह के लग्न मे हो तो जातक को बार बार विदेश जाने का योग बनता है। (जेसे पायलट ,एर होस्टेस ).
17 . द्वादशेश ,सप्तमेश का परिवर्तन योग ,या इन दोनो भावो का सम्बन्ध किसी भी प्रकार से हो तो जीवन साथी विदेश से मिलता हे शादी के द्वारा विदेश योग बनता हे ….इसी योग के साथ अगर तृतीयेश का सम्बन्ध हो जाये तो विज्ञापन/एडवर्टाइजमेंट के द्वारा शादी होती है और विदेश योग बनता है। (जेसे अखबार के माध्यम से ).
18 . भाग्येश द्वादश भाव मे हो तो जातक धर्म कार्य के लिए विदेश योग बनता है।
19 . पंचमेश का सम्बन्ध ,द्वआदश भाव ,नवम भाव ,तृतीय भाव से हो तो जातक स्टडी के लिए विदेश जाता है।
20 . यदि चर राशि मे ज्यादा ग्रह हो तो विदेश योग बनता है।
21 . जब कुंडली मे वायु तत्व राशि मे ज्यादा ग्रह हो तो हवाई यात्रा ,जल तत्व राशि मे ज्यादा ग्रह हो तो समुद्र यात्रा ,पृथ्वी तत्व राशि मे ज्यादा ग्रह हो तो …रोड यात्रा …यह अनुमान लगाया जा सकता है।
२२. जब कुंडली में केतु ग्रह सूर्य से 6th ,8th ,12th भाव मे हो तो सूर्य दशा केतु अंतर दशा में विदेश योग बनता है।
by Pandit Dayanand Shastri.