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जानिए शनि जयंती का महत्व और फल-

शनिवार के दिन शनि जयंती से इस पर्व का महत्व एवं फल अनंत गुणा हो जाता है।
शनि जयंती (4 जून 2016, शनिवार) को दोपहर में 1 बजे –शनि-मंगल, वृश्चिक राशि और शनि ज्येष्ठा नक्षत्र के प्रथम चरण में होंगें,वही  मंगल विशाखा नक्षत्र के चोथे चरण में रहेंगें  जबकि देवगुरु बृहस्पति, राहु के साथ सिंह राशि और पूर्व फाल्गुनी नक्षत्र के तृतीय चरण में रहेंगें।
4 जून, 2016 (शनिवार) के दिन ज्येष्ठ मास की अमावस्या को शनि जयंती मनाई जाएगी। इस दिन कृतिका नक्षत्र (यह सूर्य का नक्षत्र हैं)  और वृषभ राशि का चंद्रमा रहेगा। वृषभ राशि का स्वामी शुक्र हैं। वृषभ राशि का स्वामी शुक्र हैं। शनि, रोहिणी का संगम भी इसी दिन होगा।
*ध्यान या सावधानी रखें— शनिदेव का जन्म दोपहर के समय हुआ था, अतः शनि जयंती 4 जून को मनाना ही शास्त्र सम्मत होगा। भारत में अनेक स्थानों पर उदय तिथि के (पंचांग ) अनुसार के पर्व संपन्न होता हैं तो रविवार को भी शनि जयंती मनाई जा सकती है। इसी दिन वट सावित्री पूजन का पर्व भी मनाया जायेगा। इस दिन अमृत और सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहा है।
इस दिन शनि देव की विशेष पूजा का विधान है।शनि देव को प्रसन्न करने के लिए अनेक मंत्रों व स्तोत्रों का गुणगान किया जाता है।
♦भारतीय /वेदिक ज्योतिष और शनि देव—शनि हिन्दू ज्योतिष में नौ मुख्य ग्रहों में से एक हैं।
शनि अन्य ग्रहों की तुलना मे धीमे चलते हैं इसलिए इन्हें शनैश्चर भी कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार शनि के जन्म के विषय में काफी कुछ बताया गया है और ज्योतिष में शनि के प्रभाव का साफ़ संकेत मिलता है।।सम्पूर्ण सिद्धियों के दाता सभी विघ्नों को नष्ट करने वाले सूर्य पुत्र ‘ शनिदेव ‘। ग्रहों में सबसे शक्तिशाली ग्रह है । जिनके शीश पर अमूल्य मणियों से बना मुकुट सुशोभित है। जिनके हाथ में चमत्कारिक यन्त्र है। शनिदेव न्यायप्रिय और भक्तो को अभय दान देने वाले हैं। प्रसन्न हो जाएं तो रंक को राजा और क्रोधित हो जाएं तो राजा को रंक भी बना सकते हैं।
‘स्कन्द पुराण’ के मुताबिक सूर्य की दूसरी पत्नी छाया के गर्भ से शनि देव का जन्म हुआ था। कथा है कि शनि के श्याम वर्ण को देखकर सूर्य ने अपनी पत्नी छाया पर आरोप लगाया कि शनि उनका पुत्र नहीं है। जब शनि को इस बात का पता चला तो वह अपने पिता से क्रुद्ध हो गए। इसी के चलते शनि और सूर्य में बैर की बात कही जाती है।
शनि ने अपनी साधना और तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न कर अपने पिता सूर्य देव के समतुल्य शक्तियां अर्जित कीं। प्रत्येक अवस्था में एक संतुलन और होश को बांधे रखने में शनिदेव हमारे सहायक हैं। शनि प्रकृति में भी संतुलन बनाये रखते हैं और प्रत्येक प्राणी के साथ न्याय करते हैं। ऐसे में शनि से घबराने की आवश्यकता नहीं है बल्कि शनि को अनुकूल कार्य कर प्रसन्न किया जा सकता है।
इसलिए शनि जयन्ती के दिन हमें काला वस्त्र, लोहा, काली उड़द, सरसों का तेल दान करना चाहिए, तथा धूप, दीप, नैवेद्य, काले पुष्प से इनकी पूजा करनी चाहिए। शनि ग्रह वायु तत्व और पश्चिम दिशा के स्वामी हैं। शास्त्रों के अनुसार शनि जयंती पर उनकी पूजा-आराधना और अनुष्ठान करने से शनिदेव विशिष्ट फल प्रदान करते हैं।
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में शनि को सर्वाधिक क्रूर ग्रह माना गया है। शनि को कंटक मंद और पापी ग्रह कहकर संबोधित किया जाता है। अधिकतर ज्योतिष शास्त्रों में शनि के दुष्प्रभाव और उसकी वक्र दृष्टि को लेकर बहुत नकारात्मक लिखा गया है।
कालपुरूष सिद्धांत के अनसार शनि व्यक्ति के कर्म और लाभ क्षेत्र को प्रभावित करता है और अपनी दृष्टि से व्यक्ति के मन मस्तिष्क, प्रेम, संतान पारिवारिक सुख, दांपत्य जीवन, सेहत, दुर्धटना और आयु को प्रभावित करता है,  मानव जीवन का कोई भी पहलू ज्योतिष से अछूता नहीं है। यहां तक की व्यक्ति जो कपड़े पहनता है उस पर भी ज्योतिष अपना प्रभुत्व रखता है हम सभी अपने सामर्थ्य के अनुसार वस्त्र खरीदते हैं और उन्हें पहनते हैं।
शनि से प्रभावित व्यक्ति कई प्रकार के अनावश्यक परेशानियों से घिरे हुए रहते हैं। कार्य में बाधा का होना, कोई भी कार्य आसानी से न बनना जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ता है।
इस समस्या को कम करने हेतु शनिचरी अमावस्या के दिन शनि से संबंधित वस्तुओं का दान करना उत्तम रहता है। जिन लोगों की जन्म कुंडली में शनि का कुप्रभाव हो उन्हें शनि के पैरों की तरफ ही देखना चाहिए, जहां तक हो सके शनि दर्शन से भी बचना चाहिए।
किसी ने सच ही कहा है कि शनि जाते हुए अच्छा लगता है ना कि आते हुए। शनि जिनकी पत्रिका में जन्म के समय मंगल की राशि वृश्चिक में हो या फिर नीच मंगल की राशि मेष में हो तब शनि का कुप्रभाव अधिक देखने को मिलता है। बाकि की राशियां सिर्फ सूर्य की राशि सिंह को छोड़ शनि की मित्र, उच्च व सम होती है।
ध्यान रखे , शनि-शुक्र की राशि तुला में उच्च का होता है। शनि का फल स्थान भेद से अलग-अलग शुभ ही पड़ता है। सम में ना तो अच्छा ना ही बुरा फल देता है। मित्र की राशि में शनि मित्रवत प्रभाव देता है। शत्रु राशि में शनि का प्रभाव भी शत्रुवत ही रहता है, जो सूर्य की राशि सिंह में होता है।
सभी जानते है की वस्त्र व्यक्ति की शोभा भी बढाते हैं साथ-साथ उसके सामाजिक प्रभाव में भी वृद्धि करते हैं। आप जानते हैं की आप कोरे कपड़े पहनकर जो नए और बगैर धुले होते हैं कुछ समस्याओं को स्वयं निमंत्रण दे देते हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि का फ़ल व्यक्ति की जन्म कुंडली के बलवान और निर्बल ग्रह तय करते हैं। मनुष्य हो या देवता एक बार प्रत्येक व्यक्ति को शनि का साक्षात्कार जीवन में अवश्य होता हैं । शनि के प्रकोप को आदर्श और कर्तव्य के प्रतिमूर्ति प्रभु श्रीराम, महाज्ञानी रावण, पाण्डव और उनकी पत्नि द्रोपदी, राजा विक्रमादित्य सभी ने भोगा है। इसिलिए मनुष्य तो क्या देवी देवता भी इनके पराक्रम से घबराते है।
कहा जाता है शनिदेव बचपन में बहुत नटखट थे। इनकी अपने भाई बहनों से नही बनती थी। इसीलिये सूर्य ने सभी पुत्रों को बराबर राज्य बांट दिया। इससे शनिदेव खुश नही हुए। वह अकेले ही सारा राज्य चलाना चाहते थे, यही सोचकर उन्होनें ब्रह्माजी की अराधना की। ब्रह्माजी उनकी अराधना से प्रसन्न हुए और उनसे इच्छित वर मांगने के लिए कहा।
शनि देव बोले – मेरी शुभ दृष्टि जिस पर पड़ जाए उसका कल्याण हो जाए तथा जिस पर क्रूर दृष्टि पड़ जाए उसका सर्वनाश हो जाए। ब्रह्मा से वर पाकर शनिदेव ने अपने भाईयों का राजपाट छीन लिया। उनके भाई इस कृत्य से दुखी हो शिवजी की अराधना करने लगे। शिव ने शनि को बुला कर समझाया तुम अपनी शक्ति का सदुपयोग करो। शिवजी ने शनिदेव और उनके भाई यमराज को उनके कार्य सौंपे। यमराज उनके प्राण हरे जिनकी आयु पूरी हो चुकी है, तथा शनि देव मनुष्यों को उनके कर्मो के अनुसार दण्ड़ या पुरस्कार देंगे। शिवजी ने उन्हें यह भी वरदान दिया कि उनकी कुदृष्टि से देवता भी नहीं बच पायेंगे। माना जाता है रावण के योग बल से बंदी शनिदेव को लंका दहन के समय हनुमान जी ने बंधन मुक्त करवाया था। बंधन मुक्त होने के ऋण से मुक्त होने के लिए शनिदेव ने हनुमान से वर मांगने को कहा। हनुमान जी बोले कलियुग मे मेरी अराधना करने वाले को अशुभ फ़ल नही दोगे। शनि बोले ! ऐसा ही होगा। तभी से जो व्यक्ति हनुमान जी की पूजा करता है, वचनबद्ध होने के कारण शनिदेव अपने प्रकोप को कम करते हैं।
♦शनि —एक परिचय –
शनि ग्रह पृथ्वी से सबसे दूर का मूल ग्रह है जिसे सात मूल ग्रहों में स्थान दिया गया है | पौराणिक मान्यता के अनुसार शनि का जन्म सूर्य की द्वीतीय पत्नी छाया से हुआ है | ज्योतिषीय मतानुसार यह ग्रह पृथ्वी से ७९१०००००० मील की दूरी पर है | इसका व्यास ७१५०० मील [मतान्तर से ७४९३२ मील ] माना गया है | सूर्य से इसकी दूरी ८८६०००००० मील है | यह अपनी धुरी पर १० घंटे ३० मिनट में घूमता है जबकि सूर्य के चारो ओर परिक्रमा करने में इसे प्रायः १०७५९ दिन ६ घंटे अर्थात लगभग २९ वर्ष ६ महीने लगते हैं | यह अत्यंत मंद गति से चलने वाला ग्रह है इसी कारण इसके नाम मंद तथा शनैश्चर अर्थात शनै शनै चलने वाला रखे गए हैं | सूर्य के समीप पहुचने पर इसकी गति लगभग ६० मील प्रतिघंटा ही रह जाती है | इसके चारो ओर तीन वलय हैं और इसके १० चन्द्रमा अर्थात उपग्रह हैं | यह अन्य ग्रहों की अपेक्षा हल्का और ठंडा है |
शनि को काल पुरुष का दुःख माना गया है और ग्रह मंडल में इसे सेवक का पद प्राप्त है | यह कृष्ण वर्ण ,वृद्ध अवस्था वाला ,शूद्र जाती ,नपुंसक लिंग ,आलसी स्वरुप ,तमो गुणी, वायु तंत्व और वात प्रकृति ,दारुण और तीक्ष्ण स्वाभावि होता है | इसका धातु लोहा ,वस्त्र -जीर्ण ,अधिदेवता -ब्रह्मा ,दिशा पश्चिम है | यह तिक्त रस का ,उसर भूमि का ,शिशिर ऋतू का प्रतिनिधि माना जाता है | इसका रत्न नीलम है | यह पृष्ठोदयी ,पाप संज्ञक ,सूर्य से पराजित होता है |
यह कूड़ा घर का प्रतिनिधि ,संध्याकाळ में बली ,वेदाभ्यास में रूचि न रखने वाला ,कूटनीति -दर्शन -क़ानून जैसे विषयों में रूचि रखने वाला है |इसका वाहन भैंसा ,वार -शनिवार ,प्रतिनिधि पशु काला घोडा ,भैंसा ,बकरी हैं |
शनि का जीव शरीर में हड्डी ,पसली ,मांस पेशी ,पिंडली ,घुटने ,स्नायु ,नख तथा केशों पर आधिपत्य माना गया है |यह लोहा ,नीलम ,तेल ,शीशा ,भैंस ,नाग ,तिल ,नमक ,उड़द ,बच तथा काले रंग की वस्तुओं का अधिपति है |
यह कारागार ,पुलिस ,यातायात ,ठेकेदारी ,अचल संपत्ति ,जमीन ,मजदूर ,कल कारखाने ,मशीनरी ,छोटे दुकानदार तथा स्थानीय संस्थाओं के कार्य कर्ताओं का प्रतिनिधित्व करता है | बलवान शनी विशिष्टता ,लोकप्रियता ,सार्वजनिक प्रसिद्धि एवं सम्मान को देने वाला भी होता है | इसके द्वारा वायु ,शारीरिक बल ,उदारता ,विपत्ति ,दुःख ,योगाभ्यास ,धैर्य ,परिश्रम ,पराक्रम ,मोटापा ,चिंता ,अन्याय ,विलासिता ,संकट ,दुर्भाग्य ,व्यय ,प्रभुता ,ऐश्वर्य ,मोक्ष ,ख्याति ,नौकरी ,अंग्रेजी भाषा ,इंजीनियरी ,लोहे से सम्बंधित काम ,साहस तथा मूर्छा आदि रोगों के सम्बन्ध में विचार किया जाता है |
शनि की साढ़े साती और ढैया अपना चरम प्रभाव प्रकट करती है | सूर्य के साथ शनि का वेध नहीं होता तथा ५ ,९ ,१२ में इसे वेध प्राप्त होता है जबकि ३ -६ -११ में यह अच्छा प्रभावी माना जाता है | इसकी स्वराशियाँ मकर और कुम्भ हैं तथा यह समय समय पर मार्गी और वक्री होता रहता है | यह तुला राशि के २० अंश तक परम उच्चस्थ और मेष राशि के २० अंश तक परम नीचस्थ होता है जबकि कुम्भ के २० अंश तक परम मूल त्रिकोणस्थ होता है |
लग्न से सातवें भाव में ,तुला मकर एवं कुम्भ राशि में,स्वद्रेष्काण ,दक्षिणायन ,शनिवार ,राश्यंत में और कृष्ण पक्ष का वक्री शनी बलवान माना जाता है |
बुध ,शुक्र ,राहू तथा केतु इसके मित्र जबकि सूर्य मंगल तथा चन्द्रमा से यह शत्रुता रखता है ,गुरु के साथ यह समभाव रखता है | यह जहाँ बैठता है वहां से तृतीय ,सप्तम और दशम को पूर्ण दृष्टि से देखता है | यह सूर्य के बाद बलवान ग्रह है और इसकी गणना पाप ग्रहों में की जाती है | यह जातक के जीवन पर प्रायः 36 से 42 वर्ष के बीच अपना विशेष प्रभाव प्रकट करता है|
गोचर में यह राशि संचरण के 06 माह पहले से ही अपना प्रभाव प्रकट करना आरम्भ कर देता है, और एक राशि पर 30 माह तक रहता है | जिस राशि पर होता है उसके अगले और पिछले दोनों राशियों को प्रभावित करता है | यह राशि के अंतिम भाग में अपना पूर्ण फल देता है |
*जनिये की कैसे मनाये शनि जयंती पर्व??
इस पर्व का लाभ लेने के लिए सर्वप्रथम स्नानादि से शुद्ध होकर एक लकड़ी के पाट पर काला कपड़ा बिछाकर उस पर शनिजी की प्रतिमा या फोटो या एक सुपारी रख कर उसके दोनों ओर शुद्ध घी व तेल का दीपक जलाकर धूप जलाएँ। इस शनि स्वरूप के प्रतीक को जल, दुग्ध, पंचामृत, घी, इनसे स्नान कराकर उनको इमरती, तेल में तली वस्तुओं का नैवेद्य लगाएँ। नैवेद्य के पूर्व उन पर अबिल, गुलाल, सिंदूर, कुंकुम एवं काजल लगाकर नीले या काले फूल अर्पित करें। नैवेद्य अर्पण करके फल व ऋतु फल के संग श्रीफल अर्पित करें।
इस पंचोपचार पूजन के पश्चात इस मंत्र का जप कम से कम एक माला से करें–
“ॐ प्रां प्रीं प्रौ स. शनये नमः”॥
माला पूर्ण करके शनि देवता को समर्पण करें। पश्चात आरती करके उनको साष्टांग प्रणाम करें।
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*शनि की शांति के ऐसे कई उपाय हैं, जिनके द्वारा मनुष्य के सारे कष्ट दूर होते है। निम्नानुसार उपाय करने पर पीड़ित व्यक्ति के कष्ट दूर होकर उसे शुभ फलों की प्राप्ति होती है। शनि ग्रह किसी कार्य को देर से जरूर करवाते है, परंतु यह भी सत्य है कि वह कार्य अत्यंत सफल होते है।
♦ इसका भी रखें विशेष ध्यान –
जब कोई भी वस्त्र जो बुनकर  बनाया जाता है। उसके धागों पर बुध अपना अधिपत्य रखता है तथा जब वस्त्र बनकर पूरा हो जाता है तो वो शुक्र की श्रेणी में आ जाता है।
शास्त्र अनुसार वस्त्र को तैयार करने के लिए मंगल रूपी कैंची से उसे काटा जाता है। उसे नाप देकर चन्द्र रूपी धागे से सिला जाता है। जब वह पहनने योग्य हो जाता है तो वो शनि का रूप धारण कर लेता है परंतु जो वस्त्र नए तथा बिना धुले हुए अर्थात कोरे हों उन्हें पहनकर हम शनि, मंगल , बुध शुक्र और शनि से संबंधित समस्याओं को अपने ऊपर ले लेते हैं क्योंकि कपड़ों को सिलते समय सुई का इस्तेमाल होता है जो शनि के समान हैं इसी कारण कपड़े जब तक धुलते नहीं हैं वो कीलक की श्रेणी में आ जाते हैं। इसी कारण नए कपड़ों पर  बिना धुले कपड़ों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं। अतः नए वस्त्र धारण से पूर्व सावधानी रखें, उन्हेँ धोकर ही धारण करें।
पण्डित “विशाल” दयानन्द शास्त्री

 

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