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इस वर्ष मोहिनी एकादशी 17 मई 2016 (मंगलवार) को मनाई जायेगी।

इस वर्ष वैशाख शुक्ल एकादशी तिथि 17 मई 2016 ( मंगलवार) को है। इस एकादशी को मोहिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है।

धर्मशास्त्रों के अनुसार यह तिथि सब पापों को हरनेवाली और उत्तम है । इस दिन जो व्रत  रखता है उसके व्रत के प्रभाव से मनुष्य मोहजाल तथा पापों से छुटकारा पा सकते है । हिन्दू धार्मिक मान्यता अनुसार वैशाख माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी मोहिनी एकादशी के नाम से  जानी जाती है।

इस धार्मिक ग्रंथो के अनुसार जब समुद्र मंथन के समय अमृत को लेकर देवताओ और दानवो में विवाद छिड़ गया। इस विवाद को समाप्त करने एवम दानवो को अमृत से दूर रखने के लिए भगवान विष्णु अति सुन्दर नारी रूप धारण कर देवताओ और दानवो के बीच पहुंच गए। भगवान विष्णु के नारी रूप को देख दानव लोग उनपर मोहित हो गये, तब भगवान विष्णु जी ने दिग्भ्रमित दानवों से अमृत कलश छीनकर देवताओं को सौंप दिया। तत्पश्चात सभी देवताओं ने अमृत पान किया, जिससे समस्त देवता गण अमर हो गए।  जिस दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप को धारण किया था उस दिन एकादशी तिथि थी। अतः इस एकादशी को मोहिनी एकादशी कहा जाता है।

जिस प्रकार कार्तिक के समान वैशाख मास उत्तम माना गया है उसी प्रकार वैशाख मास की यह एकादशी भी उत्तम कही गयी है। इसका कारण यह है कि संसार में सभी प्रकार के पापों का कारण मोह माना गया है। विधि विधान पूर्वक इस एकादशी का व्रत रखने से मोह का बंधन ढ़ीला होता जाता है और मनुष्य ईश्वर का सानिध्य प्राप्त कर लेता है। इससे मृत्यु के बाद नर्क की कठिन यातनाओं का दर्द नहीं सहना पड़ता है।

मोहिनी एकादशी के विषय में शास्त्र कहता है कि, त्रेता युग में जब भगवान विष्णु रामावतार लेकर पृथ्वी पर आये तब इन्होंने भी गुरू वशिष्ठ मुनि से इस एकादशी के विषय में ज्ञान प्राप्त किया था। संसार को इस एकादशी का महत्व समझाने के लिए भगवान राम ने स्वयं भी यह एकादशी व्रत किया था। द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने पाण्डु पुत्र युधिष्ठिर को इस व्रत को करने की सलाह दी थी।

जिस दिन भगवान विष्णु मोहिनी रूप में प्रकट हुए थे उस दिन एकादशी तिथि थी। भगवान विष्णु के इसी मोहिनी रूप की पूजा मोहिनी एकादशी के दिन की जाती है। इस एकादशी को संबंधों में आये दरार को दूर करने वाला भी माना गया है।

♦जानिए की कब और कैसे करें वर्ष 2016 में मोहिनी एकादशी का पारणा-

एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारणा कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारणा किया जाता है। एकादशी व्रत का पारणा द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है, यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारणा सूर्योदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारणा न करना पाप करने के समान होता है। एकादशी व्रत का पारणा हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए। जो श्रद्धालु व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्यान के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। कुछ कारणों की वजह से अगर कोई प्रातःकाल पारणा करने में सक्षम नहीं है तो उसे मध्यान के बाद पारण करना चाहिए।

18th मई 2016 को, पारणा (व्रत तोड़ने का) समय    =              05:32 से 08:14
पारणा तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय         =             19:52
एकादशी तिथि प्रारम्भ                                             =             16/मई/2016 को 14:50 बजे ।
एकादशी तिथि समाप्त                                            =             17/मई/2016 को 17:17 बजे।

♦जानिए  मोहिनी एकादशी व्रत की कथाः-

भद्रावती नाम की सुन्दर नगरी थी। वहां के राजा धृतिमान थे। इनके नगर में धनपाल नाम का एक वैश्य रहता था, जो धन-धान्य से परिपूर्ण था। वह सदा पुण्यकर्म में ही लगा रहता था। इसके पाँच पुत्र थे इनमें सबसे छोटा धृष्टबुद्धि था। यह पाप कर्मों में अपने पिता का धन लुटा रहा था। एक दिन वह नगर वधू के गले में बांह डाले चौराहे पर घूमता देखा गया। इससे नाराज होकर पिता ने उसे घर से निकाल दिया तथा बन्धु बान्धवों ने भी उसका परित्याग कर दिया। अब वह दिन रात दु:ख और शोक डूबकर इधर-उधर भटकने लगा। एक दिन किसी पुण्य के प्रभाव से महर्षि कौण्डिल्य के आश्रम पर जा पहुंचा। वैशाख का महीना था। कौण्डिल्य गंगा में स्नान करके आये थे। धृष्टबुद्धि शोक के भार से पीड़ित हो मुनिवर कौण्डिल्य के पास गया और हाथ जोड़कर बोला: ‘ब्रह्मन्! द्विजश्रेष्ठ ! मुझ पर दया करके कोई ऐसा व्रत बताइये, जिसके पुण्य के प्रभाव से मेरी मुक्ति हो।’

कौण्डिल्य बोले: वैशाख मास के शुक्लपक्ष में ‘मोहिनी’ नाम से प्रसिद्ध एकादशीका व्रत करो। इस व्रत के पुण्य से कई जन्मों के पाप भी नष्ट हो जाते हैं। धृष्टबुद्घि ने ऋषि के बताये विधि के अनुसार व्रत किया जिससे वह निष्पाप हो गया और दिव्य देह धारण कर श्रीविष्णुधाम को चला गया।

♦जानिए मोहिनी एकादशी व्रत की विधिः-

हिन्दू धार्मिक ग्रंथो के अनुसार एकादशी के दिन रात्रि जागरण करने का उल्लेख मिलता है। अतः एकादशी की रात्रि में ना सोए। बल्कि भगवान विष्णु जी का भजन-कीर्तन करे। अगले दिन अर्थात द्वादशी के दिन पूजा-दान एवम ब्राह्मणो को भोजन कराने के पश्चात व्रत खोलें।

जो व्यक्ति मोहिनी एकादशी का व्रत करे,उसे एकदिन पूर्व अर्थात दशमी तिथि की रात्रि से ही व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए। व्रत के दिन एकादशी तिथि में व्रती को सुबह सूर्योदय से पहले उठना चाहिए और नित्य कर्म कर शुद्ध जल से स्नान करना चाहिए। स्नान के लिये किसी पवित्र नदी या सरोवर का जल मिलना श्रेष्ठ होता है। अगर यह संभव न हों तो घर में ही जल से स्नान करना चाहिए।

स्नान करने के लिये कुश और तिल के लेप का प्रयोग करना चाहिए। स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण करने चाहिए। इस दिन भगवान श्रीविष्णु के साथ-साथ भगवान श्रीराम की पूजा भी की जाती है। व्रत का संकल्प लेने के बाद ही इस व्रत को शुरु किया जाता है। संकल्प लेने के लिये इन दोनों देवों के समक्ष संकल्प लिया जाता है। देवों का पूजन करने के लिये कलश स्थापना कर,उसके ऊपर लाल रंग का
वस्त्र बांध कर पहले कलश का पूजन किया जाता है।

इसके बाद इसके ऊपर भगवान कि तस्वीर या प्रतिमा रखें तत्पश्चात भगवान की प्रतिमा को स्नानादि से शुद्ध कर उत्तम वस्त्र पहनाना चाहिए। फिर धूप,दीप से आरती उतारनी चाहिए और मीठे फलों का भोग लगाना चाहिए। इसके बाद प्रसाद वितरीत कर ब्राह्मणों को भोजन तथा दान दक्षिणा देनी चाहिए। रात्रि में भगवान का कीर्तन करते हुए मूर्ति के समीप ही शयन करना चाहिए।

इस एकादशी का व्रत रखने वाले को अपना मन साफ रखना चाहिए। प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करे इसके बाद शुद्घ वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु के मूर्ति अथवा तस्वीर के सामने घी का दीपक जलाएं और तुलसी, फल, तिल सहित भगवान की पूजा करें। व्रत रखने वाले को स्वयं तुलसी पत्ता नहीं तोड़ना चाहिए।

किसी के प्रति मन में द्वेष की भावना नहीं लाएं और न किसी की निंदा करें। व्रत रखने वाले को पूरे दिन निराहार रहना चाहिए। शाम में पूजा के बाद चाहें तो फलाहार कर सकते हैं। एकादशी के दिन रात्रि जागरण का बड़ा महत्व है। संभव हो तो रात में जगकर भगवान का भजन कीर्तन करें। अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को ब्राह्मण भोजन करवाने के बाद स्वयं भोजन करें।

by  Pandit Dayanand Shastri.

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