पृथ्वी, आकाश, जल, अग्नि एवं वायु इन पंचतत्वो तथा दसो दिशाओ के कल्याणकारी सूत्र एवं सिद्धान्त ही वास्तु शास्त्र की मूल अवधारणा है। प्रकृति के इन नियमो का पालन मनुष्य किस तरह शारीरिक एवं मानसिक विकास हेतु करके सुखी एवं सम्पन्न रहे, यही वास्तु शास्त्र की नींव है। किसी भी निर्मित अथवा खुले स्थल का केन्द्र बिन्दु उस स्थान का हृदय होता है एवं पायरा विज्ञान की भाषा मे इसे पायरा सेन्टर कहते है।
वास्तु शास्त्र जैव शक्ति, गुरुत्वाकर्षण शक्ति, पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र, वायु की गति एवं ब्रह्माण्डीय तरंगों पर आधारित विज्ञान है। उपरोक्त प्राकृतिक शक्तियां, तरंगें, गति एवं क्षेत्र भला भेदभाव करना कहां जानती है। इनके लिए अमीर-गरीब, शिक्षित-गंवार, छोटा-बड़ा, हिंदू-मुस्लिम सभी बराबर है। अत: वास्तु के नियम किसी भी स्थान पर निष्पक्ष रूप से सभी पर लागू होते है।
पृथ्वी तत्व का स्वामित्व नैऋत्य मे, अग्नि का आग्नेय मे, वायु का वायव्य मे, जल का ईशान मे और आकाश तत्व का स्वामित्व ब्रह्मस्थान मे माना जाता है। इन चार विदिशाओं और पांचवे ब्रह्मस्थान मे इन पांच तत्वो के गुणो के अनुरुप ही कार्य करने चाहिए। ईशान कोण मे जल तत्व का स्वामित्व है इसलिए यहां अग्नि तत्व से संबंधित कोई भी कार्य करना पूरे परिवार के लिए हानिप्रद है। यहां किचन रखना, कपड़े प्रेस करने के लिए टेबल रखना, कपड़े प्रेस करने के लिए टेबल रखना, गीजर या बाॅयलर रखना हानिप्रद होता है। अग्नि तत्व और जल तत्व दो विपरीत गुणो वाले तत्व है इसीलिए इनका मिलन दोनो ही तत्वो को कमजोर करता है, अग्नि तत्व जल को नष्ट करता है और जल तत्व अग्नि को बुझाता है। अग्नि तत्व स्वास्थ्य का और जल तत्व सुख-शांति, समृद्धि और संपन्नता का कारक है। जल और अग्नि तत्वो के कमजोर होने से परिवार मे स्वास्थ्य, समृद्धि और सुख शांति संबंधित कई समस्याएं आ जाएंगी। इसी तरह अन्य तत्वो की प्रकृति और उनके प्रभाव को ध्यान रखते हुए ही घर का नक्शा बनाना चाहिए।
वास्तु शास्त्र और वास्तु विज्ञान मे मुख्य अंतर यह है कि शास्त्र हम पर शासन करता है, लेकिन विज्ञान हमे आवास संबंधी ज्ञान के बारे मे नई जानकारियों से परिचित कराता है। जब किसी कार्य-पद्धति के विशिष्ट ज्ञान के कारण का संबंध स्थापित हो जाये और बार-बार अनुसंधान करने पर ठोस परिणाम आने लगते है। तब यह कार्य पद्धति स्वत ही वैज्ञानिक बन जाती है। कई ज्योतिष जो वास्तु के बढ़ते महत्व के कारण सिर्प पुस्तकीय ज्ञान के आधार पर वास्तु विषय मे प्रवेश कर चुके है। यह महाशय समस्याग्रस्त इंसान को वास्तु दोष निवारण के नाम पर पूजा-पाठ, यंत्र-मंत्र, टोटके इत्यादि मे उलझा देते है। जबकि समस्याओ का समाधान एवं सुख-समृद्धि प्राप्त करने के लिये वास्तु विषय को अन्य किसी भी
विषय के माध्यम की जरूरत ही नहीं पड़ती।
साधारण भाषा मे समझा जाए तो वास्तु शास्त्र के सिद्धांत आठो दिशाओ तथा पंच महाभूतो आकाश, भू, वायु, जल, अग्नि आदि के प्रवाह आदि को ध्यान मे रखने बनाए गए है। इन सबके मेल से एक ऐसी प्रकिया खड़ी की जाती है जो मनुष्य के रहने के स्थान को सुखमय बनाने का कार्य करती है। पंच-तत्वों पर आधारित वास्तु पर मानव सिद्धि प्राप्त करता है, तो वह उसे सुख-शांति और समृद्धि प्रदान कर सकती है। यही वास्तु का रहस्य है। वास्तु विषय का महत्व बढ़ने के साथ-साथ केवल पुस्तकीय ज्ञान के आधार पर इस विषय मे इतने अपरिपक्व एवं अज्ञानी लोग प्रवेश कर चुके है कि आम व्यक्ति के लिये सही-गलत का फैसला कर पाना मुश्किल हो जाता है। बाजार मे वास्तु-शास्त्र से संबंधित मिलने वाली लगभग सभी पुस्तको मे एक ही तरह की बाते लिखी रहती है। इसका अर्थ यह है कि यह पुस्तके लेखक की मौलिक रचना नहीं है और ना ही स्वयं शोध या अनुसंधान करके लिखी गयी है। बल्कि शास्त्रो मे लिखी गयी बातो को अपनी भाषा मे पिरो दी जाती है या फिर अन्य पुस्तको की नकल, जिन्हे पढ़कर आम इंसान वास्तु-विषय के प्रति भ्रमित ही रहता है। जब कई मकानों का अवलोकन किया जाता है, तब हम यह देखते है कि प्रत्येक मकान का आकार एवं दिशाएं अलग-अलग होती है।
वास्तु शास्त्र और वास्तु विज्ञान मे मुख्य अंतर यह है कि शास्त्र हम पर शासन करता है, लेकिन विज्ञान हमे आवास संबंधी ज्ञान के बारे मे नई जानकारियो से परिचित कराता है। जब किसी कार्य-पद्धति के विशिष्ट ज्ञान के कारण का संबंध स्थापित हो जाये और बार-बार अनुसंधान करने पर ठोस परिणाम आने लगते है। तब यह कार्य पद्धति स्वत ही वैज्ञानिक बन जाती है।
जानिए ब्रह्म स्थान/ब्रह्म स्थल को-
पौराणिक दृष्टिकोण से भी देखे तो ब्रह्म स्थान, यानी ब्रह्मा का स्थल। ब्रह्मा के चार सिर है और उसी प्रकार किसी भी स्थान का ब्रह्म स्थल मध्य मे स्थित रह कर ब्रह्मा की तरह उस स्थान के चतुर्दिक देखता है। किसी भी दिशा के दोषपूर्ण होने पर अगर उस दिशा से प्राप्य ऊर्जा अगर ब्रह्मस्थल तक नहीं पहुंचती है तो स्वभावत: ब्रह्मस्थल की लाभकारी दृष्टि से वह दिशा वंचित रह जाती है। ब्रह्म स्थान का दोष ब्रह्मा जी का प्रकोप (स्वास्थ्य, वंश व आर्थिक हानि)… फलत: वहाँ नकारात्मक ऊर्जा व्याप्त होकर वहाँ के निवासियों के जीवन को अपने स्वाभावानुसार प्रभावित करके कष्ट एवं दु:ख का कारण न जाती है। साधारण सी बात है। किसी भी देश, राज्य, शहर का संचालन वहाँ का केन्द्र ही करता है।किसी भी घर मे ब्रह्म स्थान बड़ा महत्व रखता है। ये घर का बिलकुल बीच वाला स्थान होता है। इसी स्थान से ऊर्जा पुरे घर मे प्रवाहित होती है। वास्तु शास्त्र मे इसे सूर्य का स्थान माना जाता है।
किसी भी घर/भवन/मकान मे घर मे ब्रह्मस्थान एक तरह से हमारे पेट की तरह होता है। खाना हम खाते तो मुँह से है लेकिन distribution का काम पेट का है इसी तरह से ऊर्जा उत्पन्न north-east यानि के ईशान से होती है लेकिन circulation ब्रह्मस्थान से ही होता है।
ब्रह्म स्थान को खुला, साफ तथा हवादार रखना चाहिए। गृह निर्माण मे 81 पद वाले वास्तु चक्र मे 9 स्थान ब्रह्म स्थान के लिए नियत किए गये है। ब्रह्म स्थल यह केन्द्र बिन्दु अत्यन्त सूक्ष्म परन्तु सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है। प्रकृति के पंचतत्वों की ऊर्जा विभिन्न दिशाओं से आकर किसी भी स्थल के केन्द्र विन्दु पर ही एकत्रित होती है एवं वहीं से अपने निर्दिष्ट स्थान को प्रभावित करती है। वास्तु मे यह केन्द्र बिन्दु ब्रह्मस्थान कहलाता है। अत: प्रत्येक स्थान, जहाँ हम निवास अथवा कार्य करते है, वहां के ब्रह्मस्थान को स्वच्छ एवं सुरक्षित रखना परम आवश्यक होता है। ब्रह्म स्थान अर्थात घर का मध्य भाग भारी हो तथा घर के मध्य मे अधिक लोहे का प्रयोग हो या ब्रह्म भाग से सीडीयां ऊपर कि और जा रही हो तो समझ ले कि मधुमेह का घर मे आगमन होने जा रहा हे अर्थात दक्षिण-पश्चिम भाग यदि आपने सुधार लिया तो काफी हद तक आप असाध्य रोगों से मुक्त हो जायेगे..
ब्रह्म स्थान नीचा हो जैसे आजकल architect बना देते है step दे के तो समझो पेट की भयंकर बिमारी है किसी को। वास्तु शास्त्र मे मकान आँगन रखने पर जोर दिया जाता है। वास्तु के अनुसार, मकान का प्रारूप इस प्रकार रखना चाहिए कि आँगन मध्य मे अवश्य हो। अगर स्थानाभाव है, तो मकान मे खुला क्षेत्र इस प्रकार उत्तर या पूर्व की ओर रखे, जिससे सूर्य का प्रकाश व ताप मकान मे अधिकाधिक प्रवेश कर सके। यह एक सर्वमान्य सत्य है कि जो लोग वास्तु सम्मत स्थान पर निवास एवं कार्य करते है, उन्हें पीढ़ी दर पीढ़ी सभी कार्यों मे सफलता प्राप्त होती है। स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं आनन फानन नहीं आती है। परिवार मे शान्ति, सन्तोष एवं सौहार्द की प्रवृत्ति रहती है तथा ईष्र्यालु लोगो की नजरो से भी बचाव होता है। जीवन मे मददगार मित्र एवं अच्छे रिश्तेदार मिलते है तथा सुख व समृद्धि सदैव सहज हासिल होती है।
♦ इनका रखे हमेशा ध्यान :
♦ आपके घर का मध्य (ब्रह्मस्थान) हमेशा साफ और खाली रखना चाहिए।
♦ ब्रह्मस्थान मे कोई खंबा, कील आदि नहीं लगाना चाहिए।
♦ ब्रह्मस्थान पर कभी भी अग्नि नहीं लाएं क्योंकि यहाँ अग्नि का प्रवेश होने से परिवार के सदस्यो मे झगड़े शुरू हो जाते है।
♦ ब्रह्मस्थान वास्तु शास्त्र के साथ-साथ आध्यात्म और दर्शन से संबंध रखता है, इसलिए यहाँ आप शास्त्र पढ़ सकते है, भगवान का नाम जप सकते है।
♦ ब्रह्मस्थान पर कोई भारी फर्नीचर न रखे, इसे यथासंभव खाली रखे। हो सके तो ब्रह्मस्थान के स्थान पर यानी कि घर के मध्य मे आंगन बनाएँ और इस आंगन मे तुलसी का पौधा लगाएं।
♦ इस स्थान पर झाड़ू, पोछा आदि वस्तुएं कभी न रखे।
=================================================================
♦ वास्तु का ब्रह्मस्थान:
प्लाॅट या मकान के बिल्कुल बीच के भाग को ब्रह्मस्थान कहते है। यह एक बिंदु नहीं बल्कि क्षेत्र या जोन होता है, जिसका एरिया मकान या प्लाॅट के साइज से मालूम किया जाता है। ब्रह्म स्थान पवित्र स्थान माना जाता है। यहां कूड़ा करकट झाडू-पोंछा या माॅप आदि नहीं रखने चाहिए। ब्रह्मस्थान मे टाॅयलेट सर्वथा वर्जित है। यहां आग से संबंधित कामकाज भी नहीं हो सकते। इसलिए ब्रह्मस्थान मे बना किचन अवश्य ही परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य पर बुरा असर डालेगा। विशेषकर परिवार का मुखिया लंबे समय तक ठीक न होने वाली अनेक बीमारियो का शिकार बन सकता है।
ब्रह्मस्थान घर की नाभि है और यही कारण है कि यहां ऊंची और भारी वस्तुएं या फर्नीचर नहीं रखे जा सकते। आयुर्वेद मे भी सलाह दी जाती है कि अपने नाभिस्थान को हल्का-फुल्का रखे, आसानी से पचने वाला खाना खाएं ताकि पाचन क्रिया ठीक बनी रहे और पूरे शरीर को स्वस्थ रखे।
इसी प्रकार घर के नाभिस्थल को भी हल्का-फुल्का रखना चाहिए। यहां दीवारें, खंभे या सीढ़ियां हों तो यह स्थान बहुत ही भारी होकर अनेक बीमारियों का सबसे बड़ा कारण बन जाता है। अगर घर का ब्रह्मस्थान बिल्कुल खुला है और उसके चारो तरफ कमरे बने है तो ऐसा घर भाग्यवान परिवार को ही मिलता है।
पुरानी हवेलियो और महलो मे ब्रह्मस्थान आकाश की ओर खुला होता था। पुरानी शैली के मकानो मे ब्रह्मस्थान पर खुला आंगन जरूर होता था। खुला ब्रह्मस्थान अनेक अन्य वास्तुदोषो के कुप्रभाव को कम करने मे सक्षम होता है। ऐसे घरो मे रहने वाले स्वस्थ, खुशहाल और शांति से भरपूर जीवन व्यतीत करते है। खुला ब्रह्मस्थान फ्लैट्स मे तो मिल ही नहीं सकता, अपने भूखंड पर बनाए हुए घर मे भी अब खुला ब्रह्मस्थान रखना आउट आॅफ फैशन हो चुका है। खुले ब्रह्मस्थान से धूल-मिट्टी तो आती है इसके अलावा एयरकंडिशनिंग लोड बढ़ जाता है और सुरक्षा की समस्या भी बन सकती है। पर फिर भी इन समस्याओं के मुकाबले खुले ब्रह्मस्थान के गुण कहीं अधिक है।
ब्रह्मस्थान, वास्तुशास्त्र के कालपुरूष की नाभि है। जिस प्रकार नाभि से पूरेशरीर का नियंत्रण होता है, उसी प्रकार ब्रह्मस्थान से भी पूरे मकान या भूखण्ड को स्वच्छ वायु, स्वच्छ प्रकाश एवं अध्यात्मिक ऊर्जा की प्राप्ति होने के साथ-साथ पूरे मकान या भूखण्ड का नियंत्रण भी होता है। जिस प्रकार किसी भूखण्ड के ईशान, पूर्व दिशा को पवित्र रखा जाता है, उसी प्रकार भूखण्ड के ब्रह्मस्थान (Center of house) स्थान की भी पूरी सुरक्षा की जानी चाहिये।
प्रस्तुत है ब्रह्मस्थान (Center of house) के लिये वास्तुशास्त्र (Vastu) की कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां-
प्रत्येक घर मे ब्रह्मस्थान (Center of house) अवश्य होना चाहिये तथा वह बिना छत के होना चाहिये, सुरक्षा की दृष्टि से लोहे का जाल डाला जा सकता है।
भूखण्ड के ब्रह्मस्थान को चौक भी कहते है, इस भाग मे कोई भी निर्माण कार्य नहीं करना चाहिये, हमेशा खुला रखना चाहिये।
==================================================================
♦ जानिए ब्रह्म स्थल मे क्या ना करे :-
ध्यान रखे–ब्रह्म स्थल पर सेप्टिक टेंक , भूमिगत पानी की टंकी, बोरिंग, खंभा, सीढ़ी, बिम, छज्जा, आदि का निर्माण ना करें । ब्रह्म स्थान मे गन्दी, नई-पुरानी, छोटी या बड़ी वस्तु नहीं होनी चाहिए। भारतीय परम्परा मे धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष नामक चार पुरूषार्थ है। भूखण्ड का ब्रह्म स्थल इन्ही पुरूषार्थो की प्राप्ति के लिए होता है। ब्रह्म स्थल निर्दोष होना चाहिए वहां किसी भी प्रकार का निर्माण नहीं होना चाहिए।
♦ ब्रह्म स्थान मे toilet मतलब लाइलाज बिमारी किसी को निमंत्रण देना ।
♦ ब्रह्म स्थल ख़राब होने के कारण होती है स्वास्थ्य प्रॉब्लम्स–
किसी घर मे ब्रहम स्थान अथवा आंगन न होने से प्रचुर मात्रा मे हवा व प्रकाश नहीं मिल पाता है, जिसके फलस्वरूप हमारे शरीर मे विटामिन डी की कमी हो जाती है, और हमारे शरीर की हडिड्यां कमजोर हो जाती है। इस कारण आपको हड्डी रोग से संबंधित बीमारियां घेर लेती है। खासकर वह महिलाये जो घरेलू कार्यो मे ही अपना पूरा समय व्यतीत करती है, उन्हे इस प्रकार के disease होने की ज्यादा आशंका रहती है क्योंकि उन्हे भरपूर मात्रा मे सूर्य का प्रकाश नहीं मिल पाता
है। इसलिए भवन मे आंगन होना अतिआवश्यक है|
किसी भी घर मे ब्रह्म स्थान पर सीढियां बनी होना एक गंभीर वास्तु दोष है जिससे आर्थिक एवं स्वास्थ्य हानि होती है। परिवार बढ़ता नहीं है। ब्रह्मस्थान मे ही सीढ़ियो के नीचे भूमिगत जल स्रोत था जिससे घर मे गंभीर स्वास्थ्य परेशानियां होती है, विशेषतः पेट संबंधी (आप्रेशन तक हो सकते हैं), घर मे अनचाहे खर्चे होते रहते है अथवा दिवालियापन तक भी हो सकता है। किसी भी भवन के ब्रह्म स्थल मे बना सेप्टिक टेंक या केन्द्र मे बनी सीढ़ियों के नीचे शौचालय बनाना पारिवारिक उन्नति मे बाधक होता है एवं घर की महिलाएं विशेषतः बहन, बुआ तथा बेटी के जीवन मे समस्याएं उत्पन्न होने का कारण हो सकता है।
घर के अंदर ब्रह्म स्थान को खाली रखना चाहिए इस स्थान पर भरी सामग्री रखने से या किसी बीम या पिल्लर का निर्माण करने से आपको बड़े वास्तु दोष का सामना करना पड़ सकता है। ऐसा माना जाता है के ब्रह्मस्थान मे दोष होने पर घर वंश वृद्धि रूक सकती है।
♦ जानिए महाभारत मे वास्तु दोष –
महाभारत मे भी कथा प्रचलित है जब इंद्रप्रस्थ का निर्माण हो रहा था तब भगवान श्री कृष्णा को पता था के ये आज नही तो कल कौरवो के पास ही जाएगा इसी कारण उन्होने एक कुँए का निर्माण बिलकुल बीचो बीच करवाया था जिसके फलस्वरूप पहले पांडवो को वनवास झेलना पड़ा उसके बाद कौरवों के वंश का सर्वनाश हो गया।
♦ जानिए किसी भी फ्लेट/अपार्ट मेट मे बेसमेट का प्रभाव–