वास्तु शास्त्र वह है जिसके तहत ब्रह्मांड की विभिन्न ऊर्जा जैसे घर्षण, विद्युतचुम्बकीय शक्ति और अलौकिक ऊर्जा के साम्य के साथ मनुष्य जिस वातावरण मे रहता है, उसकी बनावट और निर्माण का अध्ययन किया जाता है। हालाकि वास्तु आधारभूत रूप से फेंग शुई से काफी मिलता जुलता है जिसके अंतर्गत घर के द्वारा ऊर्जा के प्रवाह को अपने अनुरूप करने का प्रयास किया जाता है। हालाकि फेंग शुई घर की वस्तुओं की सजावट, सामान रखने की स्थिती तथा कमरे आदि की बनावट के मामले मे वास्तु शास्त्र से भिन्न है।
वास्तु की श्रेणिया: भूमि- धरती, घर के लिए जमीन प्रासाद- भूमि पर बनाया गया ढांचा यान- भूमि पर चलने वाले वाहन शयन- प्रासाद के अन्दर रखे गए फर्नीचर ये सभी श्रेणिया वास्तु के नियम दर्शाती हैं, जोकि बड़े स्तर से छोटे स्तर तक होते हैं। इसके अंतर्गत भूमि का चुनाव, भूमि की योजना और अनुस्थापन, क्षेत्र और प्रबन्ध रचना, भवन के विभिन्न हिस्सो के बीच अनुपातिक सम्बन्ध और भवन के गुण आते हैं। वास्तु का तर्क: वास्तु शास्त्र, क्षेत्र (सूक्ष्म ऊर्जा) पर आधारित है, जोकि ऐसा गतिशील तत्व है जिस पर पृथ्वी के सभी प्राणी अस्तित्व मे आते हैं और वही पर समाप्त भी हो जाते है। इस ऊर्जा का कंपन प्रकृति के सभी प्राणियो की विशेष लय और समय पर आधारित होता है। वास्तु का मुख्य उद्देश्य प्रकृति के सानिध्य मे रहकर भवनो का निर्माण करना है। वास्तु विज्ञान और तकनीकी में निपुण कोई भी भवन निर्माता, भवन का निर्माण इस प्रकार करता है जिससे भवन धारक के जन्म के समय सितारो का कंपन आंकिक रूप से भवन के कंपन के बराबर रहे।
वास्तु पुरुष मंडल: वास्तु ‘पुरुष मंडल’ वास्तु शास्त्र का अटूट हिस्सा है। इसमें मकान की बनावट की उत्पत्ति गणित और चित्रों के आधार पर की जाती है। जहां ‘पुरुष’ ऊर्जा, आत्मा और ब्रह्मांडीय व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। वहीं ‘मंडल’ किसी भी योजना के लिए जातिगत नाम है। वास्तु ‘पुरुष मंडल’ वास्तु शास्त्र में प्रयोग किया जाने वाला विशेष मंडल है। यह किसी भी भवन/मन्दिर/भूमि की आध्यात्मिक योजना है जोकि आकाशीय संरचना और अलौकिक बल को संचालित करती है।
दिशा और देवता: हर दिशा एक विशेष देव द्वारा संचालित होती है। यह देव हैं:
♦ उत्तरी पूर्व – यह दिशा भगवान शिव द्वारा संचालित की जाती है।
♦ पूर्व – इस दिशा मे सूर्य भगवान का वास होता है।
♦ दक्षिण पूर्व – इस दिशा मे अग्नि का वास होता है। –
♦ दक्षिण – इस दिशा मे यम का वास होता है।
♦ दक्षिण पश्चिम – इस दिशा मे पूर्वजों का वास होता है।
♦ पश्चिम – वायु देवता का वास होता है।
♦ उत्तर – धन के देवता का वास होता है।
♦ केन्द्र – ब्रह्मांड के उत्पन्नकर्ता का वास होता है।
by Pandit Dayanand Shastri.