जन्माष्टमी अर्थात कृष्ण जन्मोत्सव इस वर्ष जन्माष्टमी का त्यौहार 24/25अगस्त 2016 को मनाया जाएगा। जन्माष्टमी जिसके आगमन से पहले ही उसकी तैयारियां जोर शोर से आरंभ हो जाती है पूरे भारत वर्ष मे इस त्यौहार का उत्साह देखने योग्य होता है। चारो का वातावरण भगवान श्री कृष्ण के रंग मे डूबा हुआ होता है। जन्माष्टमी पूर्ण आस्था एवं श्रद्ध के साथ मनाया जाता है।
पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु के ने पृथ्वी को पापियों से मुक्त करने हेतु कृष्ण रुप मे अवतार लिया, भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र मे देवकी और वासुदेव के पुत्ररूप मे हुआ था। जन्माष्टमी को स्मार्त और वैष्णव संप्रदाय के लोग अपने अनुसार अलग-अलग ढंग से मनाते है। श्रीमद्भागवत को प्रमाण मानकर स्मार्त संप्रदाय के मानने वाले चंद्रोदय व्यापनी अष्टमी अर्थात रोहिणी नक्षत्र मे जन्माष्टमी मनाते है तथा वैष्णव मानने वाले उदयकाल व्यापनी अष्टमी एवं उदयकाल रोहिणी नक्षत्र को जन्माष्टमी का त्यौहार मनाते है।
भूलोक पर जब भी असुरों के अत्याचार बढ़े है और धर्म का पतन हुआ है तब तब भगवान ने पृथ्वी पर अवतार लेकर सत्य और धर्म की स्थापना की है। इसी कड़ी मे भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि केअवजित मुहूर्त मे अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में भगवान कृष्ण ने अवतार लिया। एक ऐसा अवतार जिसके दर्शन मात्र से प्राणियो के, घट घट के संताप, दुःख, पाप मिट जाते है। जिन्होने इस श्रृष्टि को गीता का उपदेश दे कर उसका कल्याण किया, जिसने अर्जुन को कर्म का सिद्धांत पढाया, यह उनका जन्मोत्सव है।
हमारे वेदो मे चार रात्रियों का विशेष महातव्य बताया गया है दीपावली जिसे कालरात्रि कहते है, शिवरात्रि महारात्रि है,श्री कृष्ण जन्माष्टमी मोहरात्रि और होली अहोरात्रि है। जिनके जन्म के सैंयोग मात्र से बंदी गृह के सभी बंधन स्वत: ही खुल गए, सभी पहरेदार घोर निद्रा में चले गए, माँ यमुना जिनके चरण स्पर्श करने को आतुर हो उठी, उस भगवान श्री कृष्ण को सम्पूर्ण श्रृष्टि को मोह लेने
वाला अवतार माना गया है। इसी कारण वश जन्माष्टमी की रात्रि को मोहरात्रि कहा गया है। इस रात मे योगेश्वर श्रीकृष्ण का ध्यान, नाम अथवा मंत्र जपते हुए जगने से संसार की मोह-माया से आसक्ति हटती है। जन्माष्टमी का व्रत “व्रतराज” कहा गया है। इसके सविधि पालन से प्राणी अनेक व्रतों से प्राप्त होने वाली महान पुण्य राशि प्राप्त कर सकते है ।
योगेश्वर कृष्ण के भगवद गीता के उपदेश अनादि काल से जनमानस के लिए जीवन दर्शन प्रस्तुत करते रहे है। जन्माष्टमी भारत मे हीं नहीं बल्कि विदेशो मे बसे भारतीय भी पूरी आस्था व उल्लास से मनाते है। ब्रजमंडल मे श्री कृष्णाष्टमी “नंद-महोत्सव” अर्थात् “दधिकांदौ श्रीकृष्ण” के जन्म उत्सव का दृश्य बड़ा ही दुर्लभ होता है। भगवान के श्रीविग्रह पर हल्दी, दही, घी, तेल, गुलाबजल, मक्खन, केसर, कपूर आदि चढा ब्रजवासी उसका परस्पर लेपन और छिडकाव करते है तथा छप्पन भोग का महाभोग लगते है। वाद्ययंत्रों से मंगल ध्वनि बजाई जाती है। जगद्गुरु श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव नि:संदेह सम्पूर्ण विश्व के लिए आनंद-मंगल का संदेश देता है। सम्पूर्ण ब्रजमंडल “नन्द के आनंद भयो – जय कन्हैय्या लाल की” जैसे जयघोषो व बधाइयो से गुंजायमान होता है।
हरे कृष्ण ! हरे कृष्ण ! कृष्ण ! कृष्ण ! हरे हरे ! हरे राम ! हरे राम ! राम ! राम ! हरे हरे !
हरे कृष्ण ! हरे कृष्ण ! कृष्ण ! कृष्ण ! हरे हरे ! हरे राम ! हरे राम ! राम !राम ! हरे हरे !
♦ जानिए कृष्ण जन्माष्टमी पूजा मुहूर्त :
भगवान श्रीकृष्ण का ५२४३वाँ जन्मोत्सव
» निशिता पूजा का समय = २४:०६+ से २४:५१+
» अवधि = ० घण्टे ४५ मिनट्स
» मध्यरात्रि का क्षण = २४:२८+
» २६ को, पारण का समय = १०:५२ के बाद पारण के दिन अष्टमी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी
» पारण के दिन रोहिणी नक्षत्र का समाप्ति समय = १०:५२
» दही हाण्डी = २६, अगस्त को
» अष्टमी तिथि प्रारम्भ = २४/अगस्त/२०१६ को २२:१७ बजे
» अष्टमी तिथि समाप्त = २५/अगस्त/२०१६ को २०:०७ बजे
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जन्माष्टमी 25 अगस्त, 2016
निशिथ पूजा– 00:00 से 00:45 (25 अगस्त)
पारण– 10:35 (26 अगस्त) के बाद
रोहिणी समाप्त- 10:35 (26 अगस्त)
अष्टमी तिथि आरंभ – 22:17 (24 अगस्त)
अष्टमी तिथि समाप्त – 20:07 (25 अगस्त)
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जन्माष्टमी के दिन किया हुआ जप अनंत गुना फल देता है । उसमे भी जन्माष्टमी की पुरी रात, जागरण करके जप-ध्यान का विशेष महत्व है ।
🙏 भविष्य पुराण मे लिखा है कि जन्माष्टमी का व्रत अकाल मृत्यु नहीं होने देता है। जो जन्माष्टमी का व्रत करते है, उनके धर मे गर्भपात नहीं होता ।
🙏 एकादशी का व्रत हजारो – लाखो पाप नष्ट करनेवाला अदभुत ईश्वरीय वरदान है लेकिन एक जन्माष्टमी का व्रत हजार एकादशी व्रत रखने के पुण्य की बराबरी का है।
🙏 एकादशी के दिन जो संयम होता है उससे ज्यादा संयम जन्माष्टमी को होना चाहिए । बाजारु वस्तु तो वैसे भी साधक के लिए विष है लेकिन जन्माष्टमी के दिन तो चटोरापन, चाय, नाश्ता या इधर – उधर का कचरा अपने मुख में न डालें ।
🙏 इस दिन तो उपवास का आत्मिक अमृत पान करे ।अन्न, जल, तो रोज खाते – पीते रहते है, अब परमात्मा का रस ही पियें । अपने अहं को समाप्त कर दे।
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♦जन्माष्टमी : पूजन सामग्री–
भगवान कृष्ण के जन्माष्टमी पर पूजन सामग्री का भी काफी महत्व होता है। आपके लिए पेश है पूजन सामग्री की सूची :-
पूजन सामग्री : श्रीकृष्ण का पाना (अथवा मूर्ति), गणेशजी की मूर्ति, अम्बिका की मूर्ति, सिंहासन (चौकी, आसन), पंच पल्लव, (बड़, गूलर, पीपल, आम और पाकर के पत्ते), पंचामृत, तुलसी दल, केले के पत्ते, (यदि उपलब्ध हों तो खंभे सहित), औषधि, (जटामॉसी, शिलाजीत आदि) दीपक, बड़े दीपक के लिए तेल, बन्दनवार, अर्घ्य पात्र सहित अन्य सभी पात्र।
सुगंधित एवं अन्य सामग्री : इत्र की शीशी, धूप बत्ती (अगरबत्ती), कपूर, केसर, चंदन, यज्ञोपवीत 5, कुंकु, चावल, अबीर, गुलाल, अभ्रक, हल्दी, आभूषण, नाड़ा, रुई, रोली, सिंदूर, सुपारी, मौली, पान के पत्ते, पुष्पमाला, कमलगट्टे-, तुलसीमाला।
धन धान्य : धनिया खड़ा, सप्तमृत्तिका, सप्तधान्य, कुशा व दूर्वा, पंच मेवा, गंगाजल, शहद (मधु), शक्कर, घृत (शुद्ध घी), दही, दूध, ऋतुफल, नैवेद्य या मिष्ठान्न, (पेड़ा, मालपुए इत्यादि), इलायची (छोटी), लौंग, ताम्बूल (लौंग लगा पान का बीड़ा), श्रीफल (नारियल), धान्य (चावल, गेहूं), पुष्प (गुलाब एवं लाल कमल), एक नई थैली मे हल्दी की गांठ आदि।
वस्त्र : श्रीकृष्ण को अर्पित करने हेतु वस्त्र, गणेशजी को अर्पित करने हेतु वस्त्र, अम्बिका को अर्पित करने हेतु वस्त्र, जल कलश (तांबे या मिट्टी का), सफेद कपड़ा (आधा मीटर), लाल कपड़ा (आधा मीटर), पंच रत्न (सामर्थ्य अनुसार)।
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♦ श्री कृष्ण जन्माष्टमी के व्रत महात्यम:-
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी संपूर्ण भारत मे भाद्रपद मास मे कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन भगवान् श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव बड़ी श्रद्धा और धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन लोग उपवास रखते है। शास्त्रो मे बताया गया है कि जो व्यक्ति जन्माष्टमी का व्रत विधि-विधानानुसार करता है, उसके समस्त पाप मिट जाते है व सुख समृद्धि मिलती है। संपूर्ण भारत मे भाद्रपद मास मे कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन भगवान् श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव बड़ी श्रद्धा और धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन लोग उपवास रखते है। आरती के बाद दही, माखन, पंजीरी व अन्य प्रसाद भोग लगाकर बांटे जाते है। कुछ लोग रात मे ही पारण करते है और कुछ दूसरे दिन ब्राह्मणो को भोजन करा कर स्वयं पारण करते है।
शास्त्रो मे बताया गया है कि जो व्यक्ति जन्माष्टमी का व्रत विधि-विधानानुसार करता है, उसके समस्त पाप मिट जाते है व सुख समृद्धि मिलती है। भविष्य पुराण के जन्माष्टमी व्रत-माहात्म्य मे यह कहा गया है कि जिस राष्ट्र या प्रदेश मे यह व्रतोत्सव किया जाता है, वहां पर प्राकृतिक प्रकोप या महामारी का ताण्डव नहीं होता। मेघ पर्याप्त वर्षा करते है तथा फसल खूब होती है। जनता सुख-समृद्धि प्राप्त करती है। इस व्रतराज के अनुष्ठान से सभी को परम श्रेय की प्राप्ति होती है। व्रतकर्ता भगवत्कृपा का भागी बनकर इस लोक मे सब सुख भोगता है और अन्त मे वैकुंठ जाता है। कृष्णाष्टमी का व्रत करने वाले के सब क्लेश दूर हो जाते हैं।दुख-दरिद्रता से उद्धार होता है।
गृहस्थो को पूर्वोक्त द्वादशाक्षर मंत्र से दूसरे दिन प्रात:हवन करके व्रत का पारण करना चाहिए। जिन भी लोगो को संतान न हो, वंश वृद्धि न हो, पितृ दोष से पीड़ित हो, जन्मकुंडली मे कई सारे दुर्गुण, दुर्योग हो, शास्त्रों के अनुसार इस व्रत को पूर्ण निष्ठा से करने वाले को एक सुयोग्य,संस्कारी,दिव्य संतान की प्राप्ति होती है, कुंडली के सारे दुर्भाग्य सौभाग्य मे बदल जाते है और उनके पितरो को नारायण स्वयं अपने हाथो से जल दे के मुक्तिधाम प्रदान करते है ।
देवताओं मे भगवान श्री कृष्ण विष्णु के अकेले ऐसे अवतार हैं जिनके जीवन के हर पड़ाव के अलग रंग दिखाई देते है। उनका बचपन लीलाओं से भरा पड़ा है। उनकी जवानी रासलीलाओं की कहानी कहती है, एक राजा और मित्र के रूप मे वे भगवद् भक्त और गरीबों के दुखहर्ता बनते है तो युद्ध मे कुशल नितिज्ञ। महाभारत मे गीता के उपदेश से कर्तव्यनिष्ठा का जो पाठ भगवान श्री कृष्ण ने पढ़ाया है आज भी उसका अध्ययन करने पर हर बार नये अर्थ निकल कर सामने आते है। भगवान श्री कृष्ण के जन्म लेने से लेकर उनकी मृत्यु तक अनेक रोमांचक कहानियां है। इन्ही श्री कृष्ण के जन्मदिन को हिंदू धर्म मे आस्था रखने वाले और भगवान श्री कृष्ण को अपना आराध्य मानने वाले जन्माष्टमी के रूप मे मनाते है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण की कृपा पाने के लिये भक्तजन उपवास रखते है और श्री कृष्ण की पूजा अर्चना करते है।
स्कन्द पुराण के मतानुसार जो भी व्यक्ति जानकर भी कृष्ण जन्माष्टमी व्रत को नहीं करता, वह मनुष्य जंगल मे सर्प और व्याघ्र होता है। ब्रह्मपुराण का कथन है कि कलियुग मे भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी मे अट्ठाइसवें युग मे देवकी के पुत्र श्रीकृष्ण उत्पन्न हुए थे। यदि दिन या रात मे कलामात्र भी रोहिणी न हो तो विशेषकर चंद्रमा से मिली हुई रात्रि मे इस व्रत को करे। भविष्य पुराण का वचन है- श्रावण मास के शुक्ल पक्ष मे कृष्ण जन्माष्टमी व्रत को जो मनुष्य नहीं करता, वह क्रूर राक्षस होता है। केवल अष्टमी तिथि मे ही उपवास करना कहा गया है। जिन परिवारो मे कलह-क्लेश के कारण अशांति का वातावरण हो, वहां घर के लोग जन्माष्टमी का व्रत करने के साथ निम्न किसी भी मंत्र का अधिकाधिक जप करे-
♦”ॐ नमो नारायणाय” ||
♦”ॐ नमों भगवते वासुदेवाय” ||
♦”श्री कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने।प्रणत: क्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नम:” ||
♦”श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवाय” ||
उपर्युक्त मंत्र मे से किसी का भी का जाप करते हुए सच्चिदानंदघन श्रीकृष्णकी आराधना करे। इससे परिवार मे व कुटुंब मे व्याप्त तनाव, समस्त प्रकार की समस्या, विषाद, विवाद और विघटन दूर होगा खुशियां घर मे वापस लौट आएंगी। गौतमी तंत्र मे यह निर्देश है- प्रकर्तव्योन भोक्तव्यं कदाचन।कृष्ण जन्मदिने यस्तु भुड्क्ते सतुनराधम:। निवसेन्नर केघोरे यावदाभूत सम्प्लवम्॥अर्थात- अमीर-गरीब सभी लोग यथाशक्ति-यथासंभव उपचारों से योगेश्वर कृष्ण का जन्मोत्सव मनाएं। जब तक उत्सव सम्पन्न न हो जाए तब तक भोजन कदापि न करे। जो वैष्णव कृष्णाष्टमी के दिन भोजन करता है, वह निश्चय ही नराधम है। उसे प्रलय होने तक घोर नरक मे रहना पडता है।
अष्टमी दो प्रकार की है- पहली जन्माष्टमी और दूसरी जयंती। इसमे केवल पहली अष्टमी है। यदि वही तिथि रोहिणी नक्षत्र से युक्त हो तो ‘जयंती’ नाम से संबोधित की जाएगी। वह्निपुराण का वचन है कि कृष्णपक्ष की जन्माष्टमी मे यदि एक कला भी रोहिणी नक्षत्र हो तो उसको जयंती नाम से ही संबोधित किया जाएगा। अतःउसमे प्रयत्न से उपवास करना चाहिए। विष्णुरहस्यादि वचन से- कृष्णपक्ष की अष्टमी रोहिणी नक्षत्र से युक्त भाद्रपद मास मे हो तो वह जयंती नाम वाली ही कही जाएगी। वसिष्ठ संहिता का मत है- यदि अष्टमी तथा रोहिणी इन दोनो का योग अहोरात्र मे असम्पूर्ण भी हो तो मुहूर्त मात्र मे भी अहोरात्र के योग मे उपवास करना चाहिए। मदन रत्न मे स्कन्द पुराण का वचन है कि जो उत्तम पुरुष है वे निश्चित रूप से जन्माष्टमी व्रत को इस लोक मे करते है। उनके पास सदैव स्थिर लक्ष्मी होती है। इस व्रत के करने के प्रभाव से उनके समस्त कार्य सिद्ध होते है। विष्णु धर्म के अनुसार आधी रात के समय रोहिणी मे जब कृष्णाष्टमी हो तो उसमे कृष्ण का अर्चन और पूजन करने से तीन जन्मों के पापो का नाश होता है। भृगु ने कहा है- जन्माष्टमी, रोहिणी और शिवरात्रि ये पूर्वविद्धा ही करनी चाहिए तथा तिथि एवं नक्षत्र के अन्त मे पारणा करे। इसमे केवल रोहिणी उपवास भी सिद्ध है।
♦ व्रत-पूजन कैसे करे ???
श्री कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत सनातन-धर्मावलंबियों के लिए अनिवार्य माना गया है। साधारणतया इस व्रतके विषय मे दो मत है । स्मार्त लोग अर्धरात्रि स्पर्श होनेपर या रोहिणी नक्षत्र का योग होने पर सप्तमी सहित अष्टमी मे भी उपवास करते है , किन्तु वैष्णव लोग सप्तमी का किन्चिन मात्र स्पर्श होनेपर द्वितीय दिवस ही उपवास करते है । वैष्णवो मे उदयाव्यपिनी अष्टमी एवं रोहिणी नक्षत्र को ही मान्यता एवं प्रधानता दी जाती है | उपवास की पूर्व रात्रि को हल्का भोजन करे और ब्रह्मचर्य का पालन करें। उपवास के दिन प्रातःकाल स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएँ। पश्चात सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्पति, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और ब्रह्मादि को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर मुख बैठे। इसके बाद जल, फल, कुश, द्रव्य दक्षिणा और गंध लेकर संकल्प करे-
ॐविष्णुíवष्णुíवष्णु:अद्य शर्वरी नाम संवत्सरे सूर्ये दक्षिणायने वर्षतरै भाद्रपद मासे कृष्णपक्षे श्रीकृष्ण जन्माष्टम्यां तिथौ भौम वासरे अमुकनामाहं (अमुक की जगह अपना नाम बोलें) मम चतुर्वर्ग सिद्धि द्वारा श्रीकृष्ण देवप्रीतये जन्माष्टमी व्रताङ्गत्वेन श्रीकृष्ण देवस्य यथामिलितोपचारै:पूजनं करिष्ये।
यदि उक्त मंत्र का प्रयोग व उच्चारण कठिन प्रतीत हो तो निम्न मंत्र का प्रयोग भी कर सकते है…
“ममखिलपापप्रशमनपूर्वकसर्वाभीष्टसिद्धयेश्रीकृष्णजन्माष्टमी व्रतमहंकरिष्ये॥”
आज के दिन “संतान गोपाल मंत्र”, के जाप व “हरिवंश पुराण”, “गीता” के पाठ का भी बड़ा ही महत्व है। यह तिथि तंत्र साधको के लिए भी बहु प्रतीक्षित होती है, इस तिथि मे “सम्मोहन” के प्रयोग सबसे ज्यादा सिद्ध किये जाते है। यदि कोई सगा सम्बन्धी रूठ जाये, नाराज़ हो जाये, सम्बन्ध विच्छेद हो जाये,घर से भाग जाये, खो जाये तो इस दिन उन्हें वापिस बुलाने का प्रयोग अथवा बिगड़े संबंधो को मधुर करने का प्रयोग भी खूब किया जाता है।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पूजन फल:
जो व्यक्ति जन्माष्टमी के व्रत को करता है, वह ऐश्वर्य और मुक्ति को प्राप्त करता है। आयु, कीर्ति, यश, लाभ, पुत्र व पौत्र को प्राप्त कर इसी जन्म मे सभी प्रकार के सुखो को भोग कर अंत मे मोक्ष को प्राप्त करता है। जो मनुष्य भक्तिभाव से श्रीकृष्ण की कथा को सुनते है, उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते है। वे उत्तम गति को प्राप्त करते है।
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♦ जन्माष्टमी का महत्व:
विधि:- श्री कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत सनातन धर्म के लोगों के लिए अनिवार्य माना जाता है। जो वैष्णव कृष्णाष्टमी के दिन भोजन करता है वो निश्चय ही नराधम है। उसे प्रलय होने तक घोर नरक मे रहना पड़ता है। भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति का दूध,दही,शहद,यमुनाजल आदि से अभिषेक होता है। उसके उपरांत विधिपूर्वक पूजन किया जाता है। कुछ लोग रात्रि को १२ बजे गर्भ से जन्म लेने के प्रतीक स्वरुप खीरा चीरते है।
जागरण:- धर्मग्रंथों मे जन्माष्टमी के दिन जागरण का विधान भी बताया गया है। इस रात्री को भगवान के नाम का संकीर्तन या उनके मन्त्र “नमो भगवते वासुदेवाय” का जाप भी करते है। श्रीकृष्ण का जाप करते हुए सारी रात जागने से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। जन्मोत्सव के पश्चात घी की बत्ती,कपूर आदि से आरती करते है। इस दिन वैसे तो पूरा दिन व्रत रखते है लेकिन असमर्थ फलाहार कर सकते है।
पुराणो मे यह कहा जाता है कि जिस राष्ट्र या राज्य मे यह व्रतोत्सव किया जाता है वहां पर प्राकृतिक प्रकोप या महामारी का तांडव नहीं होता। मेघ पर्याप्त वर्षा करते है तथा फसल खूब होती है। सभी को सुख-समृधि प्राप्त होती है। व्रतकर्ता भगवान की कृपा पाकर इस लोक मे सब सुख भोगता है और अंत मे वैकुंठ जाता है। व्रत करने वालों के सब क्लेश दूर हो जाते है।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की रात्रि को मोहरात्रि कहा जाता है। इस रात मे योगेश्वर श्रीकृष्ण का ध्यान,नाम अथवा मन्त्र जपते हुए जागने से संसार की मोह-माया से मुक्ति मिलती है। जन्माष्टमी का व्रत व्रतराज है। इस व्रत का पालन करना चाहिए।
जय श्री कृष्ण ।
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♦ जन्माष्टमी के विभिन्न रंग रुप :
यह त्यौहार विभिन्न रुपों मे मान्या जाता है कहीं रंगों की होली होती है तो कहीं फूलों और इत्र की सुगंन्ध का उत्सव होता तो कहीं दही हांडी फोड़ने का जोश और कहीं इस मौके पर भगवान कृष्ण के जीवन की मोहक छवियां देखने को मिलती है।मंदिरों को विशेष रुप से सजाया जाता है। कृष्ण भक्त इस अवसर पर व्रत एवं उपवास का पालन करते है इस दिन मंदिरो मे झांकियां सजाई जाती है भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है तथा कृष्ण रासलीलाओं का आयोजन होता है।
श्री जन्माष्टमी के शुभ अवसर समय भगवान कृष्ण के दर्शनो के लिएए दूर दूर से श्रद्धालु मथुरा पहुंचते है। श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर ब्रज कृष्णमय हो जाता है। मंदिरों को खास तौर पर सजाया जाता है। मथुरा के सभी मंदिरों को रंग बिरंगी लाइटो व फूलो से सजाया जाता है। भगवन श्री कृष्ण की जन्म स्थली मथुरा मे जन्माष्टमी पर आयोजित होने वाले श्रीकृष्ण जन्मोत्सव को देखने के लिए देश से ही नहीं बल्कि विदेशो से लाखो की संख्या मे कृष्ण भक्त पंहुचते है। भगवान के विग्रह पर हल्दी, दही, घी, तेल, गुलाबजल, मक्खन, केसर, कपूर आदि चढाकर लोग उसका एक दूसरे पर छिडकाव करते है। इस दिन मंदिरों मे झांकियां सजाई जाती है तथा भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है और रासलीला का आयोजन किया जाता है।
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♦इस जन्माष्टमी पर इन सरल उपायो से करे अपनी समस्या का समाधान:
⇒ दारिद्रय निवारण के लिए :
‘ श्री हरये नम:’ मंत्र का यथाशक्ति जप करे तथा श्रीकृष्ण भगवान के विग्रह का पंचोपचार पूजन कर पंचामृत का नेवैद्य लगाएं।
⇒ कस्ट नाश व सुख-शांति के लिए:
‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जप करे। श्रीकृष्ण भगवान के विग्रह का पंचामृत से अभिषेक कर मेवे का नेवैद्य लगाएं । यह मंत्र कल्पतरु है।
⇒विपत्ति-आपत्ति से बचने के लिए :
‘श्रीकृष्ण शरणं मम्’ इस मंत्र का जप करे।
⇒ शांति तथा मोक्ष प्राप्ति के लिए- ‘
‘ ॐ क्लीं हृषिकेशाय नम:’ इस मंत्र का जप करे।
⇒ विवाहादि के लिए :
‘श्री गोपीजन वल्लभाय स्वाहा’ मंत्र का जप करें तथा राधाकृष्ण के विग्रह का पूजन करे।
⇒ घर मे सुख-शांति के लिए :
‘ॐ नमो भगवते रुक्मिणी वल्लभाय स्वाहा’ मंत्र का जप करे तथा कृष्ण-रुक्मणी का चित्र सामने रखे।
⇒ संतान प्राप्ति के लिए:
‘ॐ देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते।
देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:।।’
निम्न मंत्र की 1 माला नित्य करे। निश्चित ही संतान प्राप्ति होती है तथा उच्चारण का विशेष ध्यान रखे।
⇒धन-संपत्ति के लिए:
‘ॐ श्रीं लक्ष्मी वासुदेवाय नम:’। श्री लक्ष्मी-विष्णु की प्रतिमा रखकर पंचोपचार पूजन कर जपें।
⇒ शत्रु शांति के लिए :
‘ॐ उग्र वीरं महाविष्णुं ज्वलंतं सर्वतोमुखम्।
नृसिंह भीषणं भद्रं, मृत्युं-मृत्युं नमाम्यहम्।।’
भगवान नृसिंह की सेवा अत्यंत लाभदायक है। निम्न मंत्र की एक माला नित्य करने से शत्रु शांति, टोने-टोटके, भूत-प्रेत आदि से बचाव होता है !
⇒विशेष : परोल्लिखित मंत्रों मे पूजन मे तुलसी का प्रयोग अवश्य करे। पूर्वाभिमुख होकर। कुशासन तथा श्वेत वस्त्र का उपयोग करे।