संसार मे खून के रिश्ते ईश्वर बनाता है। ये रिश्ते ऐसे होते है, जिन्हे हम स्वयं नहीं चुन सकते, इन्हे स्वीकार करना हमारी नियति होती है, लेकिन एक रिश्ता ऐसा भी होता है, जो हम स्वयं बनाते है, वह रिश्ता है ‘मित्रता’ का। यह रिश्ता दो व्यक्तियो के मध्य समान विचारधारा, समान रुचियों के कारण बनता है।
मित्रों, किसी भी जन्मपत्री मे मुख्य रूप से मित्र का विचार पंचम भाव से किया जाता है तथा एकादश भाव से मित्र की प्रकृति एवं तृतीय भाव से मित्र से होने वाले हानि-लाभ का विचार किया जाता है।
प्रत्येक प्राणी किसी न किसी ग्रह, राशि व लग्न के प्रभाव मे होता है और मित्रता जातक की कुंडली तय करती है। ज्योतिष के अनुसार नौ ग्रहों में पांच प्रकार की मित्रता होती है। परम मित्र, मित्र, शत्रु, अधिशत्रु एवं ग्रहों की स्थिति के अनुसार तात्कालिक मैत्री।
इसी प्रकार राशियो मे भी आपसी मैत्री संबंध होते है। कुंडली के प्रथम, चतुर्थ, द्वितीय, पंचम, सप्तम व एकादश भाव और बुध ग्रह प्रमुख रूप से मित्रता के कारक होते है। कुंडली का सीधा संबंध भाव, ग्रह व राशियो से होता है। तीनो प्रकार के संबंध जीवन की दिशा तय करते है।
मनुष्य जीवन के सारे महत्वपूर्ण रिश्ते जन्म से मिलते है जो हमारे हाथ मे नही होते है लेकिन जीवन का सबसे महत्वपूर्ण और करीबी रिश्ता जो हम बनाते है वह दोस्ती का रिश्ता होता है यह रिश्ता कब और किससे बनता है साथ ही आप और आपके दोस्त के आचार-विचार, रहन-सहन सब कुछ सितारों से बनते है इसलिए आपकी जन्मकुंडली, आपका लग्न व आपकी राशि बताती है कौन आपका सच्चा दोस्त होगा ।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हमारी कुंडली मे स्थित सभी नौ ग्रहों की भी आपस मे मित्रता और शत्रुता होती है। इनके संबंधों का भी प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है।
प्रत्येक प्राणी किसी न किसी ग्रह, राशि व लग्न के प्रभाव मे होता है और मित्रता जातक की कुंडली तय करती है। ज्योतिष के अनुसार नौ ग्रहों में पांच प्रकार की मित्रता होती है। परम मित्र, मित्र, शत्रु, अधिशत्रु एवं ग्रहों की स्थितिनुसार तात्कालिक मैत्री। इसी प्रकार राशियों में भी आपसी मैत्री संबंध होते है।
कुंडली के प्रथम, चतुर्थ, द्वितीय, पंचम, सप्तम व एकादश भाव और बुध ग्रह प्रमुख रूप से मित्रता के कारक होते है। कुंडली का सीधा संबंध भाव, ग्रह व राशियों से होता है। तीनों प्रकार के संबंध जीवन की दिशा तय करते है। उग्र व गर्म मिजाज….
दो विभिन्न व्यक्तियों, प्रेमी-प्रेमिका, पति-पत्नी का आपसी संबंध राशियों के तत्व पर आधारित होता है। हमारा शरीर पंच तत्त्वों से बना है और 12 राशियां इन्हीं में से 4 तत्वों मे विभाजित की गई है। अग्नि, भूमि, वायु (इसमे आकाश तत्व भी शामिल है) व जल।
मेष, सिंह व धनु राशियां अग्नि तत्व प्रधान अर्थात ये उग्र व गर्म मिजाज वाली राशियां होती है। वृष, कन्या व मकर राशियां भूमि या पृथ्वी तत्त्व प्रधान होने के कारण धैर्यशाली व ठंडे मिजाज वाली, मिथुन, तुला व कुंभ राशियां वायु तत्त्व प्रधान होने के कारण अस्थिर चित्त व द्विस्वभाव वाली होती है।
> राशियों मे गहरी मित्रता—-
कर्क , वृश्चिक व मीन राशियां जल तत्व प्रधान है। ये धीर-गंभीर व विशाल हृदया होती है। ज्योतिष के मुताबिक एक ही तत्व की राशियों मे गहरी मित्रता होती है। पृथ्वी, जल तत्त्व और अग्नि, वायु तत्वो वाले जातको की भी पटरी अच्छी बैठती है। अग्नि व वायु तत्त्व वालों की मित्रता भी होती है। लेकिन पृथ्वी, अग्नि तत्त्व, जल तथा अग्नि तत्व एवं जल तथा वायु तत्त्वों वाले जातको मे शत्रुता के संबंध होते है।
तत्व के अलावा राशियों के स्वभाव पर भी मित्रता का असर होता है। राशियो के हिसाब से देखें तो स्वयं की राशि के अलावा मेष, सिंह व धनु राशि वालो की मित्रता मिथुन, तुला व कुंभ राशि वाले लोगों से होती है। वृष, कन्या व मकर राशि वाले लोगों की मित्रता कर्क, वृश्चिक व मीन राशि वाले लोगों से ज्यादा पटती है।
सिर्फ राशिया ही नहीं ग्रहों की भी मित्रता में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। नव ग्रहों मे सूर्य-सिंह राशि, चंद्रमा-कर्क राशि, मंगल-मेष व वृश्चिक, बुध-मिथुन व कन्या, गुरु-धनु व मीन राशि, शुक्र-वृष व तुला तथा शनि-मकर व कुंभ राशि के स्वामी होते है। शास्त्रों मे इनमे नैसर्गिक मैत्री संबंध बताए गए है।
किसी भी जातक की जन्म कुंडली मे मौजूद नवमांश कुंडली के अनुसार मनुष्य का आचरण या स्वभाव जाना जा सकता है ।
इस संसार मे मोजुद प्राणियों मे मनुष्य बड़ा विचित्र प्राणी है । इसके चेहरे पर कुछ और होता है और अंदर मन मे कुछ और होता है ।
मनुष्य के स्वभाव को जानना बहुत मुश्किल काम है । कुछ मनुष्य देखने मे बहुत सुंदर होते है लेकिन मन से बहुत काले कपटी और घमंड या ईगो तथा गंदगी से भरे होते है । इसको जानने के लिए किसी भी जातक की नवमांश कुंडली का प्रयोग करना चाहिए ।
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> ज्योतिष अनुसार राशियां भी जिम्मेदार :
दो विभिन्न व्यक्तियों, प्रेमी-प्रेमिका, पति-पत्नी का आपसी संबंध राशियो के तत्व पर आधारित होता है। हमारा शरीर पंच तत्वों से बना है और 12 राशियां इन्हीं में से 4 तत्वों में विभाजित की गई हैं। ‘अग्नि’ ‘भूमि’, ‘वायु’ (इसमें आकाश तत्व भी शामिल है) व जल। मेष, सिंह व धनु राशियां अग्नि तत्व प्रधान अर्थात ये उग्र व गर्म मिजाज वाली राशियां होती हैं। वृष, कन्या व मकर राशियां भूमि या पृथ्वी तत्व प्रधान होने के कारण धैर्यशाली व ठंडे मिजाज वाली, मिथुन, तुला व कुंभ राशियां वायु तत्व प्रधान होने के कारण अस्थिर चित्त व द्विस्वभाव वाली होती हैं। कर्क, वृश्चिक व मीन राशियां जल तत्व प्रधान हैं। ये धीर-गंभीर व विशाल हृदया होती हैं।
एक ही तत्व की राशियों मे गहरी मित्रता होती है। पृथ्वी, जल तत्व और अग्नि, वायु तत्वों वाले जातकों की भी पटरी अच्छी बैठती है। अग्नि व वायु तत्व वालों की मित्रता भी होती है लेकिन पृथ्वी, अग्नि तत्व, जल तथा अग्नि तत्व एवं जल तथा वायु तत्वों वाले जातकों मे शत्रुता के संबंध होते है। तत्व के अलावा राशियों के स्वभाव पर भी मित्रता का असर होता है। राशियों के हिसाब से देखें तो स्वयं की राशि के अलावा मेष, सिंह व धनु राशि वालों की मित्रता मिथुन, तुला व कुंभ राशि वाले लोगों से होती है। वृष, कन्या व मकर राशि वाले लोगों की मित्रता कर्क, वृश्चिक व मीन राशि वाले लोगों से ज्यादा पटती है।
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> दोस्ती मे होता है ग्रहो का बोलबाला :
ज्योतिषशास्त्र सिर्फ राशियां ही नहीं, ग्रहो की भी मित्रता मे महत्वपूर्ण भूमिका होती है। नवग्रहो मे सूर्य-सिंह राशि, चंद्रमा-कर्क राशि, मंगल-मेष व वृश्चिक, बुध-मिथुन व कन्या, गुरु-धनु व मीन राशि, शुक्र-वृष व तुला तथा शनि-मकर व कुंभ राशि के स्वामी होते है। शास्त्रों में इनमे नैसर्गिक मैत्री संबंध बताए गए है। इसके अलावा ग्रहों मे तात्कालिक मैत्री भी होती है, जो इनकी कुंडली मे स्थिति के अनुसार होती है जैसे मंगल व शनि कुंडली मे एक साथ बैठे हो तो इनमे तात्कालिक मैत्री संबंध होते हैं। मोटे तौर पर हम ग्रहो की तीन प्रकार-मित्रता, शत्रुता व साम्यता के बारे मे जानकारी लेते है।
» आइए देखे ग्रहो के नैसर्गिक मैत्री संबंध क्या है :
♦ सूर्य :
सूर्य के चंद्रमा, मंगल व गुरु मित्र होते है। शनि-शुक्र शत्रु व बुध से साम्यता के संबंध है। इस प्रकार सिंह राशि वाले की मित्रता मेष, कर्क, वृश्चिक, धनु व मीन राशि वालो से व मकर, कुंभ, वृष व तुला वाले लोगों से शत्रुता होती है। सूर्य तेज व अधिकारिता के स्वामी हैं अत: इनकी चाहत रखने वाले से मैत्री संबंध व शनि व शुक्र क्रमश: सेवा व आराम पसंद होते हैं इसलिए इनसे शत्रुता होती है।
♦ चंद्र :
चंद्र ग्रह के अधिकांश ग्रह मित्र होते है परंतु बुध, शुक्र, शनि, राहु, केतू इन्हे पसंद नहीं करते। बुध, शुक्र, गुरु, शनि मित्र व सिर्फ मंगल से शत्रुता होती है। चंद्रमा जल प्रधान व मंगल अग्नि तत्व प्रधान होते हैं। जाहिर है कि आग और पानी में मित्रता नहीं हो सकती।
♦ मंगल :
मंगल के मित्र शनि व सूर्य होते है। चंद्र व गुरु से साम्यता व शुक्र व बुध से शत्रुता के संबंध होते हैं। इस प्रकार मेष व वृश्चिक राशि वाले लोगों की मित्रता कर्क, धनु व मीन से तथा वृष, तुला, मिथुन व कन्या राशि से शत्रुता होती है।
♦ बुध :
इस ग्रह के सूर्य, गुरु व चंद्र मित्र होते है। शनि से इनकी शत्रुता होती है। इस प्रकार मिथुन व कन्या राशि वाले लोगों की मित्रता सिंह, कर्क, धनु व मीन राशि के लोगो से होती है। मकर व कुंभ राशि से असामान्य संबंध होते है।
♦ गुरु :
गुरु के मंगल, चंद्र, शनि मित्र व शुक्र तथा बुध से शत्रुता होती है। इस प्रकार धनु व मीन राशि के लोगों की मेष, वृश्चिक, कर्क, मकर व कुंभ से मित्रता तथा वृष, तुला व मिथुन, कन्या से शत्रुतापूर्ण संबंध होते है। गुरु स्वयं मर्यादा मे रहना सिखाते है जबकि बुध व शुक्र दोनों ही आदतन इससे दूर रहने वाले होते है।
♦ शुक्र :
इसके गुरु, सूर्य मित्र व मंगल शत्रु होते है। इस प्रकार शुक्र की राशि वृष व तुला वाले लोगों की मित्रता, सिंह, धनु व मीन राशि वालों से तथा मेष व वृश्चिक राशि के लोगो से शत्रुतापूर्ण संबंध होते हैं। चंद्रमा, बुध व शनि के साथ इनके समानता के संबंध होते है।
♦ शनि :
इस ग्रह की गुरु, चंद्र, मंगल से मित्रता व शनि सूर्य से शत्रुता रखते है। अत: मकर व कुंभ राशि वाले लोगों की मित्रता मेष, वृश्चिक, कर्क, धनु व मीन राशि के लोगो से होती है। सिंह राशि के लोगो से मित्रता नहीं होती है।
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» ज्योतिष के अनुसार मैत्री के प्रमुख भाव :
मित्रता का प्रमुख भाव एकादश भाव है जो आय भाव भी है जिसके जितने अच्छे मित्र होंगे, आय भाव उतना ही मजबूत होगा। अन्यथा कमजोर होगा। इस भाव मे यदि सूर्य हो तो ऐसे जातक की उच्च पदासीन, सत्तासीन व राजनीतिक लोगों से मित्रता होगी। चंद्रमा इस भाव में होने पर मित्र कलाकार, वायुयान चालक, जहाज के कैप्टन, नाविक आदि मित्र होंगे।
यदि एकादश भाव मे मंगल है तो मित्र खिलाड़ी, पहलवान, कुक आदि प्रकृति के लोग होंगे व बुध इस भाव में होने पर व्यावसायिक वृत्ति के लोग, गुरु इस भाव मे होने पर बैंकिंग, वित्त धार्मिक आस्था, दार्शनिक आदि मित्र होंगे। शुक्र इस भाव मे होने पर अभिनय क्षेत्र, स्त्री जातक, कलाकार आदि मित्रों की संख्या अधिक होगी।
शनि एकादश भाव मे होने पर नौकरी पेशा, सेवावृत्ति, अपनी आयु से अधिक उम्र वाले लोगो से मैत्री संबंध होते है। यदि इस भाव में राहु या केतू हो तो ऐसे व्यक्ति के छद्म मित्रों व अपनी जाति से इतर लोगों से मित्रों की संख्या अधिक होती है। वह अपने लोगो से दूर-दूर रहता है।
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» जानिए बुध ग्रह और दोस्ती/मैत्री /फ्रेंडशिप का सम्बन्ध :
> बुध को मित्रता का नैसर्गिक ग्रह माना जाता है। इस प्रकार बुध इन भावो से संबंध बना ले, तो जातक के जीवन मे मित्रो की संख्या अधिक होती है। इन भावो तथा बुध के अतिरिक्त जब दो जातको के राशि स्वामी, लग्न स्वामी, नक्षत्र स्वामी आदि एक ही हो जाएं अथवा उनमे मित्रता हो, तो उन जातको के मध्य मित्रता होना स्वाभाविक है।
> पंचम भाव मे यदि दो या उससे अधिक पाप ग्रह स्थित हो या उसे देखते हो, तो जातक के जीवन मे मित्रो का सुख नहीं होता। पंचमेश यदि पंचम, नवम, एकादश अथवा तृतीय भाव में स्थित हो और उसको पाप ग्रह नहीं देखते हों और न ही युति करते हो, तो जातक को मित्रों का सुख होता है।
> एकादश तथा पंचम भाव के स्वामी यदि युति करते हुए त्रिकोण या केंद्र भावो मे स्थित हो, तो जातक की मित्रता श्रेष्ठ व्यक्तियो से होती है। यदि तृतीयेश की स्थिति शुभ हो, तो उसे मित्रों से लाभ भी होता है।
> तृतीयेश यदि बली तथा शुभ ग्रहो से युक्त होकर शुभ स्थानो मे स्थित हो अथवा तृतीयेश का शुभ संबंध पंचमेश या एकादशेश से हो जाए, तो तत्सम्बन्धी ग्रह की राशि वाले जातकों की मित्रता से उसको अधिक लाभ की प्राप्ति होगी।
> बुध एवं मंगल पंचम भाव के विशेष योगकारी ग्रह है। यदि किसी जातक की कुंडली में बुध अथवा मंगल योगकारी अथवा मित्रक्षेत्री होकर पंचम में स्थित हो, तो उस जातक के जीवन में मित्रों की कमी नही होती है।
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» जानिए अपनी जन्म कुंडली अनुसार कौन सा ग्रह किस दूसरे ग्रह का मित्र, शत्रु तथा सम (न मित्र और न शत्रु) है-
♦ सूर्य ग्रह की मित्रता चंद्र, मंगल और गुरु से है, शुक्र तथा शनि से इसकी शत्रुता है और बुध ग्रह से सम भाव है।
♦ चंद्र के बुध, सूर्य मित्र है । मंगल, शुक्र, शनि तथा गुरु समय है।
♦ मंगल ग्रह के सूर्य, चंद्र और गुरु मित्र है, बुध शत्रु है और शुक्र तथा शनि से इसका सम भाव है।
♦ बुध ग्रह की मित्रता सूर्य तथा शुक्र मित्र है, चंद्र शत्रु है और मंगल गुरु तथा शनि सम है।
♦ गुरु की मित्रता सूर्य, चंद्र और मंगल से है। कुछ ज्योतिष के विद्वान गुरु और चंद्र एक-दूसरे को शत्रु भी मानते है।
♦ शुक्र के बुध और शनि मित्र हैं, सूर्य और चंद्र शत्रु हैं तथा मंगल और गुरु समय हैं।
♦ शनि ग्रह बुध और शुक्र से मित्रता रखता है जबकि सूर्य, चंद्र, मंगल को शत्रु मानता है। गुरु से सम भाव है।
♦ राहु और केतु छाया ग्रह माने जाते है, विद्वानो के अनुसार राहु और केतु दोनो शुक्र और शनि से मित्रता रखते है एवं सूर्य, चंद्र मंगल तथा गुरु इन चारो ग्रह से शत्रुता रखते है। बुध इन दोनो ग्रहो से सम भाव रखता है।
♦ सूर्य, चंद्र, मंगल और गुरु ये चारो ग्रह राहु तथा केतु से शत्रुता मानते है जबकि शुक्र और शनि राहु-केतु के मित्र है। बुध इन दोनों से सम भाव रखता है।
♦ जेसे यदि किसी जातक की कुंडली मे लग्न का स्वामी ग्रह शुभ हो और नवमांश मे नीच या अशुभ हो या 6,8,12 मे बैठा हो तथा शनि राहू केतू से पीड़ित हो तो जातक बाहर से सुंदर तथा अंदर से काला होता है ।
♦जेसे यदि किसी जातक की लग्न कुंडली मे लग्न का स्वामी ग्रह शुभ हो और नवमांश मे भी शुभ हो तथा शुभ ग्रहो से युति या दृष्टि मे हो तो ऐसा जातक बाहर से भी सुंदर और अंदर से भी सुंदर होता है ।
♦ जेसे यदि किसी जातक की लग्न कुंडली मे लग्न का स्वामी ग्रह क्रूर या पापी हो तथा नवमांश मे शुभ दृष्टि हो या शुभ राशि मे या वर्गोत्तम हो तो ऐसा जातक बाहर से कुरूप या स्पष्टवादी तथा अंदर से भी सुंदर होता है ।
♦ जेसे यदि किसी जातक की लग्न कुंडली मे लग्न का स्वामी ग्रह क्रूर या पापी हो और नवमांश मे भी पापी नीच या 6,8,12 मे हो या अशुभ राशि मे हो तो ऐसा जातक बाहर से भी कुरूप तथा अंदर से भी कुरूप और गंदगी से भरा होता है।
by Pandit Dayanand Shastri.