जानिए श्राद्ध कर्म क्या है ?? कब, क्यो और कैसे करे श्राद्ध कर्म ??
FortuneSpeaks Team
श्रद्धयां इदम् श्राद्धम्”
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शास्त्र का वचन है-“श्रद्धयां इदम् श्राद्धम्” अर्थात पितरो के निमित्त श्रद्धा से किया गया कर्म ही श्राद्ध है। मित्रो, आगामी 28 सितम्बर 2015 ( सोमवार) से महालय “श्राद्ध पक्ष” प्रारम्भ होने जा रहा है। इन सोलह (16) दिनो पितृगणो (पितरो) के निमित्त श्राद्ध व तर्पण किया जाता है। किन्तु जानकारी के अभाव मे अधिकांश लोग इसे उचित रीति से नहीं करते जो कि दोषपूर्ण है क्योंकि शास्त्रानुसार “पितरो वाक्यमिच्छन्ति भावमिच्छन्ति देवता:” अर्थात देवता भाव से प्रसन्न होते है और पितृगण शुद्ध व उचित विधि से किए गए कर्म से।
♦ पित्र पक्ष(श्राद्धपक्ष) मे पितृदोष ( कालसर्प योग/दोष) के निवारण के लिए उज्जैन स्थित गयाकोठी तीर्थ उनके लिए वरदान है जो गया जाकर पित्र दोष शांति नहीं करवा सकते है। इस प्राचीन तीर्थ पर पितृदोष शांति का शास्त्रोक्त निवारण के लिए आप पंडित दयानन्द शास्त्री से संपर्क कर सकते है।
♦ पितृदोष : वह दोष जो पित्तरो से सम्बन्धित होता है पितृदोष कहलाता है। यहाँ पितृ का अर्थ पिता नहीं वरन् पूर्वज होता है। ये वह पूर्वज होते है जो मुक्ति प्राप्त ना होने के कारण पितृलोक मे रहते है तथा अपने प्रियजनो से उन्हे विशेष स्नेह रहता है।
श्राद्ध या अन्य धार्मिक कर्मकाण्ड ना किये जाने के कारण या अन्य किसी कारणवश रूष्ट हो जाये तो उसे पितृ दोष कहते है। विश्व के लगभग सभी धर्मों मे यह माना गया है कि मृत्यु के पश्चात् व्यक्ति की देह का तो नाश हो जाता है लेकिन उनकी आत्मा कभी भी नही मरती है। पवित्र गीता के अनुसार जिस प्रकार स्नान के पश्चात् हम नवीन वस्त्र धारण करते है उसी प्रकार यह आत्मा भी मृत्यु के बाद एक देह को छोड़कर नवीन देह धारण करती है। हमारे पित्तरो को भी सामान्य मनुष्यों की तरह सुख दुख मोह ममता भूख प्यास आदि का अनुभव होता है। यदि पितृ योनि मे गये व्यक्ति के लिये उसके परिवार के लोग श्राद्ध कर्म तथा श्रद्धा का भाव नहीं रखते है तो वह पित्तर अपने प्रियजनो से नाराज हो जाते है। समान्यतः इन पित्तरो के पास आलौकिक शक्तियां होती है तथा यह अपने परिजनो एवं वंशजो की सफलता सुख समृद्धि के लिये चिन्तित रहते है जब इनके प्रति श्रद्धा तथा धार्मिक कर्म नहीं किये जाते है तो यह निर्बलता का अनुभव करते है तथा चाहकर भी अपने परिवार की सहायता नही कर पाते है तथा यदि यह नाराज हो गये तो इनके परिजनो को तमाम कठनाइयो का सामना करना पड़ता है। पितृ दोष होने पर व्यक्ति को अपने जीवन मे तमाम तरह की परेशानियां उठानी पड़ती है ।
जैसे घर मे सदस्यो का बिमार रहना। मानसिक परेशानी। सन्तान का ना होना। कन्या संतान का अधिक होना या पुत्र का ना होना। पारिवारिक सदस्यो मे वैचारिक मतभेद होना। जीविकोपार्जन मे अस्थिरता या पर्याप्त आमदनी होने पर भी धन का ना रूकना। प्रत्येक कार्य मे अचानक रूकावटे आना। जातक पर कर्ज का भार होना। सफलता के करीब पहुँचकर भी असफल हो जाना। प्रयास करने पर भी मनवांछित फल का ना मिलना। आकस्मिक दुर्घटना की आशंका तथा वृद्धावस्था मे बहुत दुख प्राप्त होना आदि।
आजकल बहुत से लोगो की कुण्डली मे कालसर्प योग(दोष) भी देखा जाता है वस्तुतः कालसर्प योग भी पितृ दोष के कारण ही होता जिसकी वजह से मनुष्य के जीवन मे तमाम मुसीबतों एवं अस्थिरता का सामना करना पड़ता है।
इस प्रकार की समस्या उज्जैन स्थित गया कोठी तीर्थ , प्राचीन सिद्धवट तीर्थ जो पवित्र शिप्रा नदी के किनारे स्थित है, पर इस दोष का शास्त्रोक्त विधि विधान से निवारण करवाया जाता है।
भारतीय शास्त्रो मे ऐसी मान्यता है कि पितृगण पितृपक्ष मे पृथ्वी पर आते है और 15 दिनो तक पृथ्वी पर रहने के बाद अपने लोक लौट जाते है। शास्त्रो मे बताया गया है कि पितृपक्ष के दौरान पितृ अपने परिजनो के आस-पास रहते है इसलिए इन दिनो कोई भी ऐसा काम नहीं करे जिससे पितृगण नाराज हो।
पितरो को खुश रखने के लिए पितृ पक्ष मे कुछ निम्न बातो पर विशेष ध्यान देना चाहिए—
♦ पितृ पक्ष के दौरान ब्राह्मण, जामाता, भांजा, मामा, गुरु, नाती को भोजन कराना चाहिए। इससे पितृगण अत्यंत प्रसन्न होते है।
♦ब्राह्मणो को भोजन करवाते समय भोजन का पात्र दोनो हाथो से पकड़कर लाना चाहिए अन्यथा भोजन का अंश राक्षस ग्रहण कर लेते है। जिससे ब्राह्मणो द्वारा अन्न ग्रहण करने के बावजूद पितृगण भोजन का अंश ग्रहण नहीं करते है।
♦पितृ पक्ष मे द्वार पर आने वाले किसी भी जीव-जंतु को मारना नहीं चाहिए बल्कि उनके योग्य भोजन का प्रबंध करना चाहिए।
♦ हर दिन भोजन बनने के बाद एक हिस्सा निकालकर गाय, कुत्ता, कौआ अथवा बिल्ली को देना चाहिए। मान्यता है की इन्हे दिया गया भोजन सीधे पितरो को प्राप्त हो जाता है।
♦शाम के समय घर के द्वार पर एक दीपक जलाकर पितृगणो का ध्यान करना चाहिए।
♦ हिंदू धर्म ग्रंथो के अनुसार जिस तिथि को जिसके पूर्वज गमन करते है, उसी तिथि को उनका श्राद्ध करना चाहिए।
♦ इस पक्ष मे जो लोग अपने पितरो को जल देते है तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते है, उनके समस्त मनोरथ पूर्ण होते है।
♦जिन लोगो को अपने परिजनो की मृत्यु की तिथि ज्ञात नही होती, उनके लिए पितृ पक्ष मे कुछ विशेष तिथियां भी निर्धारित की गई है, जिस दिन वे पितरो के निमित्त श्राद्ध कर सकते है।
♦ आश्विन कृष्ण प्रतिपदा:- इस तिथि को नाना-नानी के श्राद्ध के लिए सही बताया गया है। इस तिथि को श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। यदि नाना-नानी के परिवार मे कोई श्राद्ध करने वाला न हो और उनकी मृत्युतिथि याद न हो, तो आप इस दिन उनका श्राद्ध कर सकते है।
♦ पंचमी:- जिनकी मृत्यु अविवाहित स्थिति मे हुई हो, उनका श्राद्ध इस तिथि को किया जाना चाहिए।
♦ नवमी:- सौभाग्यवती यानि पति के रहते ही जिनकी मृत्यु हो गई हो, उन स्त्रियों का श्राद्ध नवमी को किया जाता है। यह तिथि माता के श्राद्ध के लिए भी उत्तम मानी गई है। इसलिए इसे मातृनवमी भी कहते हैं। मान्यता है कि इस तिथि
पर श्राद्ध कर्म करने से कुल की सभी दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध हो जाता है।
♦ एकादशी और द्वादशी:- एकादशी मे वैष्णव संन्यासी का श्राद्ध करते है। अर्थात् इस तिथि को उन लोगो का श्राद्ध किए जाने का विधान है, जिन्होने संन्यास लिया हो।
♦चतुर्दशी:- इस तिथि मे शस्त्र, आत्म-हत्या, विष और दुर्घटना यानि जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो उनका श्राद्ध किया जाता है। जबकि बच्चो का श्राद्ध कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को करने के लिए कहा गया है।
♦ सर्वपितृमोक्ष अमावस्या:-
यदि किसी कारण से पितृपक्ष की अन्य तिथियों पर पितरो का श्राद्ध करने से चूक गए है या पितरो की तिथि याद नही है, तो इस तिथि पर सभी पितरो का श्राद्ध किया जा सकता है। शास्त्र अनुसार, इस दिन श्राद्ध करने से कुल के सभी पितरो का श्राद्ध हो जाता है। यही नहीं जिनका मरने पर संस्कार नहीं हुआ हो, उनका भी अमावस्या तिथि को ही श्राद्ध करना चाहिए। बाकी तो जिनकी जो तिथि हो, श्राद्धपक्ष मे उसी तिथि पर श्राद्ध करना चाहिए। यही उचित भी है।
♦ पितृपक्ष मे विशेष ध्यान रखे इन बातो का –
♦ पिंडदान करने के लिए सफेद या पीले वस्त्र ही धारण करे।
♦ जो इस प्रकार श्राद्धादि कर्म संपन्न करते है, वे समस्त मनोरथो को प्राप्त करते है और अनंत काल तक स्वर्ग का उपभोग करते है।
♦ विशेष:- श्राद्ध कर्म करने वालों को निम्न मंत्र तीन बार अवश्य पढ़ना चाहिए। यह मंत्र ब्रह्मा जी द्वारा रचित आयु, आरोग्य, धन, लक्ष्मी प्रदान करने वाला अमृतमंत्र है—-
♦ श्राद्ध सदैव दोपहर के समय ही करे। प्रातः एवं सायंकाल के समय श्राद्ध निषेध कहा गया है। हमारे धर्म-ग्रंथों में पितरों को देवताओं के समान संज्ञा दी गई है।
♦‘सिद्धांत शिरोमणि’ ग्रंथ के अनुसार चंद्रमा की ऊध्र्व कक्षा मे पितृलोक है जहां पितृ रहते है।
♦पितृ लोक को मनुष्य लोक से आंखों द्वारा नहीं देखा जा सकता। जीवात्मा जब इस स्थूल देह से पृथक होती है उस स्थिति को मृत्यु कहते है।
♦यह भौतिक शरीर 27 तत्वो के संघात से बना है। स्थूल पंच महाभूतो एवं स्थूल कर्मेन्द्रियो को छोड़ने पर अर्थात मृत्यु को प्राप्त हो जाने पर भी 17 तत्वो से बना हुआ सूक्ष्म शरीर विद्यमान रहता है।
♦हिंदू मान्यताओ के अनुसार एक वर्ष तक प्रायः सूक्ष्म जीव को नया शरीर नहीं मिलता।
♦ मोहवश वह सूक्ष्म जीव स्वजनो व घर के आसपास घूमता रहता है।
♦श्राद्ध कार्य के अनुष्ठान से सूक्ष्म जीव को तृप्ति मिलती है इसीलिए श्राद्ध कर्म किया जाता है।
♦श्रद्धापूर्वक श्राद्ध मे दिए गए ब्राह्मण भोजन का सूक्ष्म अंश परिणत होकर उसी अनुपात व मात्रा मे प्राणी को मिलता है जिस योनि में वह प्राणी है।
♦ पितृ लोक मे गया हुआ प्राणी श्राद्ध मे दिए हुए अन्न का स्वधा रूप मे परिणत हुए को खाता है।
♦ यदि शुभ कर्म के कारण मर कर पिता देवता बन गया तो श्राद्ध मे दिया हुआ अन्न उसे अमृत मे परिणत होकर देवयोनि मे प्राप्त होगा। गंधर्व बन गया हो तो वह अन्न अनेक भोगो के रूप मे प्राप्त होता है।
♦पशु बन जाने पर घास के रूप में परिवर्तित होकर उसे तृप्त करेगा। यदि नाग योनि मिली तो श्राद्ध का अन्न वायु के रूप में तृप्ति को प्राप्त होगा।
♦दानव, प्रेत व यक्ष योनि मिलने पर श्राद्ध का अन्न नाना अन्न पान और भोग्यरसादि के रूप में परिणत होकर प्राणी को तृप्त करेगा।
♦सच्चे मन, विश्वास, श्रद्धा के साथ किए गए संकल्प की पूर्ति होने पर पितरो को आत्मिक शांति मिलती है। तभी वे हम पर आशीर्वाद रूपी अमृत की वर्षा करते है।
♦ श्राद्ध की संपूर्ण प्रक्रिया दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके की जाती है।
♦ इस अवसर पर तुलसी दल का प्रयोग अवश्य करना चाहिए।
♦ गया, पुष्कर, प्रयाग, हरिद्वार आदि तीर्थों में श्राद्ध करने का विशेष महत्व है।
♦ जिस दिन श्राद्ध करे उस दिन पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करे। श्राद्ध के दिन क्रोध, चिड़चिड़ापन और कलह से दूर रहे।
♦ पितरो को भोजन सामग्री देने के लिए मिट्टी के बर्तनो का प्रयोग किया जाए तो के पत्ते या लकड़ी के बर्तन का भी प्रयोग किया जा सकता है।