हमारे ज्योतिष ग्रंथो के अनुसार नाड़ी तीन प्रकार की होती है, इन नाड़ियो के नाम है आदि नाड़ी, मध्य नाड़ी, अन्त्य नाड़ी। इन नाड़ियो को किस प्रकार विभाजित किया गया है।
♦ आइये इसे जाने :—
1.आदि नाड़ी: ज्येष्ठा, मूल, आर्द्रा, पुनर्वसु, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, शतभिषा, पूर्वा भाद्र और अश्विनी नक्षत्रों की गणना आदि या आद्य नाड़ी मे की जाती है।
2.मध्य नाड़ी: पुष्य, मृगशिरा, चित्रा, अनुराधा, भरणी, घनिष्ठा, पूर्वाषाठा, पूर्वा फाल्गुनी और उत्तरा भाद्र नक्षत्रों की गणना मध्य नाड़ी मे की जाती है।
3.अन्त्यनाड़ी: स्वाति, विशाखा, कृतिका, रोहणी, आश्लेषा, मघा, उत्तराषाढ़ा, श्रावण और रेवती नक्षत्रो की गणना अन्त्य नाड़ी मे की जाती है। अब जानिए की नाड़ी दोष किन स्थितियों मे लगता है ??
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जब वर और कन्या दोनो के नक्षत्र एक नाड़ी मे हो तब यह दोष लगता है। सभी दोषो मे नाड़ी दोष को सबसे अशुभ माना जाता है क्योंकि इस दोष के लगने से सर्वाधिक गुणांक यानी 8 अंक की हानि होती है। इस दोष के लगने पर शादी की बात आगे बढ़ाने की इज़ाज़त नहीं दी जाती है। आचार्य वाराहमिहिर के अनुसार यदि वर-कन्या दोनो की नाड़ी आदि हो तो उनका विवाह होने पर वैवाहिक सम्बन्ध अधिक दिनो तक कायम नहीं रहता अर्थात उनमे अलगाव हो जाता है। अगर कुण्डली मिलने पर कन्या और वर दोनों की कुण्डली मे मध्य नाड़ी होने पर शादी की जाती है तो दोनो की मृत्यु हो सकती है, इसी क्रम मे अगर वर वधू दोनो की कुण्डली मे अन्त्य नाड़ी होने पर विवाह करने से दोनो का जीवन दु:खमय होता है। इन स्थितियो से बचने के लिए ही तीनो समान नाड़ियो मे विवाह की आज्ञा नही दी जाती है।
महर्षि वशिष्ठ के अनुसार नाड़ी दोष होने पर यदि वर-कन्या के नक्षत्रो मे नज़दीक होने पर विवाह के एक वर्ष के भीतर कन्या की मृत्यु हो सकती है अथवा तीन वर्षों के अन्दर पति की मृत्यु होने से विधवा होने की संभावना रहती है। आयुर्वेद के अन्तर्गतआदि, मध्य और अन्त्य नाड़ियो को वात(Mystique), पित्त (Bile) एवं कफ(Phlegem) की संज्ञा दी गयी है। नाड़ी मानव के शारीरिक स्वस्थ्य को भी प्रभावित करती है। मान्यता है कि इस दोष के होने पर उनकी संतान मानसिक रूप से अविकसित एवं शारीरिक रूप से अस्वस्थ होते है।
♦ जानिए की किन स्थितियो मे नाड़ी दोष नहीं लगता है:–
1. यदि वर-वधू का जन्म नक्षत्र एक ही हो परंतु दोनो के चरण पृथक हो तो नाड़ी दोष नहीं लगता है।
2. यदि वर-वधू की एक ही राशि हो तथा जन्म नक्षत्र भिन्न हो तो नाड़ी दोष से व्यक्ति मुक्त माना जाता है।
3. वर-वधू का जन्म नक्षत्र एक हो परंतु राशियां भिन्न-भिन्न हो तो नाड़ी दोष नहीं लगता है।
♦ नाड़ी दोष का उपचार:
पीयूष धारा के अनुसार स्वर्ण दान, गऊ दान, वस्त्र दान, अन्न दान, स्वर्ण की सर्पाकृति बनाकर प्राणप्रतिष्ठा तथा महामृत्युञ्जय जप करवाने से नाड़ी दोष शान्त हो जाता है।
आप सभी ज्योतिषाचार्य यह भली भांति जानते है की कुंडली मिलान के लिए प्रयोग की जाने वाली गुण मिलान की प्रक्रिया मे बनने वाले दोषो मे से नाड़ी दोष को सबसे अधिक अशुभ दोष माना जाता है तथा अनेक वैदिक ज्योतिषी यह मानते है कि कुंडली मिलान मे नाड़ी दोष के बनने से बहुत निर्धनता होना, संतान न होना तथावर अथवा वधू दोनो मे से एक अथवा दोनों की मृत्यु हो जाना जैसी भारी मुसीबते भी आ सकतीं है। इसीलिए अनेक ज्योतिषी कुंडली मिलान के समय नाड़ी दोष बनने पर ऐसे लड़के तथा लड़की का विवाह करने से मना कर देते है। आज के इस लेख मे हम किसी कुंडली मे नाड़ी दोष के निर्माण, इसके वास्तविक फल तथा इसके महत्व के बारे मे चर्चा करेंगे तथा यह विचार भी करेंगे कि क्या नाड़ी दोष वास्तव मे ही इतनी गंभीर समस्याओ को जन्म दे सकता है या फिर इस दोष के बारे मे बढ़ा चढ़ा कर लिखा गया है। आप सबसे पहले यह जान लें कि नाड़ी दोष वास्तव मे होता क्या है तथा ये दोष बनता कैसे है। गुण मिलान की प्रक्रिया मे आठ कूटों का मिलान किया जाता है जिसके कारण इसे अष्टकूट मिलान भी कहा जाता है तथा ये आठ कूट है, वर्ण, वश्य, तारा, योनि, ग्रह मैत्री, गण, भकूट और नाड़ी तथा आइए अब देखें कि नाड़ी नाम का यह कूट वास्तव मे होता क्या है।
नाड़ी तीन प्रकार की होती है, आदि नाड़ी, मध्या नाड़ी तथा अंत नाड़ी प्रत्येक व्यक्ति की जन्म कुंडली मे चन्द्रमा की किसी नक्षत्र विशेष मे उपस्थिति से उस व्यक्ति की नाड़ी का पता चलता है। नक्षत्र संख्या मे कुल 27 होते है तथा इनमे से किन्हीं 9 विशेष नक्षत्रों मे चन्द्रमा के स्थित होने से कुंडली धारक की कोई एक नाड़ी होती है।
♦ ध्यान रखे की चन्द्रमा के निम्नलिखित नक्षत्रों मे स्थित होने से कुंडली धारक की आदि नाड़ी होती है :– अश्विनी, आर्द्रा, पुनर्वसु, उत्तर फाल्गुणी, हस्त, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा तथा पूर्व भाद्रपद।
♦ ध्यान रखे की चन्द्रमा के निम्नलिखित नक्षत्रो मे स्थित होने से कुंडली धारक की मध्य नाड़ी होती है :– भरणी, मृगशिरा, पुष्य, पूर्व फाल्गुणी, चित्रा, अनुराधा, पूर्वाषाढ़ा, धनिष्ठा तथा उत्तर भाद्रपद।
♦ ध्यान रखे की चन्द्रमा के निम्नलिखित नक्षत्रो मे स्थित होने से कुंडली धारक की अंत नाड़ी होती है :
कृत्तिका, रोहिणी, श्लेषा, मघा, स्वाती, विशाखा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण तथा रेवती।गुण मिलान करते समय यदि वर और वधू की नाड़ी अलग-अलग हो तो उन्हे नाड़ी मिलान के 8 मे से 8 अंक प्राप्त होते है, जैसे कि वर की आदि नाड़ी तथा वधू की नाड़ी मध्य अथवा अंत। किन्तु यदि वर और वधू की नाड़ी एक ही हो तो उन्हें नाड़ी मिलान के 8 मे से 0 अंक प्राप्त होते है तथा इसे नाड़ी दोष का नाम दिया जाता है। नाड़ी दोष की प्रचलित धारणा के अनुसार वर-वधू दोनों की नाड़ी आदि होने की स्थिति मे तलाक या अलगाव की प्रबल संभावना बनती है तथा वर-वधू दोनो की नाड़ी मध्य या अंत होने से वर-वधू मे से किसी एक या दोनो की मृत्यु की प्रबल संभावना बनती है।
♦ नाड़ी दोष को निम्नलिखित स्थितियो मे निरस्त माना जाता है :
यदि वर-वधू दोनो का जन्म एक ही नक्षत्र के अलग-अलग चरणो मे हुआ हो तो वर-वधू की नाड़ी एक होने के पश्चात भी नाड़ी दोष नहीं बनता। यदि वर-वधू दोनो की जन्म राशि एक ही हो किन्तु नक्षत्र अलग-अलग हों तो वर-वधू की नाड़ी एक होने के पश्चात भी नाड़ी दोष नहीं बनता। यदि वर-वधू दोनो का जन्म नक्षत्र एक ही हो किन्तु जन्म राशियां अलग-अलग हो तो वर-वधू की नाड़ी एक होने के पश्चात भी नाड़ी दोष नहीं बनता। आइए अब किसी कुंडली मे नाड़ी दोष के निर्माण का वैज्ञानिक ढंग से तथा किसी इस दोष के साथ जुड़े अशुभ फलो का व्यवहारिक दृष्टि से विशलेषण करे तथा इस दोष के निर्माण तथा फलादेश की सत्यता की जांच करे। जैसा कि हम जान गए है कि कुल मिला कर तीन नाड़ियां होतीं है तथा प्रत्येक व्यक्ति की इन्हीं तीन नाड़ियों मे से एक नाड़ी होती है, इस लिए प्रत्येक पुरुष की प्रत्येक तीसरी स्त्री के समान नाड़ी होगी जिससे प्रत्येक पुरुष तथा स्त्री के लिए हर तीसरा पुरुष या स्त्री केवल नाड़ी दोष के बनने के कारण ही प्रतिकूल हो जाएगा जिसके चलते लगभग 33% विवाह तो नाड़ी दोष के कारण ही संभव नहीं हो पायेंगे। उदाहरण के लिए यदि किसी पुरुष की नाड़ी आदि है तो लगभग प्रत्येक तीसरी स्त्री की नाड़ी भी आदि होने के कारण इस प्रकार के कुंडली मिलान मे नाड़ी दोष बन जाएगा जिसके चलते विवाह न करने का परामर्श दिया जाता है। जैसा कि हम सभी जानते है कि भारतवर्ष के अतिरिक्त अन्य लगभग किसी भी देश मे कुंडली मिलान अथवा गुण मिलान जैसी प्रक्रियाओं का प्रयोग नहीं किया जाता इसलिए इन देशों मे होने वाला प्रत्येक तीसरा विवाह नाड़ी दोष से पीड़ित है जिसके चलते इन देशो मे होने वाले विवाहो मे तलाक अथवा पति पत्नि मे से किसी एक की मृत्यु की दर केवल नाड़ी दोष के कारण ही 33% होनी चाहिए।
यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि नाड़ी दोष कुंडलीं मिलान के समय बनने वाले अनेक दोषों मे से केवल एक दोष है तथा कुंडली मिलान मे बनने वाले अन्य कई दोषों जैसे कि भकूट दोष, गण दोष, काल सर्प दोष, मांगलिक दोष आदि मे से प्रत्येक दोष भी अपनी प्रचलित परिभाषा के अनुसार लगभग 50% कुंडली मिलान के मामलो मे तलाक तथा वैध्वय जैसीं समस्याएं पैदा करने मे पूरी तरह से सक्षम है।
इन सभी दोषो को भी ध्यान मे रखते हुए यह कहा जा सकता है कि संसार मे होने वाला लगभग प्रत्येक विवाह ही तलाक अथवा वैध्वय जैसी समस्याओं का सामना करेगा क्योंकि अपनी प्रचलित परिभाषाओं के अनुसार इनमे से कोई एक अथवा एक से अधिक दोष लगभग प्रत्येक कुंडलीं मिलान के मामले मे बन जाएगा। क्योंकि यह तथ्य वास्तविकता से बहुत परे है इसलिए यह मान लेना चाहिए कि नाड़ी दोष तथा ऐसे अन्य दोष अपनी प्रचलित परिभाषाओ के अनुसार क्षति पहुंचाने मे सक्षम नहीं है। इसलिए कुंडली मिलान के किसी मामले मे केवल नाड़ी दोष का उपस्थित होना अपने आप मे ऐसे विवाह को तोड़ने में सक्षम नहीं है तथा ऐसा होने के लिए कुंडली मे किसी ग्रह द्वारा बनाया गया कोई अन्य गंभीर दोष अवश्य होना चाहिए। मैने अपने ज्योतिष के कार्यकाल मे हजारों कुंडलियों का मिलान किया है तथा यह देखा है कि केवल नाड़ी दोष के उपस्थित होने से ही विवाह मे कोई गंभीर समस्याएं पैदा नहीं होतीं तथा ऐसे बहुत से विवाहित जोड़ों की कुंडलियां मेरे पास हैं जहां पर कुंडली मिलान के समय नाड़ी दोष बनता है किन्तु फिर भी ऐसे विवाह वर्षों से लगभग हर क्षेत्र मे सफल है जिसका कारण यह है कि लगभग इन सभी मामलो मे ही वर वधू की कुंडलियों मे विवाह के शुभ फल बताने वाले कोई योग हैं जिनके कारण नाड़ी दोष का प्रभाव इन कुंडलियों से लगभग समाप्त हो गया है।
यह बात ध्यान देने योग्य है कि किसी भी कुंडली मे किसी ग्रह द्वारा बनाया गया विवाह संबंधी कोई शुभ या अशुभ योग गुण मिलान के कारण बनने वाले दोषों की तुलना मे बहुत अधिक प्रबल होता है तथा दोनो का टकराव होने की स्थिति मे लगभग हर मामले मे ही विजय कुंडली मे बनने वाले शुभ अथवा अशुभ योग की ही होती है। इसलिए कुंडली मे विवाह संबंधी बनने वाला मांगलिक योग अथवा मालव्य योग जैसा कोई शुभ योग गुण मिलान मे नाड़ी दोष अथवा अन्य भी दोष बनने के पश्चात भी जातक को सफल तथा सुखी वैवाहिक जीवन देने मे सक्षम है जबकि कुंडली मे विवाह संबंधी बनने वाले मांगलिक दोष अथवा काल सर्प दोष जैसे किसी भयंकर दोष के बन जाने से नाड़ी मिलने के पश्चात तथा 36 मे से 30 या इससे भी अधिक गुण मिलने के पश्चात भी ऐसे विवाह टूट जाते है अथवा गंभीर समस्याओ का सामना करते है।
इसलिए विवाह के लिए उपस्थित संभावित वर वधू को केवल नाड़ी दोष के बन जाने के कारण ही आशा नहीं छोड़ देनी चाहिए तथा अपनी कुंडलियों का गुण मिलान के अलावा अन्य विधियो से पूर्णतया मिलान करवाना चाहिए क्योंकि इन कुंडलियों के आपस मे मिल जाने से नाड़ी दोष अथवा गुण मिलान से बनने वाला ऐसा ही कोई अन्य दोष ऐसे विवाह को कोई विशेष हानि नहीं पहुंचा सकता। इसके पश्चात एक अन्य शुभ समाचार यह भी है कि कुंडली मिलान मे बनने वाले नाड़ी दोष का निवारण अधिकतर मामलो मे ज्योतिष के उपायो से सफलतापूर्वक किया जा सकता है जो हमे इस दोष से न डरने का एक और कारण देता है।