जानिए घर मे शंख रखने और बजाने के लाभ, (जानिए शंख और स्वास्थ्य का सम्बन्ध )
हमारी भारतीय सनातन संस्कृती और बौद्ध धर्म मे शंख का महत्व काफ़ी ज़्यादा है। पूजा पाठ मे तो इसे इस्तेमाल किया ही जाता है, साथ ही इसकी पूजा भी की जाती है। हर अच्छी शुरुआत से पहले इसे बजाना शुभ माना जाता है। साथ ही ये भी मान्यता है कि महाभारत की शुरूआत भी श्री कृष्ण के शंखनाद से ही हुई थी। गरूड़ पुराण मे ये भी लिखा है कि किसी भी मंदिर के पट खोलने से पहले शंखनाद करना आवश्यक होता है और इसके बाद ही पूजा की शुरुआत हो सकती है। शंखो को हमेशा से वाद्य यंत्र के स्वरुप मे पेश किया गया है। माना जाता है कि इनका सबसे ज्यादा इस्तेमाल युद्ध को शुरू या समाप्त करने के लिए होता था।
समुद्र मंथन के समय मिले 14 रत्नों मे छठवां रत्न शंख था। शंखनाद से निकली ध्वनि मे अ-उ-म् (ओम्) अथवा ‘ओम्’ शब्द उद्धोषित होता है जहां तक ‘ओम्’ का नाद पहुंचता है वहां तक नकारात्मऊर्जा नष्ट हो जाती है। विष्णु पुराण के अनुसार माता लक्ष्मी समुद्रराज की पुत्री है तथा शंख उनका सहोदर भाई है। अत यह भी मान्यता है कि जहाँ शंख है, वहीं लक्ष्मी का वास होता है। स्वर्गलोक मे अष्टसिद्धियों एवं नवनिधियों मे शंख का महत्वपूर्ण स्थान है। शंख को समुद्रज, कंबु, सुनाद, पावनध्वनि, कंबु, कंबोज, अब्ज, त्रिरेख, जलज, अर्णोभव, महानाद, मुखर, दीर्घनाद, बहुनाद, हरिप्रिय, सुरचर, जलोद्भव, विष्णुप्रिय, धवल, स्त्रीविभूषण, पाञ्चजन्य, अर्णवभव आदि नामों से भी जाना जाता है |
अथर्ववेद के अनुसार, शंख से राक्षसो का नाश होता है- शंखेन हत्वा रक्षांसि। भागवत पुराण मे भी शंख का उल्लेख हुआ है। यजुर्वेद के अनुसार युद्ध मे शत्रुओं का हृदय दहलाने के लिए शंख फूंकने वाला व्यक्ति अपेक्षित है। अद्भुत शौर्य और शक्ति का संबल शंखनाद से होने के कारण ही योद्धाओं द्वारा इसका प्रयोग किया जाता था। शंख को नादब्रह्म और दिव्य मंत्र की संज्ञा दी गई है। शंख की ध्वनि को ‘ॐ’ की ध्वनि के समकक्ष माना गया है। शंखनाद से आपके आसपास की नकारात्मक ऊर्जा का नाश तथा सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। हमारे धर्म ग्रंथो के अनुसार शंख की उत्पत्ति सृष्टी आत्मा से, आत्मा आकाश से, आकाश वायु से, वायु अग्रि से, आग जल से और जल पृथ्वी से उत्पन्न हुआ है और इन सभी तत्वों से मिलकर शंख की उत्पत्ति मानी गई है।
♦ ये है श्रेष्ठ शंख के लक्षण :
शंखस्तुविमल: श्रेष्ठश्चन्द्रकांतिसमप्रभ:
अशुद्धोगुणदोषैवशुद्धस्तु सुगुणप्रद:
अर्थात निर्मल व चन्द्रमा की कांति के समान वाला शंख श्रेष्ठ होता है जबकि अशुद्ध अर्थात मग्न शंख गुणदायक नहीं होता। गुणों वाला शंख ही प्रयोग मे लाना चाहिए। क्षीरसागर मे शयन करने वाले सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु के एक हाथ मे शंख अत्यधिक पावन माना जाता है।
♦ शंख की पूजा इस मंत्र के साथ की जाती है :
“”त्वं पुरा सागरोत्पन्न:विष्णुनाविघृत:करे देवैश्चपूजित:
सर्वथैपाञ्चजन्यनमोऽस्तुते।””
हिंदू धर्म मे शंख को एक पवित्र धार्मिक पतीक माना जाता है। हिन्दू धर्म मे शंख को बहुत ही शुभ माना गया है। इसका कारण यह है कि माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु दोनों ही अपने हाथों मे शंख धारण करते है। इसलिए एक आम धारणा है कि, जिस घर मे शंख होता है उस घर मे सुख-समृद्धि आती है। पुराणो के अनुसार चन्द्रमा और सूर्य के समान ही शंख देवस्वरूप है| इसके बीच वाले भाग मे वरुण, पिछले भाग मे ब्रह्मा और आगे के भाग मे गंगा और सरस्वती का निवास होता है। शंख से शिवलिंग, कृष्ण या लक्ष्मी जी पर जल या फिर पंचामृत से अभिषेक करने पर देवता प्रसन्न हो जाते है। यह भी माना जाता है कि शंख के स्पर्श से साधारण जल भी गंगाजल जैसा ही पवित्र हो जाता है। मंदिर के शंख मे जल भरकर ही भगवान की आरती की जाती है। आरती के बाद शंख का ही जल भक्तों पर छिड़का जाता है जिससे वे प्रसन्न होते है। जो व्यक्ति भगवान श्री कृष्ण को शंख मे फूल, जल और तिलक रखकर उन्हें अर्ध्य देता है उसको अपार पुण्य की प्राप्ति होती है। ब्रह्मवैवर्त पुराण मे कहा गया है कि शंख मे जल रखने और इसे छिड़कने से वातावरण शुद्ध होता है| शंख मे गाय का दूध रखकर इसका छिड़काव घर मे किया जाए तो इससे भी सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
सनातन धर्म की कई ऐसी बाते है, जो न केवल आध्यात्मिक रूप से, बल्कि कई दूसरे तरह से भी फायदेमंद है। शंख रखने, बजाने व इसके जल का उचित इस्तेमाल करने से कई तरह के लाभ होते है। कई फायदे तो सीधे तौर पर सेहत से जुड़े है। एक मान्यता के अनुसार कोई भी पूजा, हवन, यज्ञ आदि शंख के उपयोग के बिना पूरा नहीं माना जाता है। शंख व्यक्ति को उसकी मनोकामना पूरी करने मे बहुत मदद करता है तथा जीवन को भी खुशियों से भर देता है शंख को विजय, सुख, यश, कीर्ति तथा लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है। पूजा-पाठ मे शंख बजाने से वातावरण पवित्र होता है। जहां तक इसकी आवाज जाती है, इसे सुनकर लोगों के मन मे सकारात्मक विचार पैदा होते हे। अच्छे विचारों का फल भी स्वाभाविक रूप से बेहतर ही होता है। शंख की आवाज लोगों को पूजा-अर्चना के लिए प्रेरित करती है। ऐसी मान्यता है कि शंख की पूजा से कामनाएं पूरी होती है| इससे दुष्ट आत्माएं पास नहीं फटकती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि शंख की आवाज से वातावरण मे मौजूद कई तरह के जीवाणुओं-कीटाणुओं का नाश हो जाता है। कई टेस्ट से इस तरह के नतीजे मिले है। शंख से वास्तुदोष भी मिटाया जा सकता है। शंख को किसी भी दिन लाकर पूजा स्थान पर पवित्र करके रख ले और प्रतिदिन शुभ मुहूर्त मे इसकी धूप-दीप से पूजा की जाए तो घर मे वास्तुदोष का प्रभाव कम हो जाता है।
पूजा-पाठ मे भी शंख बजाने का नियम है। यदि इसके धार्मिक पहलू को दरकिनार भी कर दे तो भी घर मे शंख रखने और इसे नियमित तौर पर बजाने के ऐसे कई फायदे है, जो सीधे तौर पर हमारी सेहत से जुड़े है। लेकिन शायद ही ऐसे लोग होंगे जो इससे होने वाले लाभो के बारे मे जानते होंगे। यह बजाने के साथ ही सेहत के लिए भी काफी फायदेमंद होता है। विश्व का सबसे बड़ा शंख केरल राज्य के गुरुवयूर के श्रीकृष्ण मंदिर मे सुशोभित है, जिसकी लंबाई लगभग आधा मीटर है तथा वजन दो किलोग्राम है। विज्ञान भी शंखनाद की उपयोगिता को मानता है। इसके उपयोग से फेफड़े स्वस्थ रहते है और दिल की किसी भी तरह की बीमारी का डर खत्म होता है। अगर आपको रक्तचाप की समस्या है तो उसका भी रामबाण इलाज है शंखनाद। शंखनाद के भी दो प्रकार होते है—पहला प्रकार होता है पूजा से पहले शंखनाद करना। इससे ही पूजा की शुरुआत होती है। इसे हमेशा पूजा स्थान के दाईं तरफ़ से बजाना चाहिए। साथ ही दूसरा शंखनाद पूजा के खत्म होने पर होता है, जो बाईं तरफ़ से बजाया जाता है |
शंखनाद तो काफ़ी लोग करते हैं, लेकिन इसका सही तरीका बहुत कम लोगों को ही पता होता है। शंखनाद करते वक़्त हमेशा इसे बजाने वाले का सिर ऊपर की तरफ़ होना चाहिए। शंखनाद करने से पहले पानी बिलकुल नहीं पीना चाहिए. इससे आपके मुंह की गंदगी शंक मे चली जाएगी और शंख अशुद्ध माना जाएगा। इसे बजाने वाले का शरीर स्थिर होना चाहिए। इसे बजाने के लिए गले पर नहीं बल्कि नाभी पर ज़ोर देना होता है। तभी इसकी ध्वनि मे कंपन आता है जिससे इसकी नाद से फ़ायदा मिलता है। रात को शंख मे थोडा पानी भरकर रख दे और दुसरे दिन सुबह वो पानी पीने से ,बोली मे हकलाने की समस्या से छुटकारा मिलता है। शंख बजाने से गला खुलता है और आवाज अच्छी होती है। जो लोग तुतलाके बोलते है उन्हें शंख बजाना चाहिए। शंख बजाने से आत्मविश्वास बढता है। ऋषि श्रृंग के अनुसार बच्चों के शरीर पर छोटे-छोटे शंख बांधने व शंख जल पिलाने से वाणी-दोष दूर हाते है। पुराणो मे उल्लेख मिलता है कि मूक व श्वास रोगी हमेशा शंख बजाए तो बोलने की शक्ति पा सकते हैं।वास्तुशास्त्र के मुताबिक भी शंख मे ऐसे कई गुण होते है, जिससे घर मे पॉजिटिव एनर्जी आती है. शंख की आवाज से ‘सोई हुई भूमि’ जाग्रत होकर शुभ फल देती है। तानसेनने अपने आरंभिक दौर मे शंख बजाकर ही गायन शक्ति प्राप्त की थी।
द्विधासदक्षिणावर्तिर्वामावत्तिर्स्तुभेदत:
दक्षिणावर्तशंकरवस्तु पुण्ययोगादवाप्यते
यद्गृहे तिष्ठति सोवै लक्ष्म्याभाजनं भवेत्
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♦ शंखनाद करते समय इनका रखे ध्यान :
1. जिस शंख को बजाया जाता है उसे पूजा के स्थान पर कभी नहीं रखा जाता ।
2. जिस शंख को बजाया जाता है उससे कभी भी भगवान को जल अर्पण नहीं करना चाहिए।
3. एक मंदिर मे या फ़िर पूजा स्थान पर कभी भी दो शंख नहीं रखने चाहिए।
4. पूजा के दौरान शिवलिंग को शंख से कभी नहीं छूना चाहिए।
5. भगवान शिव और सूर्य देवता को शंख से जल अर्पण कभी भी नहीं करना चाहिए।
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♦ जानिए शंख के प्रकार :
वैसे तो शंख कई प्रकार के होते है और सभी की विशेषता व पूजा करने की विधि भी अलग अलग ही होती है। कैलाश मानसरोवर, मालद्वीप, लक्षद्वीप, कोरामंडल द्वीप समूह, श्रीलंका एवं भारत मे उच्च श्रेणी के श्रेष्ठ शंख पाये जाते है और ये तीन प्रकार के होते है :-
1. गणेश शंख :
ये पूज्य देव गणेश के आकार का ही होता है इसलिए इसको गणेश शंख ही कहा जाता है। इसे हम प्रकृति का चमत्कार या प्रभु की कृपा भी कह सकते है कि इसकी आकृति और शक्ति बिल्कुल गणेश जी के जैसी ही होती है। वे व्यक्ति निश्चित रूप से बहुत ही ज्यादा सौभाग्यशाली होते है जिनके घर मे गणेश शंख का पूजन किया जाता है। गणेश जी की कृपा से सभी प्रकार की परेशानियाँ दूर हो जाती है आर्थिक, व्यापारिक समस्याओं से मुक्ति पाने का श्रेष्ठ उपाय श्री गणेश शंख ही है, इसे चार वर्णों मे बांटा गया है जिसका आधार इसका रंग है इस दृष्टि से शंख चार रंग का होता है :- सफेद, गाजरी व भूरा, हल्का पीले व स्लेटी रंग का होता है।
2. वामावर्ती शंख :
वामावर्ती शंख का उपयोग सबसे ज्यादा किया जाता है इसका आकार बिल्कुल श्री यंत्र की तरह ही होता है। इसे प्राकृतिक श्री यंत्र भी माना जाता है जिस भी घर मे पूरे विधि विधान से इसकी पूजा की जाती है, वहाँ पर लक्ष्मी जी सदा वास करती है। इसे दो प्रकारों से सीधे होठों से व धातु के बेलन पर रखकर बजाया जाता है, इस शंख की आवाज़ बहुत ही सुरीली होती है। विद्या की देवी सरस्वती भी शंख धारण करती है वे खुद भी विणा शंख की पूजा करती है और यह भी माना जाता है कि इसकी पूजा करने से या इसके जल को पीने से मंद बुद्धि वाला इन्सान भी ज्ञान से परिपूर्ण हो जाता है।
3. दक्षिणावर्ती शंख :
भगवान विष्णु खुद भी अपने दाहिने हाथ मे दक्षिणावर्ती शंख धारण करते है। पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन के समय यह शंख निकला था जिसे स्वयं भगवान विष्णु जी ने धारण किया था। यह एक ऐसा शंख है, जिसको बजाया नहीं जाता है सिर्फ पूजा के स्थान पर ही रखा जाता है। इसे सर्वाधिक शुभ भी माना जाता है।
4. गोमुखी शंख :
इस शंख की आकृति गाय के मुख के समान बहुत ही सुंदर होती है। इसे शिव पावर्ती का भी स्वरूप माना जाता है, धन की प्राप्ति तथा अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए इसकी स्थापना उत्तर की ओर मुँह करके की जाती है। यह भी माना जाता है कि इसमे रखा पानी पीने से गाय की हत्या के पाप से मुक्ति मिलती है और इसको कामधेनु शंख भी कहा जाता है।
5. विष्णु शंख :
यह शंख सफ़ेद रंग और गरुड़ की आकृति के समान होता है। इसे वैष्णव संप्रदाय के व्यक्ति विष्णु स्वरूप मानकर अपने अपने घरों मे रखते है। माना जाता है कि जहाँ विष्णु होते है वहां लक्ष्मी भी स्थित होती है। इसलिए जिस भी घर मे इस शंख की स्थापना होती है उसमे लक्ष्मी और नारायण का वास हमेशा रहता है। एक और मान्यता यह भी है कि इस शंख से रोहिणी, चित्रा व स्वाति नक्षत्रों मे गंगाजल भरकर और मंत्र का जप करके, उस जल को किसी गर्भवती महिला को पिलाने से सुंदर,ज्ञानवान व स्वस्थ संतान की प्राप्ति होती है।
6. पांचजन्य शंख :
यह भगवान श्री कृष्ण का ही रूप है इसको विजय व यश का प्रतीक माना गया है इसमे पांच उँगलियों की आकृति होती है। घर मे किसी भी प्रकार का वास्तु दोष चल रहा है तो उसी से मुक्ति पाने के लिए इसकी स्थापना की जाती है। यह राहू और केतु के दुष्प्रभाव को भी कम करने मे मदद करता है। भगवान कृष्ण के पास पाञ्चजन्य शंख था जिसकी ध्वनि कई किलोमीटर तक पहुंच जाती थी।
पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जय:।
पौण्ड्रं दध्मौ महाशंखं भीमकर्मा वृकोदर:।। -महाभारत
भगवान श्रीकृष्ण के पास पाञ्चजन्य शंख था। कहते है कि यह शंख आज भी कहीं मौजूद है। इस शंख के हरियाणा के करनाल मे होने के बारे मे कहा जाता रहा है। माना जाता है कि यह करनाल से 15 किलोमीटर दूर पश्चिम मे काछवा व बहलोलपुर गांव के समीप स्थित पराशर ऋषि के आश्रम मे रखा था, जहां से यह चोरी हो गया। यहां हिन्दू धर्म से जुड़ी कई बेशकीमती वस्तुएं थीं।
7. अन्नपूर्णा शंख :
यह अन्य सभी शंखो से बहुत ज्यादा भारी होता है इसका इस्तेमाल भाग्यवृद्धि और सुख समृद्धि की प्राप्ति के लिए किया जाता है। इस शंख मे गंगाजल भरकर सुबह सुबह सेवन करने से मन मे संतुष्टि की इच्छा उत्पन्न होने लगती है तथा व्याकुलता समाप्त होती जाती है।
8. मोती शंख :
इसका आकार बहुत ही छोटा और बिल्कुल मोती के आकार का ही होता है इसको भी लक्ष्मी जी की प्राप्ति के लिए दक्षिणावर्ती शंख के समान पूजाघर मे स्थापित किया जाता है। इसकी स्थापना से समृद्धि की प्राप्ति व व्यापार मे सफलता प्राप्त होती है। इसमे नियमित रूप से लक्ष्मी मंत्र का 11 बार जप अवश्य करे, ऐसा करने से लक्ष्मी जी जल्दी ही प्रसन्न होती है।
9. कौरी शंख :
कौरी शंख अत्यंत ही दुर्लभ शंख है। माना जाता है कि यह जिसके भी घर मे होता है उसका भाग्य खुला जाता है और समृद्धि बढ़ती जाती है। प्राचीनकाल से ही इस शंख का उपयोग गहने, मुद्रा और पांसे बनाने मे किया जाता रहा है। कौरी को कई जगह कौड़ी भी कहा जाता है। पीली कौड़िया घर मेंरखने से धन मे वृद्धि होती है।
10. हीरा शंख :
इसे पहाड़ी शंख भी कहा जाता है। इसका इस्तेमाल तांत्रिक लोग विशेष रूप से देवी लक्ष्मी की पूजा के लिए करते है। यह दक्षिणावर्ती शंख की तरह खुलता है। यह पहाड़ो मे पाया जाता है। इसकी खोल पर ऐसा पदार्थ लगा होता है, जो स्पार्कलिंग क्रिस्टल के समान होता है इसीलिए इसे हीरा शंख भी कहते है। यह बहुत ही बहूमुल्य माना गया है। यह स्फटिक के समान धवल, पारदर्शी व चमकीला होता है यह बहुत ही ऐष्वर्यदायक लेकिन अत्यंत कमज़ोर होता है। इसमे से हीरे के समान सात रंग निकलते है, इसका इस्तेमाल प्रेम व शुक्र दोष से रक्षा के लिए किया जाता है। इसकी स्थापना से शुक्र ग्रह की कृपा भी प्राप्त होती है।
11. टाइगर शंख :
इस शंख पर बाघ के समान धारियां होती है जो बहुत ही सुंदर दिखाई देती है। ये धारियां लाल,गुलाबी,काली व कत्थई जैसे रंग की होती है। इसकी स्थापना से आत्मविश्वास मे भी वृद्धि होती है तथा शनि, राहू और केतू ग्रह की व्याधियो से मुक्ति मिलती है।
तात्पर्य यह है कि शंख के अनेक गुण है साथ ही साथ साधक के मन मे भी तंत्र शक्ति का संचार भी होता है ये सभी गुण अध्यात्मिक भी है, वैज्ञानिक भी और औषधीय भी है इनके गुणो को देखते हुए इनकी स्थापना अवश्य करनी चाहिए। ऐसा करने से आपके पाप तो नष्ट होगे ही साथ मे हमारी मनोकामनाओं की भी पूर्ति होगी और ये सब हमारे लिए बहुत ही लाभकारी साबित होगा।
शंख के अन्य प्रकार : देव शंख, चक्र शंख, राक्षस शंख, शनि शंख, राहु शंख, पंचमुखी शंख, वालमपुरी शंख, बुद्ध शंख, केतु शंख, शेषनाग शंख, कच्छप शंख, शेर शंख, कुबार गदा शंख, सुदर्शन शंक आदि।
by Pandit Dayanand Shastri.