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जानिए कही आपकी जन्म कुंडली मे व्यभिचारी जीवनसाथी मिलने के योग तो नहीं?
हमारे हिन्दू शास्त्रो और समाज मे एक विवाह प्रथा प्रचलित है। अतः आप सभी से मेरा निवेदन है की गुण मिलान एवं कुंडली मिलान के उपरांत किसी योग्य, अनुभवी और विद्वान ज्योतिषी से यह भी अवश्य ज्ञात कर वाले कि कहीं लडका या लड़कीं कि कुंडली मे अन्य स्त्री-पुरुष से नाजायज संबंध बनने के योग तो नहीं है।
आजकल विवाहोपरांत पति-पत्नी के झगड़े तो आम बात बन गये है। पति-पत्नी मे सामान्य नोंक-झोंक से तो प्रेम और बढ़ता है। लेकिन नाजायज संबंधों के कारण उत्पन्न होने वाले झगड़े दोनो के बिच मे गाली गलोच-मारपीट, अलगाव, कोर्ट कचेरी के चक्कर एवं तलाक, आत्महत्या, कत्ल तक पहुंच जाती है। कई लडके-लड़की को ऐसा जीवन साथी मिलता है, जो अपने नाजायज संबंधों के कारण अपने पति-पत्नी को विभिन्न तरह कि यातनाएं देता है। ऐसी समस्याओ को भारतीय ज्योतिष शास्त्र के मूल सिद्धांतो से ज्ञात किया जा सकता है की लडका या लड़की को कैसा पति-पत्नी मिलेगी ?
यदि किसी जन्म कुंडली मे शुक्र उच्च का हो तो ऐसे व्यक्ति के कई प्रेम प्रसंग हो सकते है, जो कि विवाह के बाद भी जारी रहते है। मारपीट करने वाला कई स्त्री-पुरुष से नाजायज संबंध रखने वाला जीवनसाथी मिलने के योग होने पर उन्हे मंत्र-यंत्र-तंत्र, रत्न इत्यादि उपाय करके ऐसे योग का प्रभाव कम किया जा सकता है। जन्म कुंडली के सप्तम भाव मे मंगल चारित्रिक दोष उत्पन्न करता है स्त्री-पुरुष के विवाहेत्तर संबंध भी बनाता है। संतान पक्ष के किये कष्टकारी होता है। मंगल के अशुभ प्रभाव के कारण पति-पत्नी मे दूरियां बढ़ती है। जन्म कुंडली के द्वादश भाव मे मंगल शैय्या सुख, भोग, मे बाधक होता है। इस दोष के कारण पति पत्नी के सम्बन्ध मे प्रेम एवं सामंजस्य का अभाव रहता है। यदि मंगल पर ग्रहों का शुभ प्रभाव नहीं हो, तो व्यक्ति मे चारित्रिक दोष और गुप्त रोग उत्पन्न कर सकता है। व्यक्ति जीवनसाथी को घातक नुकसान भी कर सकता है।
ध्यान रखे, जन्म कुंडली मे सप्तम भाव मे शुक्र स्थित व्यक्ति को अत्याअधिक कामुक बनाता है, जिससे विवाहेत्तर सम्बन्ध बनने कि संभावना प्रबल रहती है। जिस्से वैवाहिक जीवन का सुख नष्ट होता है। यदि जन्म कुंड़ली के सप्तम भाव मे सूर्य हो, तो अन्य स्त्री-पुरुष से नाजायज संबंध बनाने वाला जीवनसाथी मिलता है। यदि जन्म कुंड़ली मे शत्रु राशि मे मंगल या शनि हो, अथवा क्रूर राशि मे स्थित होकर सप्तम भाव मे स्थित हो, तो क्रूर, मारपीट करने वाले जीवनसाथी कि प्राप्ति होती है।
यदि जन्म कुंड़ली मे सप्तम भाव मे चन्द्रमा के साथ शनि की युति होने पर व्यक्ति अपने जीवनसाथी के प्रति प्रेम नहीं रखता एवं किसी अन्य से प्रेम कर अवैध संबंध रखता है। यदि जन्म कुंड़ली मे सप्तम भाव मे राहु होने पर जीवनसाथी धोखा देने वाला कई स्त्री-पुरुष से संबंध रखने वाला व्यभिचारी होता है व विवाह के बाद अवैध संबंध बनाता है। उक्त ग्रह दोष के कारण ऐसा जीवनसाथी मिलता है जिसके कई स्त्री-पुरुष के साथ अवैध संबंध होते है। जो अपने दांपत्य जीवन के प्रति अत्यंत लापरवाह होते है। यदि जन्म कुंड़ली मे सप्तमेश यदि अष्टम या षष्टम भाव मे हो, तो यह पति-पत्नी के मध्य मतभेद पैदा होता है। इस योग के कारणा पति-पत्नी एक दूसरे से अलग भी हो सकते है।
इस योग के प्रभाव से पति-पत्नी दोंनो के विवाहेत्तर संबंध बन सकते है। इस लिये जिन पुरुष और कन्या कि कुंडली मे इस तरह का योग बन रहा हो उन्हे एक दूसरे कि भावनाओ का सम्मान करते हुवे अपने अंदर समर्पण कि भावना रखनी चाहिए।
शुभम भवतु।। कल्याण हो।।
by Pandit Dayanand Shastri.
जानिए किन उपायो से होगी व्यापार मे उन्नति :
♦ व्यापार मे उन्नति का अचूक टोटका :
शनिवार का दिन छोड़कर किसी भी दूसरे दिन एक पीपल का पत्ता लेकर गंगाजल से धोकर उस पर केसर से तीन बार ऊँ नम: भगवते वासुदेवाय नम: लिखकर पत्ते को पूजा स्थल पर रख ले। इसकी रोज पूजा करे व धूप-दीप दिखाएं। 21 दिन बाद यह पत्ता ले जाकर अपने व्यापार-व्यवसाय स्थल या ऑफिस मे किसी ऐसी जगह रखें जहां किसी की नजर इस पर न पड़े। आपका व्यवसाय लगातार उन्नति करने लगेगा।
♦ इस उपाय से व्यापार मे उन्नति होगी :
→ श्याम तुलसी के पौधा के पास उगे हुए घास को गुरूवार के दिन लेकर पीले वस्त्र मे बांध दे। इसके बाद इस वस्त्र पर सिंदूर लगाएं और लक्ष्मी माता का ध्यान करके इसे व्यापार स्थल पर रख दे। व्यापार मे उन्नति के लिए गुरूवार के दिन केले की जड़ को पीले वस्त्र मे लपेटकर व्यापार स्थल मे रखना भी लाभप्रद होता है।
→ गल्ले या तिजोरी मे कुबेर यंत्र अवश्य रखे जिससे कि आपके व्यापार-व्यवसाय मे उन्नति होती रहे।
→ व्यवसाय मे घटा होने लगा है तो इस संकट से निकलने के लिए शुक्ल पक्ष मे किसी शुक्रवार के दिन तांबे के बर्तन मे ऐश्वर्य लक्ष्मी यंत्र की स्थापना करें। इस यंत्र को गंगा जल से स्नान कराएं और सिंदूर लगाएं। लाल फूलों से इस यंत्र की पूजा करें। इससे जाती लक्ष्मी ठहर जाएगी। इससे व्यापार मे होने वाला नुकसान रूक जाएगा लेकिन व्यापार मे उन्नति के लिए लगातार 11 दिनों तक ‘ओम वं व्यापारं वर्धय शिवाय नमः’ का 11 बार जप करें। बारहवें दिन ऐश्वर्य लक्ष्मी यंत्र को नदी मे विसर्जित दें।
→ यदि आप अपना स्थानांतरण किसी इच्छित स्थान पर कराना चाहते है तो सोते समय अपना सिरहाना दक्षिण की ओर रखें। तांबे के दो पात्र लें। एक मे जल के साथ बिल्वपत्र व गुड तथा दूसरे मे जल व 21 मिर्च के दाने डालकर सूर्यदेव को अर्पित करें और इच्छित स्थान के लिए प्रार्थना करे।
by Pandit Dayanand Shastri.
जानिए क्या है हीलिंग ?? हीलिंग के लाभ/फायदे….
हीलिंग के बारे मे जानना अति आवश्यक है समग्र ब्रह्माण्ड उर्जा का बना हुआ है , ऊर्जायुक्त है और ऊर्जारूपांतर के योग्य नियमनुसार ही उसका संचालन और नियमन होता है। मानवी भी ऊर्जा का ही एक रूप है। जिसमे अनेक प्रकार के दुःख और सुख की ऊर्जा होती है। लेकिन वो आँखों से नहीं देखि जाती बस अनुभूति की जाती है। सुख के लिए सकारात्मक ऊर्जा होती है, और जितनी उसकी मात्रा होती है, उस प्रकार से उसके लाभ और फायदे होते है। उसी प्रकार से दुःख के लिए नकारात्मक ऊर्जा होती है।
लेकिन नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा मे परिवर्तित की जा सकती है। सकारात्मक ऊर्जा की सकारात्मकता जैसे बढ़ाई जा सकती है, उसी तरह नकारात्मक ऊर्जा की नकारात्मकता कम की जाती है। हीलिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जो नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा मे परिवर्तित करती है और सुख -शांति और समृद्धि प्रदान करती है और साथ ही साथ शेहत भी अच्छा बनाती है।
संपूर्ण जाग्रता से रोज हीलिंग करने से आत्मा की शुद्धि होती है। हीलिंग भी भक्ति का ही एक प्रकार है। जैसे हमने देखा की मानवी भी ऊर्जा का ही एक स्वरुप है और ये स्थूल शरीर मे एक दूसरा शरीर है, जिसे सुक्ष्म शरीर कहा गया है ये बात शास्त्रो एवं आधुनिक विज्ञानं ने भी कबुल की है।
हीलिंग का सरल अर्थ ये है की ये नकारात्मक ऊर्जा जो दुःख और पीड़ादायक है उस ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा जो सुख और शांति देती है उस ऊर्जा मे परिवर्तितकरती है।
♦ हीलिंग से सकारात्मकता प्राप्त करने हेतु यन्त्र उपलब्ध है :
१. भूमि- वास्तु हाउस एनर्जीकंवर्टर
२. सेल्फ हीलर – अक्टिविटर
३. सुपर हीलर
४. गले मे पहनने के लिए श्री यन्त्र लॉकेट
५. श्रीपर्णी मेरु (श्री यन्त्र )
६. कॉस्मिक पावर कार्ड
♦ जानिए क्या है हीलिंग के फायदे –
→ दिव्य चैतन्य शक्ति को को बढाती है और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती है।
→ मन और ह्रदय को निर्मलता और विशालता प्रदान करती है।
→ दिव्य चेतनाओं को जगाकर समझशक्ति,यादशक्ति और एकाग्रता बढाती है।
→ सकारत्मक ऊर्जा शरीर को शुद्ध एवं शक्ति प्रदान करती है।
→ हीलिंग (ध्यान ), सकारत्मक ऊर्जा मानसिक अशांति को दूर करती है।
by Healing Expert : Mr. Kirti k Shah.
जानिए लाल किताब अनुसार शुभ ग्रह होने पर क्या रखे सावधानी :
♦ सूर्य शुभ हो तो क्या न करे दान :
जिनकी कुण्डली मे सूर्य सिंह अथवा वृश्चिक राशि मे बैठा है। ऐसे व्यक्ति के लिए लाल किताब कहता है कि इन्हें सूर्य से संबंधित वस्तुएं जैसे गेहूं, गुड़, तांबे की वस्तुओं का दान नहीं करना चाहिए। जो लोग इनका दान करते है उनका सूर्य मंदा हो जाता है और सूर्य से प्राप्त होने वाले शुभ फलो मे कमी आती है। इससे नौकरी मे अधिकारी से मतभेद होता है। सरकारी कार्यों मे बाधा आती है। पिता एवं पैतृक संपत्ति के सुख मे कमी आती है। जिनकी जन्मपत्री मे सूर्य 7वें अथवा 8वें घर मे बैठा है उन्हें सुबह एवं शाम के समय दान नहीं देना चाहिए। इससे धन की हानि होती है, आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
♦ चन्द्र शुभ हो तो दान मे सावधानी :
जिस व्यक्ति की कुण्डली मे चन्द्रमा दूसरे अथवा चौथे भाव मे बैठा होता है उसे माता से सुख मिलता है। सुख-सुविधाओ मे वृद्धि होती है तथा शारीरिक एवं मानसिक सुख-शांति की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति चन्द्र से संबंधित वस्तु जैसे मोती, दूध, चीनी, चावल का दान करता है। उनका चन्द्रमा मंदा हो जाता है, चन्द्र से संबंधित शुभ फलो मे कमी आती है। जिनकी जन्मपत्री मे चन्द्रमा छठे भाव मे होता है उन्हें धर्मार्थ हैंडपंप नहीं लगाना चाहिए।
♦ मंगल शुभ हो तो मिठाई न करे दान :
लाल किताब मे मंगल शुभ वाले व्यक्ति के लिए मिठाई का दान करना वर्जित बताया गया है। इन्हें मसूर की दान, बेसन के लड्डू एवं लाल वस्त्रों का दान नहीं करना चाहिए।
♦ बुध शुभ हो तो दान मे परहेज :
बुध को बुआ, मौसी, बहन, व्यवसाय एवं बुद्धि का कारक कहा जाता है। बुध मजबूत वाला व्यक्ति बुध से संबंधित वस्तु जैसे मूंग की दाल, कलम, हरा वस्त्र, घड़ा दान करता है तो बुद्धि भ्रमित होती है। बुध से संबंधित रिश्तेदारों को कष्ट होता है।
♦ गुरू शुभ हो तो नए वस्त्र दान न करे :
लाल किताब के अनुसार जिन व्यक्तियो की कुण्डली मे गुरू सातवे घर मे बैठा है उस व्यक्ति को नए वस्त्रों का दान नही करना चाहिए। जो व्यक्ति ऐसा करता है उसे खुद ही वस्त्रों की कमी हो जाती है। गुरू नवम भाव मे, सप्तम भाव मे, चौथे अथवा प्रथम भाव मे शुभ स्थिति मे बैठा हो तो गुरू से संबंधित वस्तु जैसे हल्दी, सोना, केसर एवं पीली वस्तुओं का दान नहीं करना चाहिए। इससे आर्थिक समस्याओ का सामना करना पड़ता है।
♦ शनि शुभ है तो भी बरतनी होगी सावधानी :
शनि दोष से मुक्ति के लिए ज्योतिषशास्त्र मे तेल, तिल, लोहा काले वस्त्रों का दान करने के लिए कहा जाता है। इसके विपरीत लाल किताब मे कहा गया है कि कुण्डली मे अगर शनि तुला राशि, मकर या कुंभ मे हो तो व्यक्ति को इन वस्तुओं का दान नहीं करना चाहिए। इससे शनि मंदा हो जाता है, यानी शनि के शुभ फलों मे कमी आ जाती है। व्यक्ति को लाभ के बदले नुकसान उठाना पड़ता है।
♦शुक्र शुभ हो तो श्रृंगार की वस्तुएं न करे दान :
शुक्र को भौतिक सुख-सुविधा प्रदान करने वाला ग्रह कहा जाता है। जिनकी कुण्डली मे शुक्र दूसरे अथवा सातवें घर मे हो, वृष अथवा तुला राशि मे बैठा उन्हें रेडिमेड वस्त्र का दान नहीं करना चाहिए। ऐसे व्यक्ति को श्रृंगार की वस्तुओं का भी दान नहीं करना चाहिए।
by Pandit Dayanand Shastri.
जानिए घर मे शंख रखने और बजाने के लाभ, (जानिए शंख और स्वास्थ्य का सम्बन्ध )
हमारी भारतीय सनातन संस्कृती और बौद्ध धर्म मे शंख का महत्व काफ़ी ज़्यादा है। पूजा पाठ मे तो इसे इस्तेमाल किया ही जाता है, साथ ही इसकी पूजा भी की जाती है। हर अच्छी शुरुआत से पहले इसे बजाना शुभ माना जाता है। साथ ही ये भी मान्यता है कि महाभारत की शुरूआत भी श्री कृष्ण के शंखनाद से ही हुई थी। गरूड़ पुराण मे ये भी लिखा है कि किसी भी मंदिर के पट खोलने से पहले शंखनाद करना आवश्यक होता है और इसके बाद ही पूजा की शुरुआत हो सकती है। शंखो को हमेशा से वाद्य यंत्र के स्वरुप मे पेश किया गया है। माना जाता है कि इनका सबसे ज्यादा इस्तेमाल युद्ध को शुरू या समाप्त करने के लिए होता था।
समुद्र मंथन के समय मिले 14 रत्नों मे छठवां रत्न शंख था। शंखनाद से निकली ध्वनि मे अ-उ-म् (ओम्) अथवा ‘ओम्’ शब्द उद्धोषित होता है जहां तक ‘ओम्’ का नाद पहुंचता है वहां तक नकारात्मऊर्जा नष्ट हो जाती है। विष्णु पुराण के अनुसार माता लक्ष्मी समुद्रराज की पुत्री है तथा शंख उनका सहोदर भाई है। अत यह भी मान्यता है कि जहाँ शंख है, वहीं लक्ष्मी का वास होता है। स्वर्गलोक मे अष्टसिद्धियों एवं नवनिधियों मे शंख का महत्वपूर्ण स्थान है। शंख को समुद्रज, कंबु, सुनाद, पावनध्वनि, कंबु, कंबोज, अब्ज, त्रिरेख, जलज, अर्णोभव, महानाद, मुखर, दीर्घनाद, बहुनाद, हरिप्रिय, सुरचर, जलोद्भव, विष्णुप्रिय, धवल, स्त्रीविभूषण, पाञ्चजन्य, अर्णवभव आदि नामों से भी जाना जाता है |
अथर्ववेद के अनुसार, शंख से राक्षसो का नाश होता है- शंखेन हत्वा रक्षांसि। भागवत पुराण मे भी शंख का उल्लेख हुआ है। यजुर्वेद के अनुसार युद्ध मे शत्रुओं का हृदय दहलाने के लिए शंख फूंकने वाला व्यक्ति अपेक्षित है। अद्भुत शौर्य और शक्ति का संबल शंखनाद से होने के कारण ही योद्धाओं द्वारा इसका प्रयोग किया जाता था। शंख को नादब्रह्म और दिव्य मंत्र की संज्ञा दी गई है। शंख की ध्वनि को ‘ॐ’ की ध्वनि के समकक्ष माना गया है। शंखनाद से आपके आसपास की नकारात्मक ऊर्जा का नाश तथा सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। हमारे धर्म ग्रंथो के अनुसार शंख की उत्पत्ति सृष्टी आत्मा से, आत्मा आकाश से, आकाश वायु से, वायु अग्रि से, आग जल से और जल पृथ्वी से उत्पन्न हुआ है और इन सभी तत्वों से मिलकर शंख की उत्पत्ति मानी गई है।
♦ ये है श्रेष्ठ शंख के लक्षण :
शंखस्तुविमल: श्रेष्ठश्चन्द्रकांतिसमप्रभ:
अशुद्धोगुणदोषैवशुद्धस्तु सुगुणप्रद:
अर्थात निर्मल व चन्द्रमा की कांति के समान वाला शंख श्रेष्ठ होता है जबकि अशुद्ध अर्थात मग्न शंख गुणदायक नहीं होता। गुणों वाला शंख ही प्रयोग मे लाना चाहिए। क्षीरसागर मे शयन करने वाले सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु के एक हाथ मे शंख अत्यधिक पावन माना जाता है।
♦ शंख की पूजा इस मंत्र के साथ की जाती है :
“”त्वं पुरा सागरोत्पन्न:विष्णुनाविघृत:करे देवैश्चपूजित:
सर्वथैपाञ्चजन्यनमोऽस्तुते।””
हिंदू धर्म मे शंख को एक पवित्र धार्मिक पतीक माना जाता है। हिन्दू धर्म मे शंख को बहुत ही शुभ माना गया है। इसका कारण यह है कि माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु दोनों ही अपने हाथों मे शंख धारण करते है। इसलिए एक आम धारणा है कि, जिस घर मे शंख होता है उस घर मे सुख-समृद्धि आती है। पुराणो के अनुसार चन्द्रमा और सूर्य के समान ही शंख देवस्वरूप है| इसके बीच वाले भाग मे वरुण, पिछले भाग मे ब्रह्मा और आगे के भाग मे गंगा और सरस्वती का निवास होता है। शंख से शिवलिंग, कृष्ण या लक्ष्मी जी पर जल या फिर पंचामृत से अभिषेक करने पर देवता प्रसन्न हो जाते है। यह भी माना जाता है कि शंख के स्पर्श से साधारण जल भी गंगाजल जैसा ही पवित्र हो जाता है। मंदिर के शंख मे जल भरकर ही भगवान की आरती की जाती है। आरती के बाद शंख का ही जल भक्तों पर छिड़का जाता है जिससे वे प्रसन्न होते है। जो व्यक्ति भगवान श्री कृष्ण को शंख मे फूल, जल और तिलक रखकर उन्हें अर्ध्य देता है उसको अपार पुण्य की प्राप्ति होती है। ब्रह्मवैवर्त पुराण मे कहा गया है कि शंख मे जल रखने और इसे छिड़कने से वातावरण शुद्ध होता है| शंख मे गाय का दूध रखकर इसका छिड़काव घर मे किया जाए तो इससे भी सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
सनातन धर्म की कई ऐसी बाते है, जो न केवल आध्यात्मिक रूप से, बल्कि कई दूसरे तरह से भी फायदेमंद है। शंख रखने, बजाने व इसके जल का उचित इस्तेमाल करने से कई तरह के लाभ होते है। कई फायदे तो सीधे तौर पर सेहत से जुड़े है। एक मान्यता के अनुसार कोई भी पूजा, हवन, यज्ञ आदि शंख के उपयोग के बिना पूरा नहीं माना जाता है। शंख व्यक्ति को उसकी मनोकामना पूरी करने मे बहुत मदद करता है तथा जीवन को भी खुशियों से भर देता है शंख को विजय, सुख, यश, कीर्ति तथा लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है। पूजा-पाठ मे शंख बजाने से वातावरण पवित्र होता है। जहां तक इसकी आवाज जाती है, इसे सुनकर लोगों के मन मे सकारात्मक विचार पैदा होते हे। अच्छे विचारों का फल भी स्वाभाविक रूप से बेहतर ही होता है। शंख की आवाज लोगों को पूजा-अर्चना के लिए प्रेरित करती है। ऐसी मान्यता है कि शंख की पूजा से कामनाएं पूरी होती है| इससे दुष्ट आत्माएं पास नहीं फटकती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि शंख की आवाज से वातावरण मे मौजूद कई तरह के जीवाणुओं-कीटाणुओं का नाश हो जाता है। कई टेस्ट से इस तरह के नतीजे मिले है। शंख से वास्तुदोष भी मिटाया जा सकता है। शंख को किसी भी दिन लाकर पूजा स्थान पर पवित्र करके रख ले और प्रतिदिन शुभ मुहूर्त मे इसकी धूप-दीप से पूजा की जाए तो घर मे वास्तुदोष का प्रभाव कम हो जाता है।
पूजा-पाठ मे भी शंख बजाने का नियम है। यदि इसके धार्मिक पहलू को दरकिनार भी कर दे तो भी घर मे शंख रखने और इसे नियमित तौर पर बजाने के ऐसे कई फायदे है, जो सीधे तौर पर हमारी सेहत से जुड़े है। लेकिन शायद ही ऐसे लोग होंगे जो इससे होने वाले लाभो के बारे मे जानते होंगे। यह बजाने के साथ ही सेहत के लिए भी काफी फायदेमंद होता है। विश्व का सबसे बड़ा शंख केरल राज्य के गुरुवयूर के श्रीकृष्ण मंदिर मे सुशोभित है, जिसकी लंबाई लगभग आधा मीटर है तथा वजन दो किलोग्राम है। विज्ञान भी शंखनाद की उपयोगिता को मानता है। इसके उपयोग से फेफड़े स्वस्थ रहते है और दिल की किसी भी तरह की बीमारी का डर खत्म होता है। अगर आपको रक्तचाप की समस्या है तो उसका भी रामबाण इलाज है शंखनाद। शंखनाद के भी दो प्रकार होते है—पहला प्रकार होता है पूजा से पहले शंखनाद करना। इससे ही पूजा की शुरुआत होती है। इसे हमेशा पूजा स्थान के दाईं तरफ़ से बजाना चाहिए। साथ ही दूसरा शंखनाद पूजा के खत्म होने पर होता है, जो बाईं तरफ़ से बजाया जाता है |
शंखनाद तो काफ़ी लोग करते हैं, लेकिन इसका सही तरीका बहुत कम लोगों को ही पता होता है। शंखनाद करते वक़्त हमेशा इसे बजाने वाले का सिर ऊपर की तरफ़ होना चाहिए। शंखनाद करने से पहले पानी बिलकुल नहीं पीना चाहिए. इससे आपके मुंह की गंदगी शंक मे चली जाएगी और शंख अशुद्ध माना जाएगा। इसे बजाने वाले का शरीर स्थिर होना चाहिए। इसे बजाने के लिए गले पर नहीं बल्कि नाभी पर ज़ोर देना होता है। तभी इसकी ध्वनि मे कंपन आता है जिससे इसकी नाद से फ़ायदा मिलता है। रात को शंख मे थोडा पानी भरकर रख दे और दुसरे दिन सुबह वो पानी पीने से ,बोली मे हकलाने की समस्या से छुटकारा मिलता है। शंख बजाने से गला खुलता है और आवाज अच्छी होती है। जो लोग तुतलाके बोलते है उन्हें शंख बजाना चाहिए। शंख बजाने से आत्मविश्वास बढता है। ऋषि श्रृंग के अनुसार बच्चों के शरीर पर छोटे-छोटे शंख बांधने व शंख जल पिलाने से वाणी-दोष दूर हाते है। पुराणो मे उल्लेख मिलता है कि मूक व श्वास रोगी हमेशा शंख बजाए तो बोलने की शक्ति पा सकते हैं।वास्तुशास्त्र के मुताबिक भी शंख मे ऐसे कई गुण होते है, जिससे घर मे पॉजिटिव एनर्जी आती है. शंख की आवाज से ‘सोई हुई भूमि’ जाग्रत होकर शुभ फल देती है। तानसेनने अपने आरंभिक दौर मे शंख बजाकर ही गायन शक्ति प्राप्त की थी।
द्विधासदक्षिणावर्तिर्वामावत्तिर्स्तुभेदत:
दक्षिणावर्तशंकरवस्तु पुण्ययोगादवाप्यते
यद्गृहे तिष्ठति सोवै लक्ष्म्याभाजनं भवेत्
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♦ शंखनाद करते समय इनका रखे ध्यान :
1. जिस शंख को बजाया जाता है उसे पूजा के स्थान पर कभी नहीं रखा जाता ।
2. जिस शंख को बजाया जाता है उससे कभी भी भगवान को जल अर्पण नहीं करना चाहिए।
3. एक मंदिर मे या फ़िर पूजा स्थान पर कभी भी दो शंख नहीं रखने चाहिए।
4. पूजा के दौरान शिवलिंग को शंख से कभी नहीं छूना चाहिए।
5. भगवान शिव और सूर्य देवता को शंख से जल अर्पण कभी भी नहीं करना चाहिए।
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♦ जानिए शंख के प्रकार :
वैसे तो शंख कई प्रकार के होते है और सभी की विशेषता व पूजा करने की विधि भी अलग अलग ही होती है। कैलाश मानसरोवर, मालद्वीप, लक्षद्वीप, कोरामंडल द्वीप समूह, श्रीलंका एवं भारत मे उच्च श्रेणी के श्रेष्ठ शंख पाये जाते है और ये तीन प्रकार के होते है :-
1. गणेश शंख :
ये पूज्य देव गणेश के आकार का ही होता है इसलिए इसको गणेश शंख ही कहा जाता है। इसे हम प्रकृति का चमत्कार या प्रभु की कृपा भी कह सकते है कि इसकी आकृति और शक्ति बिल्कुल गणेश जी के जैसी ही होती है। वे व्यक्ति निश्चित रूप से बहुत ही ज्यादा सौभाग्यशाली होते है जिनके घर मे गणेश शंख का पूजन किया जाता है। गणेश जी की कृपा से सभी प्रकार की परेशानियाँ दूर हो जाती है आर्थिक, व्यापारिक समस्याओं से मुक्ति पाने का श्रेष्ठ उपाय श्री गणेश शंख ही है, इसे चार वर्णों मे बांटा गया है जिसका आधार इसका रंग है इस दृष्टि से शंख चार रंग का होता है :- सफेद, गाजरी व भूरा, हल्का पीले व स्लेटी रंग का होता है।
2. वामावर्ती शंख :
वामावर्ती शंख का उपयोग सबसे ज्यादा किया जाता है इसका आकार बिल्कुल श्री यंत्र की तरह ही होता है। इसे प्राकृतिक श्री यंत्र भी माना जाता है जिस भी घर मे पूरे विधि विधान से इसकी पूजा की जाती है, वहाँ पर लक्ष्मी जी सदा वास करती है। इसे दो प्रकारों से सीधे होठों से व धातु के बेलन पर रखकर बजाया जाता है, इस शंख की आवाज़ बहुत ही सुरीली होती है। विद्या की देवी सरस्वती भी शंख धारण करती है वे खुद भी विणा शंख की पूजा करती है और यह भी माना जाता है कि इसकी पूजा करने से या इसके जल को पीने से मंद बुद्धि वाला इन्सान भी ज्ञान से परिपूर्ण हो जाता है।
3. दक्षिणावर्ती शंख :
भगवान विष्णु खुद भी अपने दाहिने हाथ मे दक्षिणावर्ती शंख धारण करते है। पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन के समय यह शंख निकला था जिसे स्वयं भगवान विष्णु जी ने धारण किया था। यह एक ऐसा शंख है, जिसको बजाया नहीं जाता है सिर्फ पूजा के स्थान पर ही रखा जाता है। इसे सर्वाधिक शुभ भी माना जाता है।
4. गोमुखी शंख :
इस शंख की आकृति गाय के मुख के समान बहुत ही सुंदर होती है। इसे शिव पावर्ती का भी स्वरूप माना जाता है, धन की प्राप्ति तथा अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए इसकी स्थापना उत्तर की ओर मुँह करके की जाती है। यह भी माना जाता है कि इसमे रखा पानी पीने से गाय की हत्या के पाप से मुक्ति मिलती है और इसको कामधेनु शंख भी कहा जाता है।
5. विष्णु शंख :
यह शंख सफ़ेद रंग और गरुड़ की आकृति के समान होता है। इसे वैष्णव संप्रदाय के व्यक्ति विष्णु स्वरूप मानकर अपने अपने घरों मे रखते है। माना जाता है कि जहाँ विष्णु होते है वहां लक्ष्मी भी स्थित होती है। इसलिए जिस भी घर मे इस शंख की स्थापना होती है उसमे लक्ष्मी और नारायण का वास हमेशा रहता है। एक और मान्यता यह भी है कि इस शंख से रोहिणी, चित्रा व स्वाति नक्षत्रों मे गंगाजल भरकर और मंत्र का जप करके, उस जल को किसी गर्भवती महिला को पिलाने से सुंदर,ज्ञानवान व स्वस्थ संतान की प्राप्ति होती है।
6. पांचजन्य शंख :
यह भगवान श्री कृष्ण का ही रूप है इसको विजय व यश का प्रतीक माना गया है इसमे पांच उँगलियों की आकृति होती है। घर मे किसी भी प्रकार का वास्तु दोष चल रहा है तो उसी से मुक्ति पाने के लिए इसकी स्थापना की जाती है। यह राहू और केतु के दुष्प्रभाव को भी कम करने मे मदद करता है। भगवान कृष्ण के पास पाञ्चजन्य शंख था जिसकी ध्वनि कई किलोमीटर तक पहुंच जाती थी।
पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जय:।
पौण्ड्रं दध्मौ महाशंखं भीमकर्मा वृकोदर:।। -महाभारत
भगवान श्रीकृष्ण के पास पाञ्चजन्य शंख था। कहते है कि यह शंख आज भी कहीं मौजूद है। इस शंख के हरियाणा के करनाल मे होने के बारे मे कहा जाता रहा है। माना जाता है कि यह करनाल से 15 किलोमीटर दूर पश्चिम मे काछवा व बहलोलपुर गांव के समीप स्थित पराशर ऋषि के आश्रम मे रखा था, जहां से यह चोरी हो गया। यहां हिन्दू धर्म से जुड़ी कई बेशकीमती वस्तुएं थीं।
7. अन्नपूर्णा शंख :
यह अन्य सभी शंखो से बहुत ज्यादा भारी होता है इसका इस्तेमाल भाग्यवृद्धि और सुख समृद्धि की प्राप्ति के लिए किया जाता है। इस शंख मे गंगाजल भरकर सुबह सुबह सेवन करने से मन मे संतुष्टि की इच्छा उत्पन्न होने लगती है तथा व्याकुलता समाप्त होती जाती है।
8. मोती शंख :
इसका आकार बहुत ही छोटा और बिल्कुल मोती के आकार का ही होता है इसको भी लक्ष्मी जी की प्राप्ति के लिए दक्षिणावर्ती शंख के समान पूजाघर मे स्थापित किया जाता है। इसकी स्थापना से समृद्धि की प्राप्ति व व्यापार मे सफलता प्राप्त होती है। इसमे नियमित रूप से लक्ष्मी मंत्र का 11 बार जप अवश्य करे, ऐसा करने से लक्ष्मी जी जल्दी ही प्रसन्न होती है।
9. कौरी शंख :
कौरी शंख अत्यंत ही दुर्लभ शंख है। माना जाता है कि यह जिसके भी घर मे होता है उसका भाग्य खुला जाता है और समृद्धि बढ़ती जाती है। प्राचीनकाल से ही इस शंख का उपयोग गहने, मुद्रा और पांसे बनाने मे किया जाता रहा है। कौरी को कई जगह कौड़ी भी कहा जाता है। पीली कौड़िया घर मेंरखने से धन मे वृद्धि होती है।
10. हीरा शंख :
इसे पहाड़ी शंख भी कहा जाता है। इसका इस्तेमाल तांत्रिक लोग विशेष रूप से देवी लक्ष्मी की पूजा के लिए करते है। यह दक्षिणावर्ती शंख की तरह खुलता है। यह पहाड़ो मे पाया जाता है। इसकी खोल पर ऐसा पदार्थ लगा होता है, जो स्पार्कलिंग क्रिस्टल के समान होता है इसीलिए इसे हीरा शंख भी कहते है। यह बहुत ही बहूमुल्य माना गया है। यह स्फटिक के समान धवल, पारदर्शी व चमकीला होता है यह बहुत ही ऐष्वर्यदायक लेकिन अत्यंत कमज़ोर होता है। इसमे से हीरे के समान सात रंग निकलते है, इसका इस्तेमाल प्रेम व शुक्र दोष से रक्षा के लिए किया जाता है। इसकी स्थापना से शुक्र ग्रह की कृपा भी प्राप्त होती है।
11. टाइगर शंख :
इस शंख पर बाघ के समान धारियां होती है जो बहुत ही सुंदर दिखाई देती है। ये धारियां लाल,गुलाबी,काली व कत्थई जैसे रंग की होती है। इसकी स्थापना से आत्मविश्वास मे भी वृद्धि होती है तथा शनि, राहू और केतू ग्रह की व्याधियो से मुक्ति मिलती है।
तात्पर्य यह है कि शंख के अनेक गुण है साथ ही साथ साधक के मन मे भी तंत्र शक्ति का संचार भी होता है ये सभी गुण अध्यात्मिक भी है, वैज्ञानिक भी और औषधीय भी है इनके गुणो को देखते हुए इनकी स्थापना अवश्य करनी चाहिए। ऐसा करने से आपके पाप तो नष्ट होगे ही साथ मे हमारी मनोकामनाओं की भी पूर्ति होगी और ये सब हमारे लिए बहुत ही लाभकारी साबित होगा।
शंख के अन्य प्रकार : देव शंख, चक्र शंख, राक्षस शंख, शनि शंख, राहु शंख, पंचमुखी शंख, वालमपुरी शंख, बुद्ध शंख, केतु शंख, शेषनाग शंख, कच्छप शंख, शेर शंख, कुबार गदा शंख, सुदर्शन शंक आदि।
by Pandit Dayanand Shastri.
शीघ्र विवाह के लिए ये करे वास्तु के अचूक उपाय :
विवाह जीवन का सबसे अहम पल होता है। कई बार विवाह मे अड़चने आती है। इसके कई कारण होसकते है। वास्तु दोष भी उन्हीं मे से एक है। यदि इन वास्तु दोषो को दूर कर दिया जाए तो जिसके विवाह मे अड़चने आ रही होती है उसका विवाह अतिशीघ्र हो जाता है। नीचे ऐसे ही कुछ वास्तु नियमों के बारे मे जानकारी दी गई है-
1- यदि विवाह प्रस्ताव मे व्यवधान आ रहे हो तो विवाह वार्ता के लिए घर आए अतिथियो को इस प्रकार बैठाएं कि उनका मुख घर मे अंदर की ओर हो । उन्हे द्वार दिखाई न दे।
2- यदि मंगल दोष के कारण विवाह मे विलंब हो रहा हो तो उसके कमरे के दरवाजे का रंग लाल अथवा गुलाबी रखना चाहिए।
3- विवाह योग्य युवक-युवती के कक्ष मे कोई खाली टंकी, बड़ा बर्तन बंद करके नहीं रखें। अगर कोई भारी वस्तु हो तो उसे भी हटा दे।
4- विवाह योग्य युवक-युवती जिस पलंग पर सोते हों उसके नीचे लोहे की वस्तुएं या व्यर्थ का सामान नहीं रखना चाहिए।
5- यदि विवाह के पूर्व लड़का-लड़की घर वालो की रजामंदी से मिलना चाहे तो बैठक व्यवस्था इस प्रकार करे कि उनका मुख दक्षिण दिशा की ओर न हो।
6- यदि घर के मुख्य द्वार के समीप ही वास्तु दोष हो तो विवाह की बात अन्य स्थान पर करे।
7- घर मे बेटी जवान है, उसकी शादी नहीं हो पा रही है, तो एक उपाय करे- कन्या के पलंग पर पीले रंग की चादर बिछाएं, उस पर कन्या को सोने के लिए कहे। इसके साथ ही बेडरूम की दीवारों पर हल्का रंग करें। ध्यान रहे कि कन्या का शयन कक्ष वायव्य कोण मे स्थित होना चाहिए।जीवन मे पीले रंग को सफलता का सूचक कहा जाता है। पीला रंग भाग्य मे वृद्धि लाता है। कन्या की शादी मे पीले रंग का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग किया जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि कन्या ससुराल मे सुखी रहेगी।विवाह निर्विघ्न होने की शुभ सूचना वस्तुतः हल्दी से सम्पन्न होती है, क्योंकि हल्दी को गणेशजी की उपस्थिति माना जाता है। और जिस कार्य मे गणेश जी स्वयं उपस्थित हो, उस कार्य को पूरा करने मे विघ्न कैसे आ सकता है। हल्दी की गांठो मे कभी-कभी गणेश जी की मूर्ति का चित्र मिलता है। लक्ष्मी अन्नपूर्णा भी हरिद्रा कहलाती है। श्री सूक्त मे वर्णन किया गया है कि लक्ष्मी जी पीत वस्त्र धारण किए है। अतः आप समझ सकते है कि हल्दी का कितना महत्व है। इतना ही नहीं, बृहस्पति का रंग भी पीत वर्ण का है, तभी तो पीत रंग का पुखराज पहनकर बृहस्पति की कृपा प्राप्त होती है।
♦ क्यो नहीं करना चाहिए एक ही गौत्र मे विवाह ?
ब्राह्मणो के विवाह मे गौत्र-प्रवर का बड़ा महत्व है। पुराणो व स्मृति ग्रंथों मे बताया गया है कि यदि कोई कन्या संगौत्र हो, किंतु सप्रवर न हो अथवा सप्रवर हो किंतु संगौत्र न हो, तो ऐसी कन्या के विवाह को अनुमति नहीं दी जाना चाहिए। विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्वाज, गौतम, अत्रि, वशिष्ठ, कश्यप- इन सप्तऋषियों और आठवे ऋषि अगस्ति की संतान ‘गौत्र” कहलाती है। यानी जिस व्यक्ति का गौत्र भारद्वाज है, उसके पूर्वज ऋषि भारद्वाज थे और वह व्यक्ति इस ऋषि का वंशज है। आगे चलकर गौत्र का संबंध धार्मिक परंपरा से जुड़ गया और विवाह करते समय इसका उपयोग किया जाने लगा।
ऋषियों की संख्या लाख-करोड़ होने के कारण गौत्रों की संख्या भी लाख-करोड़ मानी जाती है, परंतु सामान्यत: आठ ऋषियों के नाम पर मूल आठ गौत्र ऋषि माने जाते है, जिनके वंश के पुरुषों के नाम पर अन्य गौत्र बनाए गए। ‘महाभारत” के शांतिपर्व (297/17-18) मेमूल चार गौत्र बताए गए है- अंगिरा, कश्यप, वशिष्ठ और भृगु, जबकि जैन ग्रंथों मे 7 गौत्रों का उल्लेख है- कश्यप, गौतम, वत्स्य, कुत्स, कौशिक, मंडव्य और वशिष्ठ। इनमे हर एक के अलग-अलग भेद बताए गए है- जैसे कौशिक-कौशिक कात्यायन, दर्भ कात्यायन, वल्कलिन, पाक्षिण, लोधाक्ष, लोहितायन (दिव्यावदन-331-12,14) विवाह निश्चित करते समय गौत्र के साथ-साथ प्रवर का भी ख्याल रखना जरूरी है। प्रवर भी प्राचीन ऋषियो के नाम है तथापि अंतर यह है कि गौत्र का संबंध रक्त से है, जबकि प्रवर से आध्यात्मिक संबंध है। प्रवर की गणना गौत्रों के अंतर्गत की जाने से जाति से संगौत्र बहिर्विवाहकी धारणा प्रवरों के लिए भी लागू होने लगी।
ब्राह्मणो के विवाह मे गौत्र-प्रवर का बड़ा महत्व है। पुराणों व स्मृति ग्रंथों मे बताया गया है कि यदि कोई कन्या संगौत्र हो, किंतु सप्रवर न हो अथवा सप्रवर हो किंतु संगौत्र न हो, तो ऐसी कन्या के विवाह को अनुमति नहीं दी जाना चाहिए। वर-वधू का एक वर्ष होतेहुए भी उनके भिन्ना-भिन्ना गौत्र और प्रवर होना आवश्यक है (मनुस्मृति- 3/5)। मत्स्यपुराण (4/2) मे ब्राह्मण के साथ संगौत्रीय शतरूपा के विवाह पर आश्चर्य और खेद प्रकट किया गया है। गौतमधर्म सूत्र (4/2) मे भी असमान प्रवर विवाह का निर्देश दिया गया है। (असमान प्रवरैर्विगत) आपस्तम्ब धर्मसूत्र कहता है- ‘संगौत्राय दुहितरेव प्रयच्छेत्” (समान गौत्र के पुरुष को कन्या नहीं देना चाहिए)। असमान गौत्रीय के साथ विवाह न करने पर भूल पुरुष के ब्राह्मणत्व से च्युत हो जाने तथा चांडाल पुत्र-पुत्री के उत्पन्ना होने की बात कही गई। अपर्राक कहता है कि जान-बूझकर संगौत्रीय कन्या से विवाह करने वाला जातिच्युत हो जाता है, जबकि बोधायन का मत है कि यदि कोई व्यक्ति भूल से भी संगौत्रीय कन्या से विवाह करता है, तो उसे उस कन्या का मातृत्वत् पालन करना चाहिए (संगौत्रचेदमत्योपयच्छते मातृपयेनां विमृयात्)। गौत्र जन्मना प्राप्त नहीं होता, इसलिए विवाह के पश्चात कन्या का गौत्र बदल जाता है और उसके लिए उसके पति का गौत्र लागू हो जाता है।
by Pandit Dayanand Shastri.
सफलता के लिए शुभ मुहूर्त (शुभ नक्षत्र) मे करे कार्य आरंभ …
ज्योतिषियो के अनुसार सुखी और खुशहाल जीवन के लिए जरूरी है कि हर काम की शुरुआत शुभ मुहूर्त मे करे और अशुभ को त्यागे। सुखी और खुशहाल जीवन के लिए जरूरी है कि हर काम की शुरुआत शुभ मुहूर्त मे करे और अशुभ को त्यागे। सुखी और खुशहाल जीवन के लिए जरूरी है कि हर काम की शुरुआत शुभ मुहूर्त मे करें और अशुभ को त्यागे। हिन्दू धर्म मे शुभ मुहूर्त मे कार्य करना बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। केवल विवाह ही क्यों, यहां तो किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत करने से पहले एक मुहूर्त निकाला जाता है, ताकि वह कार्य सफल हो सके। बच्चों की शादी से लेकर बहू के गृह प्रवेश तक, घर मे आए नन्हें मेहमान के गृह प्रवेश से लेकर उसके नामकरण पर शुभ मुहूर्त….
नामकरण, मुंडन तथा विद्यारंभ जैसे संस्कारो के लिए तथा दुकान खोलने, सामान खरीदने-बेचने और ऋण तथा भूमि के लेन-देन और नये-पुराने मकान मे प्रवेश के साथ यात्रा विचार और अन्य अनेक शुभ कार्यों के लिए शुभ नक्षत्रों के साथ-साथ कुछ तिथियो तथा वारो का संयोग उनकी शुभता सुनिश्चित करता है। आइए, इस लेख से जाने कि किस कार्य के लिए इस संयोग का स्वरूप क्या और कैसा हो?
ज्योतिषशास्त्र व ज्योतिषी के ऊपर जो लोग विश्वास करते है, वे अपनी आपबीती एवं अनुभवो की बातें सुनते है। उन बातो मेज्योतिषी द्वारा की गई भविष्यवाणी मे सच हने वाली घटना का उल्लेख होता है। इन घटनाओं मे थोड़ी बहुत वास्तविकता नजर आती है। वहीं कई घटनाओ मे कल्पनाओं का रंग चडा रहता है क्योंकि कभी – कभार ज्योतिषी कीभविष्यवाणी सच होती है ? इस सच के साथ क्या कोई संपर्कज्योतिष शास्त्र का है?ज्योतिषियो कीभविष्यवाणी सच होने के पीछे क्या राज है ?ज्योतिषी इस शास्त्र के पक्ष मे क्या – क्या तर्क देते है ? यह तर्क कितना सही है ?
ज्योतिषशास्त्र की धोखाधड़ी के खिलाफ क्या तर्क दिये जाते है ? इन सब बातों की चर्चा हम जरुर करेंगे लेकिन जिस शास्त्र को लेकर इतना तर्क – वितर्क हो रहा है ; उस बारे मे जानना सबसे पहले जरुरी है। दिन, सप्ताह, पक्ष,मास, अयन, ऋतु, वर्ष एवं उत्सव तिथि का परिज्ञान के लिए ज्योतिष शास्त्र को केन्द्र मे रखा गया है। मानव समाज को इसका ज्ञान आवश्यक है। धार्मिक उत्सव,सामाजिक त्योहार,महापुरुषों के जन्म दिन, अपनी प्राचीन गौरव गाथा का इतिहास, प्रभृति, किसी भी बात का ठीक-ठीक पता लगा लेने मे समर्थ है यह शास्त्र। इसका ज्ञान हमारी परंपरा, हमारे जीवन व व्यवहार मे समाहित है। शिक्षित और सभ्य समाज की तो बात ही क्या, अनपढ़ और भारतीय कृषक भी व्यवहारोपयोगी ज्योतिष ज्ञान से परिपूर्ण है। वह भलीभांति जानते है कि किस नक्षत्र मे वर्षा अच्छी होती है, अत: बीज कब बोना चाहिए जिससे फसल अच्छी हो। यदि कृषक ज्योतिष शास्त्र के तत्वों को न जानता तो उसका अधिकांश फल निष्फल जाता।
कुछ महानुभाव यह तर्क प्रस्तुत कर सकते है कि आज के वैज्ञानिक युग मे कृषि शास्त्र के मर्मज्ञ असमय ही आवश्यकतानुसार वर्षा का आयोजन या निवारण कर कृषि कर्म को संपन्न कर लेते है या कर सकते है। इस दशा मे कृषक के लिए ज्योतिष ज्ञान की आवश्यकता नहीं है। परन्तु उन्हे यह नहीं भूलना चाहिए कि आज का विज्ञान भी प्राचीन ज्योतिष शास्त्र का ही शिष्य है।ज्योतिष सीखने की इच्छा अधिकतर लोगो मे होती है। लेकिन उनके सामने समस्या यह होती है कि ज्योतिष की शुरूआत कहाँ से की जाये? बहुत से पढ़ाने वाले ज्योतिष की शुरुआत कुण्डली-निर्माण से करते है। ज़्यादातर जिज्ञासु कुण्डली-निर्माण की गणित से ही घबरा जाते है। वहीं बचे-खुचे “भयात/भभोत” जैसे मुश्किल शब्द सुनकर भाग खड़े होते है।अगर कुछ छोटी-छोटी बातों पर ग़ौर किया जाए, तो आसानी से ज्योतिष की गहराइयों मे उतरा जा सकता है। और आजकल तो कोई भी वस्तु खरीदने के लिए भी शुभ मुहूर्त निकाला जाता है।
इसके अलावा कुछ विशेष दिनों के आधार पर भी शुभ-अशुभ मुहूर्त बताए जाते है। जैसे कि शुक्ल पक्ष की अष्टमी और पूर्णमासी के पूर्वार्द्ध और चतुर्थी एवंएकादशी के उत्तरार्द्ध मे तथा कृष्ण पक्ष की तीज एवं दशमी के उत्तरार्द्ध और सप्तमी एवं चतुर्दशी के पूर्वार्द्ध मे भद्रा होती है। तिथि के उत्तरार्द्ध मे होने वाली भद्रा यदि दिन मे हो तो शुभ होती है। इसी प्रकार पूर्वार्द्ध मे होने वाली भद्रा रात्रि मे हो तो शुभ होती है। नक्षत्र ही भारतीय ज्योतिष का वह आधार है जो हमारे दैनिक जीवन के महत्वपूर्ण कार्यों को प्रभावित करता है। अतः हमे कोई भी कार्य करते हुए उससे संबंधित शुभ नक्षत्रों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए जिससे हम सभी कष्ट एवं विघ्न बाधाओं से दूर रहकर नयी ऊर्जा को सफल उद्देश्य के लिए लगा सकें। विभिन्न कार्यों के लिए शुभ नक्षत्रों को जानना आवश्यक है।
नामकरण के लिए : संक्रांति के दिन तथा भद्रा को छोड़कर 1, 2, 3, 5, 7, 10, 11, 12, 13 तिथियों मे, जन्मकाल से ग्यारहवें या बारहवें दिन, सोमवार, बुधवार अथवा शुक्रवार को तथा जिस दिन अश्विनी, रोहिणी, मृगशिरा, हस्त, चित्रा, अनुराधा, तीनों उत्तरा, अभिजित, पुष्य, स्वाति, पुनर्वसु, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा इनमे से किसी नक्षत्र मे चंद्रमा हो, बच्चे का नामकरण करना चाहिए।
मुण्डन के लिए : जन्मकाल से अथवा गर्भाधान काल से तीसरे अथवा सातवें वर्ष मे, चैत्र को छोड़कर उत्तरायण सूर्य मे, सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार अथवा शुक्रवार को ज्येष्ठा, मृगशिरा, चित्रा, स्वाति, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पुनर्वसु, अश्विनी, अभिजित व पुष्य नक्षत्रों मे, 2, 3, 5, 7, 10, 11, 13तिथियों मे बच्चे का मुंडन संस्कार करना चाहिए। ज्येष्ठ लड़के का मुंडन ज्येष्ठ मास मे वर्जित है। लड़के की माता को पांच मास का गर्भ हो तो भी मुण्डन वर्जित है।
विद्या आरंभ के लिए : उत्तरायण मे (कुंभ का सूर्य छोड़कर) बुध, बृहस्पतिवार, शुक्रवार या रविवार को, 2, 3, 5,6, 10, 11, 12 तिथियों मे पुनर्वसु, हस्त, चित्रा, स्वाति, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, मूल, तीनों उत्तरा, रोहिणी, मूल, पूष्य, अनुराधा, आश्लेषा, रेवती, अश्विनी नक्षत्रों मे विद्या प्रारंभ करना शुभ होता है।
दुकान खोलने के लिए : हस्त, चित्रा, रोहिणी, रेवती, तीनों उत्तरा, पुष्य, अश्विनी, अभिजित् इन नक्षत्रो मे, 4, 9, 14, 30 इन तिथियो को छोड़कर अन्य तिथियों मे, मंगलवार को छोड़कर अन्य वारों मे, कुंभ लग्न को छोड़कर अन्य लग्नों मे दुकान खोलना शुभ है। ध्यान रहे कि दुकान खोलने वाले व्यक्ति की अपनी जन्मकुंडली के अनुसार ग्रह दशा अच्छी होनी चाहिए। व्यापार कब आरंभ करे इसके लिए गोस्वामी तुलसीदास अपने रचित ग्रंथ दोहावली मे लिखते है कीश्रवण,धनिष्ठा,शतभीषा,हस्त,चित्रा,स्वाति,पुष्य,पुनर्वसु,मृगशिरा,अश्विनी,रेवती तथा अनुराधा नक्षत्रो मे आरंभ किया गया व्यापार व दिया गया धन हमेशा धनवर्धक होता है जो किसी भी अवस्था मे डूब नहीं सकता अर्थात इन नक्षत्रो मे आरंभ किया गया व्यापार कभी भी जातक को हानी नहीं दे सकता है | इसी प्रकार शेष अन्य नक्षत्रो मे दिया गया,चोरी गया,छीना हुआ अथवा उधार दिया धन कभी भी वापस नहीं आता है अर्थात जातक को हानी ही प्रदान करता है |
एक अन्य श्लोक् मे कहा गया है की यदि रविवार को द्वादशी,सोमवार को एकादशी,मंगलवार को दशमी,बुधवार को तृतीया,गुरुवार को षष्ठी,शुक्रवार को द्वितीया तथा शनिवार को सप्तमी तिथि पड़े तो यह तिथिया सर्व सामान्य हेतु हानिकारक बनती है अर्थात आमजन को इन तिथियो मे नुकसान ही होता है | अत: इन तिथियो मे कोई बड़ा सौदा अथवा लेन-देन नहीं करना चाहिए| जातक की अपनी राशि से जब चन्द्र का गोचर 3,6,12 भावो से होता है तब जातक को अवस्य ही दुख तकलीफ,धनहानी जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ता है इसी प्रकार जब मेष राशि के प्रथम,वृष के पंचम,मिथुन के नवे,कर्क के दूसरे,सिंह के छठे,कन्या के दसवे,तुला के तीसरे,वृश्चिक के सातवे,धनु के चौथे,मकर के आठवे,कुम्भ के ग्यारहवे,तथा मीन के बारहवे चन्द्र होतो जातक हेतु घातक प्रभाव होता है जिससे जातक को मृत्यु तुल्य कष्ट प्राप्त होते है अत: इन इन दिनो जातक को विशेष सावधान रहना चाहिए |
कोई वस्तु/सामान खरीदने के लिए : रेवती, शतभिषा, अश्विनी, स्वाति, श्रवण, चित्रा, नक्षत्रों मे वस्तु/सामान खरीदना चाहिए।कोई वस्तु बेचने के लिए : पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाभाद्रपद, पूर्वाषाढ़ा, कृत्तिका, आश्लेषा, विशाखा, मघा नक्षत्रों मे कोई वस्तु बेचने से लाभ होता है। वारों मे बृहस्पतिवार और सोमवार शुभ माने गये है।
ऋण लेने-देने के लिए : मंगलवार, संक्रांति दिन, हस्त वाले दिन रविवार को ऋण लेने पर ऋण से कभी मुक्ति नहीं मिलती। मंगलवार को ऋण वापस करना अच्छा है। बुधवार को धन नहीं देना चाहिए। कृत्तिका, रोहिणी, आर्द्रा, आश्लेषा, उत्तरा तीनों, विशाखा, ज्येष्ठा, मूल नक्षत्रों मे, भद्रा, अमावस मे गया धन, फिर वापस नहीं मिलता बल्कि झगड़ा बढ़ जाता है।
भूमि के लेन-देन के लिए : आश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, मृगशिरा, मूल, विशाखा, अनुराधा, पूर्वाषाढ़ा, उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र मे, बृहस्पतिवार, शुक्रवार 1, 5, 6, 11, 15 तिथि को घर जमीन का सौदा करना शुभ है।
नूतन ग्रह प्रवेश : फाल्गुन, बैशाख, ज्येष्ठ मास मे, तीनों उत्तरा, रोहिणी, मृगशिरा, चित्रा, अनुराधा, रेवती नक्षत्रों मे, रिक्ता तिथियों को छोड़कर सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार को नये घर मे प्रवेश करना शुभ होता है। (सामान्यतया रोहिणी, मृगशिरा, उत्तराषाढ़ा, चित्रा व उ. भाद्रपद मे) करना चाहिए।
यात्रा विचार : अश्विनी, मृगशिरा, अनुराधा, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, श्रवण, धनिष्ठा, रेवती नक्षत्रों मे यात्रा शुभ है। रोहिणी, ज्येष्ठा, उत्तरा-3, पूर्वा-3, मूल मध्यम है। भरणी, कृत्तिका, आर्द्रा, मघा, आश्लेषा, चित्रा, स्वाति, विशाखा निन्दित है। मृगशिरा, हस्त, अनुराधा, रिक्ता और दिक्शूल को छोड़कर सर्वदा सब दिशाओं मे यात्रा शुभ है। जन्म लग्न तथा जन्म राशि से अष्टम लग्न होने पर यात्रा नहीं करनी चाहिए। यात्रा मुहूर्त मे दिशाशूल, योगिनी, राहुकाल, चंद्र-वास का विचार अवश्य करना चाहिए।
वाहन (गाड़ी) मोटर साइकिल, स्कूटर चलाने का मुहूर्त : अश्विनी, मृगशिरा, हस्त, चित्रा, पुनर्वसु, पुष्य, ज्येष्ठा, रेवती नक्षत्रों मे सोमवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार व शुभ तिथियों मे गाड़ी, मोटर साइकिल, स्कूटर चलाना शुभ है।
कृषि (हल-चलाने तथा बीजारोपण) के लिए : अश्विनी, रोहिणी, मृगशिरा, पुनर्वसु, पुष्य, उत्तरा तीनों, अभिजित, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, मूल, धनिष्ठा, रेवती, इन नक्षत्रों मे, सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार को, 1, 5, 7, 10, 11, 13, 15 तिथियों मे हल चलाना व बीजारोपण करना चाहिए।
फसल काटने के लिए : भरणी, कृत्तिका, आर्द्रा, मृगशिरा, पुष्य, आश्लेषा, मघा, हस्त, चित्रा, स्वाति, ज्येष्ठा, मूल, पू.फाल्गुनी, श्रवण, धनिष्ठा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा तीनों, नक्षत्रों मे, 4, 9, 14 तिथियों को छोड़कर अन्य शुभ तिथियों मे फसल काटनी चाहिए।
कुआँ खुदवाना व नलकूप लगवाना : रेवती, हस्त, उत्तरा भाद्रपद, अनुराधा, मघा, श्रवण, रोहिणी एवं पुष्य नक्षत्र मे नलकूप लगवाना चाहिए।
नये-वस्त्र धारण करना : अश्विनी, रोहिणी, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, धनिष्ठा, रेवती शुभ है।
नींव रखना : रोहिणी, मृगशिरा, चित्रा, हस्त, ज्येष्ठा, उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा एवं श्रवण नक्षत्र मे मकान की नींव रखनी चाहिए।
मुखय द्वार स्थापित करना : रोहिणी, मृगशिरा, उ.फाल्गुनी, चित्रा, अनुराधा, उत्तराषाढ़ा, उत्तरा भाद्रपद एवं रेवती मे स्थापित करना चाहिए।
मकान खरीदना : बना-बनाया मकान खरीदने के लिए मृगशिरा, आश्लेषा, मघा, विशाखा, मूल, पुनर्वसु एवं रेवती नक्षत्र उत्तम है।
उपचार शुरु करना : किसी भी क्रोनिक रोग के उपचार हेतु अश्विनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, पुष्य, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, हस्त, उत्तराभाद्रपद, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा एवं रेवती शुभ है।
आप्रेशन के लिए : आर्द्रा, ज्येष्ठा, आश्लेषा एवं मूल नक्षत्र ठीक है।
विवाह के लिए : रोहिणी, मृगशिरा, मघा, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, स्वाति, अनुराधा, मूल, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद एवं रेवती शुभ है।
दैनिक जीवन मे शुभता व सफलता प्राप्ति हेतु नक्षत्रों का उपयोगी एवं व्यावहारिक ज्ञान बहुत जरूरी है। वास्तव मे सभी नक्षत्र सृजनात्मक, रक्षात्मक एवं विध्वंसात्मक शक्तियों का मूल स्रोत है। अतः नक्षत्र ही वह सद्शक्ति है जो विघ्नों, बाधाओं और दुष्प्रभावों को दूर करके हमारा मार्ग दर्शन करने मे सक्षम है।
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♦ सर्वार्थसिद्धि, अमृतसिद्धि, गुरुपुष्यामृत और रविपुष्यामृत योग :
शुभ मुहूर्तों मे स्वर्ण आभूषण, कीमती वस्त्र आदि खरीदना, पहनना, वाहन खरीदना, यात्रा आरम्भ करना, मुकद्दमा दायर करना, ग्रह शान्त्यर्थ रत्न धारण करना, किसी परीक्षा प्रतियोगिता या नौकरी के लिए आवेदन-पत्र भरना आदि शुभ मुहूर्त जानने के किए अब आपको पूछने के लिए किसी ज्योतिषी के पास बार-बार जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। सर्वार्थसिद्धि, अमृतसिद्धि, गुरुपुष्यामृत और रविपुष्यामृत योग वारों का विषेश नक्षत्रों से सम्पर्क होने से ये योग बनते है। जैसे कि इन योगों के नामों से स्पष्ट है, इन योगों के समय मे कोई भी शु्भ कार्य आरम्भ किया जाय तो वह निर्विघ्न रूप से पूर्ण होगा ऐसा हमारे पूर्वाचार्यों ने कहा है । यात्रा, गृह प्रवेश, नूतन कार्यारम्भ आदि सभी कार्यों के लिए या अन्य किसी अपरिहार्य कारणवश यदि व्यतिपात, वैधृति, गुरु-शुक्रास्त, अधिक मास एवं वेध आदि का विचार सम्भव न हो तो सर्वार्थसिद्धि आदि योगों का आश्रय लेना चाहिये ।
♦ अमृतसिद्धि योग:
अमृतसिद्धि योग रवि को हस्त, सोम को मृगशिर, मंगल को अश्विनी, बुध को अनुराधा, गुरु को पुष्य नक्षत्र का सम्बन्ध होने पर रविपुष्यामृत-गुरुपुष्यामृत नामक योग बन जाता है जो कि अत्यन्त शुभ माना गया है ।
♦ रवियोग योग:
रवियोग भी इन्हीं योगों की भाँति सभी कार्यों के लिए है। शास्त्रो मे कथन है कि जिस तरह हिमालय का हिम सूर्य के उगले पर गल जाता है और सैकड़ों हाथियो के समूहों को अकेला सिंह भगा देता है उसी तरह से रवियोग भी सभी अशुभ योगों को भगा देता है, अर्थात् इस योग मे सभी कार्य निर्विघन रूप से पूर्ण होंगे ।
♦ त्रिपुष्कर और द्विपुष्कर योग :
त्रिपुष्कर और द्विपुष्कर योग विषेश बहुमूल्य वस्तुओं की खरीददारी करने के लिए है। इन योगों मे खरीदी गई वस्तु नाम अनुसार भविष्य मे दिगुनी व तिगुनी हो जाती है । अतः इन योगों मे बहुमूल्य वस्तु खरीदनी चाहिये । इन योगों के रहते कोई वस्तु बेचनी नहीं चाहिये क्योंकि भविष्य मे वस्तु दुगुनी या तिगुनी बेचनी पड़ सकती है । धन या अन्य सम्पत्ति के संचय के लिए ये योग अद्वितीय माने गए है। इन योगों के रहते कोई वस्तु गुम हो जाये तो भविष्य मे दुगुना या तिगुना नुकसान हो सकता है, अतः इस दिन सावधान रहना चाहिए। इस दिन मुकद्दमा दायर नही करना चाहिए और दवा भी नहीं खरीदनी चाहिए ।
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♦ नामकरण संस्कार रविवार, सोमवार, बुधवार, गुरुवार को स्थिर लग्न एवं नक्षत्र चरण के आधार पर नामकरण कराएँ। सही अक्षर नहीं आने पर नक्षत्र राशि के अन्य अक्षरों पर यह काम किया जा सकता है।
♦ प्रसूति स्नान रविवार, मंगलवार, गुरुवार को करना हितकर है। अन्य वारों को यह काम नहीं करें। खासकर शतभिषा नक्षत्र और उपरोक्त वार हों।
♦ जलवा (कुआँ पूजन) सोम, बुध, गुरुवार को जलवा पूजन करना हितकर है।
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♦ नक्षत्र,राशि तथा ग्रहो का आपसी संबंध:
ताराओ का समुदाय अर्थात तारों का समूह नक्षत्र कहलाता है | विभिन्न रूपो और आकारो मे जो तारा पुंज दिखाई देते है उन्हे नक्षत्रो की संज्ञा दी गयी है | सम्पूर्ण आकाश को 27 भागो मे बांटकर प्रत्येक भाग का एक नक्षत्र मान लिया गया है | पृथ्वी अपना घूर्णन करते समय जब एक नक्षत्र से दूसरे पर जाती है या होती है तो इससे यह पता चलता है की हमारी पृथ्वी कितना चल चुकी है अब क्योंकि नक्षत्र अपने नियत स्थान मे स्थिर रहते है धरती पर हम यह मानते है की नक्षत्र गुज़र रहे है|
गणितीय दृस्टी से कहे तो जिस मार्ग से पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाती है उसी मार्ग के आसपास ही “नक्षत्र गोल”मे समस्त ग्रहो का भी मार्ग है,जो क्रांतिव्रत से अधिक से अधिक सात अंश का कोण बनाते हुये चक्कर लगाते है | इस विशिष्ट मार्ग का आकाशीय विस्तार “राशि” है जिसके 12 भाग है और प्रत्येक भाग 30 अंशो का है | यह 12 राशि भाग धरती से देखने पर जैसे नज़र आते है उसी आधार पर इनके नाम रखे गए है | इस प्रकार मेष से लेकर मीन तक राशिया मानी गयी है| रशिपथ एक अंडाकार वृत की तरह है जिसके 360 अंश है | इन अंशो को 12 भागो मे बांटकर(प्रत्येक 30 अंश) राशि नाम दिया गया है | अब यदि 360 अंशो को 27 से भाग दिया जाये तो प्रत्येक भाग 13 अंश 20 मिनट का होता है जिसे गणितिय दृस्टी से एक “नक्षत्र” माना जाता है |प्रत्येक नक्षत्र को और सूक्ष्म रूप से जानने के लिए 4 भागो मे बांटा गया है (13 अंश 20 मिनट/4=3 अंश 20 मिनट) जिसे नक्षत्र के चार चरण कहाँ जाता है |
इस प्रकार सरल भाषा मे कहे तो पूरे ब्रह्मांड को 12 राशि व 27 नक्षत्रो मे बांटा गया है जिनमे हमारे 9 ग्रह भ्रमण करते रहते है | अब यदि इन 27 नक्षत्रो को 12 राशियो से भाग दिया जाये तो हमे एक राशि मे सवा दो नक्षत्र प्राप्त होते है अर्थात दो पूर्ण नक्षत्र तथा तीसरे नक्षत्र का एक चरण कुल 9 चरण, यानि ये कहाँ जा सकता है की एक राशि मे सवा दो नक्षत्र होते है या नक्षत्रो के 9 चरण होते है| हर राशि का एक स्वामी ग्रह होता है जिसे हम राशि स्वामी कहते है इस प्रकार कुल मिलाकर यह कहाँ जा सकता है की एक राशि जिसका स्वामी कोई ग्रह है उसमे 9 नक्षत्र चरण अर्थात सवा दो नक्षत्र होते है | किस राशि मे कौन से नक्षत्र व नक्षत्र चरण होते है और उनके स्वामी ग्रह कौन होते है इसको ज्ञात करने का एक सरल तरीका इस प्रकार से है| सभी 27 नक्षत्रो को क्रमानुसार लिखकर उनके स्वामियो के आधार पर याद करले | अब नक्षत्र चरण के लिए निम्न सूत्र याद करे |
नक्षत्र चरण –राशिया
4 4 1-{ मेष,सिंह,धनु }
3 4 2 –{ वृष,कन्या,मकर }
2 4 3-{ मिथुन,तुला,कुम्भ }
1 4 4-{ कर्क,वृश्चिक,मीन }
आरंभ के 3 नक्षत्र केतू,शुक्र व सूर्य ग्रह के है ज़ो क्रमश; मेष,सिंह व धनु राशि मे ही आएंगे | इसके बाद तीसरा नक्षत्र (शेष 3 चरणो की वजह से ),चौथा व पांचवा नक्षत्र सूर्य,चन्द्र व मंगल के है जो क्रमश; वृष, कन्या व मकर राशि मे ही आएंगे | अब अगले(शेष)नक्षत्र मंगल,राहू व गुरु के है जो मिथुन,तुला व कुम्भ राशि मे ही आएंगे तथा अंत मे गुरु(शेष),शनि व बुध के नक्षत्र कर्क,वृश्चिक व मीन राशि मे ही आएंगे |
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जब आप नया व्यापर/बिजनेस/ दुकान आरम्भ करने का या खोलने का विचार मन मे लाएं उस समय सबसे पहले मुहुर्त पर अच्छी तरह विचार करलें । मुहुर्त जब शुभ हो तभी आप दुकान खोलने की सोचे अन्यथा शुभ मुहुर्त के आने की प्रतीक्षा करें। आइये अब देखे कि दुकान खोलने के लिए कौन सा मुहुर्त शुभ है और इस संदर्भ मे मुहुर्त किस प्रकार देखना चाहिए।
1.नक्षत्र विचार :
नया व्यापर/बिजनेस/ दुकान आरम्भ करने का या खोलने के लिए जब मुहुर्त का आंकलन किया जाता है तब सबसे पहले नक्षत्र का विचार किया जाता है। दुकान खोलने के लिए सभी स्थिर नक्षत्र (Stable Nakshatra) जैसे उत्तराफाल्गुनी (Uttrafalguni) , उत्तराषाढ़ा (Uttrashadha), उत्तराभाद्रपद,रोहिणी तथा सभी सौम्य नक्षत्र जैसे मृगशिरा(Mrigshira), रेवती,चित्रा(Chitra), अनुराधा(Anuradha) व लघु नक्षत्र (Laghu Nakshatra) जैसे हस्त,अश्विनी पुष्य (Pushya) और अभिजीत नक्षत्रों (Abhijeet Nakshatra ) को दुकान खोलने के लिए शुभ माना जाता है।
2.लग्न विचार :
नया व्यापर/बिजनेस/ दुकान आरम्भ करने का या खोलने के लिए नक्षत्र विचार करने के बाद आप लग्न से विचार करे। ज्योतिष सिद्धांत के अनुसार जिस समय आप दुकान खोलने जा रहे है उस समय मुहुर्त का लग्न बलवान होना चाहिए। लग्न मे चन्द्र-शुक्र हो तो यह सर्वोत्तम स्थिति मानी जाती है। लग्न की शुभता का विचार करने के लिए देखें कि लग्न से द्वितीय, दशम एवं एकादश भाव मे शुभ ग्रह हो तथा अष्टम व द्वादश भाव मे कोई अशुभ ग्रह ना हो।
3.तिथि विचार:
दुकान खालने के लिए जब आप मुहुर्त निकाले उस समय उपरोक्त सभी विषयो पर विचार करने के साथ ही तिथि का भी विचार करना चाहिए। ज्योतिष सिद्धान्त के अनुसार दुकान खोलने के लिए सभी तिथि शुभ है परंतु रिक्ता तिथि यानी (चतुर्थ, नवम व चतुर्दशी) अपवाद स्वरूप हैं अत: इन तिथियो मे दुकान नहीं खोलना चाहिए।
4.वार विचार :
नया व्यापर/बिजनेस/ दुकान आरम्भ करने का या जब आप दुकान खोलने जा रहे है तो ध्यान रखे कि मंगलवार को दुकान नहीं खोलें। मंगल के अलावा आप किसी भी दिन दुकान खोल सकते है।
5.निषेध :
जिस दिन गोचरवश चन्द्रमा जन्म के समय जिस राशि मे था उस राशि से चतुर्थ, अष्टम अथवा द्वादश भाव मे उपस्थित हो तथा तृतीय भाव, पंचम भाव एवं सप्तम भाव मे तारा हो एवं भद्रा या अन्य अशुभ योग हो तो दुकान नहीं खोलना चाहिए।
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♦ व्यापार प्रारंभ करने सम्बंधित शुभ महूर्त :
वार: सोम, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, रविवार।
मास : क्षय मास, मल मास, अधिक मास मे वर्जित।
पक्ष : दोनो पक्ष।
तिथियाँ : द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, अष्टमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, पूर्णिमा ।
नक्षत्र : अश्विनी, रोहिणी,मृगशिरा, पुनर्वसु, उत्तराभाद्रपद, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, पुष्य, हस्त, चित्रा,अनुराधा, स्वाति, श्रवण, धनिष्ठा, पूर्वा, भाद्रपदा, रेवती।
लग्न: कुम्भ लग्न मे वर्जित, आठवे एवं बाहरवें घर मे पाप ग्रह त्याज्य वर्जित दिन महीने के अंतिम दिन, सूर्य संक्रांति के शुरू होने वाले दिन, वर्ष का आखिरी दिन, अमावस्या ब्याज लेन देन का शुभ महूर्त।
वार : मंगलवार को छोड़कर सभी दिन शुभ।
मास: पक्ष दोनों पक्ष।
तिथियाँ : द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, अष्टमी, दशमी, द्वादशी, त्रयोदशी नक्षत्र भरणी, कृतिका, अश्लेशा, पूर्वाभाद्रपद, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा, विशाखा लग्न : विशेष मंगलवार को ऋण चुकाना शुभ माना जाता है बुधवा को ऋण देना ठीक नहीं मन जाता वस्त्र निर्माण हेतु शुभ महूर्त।
by Pandit Dayanand Shastri.
श्री यंत्र से होने वाले लाभ:
श्री यंत्र प्रमुख रूप से ऐश्वर्य तथा समृद्धि प्रदान करने वाली महाविद्या त्रिपुरसुंदरी महालक्ष्मी का सिद्ध यंत्र है। यह यंत्र सही अर्थों मे यंत्रराज है। इस यंत्र को स्थापित करने का तात्पर्य श्री को अपने संपूर्ण ऐश्वर्य के साथ आमंत्रितकरना होता है। कहा गया है कि :-
श्री सुंदरी साधन तत्पराणाम् , भोगश्च मोक्षश्च करस्थ एव…. अर्थात जो साधक श्री यंत्र के माध्यम से त्रिपुरसुंदरी महालक्ष्मी की साधना के लिए प्रयासरत होता है, उसकेएक हाथ मे सभी प्रकार के भोग होते है, तथा दूसरे हाथ मे पूर्ण मोक्ष होता है। आशय यह कि श्री यंत्र का साधकसमस्त प्रकार के भोगो का उपभोग करता हुआ अंत मे मोक्ष को प्राप्त होता है। इस प्रकार यह एकमात्र ऐसी साधना हैजो एक साथ भोग तथा मोक्ष दोनो ही प्रदान करती है, इसलिए प्रत्येक साधक इस साधना को प्राप्त करने के लिएसतत प्रयत्नशील रहता है। इस अद्भुत यंत्र से अनेक लाभ है, इनमे प्रमुख है :-
♦ श्री यंत्र के स्थापन मात्र से भगवती लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।
♦ कार्यस्थल पर इसका नित्य पूजन व्यापार मे विकास देता है।
♦ घर पर इसका नित्य पूजन करने से संपूर्ण दांपत्य सुख प्राप्त होता है।
♦ पूरे विधि विधान से इसका पूजन यदि प्रत्येक दीपावली की रात्रि को संपन्न कर लिया जाय तो उस घर मेसाल भर किसी प्रकार की कमी नही होती है।
♦ श्री यंत्र पर ध्यान लगाने से मानसिक क्षमता मे वृद्धि होती है।
♦ उच्च यौगिक दशा में यह सहस्रार चक्र केभेदन मे सहायक माना गया है।
♦ यह विविध वास्तु दोषों के निराकरण के लिए श्रेष्ठतम उपाय है।
♦ विविध पदार्थों से निर्मित श्री यंत्र :
श्री यंत्र का निर्माण विविध पदार्थों से किया जा सकता है। इनमे श्रेष्ठता के क्रम मे प्रमुख है – क्र. पदार्थ विशिष्टता
1.पारद श्रीयंत्र :
पारद को शिववीर्य कहा जाता है। पारद से निर्मित यह यंत्र सबसे दुर्लभतथा प्रभावशाली होता है। यदि सौभाग्य से ऐसा पारद श्री यंत्र प्राप्त हो जाए तो रंक को भी वह राजा बनाने में सक्षम होता है।
२. स्फटिक श्रीयंत्र :
स्फटिक का बना हुआ श्री यंत्र अतिशीघ्र सफलता प्रदान करता है। इस यंत्र की निर्मलता के समान ही साधक का जीवन भी सभी प्रकार की मलिनताओं से परे हो जाता है।
३. स्वर्ण श्रीयंत्र :
स्वर्ण से निर्मित यंत्र संपूर्ण ऐश्वर्य को प्रदान करने मे सक्षम माना गया है। इस यंत्र को तिजोरी मे रखना चाहिए तथा ऐसी व्यवस्था रखनी चाहिये कि उसे कोई अन्य व्यक्ति स्पर्श न कर सके।
४. मणि श्रीयंत्र:
ये यंत्र कामना के अनुसार बनाये जाते है तथा दुर्लभ होते है।
५. रजत श्रीयंत्र :
ये यंत्र व्यावसायिक प्रतिष्ठानो की उत्तरी दीवाल पर लगाए जाने चाहिये। इनको इस प्रकार से फ्रेम मे मढवाकर लगवाना चाहिए जिससेइसको कोई सीधे स्पर्श न कर सके।
६. ताम्र श्रीयंत्र :
ताम्र र्निमित यंत्र का प्रयोग विशेष पूजन अनुष्ठान तथा हवनादि केनिमित्त किया
जाता है। इस प्रकार के यंत्र को पर्स मे रखने सेअनावश्यक खर्च मे कमी होती है तथा आय के नए माध्यमो काआभास होता है।
७. भोजपत्र श्रीयंत्र :
आजकल इस प्रकार के यंत्र दुर्लभ होते जा रहे है। इन पर निर्मित यंत्रोंका प्रयोग ताबीज के अंदर डालने के लिए किया जाता है। इस प्रकार केयंत्र सस्ते तथा प्रभावशाली होते है। उपरोक्त पदार्थों का उपयोग यंत्र निर्माण के लिए करना श्रेष्ठ है। लकडी, कपडा या पत्थर आदि पर श्री यंत्रका निर्माण न करना श्रेष्ठ रहता है। श्री यंत्र के निर्माण के समान ही इसका पूजन भी श्रम साध्य होने के साथ साथ विशेष तेजस्विता की अपेक्षाभी रखता है। कोई भी श्रेष्ठ कार्य करने के लिए श्रेष्ठ मुहूर्त का होना भी अनिवार्य होता है। श्री यंत्र की प्राण प्रतिष्ठा केनिमित्त श्रेष्ठतम मुहूर्तों पर एक दृष्टिपात करते हुए पूजन विधि पर प्रकाश डालने का प्रयास करूंगा।
♦ श्रेष्ठ मुहूर्त :
श्री यंत्र के निर्माण व पूजन के लिए सर्वश्रेष्ठ मुहुर्त है कालरात्रि अर्थात दीपावली की रात्रि । इस रात्रि मे स्थिरलग्न मे यंत्र का निर्माण व पूजन संपन्न किया जाना चाहिये। इसके बाद माघ माह की पूर्णिमा, शिवरात्रि, शरद पूर्णिमा, सूर्यग्रहण या चंद्रग्रहण का मुहूर्त श्रेष्ठ होता है। यद्यपि ग्रहण को सामान्यतः शुभ कर्मों के लिए प्रयोग नही किया जाता इसलिए यहां संदेह होना स्वाभाविक है, मगरश्री विद्या पूर्णते तांत्रोक्त विद्या है तथा तांत्रोक्त साधनाओ के लिए ग्रहण को श्रेष्ठतम मुहूर्त मान गया है। उपरोक्त मुहूर्तों के अलावा अक्षय तृतीया, रवि पुष्य योग, गुरू पुष्य योग, आश्विन माह को छोडकर किसीभी अमावस्या या किसी भी पूर्णिमा को भी श्रेष्ठ समय मे यंत्र निर्माण व पूजन किया जा सकता है। यहां मै यह स्पष्ट कर देना अनिवार्य समझता हूं कि, सभी तांत्रोक्त विधानों की तरह, यदि श्री यंत्र कानिर्माण तथा पूजन करने वाला, श्री विद्या का सिद्ध साधक या गुरू हो, तो उनके द्वारा निर्दिष्ट समय उपरोक्तमुहूर्तों से भी ज्यादा श्रेष्ठ तथा फलदायक होगा. किसी भी पूजन की विधि से ज्यादा महत्व पूजन को संपन्न करानेवाले साधक की साधनात्मक तेजस्विता का होता है। यदि पूजनकर्ता की साधनात्मक उर्जा नगण्य है तो पूजन औरप्राण-प्रतिष्ठा अर्थहीन हो जाएगी। इसलिए श्री यंत्र के पूजन से पहले पूजनकर्ता के लिए यह आवश्यक है कि, वह कमसे कम एक बार श्री विद्या या महालक्ष्मी मंत्र का पुरश्चरण पूर्ण कर चुका हो।
♦ पूजन विधि :
सबसे पहले शुद्ध जल से स्नान करके पूर्व दिशा की ओर देखते हुए बैठ जाये। सामने यंत्र को स्थापित करे।
1. सर्वप्रथम क्क श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमे’ से आचमन करे।
2. पवित्री करण करे।
3. संकल्प ले अपनी कामना को व्यक्त करे।
4. भूमि पूजन करे।
5. गणपति पूजन करे।
6. भैरव पूजन करे।
7. गुरू पूजन करे।
8. भूतशुद्धि करे, इसके लिए पुरूष सूक्त का पाठ करे।
9. घी का दीपक जलाये।
10. ऋष्यादिन्यास। करन्यास तथा अंगन्यास संपन्न करे।
11. श्री विद्या का ध्यान करने के बाद श्री सूक्त के सोलह पाठ संपन्न करे।
12. इसके पश्चात लक्ष्मी सूक्त का एक पाठ संपन्न करे।
13. श्री सूक्त के सोलह श्लोकों से श्री यंत्र का षोडशोचार पूजन संपन्न करे।
14. प्रत्येक श्लोक के साथ यंत्र के मध्य मे केसर से बिंदी लगायें जैसे आप षोडशी की सोलह कलाओ को वहांस्थापित कर रहे हो ।
15. अंत मे श्री सूक्त के सोलह श्लोकों के साथ आहुति संपन्न करे। विधान १००० बार पाठ तथा १०० बार हवन का है।
16. इसमे प्रत्येक श्लोक के साथ स्वाहा लगाकर आहुति देगे।
by Pandit Dayanand Shastri.
क्यो जरुरी है गृहप्रवेश से पहले वास्तु शांति करवाना ??
नए घर मे प्रवेश से पूर्व वास्तु शांति अर्थात यज्ञादि धार्मिक कार्य अवश्य करवाने चाहिए। वास्तु शांति कराने से भवन की नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है तभी घर शुभ प्रभाव देता है। जिससे जीवन मे खुशी व सुख-समृद्धि आती है। वास्तु शास्त्र के अनुसार मंगलाचरण सहित वाद्य ध्वनि करते हुए कुलदेव की पूजा व बडो का सम्मान करके और ब्राह्मणो को प्रसन्न करके गृह प्रवेश करना चाहिए आप जब भी कोई नया घर या मकान खरीदते है तो उसमे प्रवेश से पहले उसकी वास्तु शांति करायी जाती है। जाने अनजाने हमारे द्वारा खरीदे या बनाये गये मकाने मे कोई भी दोष हो तो उसे वास्तु शांति करवा के दोष को दूर किया जाता है। इसमे वास्तु देव का ही विशेष पूजन किया जाता है। जिससे हमारे घर मे सुख शांति बनी रहती है।
वास्तु का अर्थ है मनुष्य और भगवान का रहने का स्थान। वास्तु शास्त्र प्राचीन विज्ञान है जो सृष्टि के मुख्य तत्वों के द्वारा निःशुल्क देने मे आने वाले लाभ प्राप्त करने मे मदद करता है। ये मुख्य तत्व हैं- आकाश, पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु। वास्तु शांति यह वास्तव मे दिशाओं का, प्रकृति के पांच तत्वों के , प्राकृतिक स्त्रोंतो और उसके साथ जुड़ी हुइ वस्तुओं के देव है। हम प्रत्येक प्रकार के वास्तु दोष दूर करने के लिए वास्तु शांति करवाते हैं। उसके कारण ज़मीन या बांधकाम मे, प्रकृति अथवा वातावरण मे रहा हुआ वास्तु दोष दूर होता है। वास्तु दोष हो वैसी बिल्डींग मे कोइ बड़ा भांग तोड करने के लिए वास्तु शास्त्र के अनुसार पूजा करने मे आती है। निम्न के हिसाब से परिस्थिति मे प्रकृति या वातावरण के द्वारा होने वाली खराब असर को टालने के लिए आपको एक निश्चित वास्तु शांति करनी चाहिए।
गृह प्रवेश के पूर्व वास्तु शांति कराना शुभ होता है। इसके लिए शुभ नक्षत्र वार एवं तिथि इस प्रकार है-
शुभ वार- सोमवार, बुधवार, गुरुवार, व शुक्रवार शुभ है।
शुभ तिथि- शुक्लपक्ष की द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी एवं त्रयोदशी।
शुभ नक्षत्र- अश्विनी, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, उत्ताफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद, रोहिणी, रेवती, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, स्वाति, अनुराधा एवं मघा।
अन्य विचार- चंद्रबल, लग्न शुद्धि एवं भद्रादि का विचार कर लेना चाहिए।
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♦ क्या हे वास्तु शांति की विधि :
स्वस्तिवचन, गणपति स्मरण, संकल्प, श्री गणपति पूजन, कलश स्थापन और पूजन, पुनःवचन, अभिषेक, शोडेशमातेर का पूजन, वसोधेरा पूजन, औशेया मंत्रजाप, नांन्देशराद, आचार्य आदे का वरेन, योग्ने पूजन, क्षेत्रपाल पूजन, अग्ने सेथापन, नवग्रह स्थापन और पूजन, वास्तु मंडला पूजल और स्थापन, गृह हवन, वास्तु देवता होम, बलिदान, पूर्णाहुति, त्रिसुत्रेवस्तेन, जलदुग्धारा और ध्वजा पताका स्थापन, गतिविधि, वास्तुपुरुष-प्रार्थना, दक्षिणासंकल्प, ब्राम्ळण भोजन, उत्तर भोजन, अभिषेक, विसर्जन उपयुक्त वास्तु शांति पूजा के हिस्सा है।
♦सांकेतिक वास्तुशांतिः
सांकेतिक वास्तु शांति पूजा पद्घति भी होती है, इस पद्घति मे हम नोंध के अनुसार वास्तु शांति पूजा मे से नज़रअंदार न कर सके वैसी वास्तु शांति पूजा का अनुसरण करते है।
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‘विष्णुसहस्रनाम स्तोत्र’ विधिवत अनुष्ठान करने से सभी ग्रह, नक्षत्र, वास्तु दोषों की शांति होती है। विद्याप्राप्ति, स्वास्थ्य एवं नौकरी-व्यवसाय मे खूब लाभ होता है। कोर्ट-कचहरी तथा अन्य शत्रुपीड़ा की समस्याओं मे भी खूब लाभ होता है। इस अनुष्ठान को करके गर्भाधान करने पर घर मे पुण्यात्माएँ आती हैं। सगर्भावस्था के दौरान पति-पत्नी तथा कुटुम्बीजनों को इसका पाठ करना चाहिए।
♦ अनुष्ठान-विधिः
सर्वप्रथम एक चौकी पर सफेद कपड़ा बिछाएँ। उस पर थोड़े चावल रख दे। उसके ऊपर ताँबे का छोटा कलश पानी भर के रखे। उसमे कमल का फूल रखे। कमल का फूल बिल्कुल ही अनुपलब्ध हो तो उसमे अडूसे का फूल रखे। कलश के समीप एक फल रखे। तत्पश्चात ताँबे के कलश पर मानसिक रूप से चारो वेदो की स्थापना कर ‘विष्णुसहस्रनाम’ स्तोत्र का सात बार पाठ सम्भव हो तो प्रातः काल एक ही बैठक मे करे तथा एक बार उसकी फलप्राप्ति पढ़े। इस प्रकार सात या इक्कीस दिन तक करे।
रोज फूल एवं फल बदले और पिछले दिन वाला फूल चौबीस घंटे तक अपनी पुस्तको, दफ्तर, तिजोरी अथवा अन्य महत्त्वपूर्ण जगहों पर रखे व बाद मे जमीन मे गाड़ दे। चावल के दाने रोज एक पात्र मे एकत्र करे तथा अनुष्ठान के अंत मे उन्हे पकाकर गाय को खिला दे या प्रसाद रूप मे बाँट दे। अनुष्ठान के अंतिम दिन भगवान को हलवे का भोग लगायें। यह अनुष्ठान हो सके तो शुक्ल पक्ष मे शुरू करे। संकटकाल मे कभी भी शुरू कर सकते है। स्त्रियों को यदि अनुष्ठान के बीच मे मासिक धर्म के दिन आते हों तो उन दिनों मे अनुष्ठान बंद करके बाद मे फिर से शुरू करना चाहिए। जितने दिन अनुष्ठान हुआ था, उससे आगे के दिन गिने।
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♦ कब करवानी चाहिए वास्तु शांति..???
⇒ यदि बांध काम वास्तु के नियमों के विरुद्घ करने मे आया हो तो और उसके ढ़ांचे के लिए धन की कमी महसूस हो।
⇒ महत्व के कमरे मे अथवा बिल्ड़िग मे इन्टिरियर मे कोइ कमी हो।
⇒ आप जब भी कोइ पुराना घर खरीदे।
⇒ आप जब लगातार 10 वर्ष से किसी एक जगह पर रह रहे हो।
⇒ आप जब बहुत लंबे विदेश प्रवास के बाद घर वापस आ रहे है तब।
⇒ नये घर के उदघाटन के समय।
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♦ इनका ध्यान रखे अपने नए या पुराने घर मे :
♦ घर के खिड़की-दरवाजे इस तरह होने चाहिए कि सूरज की रोशनी अच्छी तरह से घर के अंदर आए।
♦ ड्रॉइंग रूम मे फूलों का गुलदस्ता लगाएं।
♦ रसोई घर मे पूजा की आलमारी या मंदिर नहीं रखना चाहिए।
♦ बेडरूम मे भगवान के कैलेंडर, तस्वीरे या फिर धार्मिक आस्था से जुड़ी वस्तुएं न रखे।
♦ घर मे टॉइलेट के बगल मे देवस्थान नहीं होना चाहिए।
♦ दीपावली अथवा अन्य किसी शुभ मुहूर्त मे अपने घर मे पूजास्थल मे वास्तुदोशनाशक कवच की स्थापना करे और नित्य इसकी पूजा करें। इस कवच को दोषयुक्त स्थान पर भी स्थापित करके आप वास्तुदोषो से सरलता से मुक्ति पा सकते है।
♦ अपने घर मे ईशान कोण अथवा ब्रह्मस्थल मे स्फटिक श्रीयंत्र की शुभ मुहूर्त मे स्थापना करे। यह यन्त्र लक्ष्मीप्रदायक भी होता ही है, साथ ही साथ घर मे स्थित वास्तुदोषों का भी निवारण करता है।
♦प्रातःकाल के समय एक कंडे पर थोड़ी अग्नि जलाकर उस पर थोड़ी गुग्गल रखें और ‘ॐ नारायणाय नमन’ मंत्र का उच्चारण करते हुए तीन बार घी की कुछ बूँदें डालें. अब गुग्गल से जो धूम्र उत्पन्न हो, उसे अपने घर के प्रत्येक कमरे मे जाने दे। इससे घर की नकारात्मक ऊर्जा ख़त्म होगी और वातुदोशों का नाश होगा।
♦ प्रतीदिन शाम के समय घर मे कपूर जलाएं इससे घर मे मौजूद नकारात्मक ऊर्जा खत्म हो जाती है।
♦ वास्तु पूजन के पश्चात् भी कभी-कभी मिट्टी मे किन्हीं कारणो से कुछ दोष रह जाते है जिनका निवारण कराना आवश्यक है।
♦ घर के सभी प्रकार के वास्तु दोष दूर करने के लिए मुख्य द्वार पर एक ओर केले का वृक्ष दूसरी ओर तुलसी का पौधा गमले में लगायें।
♦ दुकान की शुभता बढ़ाने के लिए प्रवेश द्वार के दोनो ओर गणपति की मूर्ति या स्टिकर लगायें। एक गणपति की दृष्टि दुकान पर पड़ेगी, दूसरे गणपति की बाहर की ओर।
♦ हल्दी को जल मे घोलकर एक पान के पत्ते की सहायता से अपने सम्पूर्ण घर मे छिडकाव करे। इससे घर मे लक्ष्मी का वास तथा शांति भी बनी रहती है।
♦ अपने घर के मन्दिर मे घी का एक दीपक नियमित जलाएं तथा शंख की ध्वनि तीन बार सुबह और शाम के समय करने से नकारात्मक ऊर्जा घर से बहार निकलती है।
♦घर मे उत्पन्न वास्तुदोष घर के मुखिया को कष्टदायक होते है। इसके निवारण के लिये घर के मुखिया को सातमुखी रूद्राक्ष धारण करना चाहिए।
♦ यदि आपके घर का मुख्य द्वार दक्षिणमुखी है, तो यह भी मुखिया के के लिये हानिकारक होता है। इसके लिये मुख्यद्वार पर श्वेतार्क गणपति की स्थापना करनी चाहिए।
♦ अपने घर के पूजा घर मे देवताओं के चित्र भूलकर भी आमने-सामने नहीं रखने चाहिए इससे बड़ा दोष उत्पन्न होता है।
♦ अपने घर के ईशान कोण मे स्थित पूजा-घर मे अपने बहुमूल्य वस्तुएँ नहीं छिपानी चाहिए।
♦ पूजाकक्ष की दीवारों का रंग सफ़ेद हल्का पीला अथवा हल्का नीला होना चाहिए।
♦ यदि झाडू के बार-बार पैर का स्पर्थ होता है, तो यह धन-नाश का कारण होता है। झाडू के ऊपर कोई वजनदार वास्तु भी नहीं रखें। ध्यान रखें की बाहर से आने वाले व्यक्ति की दृष्टि झारू पड़ न परे।
♦अपने घर मे दीवारों पर सुन्दर, हरियाली से युक्त और मन को प्रसन्न करने वाले चित्र लगाएं. इससे घर के मुखिया को होने वाली मानसिक परेशानियों से निजात मिलती है।
♦ घर की पूर्वोत्तर दिशा मे पानी का कलश रखे। इससे घर मे समृद्धि आती है।
♦ बेडरूम मे भगवान के कैलेंडर या तस्वीरें या फिर धार्मिक आस्था से जुड़ी वस्तुएं नहीं रखनी चाहिए। बेडरूम की दीवारो पर पोस्टर या तस्वीरें नहीं लगाएं तो अच्छा है। हां अगर आपका बहुत मन है, तो प्राकृतिक सौंदर्य दर्शाने वाली तस्वीर लगाएं। इससे मन को शांति मिलती है, पति-पत्नी में झगड़े नहीं होते।
♦ गणेश पूजा, नवग्रह शांति और वास्तु पुरुष की पूजा,नवचंडी यज्ञ, शांतिपाठ, अग्नि होत्र यज्ञ ।
♦ वास्तु पुरूष की मूर्ति, चांदी का नाग, तांबा का वायर, मोती और पौला ये सब वस्तुएं लाल मिटटी के साथ लाल कपड़े मे रखकर उसको पूर्व दिशा मे रखे।
♦ लाल रेती, काजू, पौला को लाल कपड़ो मे रख कर मंगलवार को पश्चिम दिशा मे रखें और उसकी पूजा की जाएं है तो घर मे शांति की वृद्घि होती है।
♦ वास्तु पुरुष की योग्य पूजा बाद उसकी आज्ञा प्राप्त करने के बाद पुरानी इमारत तोड़नी चाहिए।
♦ तोड़ते समय मिट्टी का घड़ा, जल अथवा बैठक घर मे नहीं ले जानी चाहिए।
♦ प्रवेश की सीढ़ियों की प्रतिदिन पूजा करें, वहां कुंकुम और चावल के साथ स्वास्तिक, मिट्टी के घड़े का चित्र बनाएं।
♦ रक्षोज्ञा सूक्त जप, होम, अनुष्ठान इत्यादि भी करना चाहिए।
♦ ओम नमो भगवती वास्तु देवताय नमः- इस मंत्र का जप प्रतिदिन 108बार और कुल 12500 जप तब तक करे और अंत मे दसमसा होम करे।
♦ वास्तु पुरुष की प्रार्थना करे।
♦दक्षिण-पश्चिम दिशा अगर कट गइ हो तो अथवा घर मे अशांति हो तो पितृशांति, पिडदान, नागबली, नारायण बली इत्यादि करे।
♦ प्रत्येक सोमवार और अमावास्या के दिन रुद्री करे।
♦ घर मे गणपति की मूर्ति या छबि रखें।
♦ प्रत्येक घर मे पूजा कक्ष बहुत ज़रूरी है।
♦ नवग्रह शांति के बिना ग्रह प्रवेश मत करे।
♦जो मकान बहुत वर्षों से रिक्त हो उसको वास्तुशांति के बाद मे उपयोग मे लेना चाहिए। वास्तु शांति के बाद उस घर को तीन महिने से अधिक समय तक खाली मत रखे।
♦ भंडार घर कभी भी खाली मत रखे।
♦ घर मे पानी से भरा मटका हो वहां पर रोज सांझ को दीपक जलाएं।
♦ प्रति वर्ष ग्रह शांति कराए क्योंकि हम अपने जीवन मे बहुत से पाप करते रहते है।