गणेशजी को सुमुख (जिसका मुँह सुंदर है) कहा गया है। इस विषय मे सभी के मन मे विचार पैदा होना स्वाभाविक ही है कि गजानन को सुमुखी किस तरह कहा जा सकता है। इस के लिए सुंदरता अथवा रमणीयता के निम्नलिखित लक्षण देखे- क्षण-क्षण नवीनता दर्शाना रमणीयता का लक्षण है। गणेशजी का मुख प्रति पल देखने पर नया ही लगता है। साथ ही भोलानाथ शंभु को कर्पुरगौर अर्थात् कपूर गौर वर्णवाला कहा जाता है। माता पार्वती जी ने तो अपरंपार सौंदर्यवान बनाया है। इसलिए इन दोनो पुत्रो को स्वाभाविक रूप से ही सुमुखी कहा जाता है। भगवान शंकर ने गुस्से मे आकर गणपतिजी का मस्तक उड़ा दिया, तब उस मे से जो तेजपुंज निकला वह सीधे चंद्रमा मे जाकर समा गया और कहा जाता है कि जब हाथी का मस्तक उन के धड़ के साथ जोड़ा गया तब वह पुँज वापस आकर गजानन के मुख मे समा गया। इसलिए भी इन्हे सुमुख कहा जाता है। साथ ही इन के मुँह की संपूर्ण शोभा का आकलन करते हुए इन्हें मंगल के प्रतीक के रूप मे माना गया है और इसलिए इन्हे सुमुख के रूप मे संबोधित किया जाता है।
♦ एकदंत:
इनके एकदंत नाम के पीछे की कथा ऐसी है कि एक बार माता पार्वतीजी स्नान करने बैठी थीं। श्री गणेशजी द्वारपाल के रूप मे बाहर खड़े थे और किसी को भी अंदर जाने नहीं दे रहे थे। ऐसे मे वहाँ एकाएक परशुराम पहुँच गये और अंदर जाने का आग्रह करने लगे। इस से दोनों के बीच उग्रतापूर्ण बातें हुईं और फिर लड़ाई ठन गई। गणेशजी बालक थे इसलिए परशुराम स्वयं पहले हथियार उठाना नहीं चाहते थे, परंतु गणेशजी के तीखे तमतमाते वचनो को सुनकर क्रोध मे आकर उन्होंने गणेशजी पर प्रहार कर दिया। अतः गणेशजी का एक दांत टूट गया। इस कारण गणेश जी को एकदंत भी कहा जाता है। जब तक गणेशजी के मुँह मे दो दाँत थे तब तक उन के मन मे द्वैतभाव था, परंतु एक दांतवाला हो जाने के बाद वे अद्वैत भाव वाले बन गये। साथ ही एकदंत की भावना ऐसा भी दर्शाती है कि जीवन मे सफलता वही प्राप्त करता है, जिस का एक लक्ष्य हो। एक शब्द माया का बोधक है और दाँत शब्द मायिक का बोधक है। श्री गणेशजी मे माया और मायिक का योग होने से वे एकदंत कहलाते है।
♦ कपिल :
गणेशजी का तीसरा नाम कपिल है। कपिल का अर्थ गोरा, ताम्रवर्ण, मटमैला होता है।जिस प्रकार कपिला (कपिलवर्णी गाय) धूँधले रंग की होने पर भी दूध, दही, घी आदि पौष्टिक पदार्थों को दे कर मनुष्यो का हित करती है उसी तरह कपिलवर्णी गणेशजी बुद्धिरूपी दही, आज्ञारूप घी, उन्नत भावरूपी दुग्ध द्वारा मनुष्य को पुष्ट बनाते है तथा मनुष्यो के अमंगल का नाश करते है, विघ्न दूर करते है। दिव्य भावो द्वारा त्रिविध ताप का नाश करते है।
♦ गजकर्ण:
गणेशजी का चौथा नाम गजकर्ण है। हाथी का कान सूप जैसा मोटा होता है गणेशजी को बुद्धि का अनुष्ठाता देव माना गया है। भारत के लोगो ने अपने आराध्य देव को लंबे कानवाला दर्शाया है, इसलिए वे बहुश्रुत मालूम पड़ते है। सुनने को तो सब कुछ सुन लेते है परंतु बिना विचारे करते नहीं। इस का उदाहरण प्रस्तुत करने की इच्छा से गणेशजी ने हाथी जैसा बडा कान धारण किया है।
♦ लम्बोदर:
गणनाथ जी का पाँचवाँ नाम लंबोदर है। लंबा है उदर जिस का वह लंबोदर, अर्थात् गणेश। किसी भी तरह की भलीबुरी बात को पेट मे समाहित करना बड़ा सदगुण है। भगवान शंकर के द्वारा बजाए गए डमरू की आवाज के आधार पर गणेशजी ने संपूर्ण वेदों का ज्ञान प्राप्त किया। माता पार्वती जी के पैर की पायल की आवाज से संगीत का ज्ञान प्राप्त किया। शंकर का तांडव नृत्य देख कर नृत्य विद्या का अध्ययन किया। इस तरह से विविध ज्ञान प्राप्त करने और उसे समाहित करने के लिए बड़े पेट की आवश्यकता थी।
♦ विकट :
गणेशजी का छठा नाम विकट है। विकट अर्थात भयंकर। गणेशजी का धड़ मनुष्य का है औरमस्तक हाथी का है। इसलिए ऐसे प्रदर्शन का विकट होना स्वाभाविक ही है, इस मे कोई आश्चर्य की बात नही है। श्री गणेश अपने नाम को सार्थक बनाने के लिए समस्त विघ्नो को दूर करने के लिए विघ्नों के मार्ग मे विकट स्वरूप धारण करके खड़े हो जाते है।
♦ विघ्नविनाशक:
श्री गणेशजी का सातवाँ नाम विघ्ननाशक है। वास्तव मे भगवान गणेश समस्त विघ्नो के विनाशक है और इसीलिए किसी भी कार्य के आरंभ मे गणेश पूजा अनिवार्य मानी गई है।
♦ विनायक:
गणेशजी का आठवाँ नाम विनायक है। इस का अर्थ होता है- विशिष्ट नेता। गणेशजी मे मुक्ति प्रदान करने की क्षमता है। सभी जानते है कि मुक्ति देने का एकमात्र अधिकार भगवान नारायण ने अपने हाथ मे रखा है। भगवान नारायण मुक्ति तो शायद देते है किंतु भक्ति का दान नहीं देते। परंतु गणेशजी तो भक्ति और मुक्ति के दाता माने जाते है।
♦ धूमकेतु:
गणेशजी का नौवाँ नाम धूमकेतु है। इस का सामान्य अर्थ धूँधले रंग की ध्वजावाला होता है। संकल्प- विकल्प की धूधली कल्पनाओं को साकार करने वाले और मूर्तस्वरूप दे कर ध्वजा की तरह लहराने वाले गणेशजी को धूमकेतु कहना यथार्थ ही है। मनुष्य के आध्यात्मिक और आधि-भौतिक मार्ग मे आने वाले विघ्नो को अग्नि की तरह भस्मिभूत करने वाले गणेशजी का धूमकेतु नाम यथार्थ लगता है।
♦ गणाध्यक्ष:
गणेशजी का दसवाँ नाम गणाध्यक्ष है। गणपति जी दुनिया के पदार्थमात्र के स्वामी है। साथ ही गणों के स्वामी तो गणेशजी ही है। इसीलिए इनका नाम गणाध्यक्ष है।
♦ भालचंद्र :
गणेशजी का ग्यारहवाँ नाम भालचंद्र है। गजानन जी अपने ललाट पर चंद्र को धारण कर के उस की शीतल और निर्मल तेज प्रभा द्वारा दुनिया के सभी जीवों को आच्छादित करते है। साथ ही ऐसा भाव भी निकलता है कि व्यक्ति का मस्तक जितना शांत होगा उतनी कुशलता से वह अपना कर्तव्य निभा सकेगा। गणेशजी गणों के पति है। इसलिए अपने ललाट पर सुधाकर-हिमांशु चंद्र को धारण करके अपने मस्तक को अतिशय शांत बनाने की आवश्यकता प्रत्येक व्यक्ति को समझाते है।
♦ गजानन:
गणेशजी का बारहवाँ नाम गजानन है। गजानन अर्थात हाथी के मुँह वाला। हाथी की जीभअन्य प्राणियो से अनोखी होती है। गुजराती मे कहावत है – पडे चड़े, जीभ वड़े, ज प्राणी। मनुष्य के लिए यह सही है। अच्छी वाणी उसे चढ़ाती है और खराब वाणी उसे गिराती है। परंतु हाथी की जीभ तो बाहर निकलती ही नहीं। यह तो अंदर के भाग मे है। अर्थात इसे वाणी के अनर्थ का भय नही है।