आजकल शायद ही कोई ऐसा घर हो जो वास्तु दोष से मुक्त हो। वास्तु दोष का प्रभाव कई बार देर से होता है तो कई बार इसका प्रभाव शीघ्र असर दिखाने लगता है। पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार इसका कारण यह है कि सभी दिशाएं किसी न किसी ग्रह और देवताओं के प्रभाव में होते है। जब किसी मकान मालिक ( जिसके नाम पर मकान हो) पर ग्रह विशेष की दशा चलती है तब जिस दिशा में वास्तु दोष होता है उस दिशा का अशुभ प्रभाव घर में रहने वाले व्यक्तियों पर दिखने लगता है।
आज में आपको सभी दिशाओं के दोष को दूर करने का सबसे आसान तरीका बता रहा हूँ। इन मंत्र जाप के प्रभाव स्वरूप (फलस्वरूप) आप काफी हद तक अपने वस्तुदोषो से मुक्ति प्राप्त कर पायेंगें । ऐसा मेरा विश्वास हे।
ध्यान रखें मन्त्र जाप में आस्था और विश्वास अति आवश्य है। यदि आप सम्पूर्ण भक्ति भाव और एकाग्रचित्त होकर इन मंत्रो को जपेंगें तो ही निश्चित लाभ होगा।देश- काल और मन्त्र साधक की साधना(इच्छा शक्ति) अनुसार परिणाम भिन्न भिन्न हो सकते है। तर्क कुतर्क वाले इनसे दूर रहे। इनके प्रभाव को नगण्य मानें।
♦ ईशान दिशा-
इस दिशा के स्वामी बृहस्पति है, और देवता है भगवान शिव। इस दिशा के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए नियमित गुरू मंत्र ‘ओम बृं बृहस्पतये नमः’ का जाप करें। शिव पंचाक्षरी मंत्र ओम नमः शिवाय का 108 बार जाप करना भी लाभप्रद होता है।
♦पूर्व दिशा-
घर की पूर्व दिशा वास्तु दोष से पीड़ित है तो इसे दोष मुक्त करने के लिए प्रतिदिन सूर्य मंत्र ‘ओम ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः’ का जाप करें। सूर्य इस दिशा के स्वामी है। इस मंत्र के जाप से सूर्य के शुभ प्रभावों में वृद्घि होती है। व्यक्ति मान-सम्मान एवं यश प्राप्त करता है। इन्द्र पूर्व दिशा के देवता है, प्रतिदिन 108 बार इंद्र मंत्र ‘ओम इन्द्राय नमः’ का जाप करना भी इस दिशा के दोष को दूर कर देता है।
♦आग्नेय दिशा-
इस दिशा के स्वामी शुक्र ग्रह और देवता अग्नि है। इस दिशा में वास्तु दोष होने पर शुक्र अथवा अग्नि के मंत्र का जाप लाभप्रद होता है। शुक्र का मंत्र है ‘ओम शुं शुक्राय नमः’। अग्नि का मंत्र है ‘ओम अग्नेय नमः’। इस दिशा को दोष से मुक्त रखने के लिए इस दिशा में पानी का टैंक, नल, शौचालय अथवा अध्ययन कक्ष नहीं होना चाहिए।
♦दक्षिण दिशा-
इस दिशा के स्वामी ग्रह मंगल और देवता यम हैं। दक्षिण दिशा से वास्तु दोष दूर करने के लिए नियमित ‘ओम अं अंगारकाय नमः’ मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए। यह मंत्र मंगल के कुप्रभाव को भी दूर कर देता है। ‘ओम यमाय नमः’ मंत्र से भी इस दिशा का दोष समाप्त हो जाता है।
नैऋत्य दिशा-
इस दिशा के स्वामी राहु ग्रह है। घर में यह दिशा दोषपूर्ण हो और कुण्डली में राहु अशुभ बैठा हो तो राहु की दशा व्यक्ति के लिए काफी कष्टकारी हो जाती है। इस दोष को दूर करने के लिए राहु मंत्र ‘ओम रां राहवे नमः’ मंत्र का जप करें। इससे वास्तु दोष एवं राहु का उपचार भी उपचार हो जाता है।
♦पश्चिम दिशा-
यह शनि की दिशा है। इस दिशा के देवता वरूण देव है। इस दिशा में किचन कभी भी नहीं बनाना चाहिए। इस दिशा में वास्तु दोष होने पर शनि मंत्र ‘ओम शं शनैश्चराय नमः’ का नियमित जाप करें। यह मंत्र शनि के कुप्रभाव को भी दूर कर देता है।
♦वायव्य दिशा-
चंद्रा इस दिशा के स्वामी ग्रह है। यह दिशा दोषपूर्ण होने पर मन चंचल रहता है। घर में रहने वाले लोग सर्दी जुकाम एवं छाती से संबंधित रोग से परेशान होते है। इस दिशा के दोष को दूर करने के लिए चन्द्र मंत्र ‘ओम चन्द्रमसे नमः’ का जाप लाभकारी होता है।
♦उत्तर दिशा-
यह दिशा के देवता धन के स्वामी कुबेर है। यह दिशा बुध ग्रह के प्रभाव में आती है। इस दिशा के दूषित होने पर माता एवं घर में रहने वाले स्त्रियों को कष्ट होता है। आर्थिक कठिनाईयों का भी सामना करना करना पड़ता है। इस दिशा को वास्तु दोष से मुक्त करने के लिए ‘ओम बुधाय नमः या ‘ओम कुबेराय नमः’ मंत्र का जाप करें। आर्थिक समस्याओं में कुबेर मंत्र का जाप अधिक लाभकारी होता है।
By Pandit Dayanand Shastri.