जानिए क्या हैं केमद्रुम योग ??
क्या होते हैं केमद्रुम योग के प्रभाव और परिणाम ??
भारतीय वैदिक ज्योतिष में केमद्रुम योग ज्योतिष में चंद्रमा से निर्मित एक महत्वपूर्ण योग बताया गया है| वृहज्जातक में वाराहमिहिर के अनुसार यह योग उस समय होता है जब चंद्रमा के आगे या पीछे वाले भावों में ग्रह न हो अर्थात चंद्रमा से दूसरे और चंद्रमा से द्वादश भाव में कोई भी ग्रह नहीं हो. यह योग इतना अनिष्टकारी नहीं होता जितना कि वर्तमान समय के ज्योतिषियों ने इसे बना दिया है. व्यक्ति को इससे भयभीत नहीं होना चाहिए क्योंकि यह योग व्यक्ति को सदैव बुरे प्रभाव नहीं देता अपितु वह व्यक्ति को जीवन में संघर्ष से जूझने की क्षमता एवं ताकत देता है, जिसे अपनाकर जातक अपना भाग्य निर्माण कर पाने में सक्षम हो सकता है और अपनी बाधाओं से उबर कर आने वाले समय का अभिनंदन कर सकता है |
चन्द्र को मन का कारक कहा गया है. सामान्यत: यह देखने में आता है कि मन जब अकेला हो तो वह इधर-उधर की बातें अधिक सोचता है और ऎसे में सोच सकारात्मक होनी चाहिए अच्छे कार्य में ध्यान लगाए ऐसे जातक अपने बलबूते पर कामयाब होते हैं किसी के अघीन रहना उनके लिए अच्छा नहीं रहता ऐसे जातक देखी है कि यह सृजनातमक होते हैं कलाकार होते हैं कलात्मक होतैे हैं कुछ बुराइयां से बच कर रहे जैसे जुआ सटा शराब आदिकेमद्रुम योग के बारे में ऐसी मान्यता है कि यह योग संघर्ष और अभाव ग्रस्त जीवन देता है. इसीलिए ज्योतिष के अनेक विद्वान इसे दुर्भाग्य का सूचक कहते हें. परंतु लेकिन यह अवधारणा पूर्णतः सत्य नहीं है.
केमद्रुम योग से युक्त कुंडली के जातक कार्यक्षेत्र में सफलता के साथ-साथ यश और प्रतिष्ठा भी प्राप्त करते हैं. वस्तुतः अधिकांश विद्वान इसके नकारात्मक पक्ष पर ही अधिक प्रकाश डालते हैं. यदि इसके सकारात्मक पक्ष का विस्तार पूर्वक विवेचन करें तो हम पाएंगे कि कुछ विशेष योगों की उपस्थिति से केमद्रुम योग भंग होकर राजयोग में परिवर्तित हो जाता है. इसलिए किसी जातक की कुंडली देखते समय केमद्रुम योग की उपस्थिति होने पर उसको भंग करने वाले योगों पर ध्यान देना आवश्यक है तत्पश्चात ही फलकथन करना चाहिएव्यवहार में ऐसा पाया गया है कि कुंडली में गजकेसरी, पंचमहापुरुष जैसे शुभ योगों की अनुपस्थिति होने पर भी केमद्रुम योग से युक्त कुंडली के जातक कार्यक्षेत्र में सफलता के साथ-साथ यश और प्रतिष्ठा भी प्राप्त करते हैं। ऐसे में क्या कहा जाये। क्या शास्त्रों में लिखी बातों को असत्य या निर्मूल कहकर केमद्रुम योग की परिभाषा पर प्रश्न चिह्न लगा दिया जाये।
वस्तुतः सत्यता यह है कि केमद्रुम योग के बारे में बताने वाले अधिकांश विद्वान इसके नकारात्मक पक्ष पर ही अधिक प्रकाश डालते हैं। जो पूर्णतः असैद्धांतिक एवं अवैज्ञानिक है। यदि हम इसके सकारात्मक पक्ष का गंभीरतापूर्वक विवेचन करें तो हम पाएंगे कि कुछ विशेष योगों की उपस्थिति से केमद्रुम योग भंग होकर राजयोग में परिवर्तित हो जाता है।
ऐसे योगों का उल्लेख भी मिलता है जिनके प्रभाव से केमद्रुम योग भंग होकर राजयोग में बदल जाता है। केमद्रुम योग को भंग करने वाले प्रमुख योग निम्नलिखित हैं।जब कुण्डली में लग्न से केन्द्र में चन्द्रमा या कोई ग्रह हो तो केमद्रुम योग भंग माना जाता है. योग भंग होने पर केमद्रुम योग के अशुभ फल भी समाप्त होते है.
कुण्डली में बन रही कुछ अन्य स्थितियां भी इस योग को भंग करती है, जैसे चंद्रमा सभी ग्रहों से दृष्ट हो या चंद्रमा शुभ स्थान में हो या चंद्रमा शुभ ग्रहों से युक्त हो या पूर्ण चंद्रमा लग्न में हो या चंद्रमा दसवें भाव में उच्च का हो या केन्द्र में चंद्रमा पूर्ण बली हो अथवा कुण्डली में सुनफा, अनफा या दुरुधरा योग बन रहा हो, तो केमद्रुम योग भंग हो जाता है.
यदि चन्द्रमा से केन्द्र में कोई ग्रह हो तब भी यह अशुभ योग भंग हो जाता है और व्यक्ति इस योग के प्रभावों से मुक्त हो जाता है.
कुछ अन्य शास्त्रों के अनुसार- यदि चन्द्रमा के आगे-पीछे केन्द्र और नवांश में भी इसी प्रकार की ग्रह स्थिति बन रही हो तब भी यह योग भंग माना जाता है. केमद्रुम योग होने पर भी जब चन्द्रमा शुभ ग्रह की राशि में हो तो योग भंग हो जाता है. शुभ ग्रहों में बुध्, गुरु और शुक्र माने गये है. ऎसे में व्यक्ति संतान और धन से युक्त बनता है तथा उसे जीवन में सुखों की प्राप्ति होती है.
इसके इलावा जब गुरु और चंद्र की दृष्टि एक ही भाव पर पढ़ रही हो या त्रिकोण में सभी ग्रहो का होना जहां केंद्र में सभी ग्रह हो तब भी यह योग भंग हो जाता है केमद्रुम योग जिसे एक अशुभ योग माना जाता है, यदि किसी प्रकार भंग हो जाता है तो यह पूर्ण रूप से राजयोग में बदल जाता है। इसलिए किसी जातक की कुंडली देखते समय केमद्रुम योग की उपस्थिति होने पर उसको भंग करने वाले उपर्युक्त योगों पर निश्चय ही ध्यान देना चाहिए। उसके बाद ही फलकथन करना चाहिए।
संबु होरा प्रकाश, जातक परिजात, जातक तत्वम जैसे शास्त्रों में कुछ ऐसे योग वर्णित हैं जो जातक को निर्धन बना देते है, जिनके कारण व्यक्ति को जीवन में कभी न कभी कंगाली का सामना करना ही पड़ता है। ऐसा ही एक अनिष्ट योग है “केमद्रुम योग”।
ऐसा देखा गया है कि प्रबल केमद्रुम योग वाले व्यक्ति की मृत्यु के बाद परिजनों के पास अंतिम संस्कार करने के भी पैसे नहीं होते। शास्त्रों में केमद्रुम योग पर श्लोक कहा गया है।
श्लोक: कान्तान्नपान्ग्रहवस्त्रसुह्यदविहीनो, दारिद्रय-दुघःखगददौन्यमलैरूपेतः। प्रेष्यः खलः सकल लोक विरूद्धव्रत्ति, केमद्रुमेभवतिपार्थिववंशजोऽपि॥
अर्थात यदि व्यक्ति की कुंडली में प्रबल केमद्रुम योग स्थित हो तो वो व्यक्ति जीवनसाथी, अन्न, घर, वस्त्र व बंधु से विहीन होकर दुखी, रोगी, दरिद्र होता है चाहे उसका जन्म किसी राजा के यहां ही क्यों ना हुआ हो।
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सबसे बड़ा दरिद्री योग “केमद्रुम योग ”
किसी भी लग्न की कुंडली मैं चन्द्र जिस राशी मैं होता हैं , उसके दूसरे और बारहवें भाव मैं सूर्य के अलावा अन्य कोई ग्रह न हो तो केमद्रुम योग की सृष्टी होती हैं !अर्थात चन्द्र के दोनों और मंगल , बुध , गुरु , शुक्र ,या शनि मैं से कोई न कोई ग्रह होना आवश्यक हैं (इस योग मैं राहू केतु की मान्यता नहीं हैं क्योंकि ये मात्र छाया ग्रह हैं ) एस नहीं होने पर दुर्भाग्य के प्रतीक केमद्रुम योग बनता हैं
इस योग के विषय मैं जातक पारिजात नामक ग्रन्थ मैं कहा गया हैं कि–
“योगे केमद्रुमे प्रापो यस्मिन कश्चि जातके!
राजयोगा विशशन्ति हरि दृष्टवां यथा द्विषा: !!
अर्थात— जन्म के समय यदि किसी कुंडली मैं केमद्रुम योग हो और उसकी कुंडली मैं सेकड़ो राजयोग भी हो तो वह भी विफल हो जातें हैं ! अर्थात केमद्रुम योग अन्य सैकड़ों राजयोगो का प्रभाव उसी प्रकार समाप्त कर देता हैं , जिस प्रकार जंगल मैं सिंह हाथियों का प्रभाव समाप्त कर देता हैं !
इस योग के जन्मकुंडली मैं विद्यमान होने पर जातक स्त्री, संतान , धन , घर , वाहन , कार्य व्यवसाय, माता, पिता, अन्य रिश्तेदार अर्थात सभी प्रकार के सुखों से ही होकर ईधर, उधर व्यर्थ भटकने के लिए मजबूर होता हैं ! जबकि इस भयंकर योग का भंग होना भी पाया जाता हैं जब जन्मकुंडली मैं निम्न स्थिति हों —
(1) यदि चन्द्रमा केंद्र स्थानों — प्रथम , चतुर्थ , सप्तम या दशम भाव मैं हो
(2) चन्द्र कि उच्च राशी वृष या चन्द्र की अपनी राशी कर्क केंद्र मैं हो !
(3) चन्द्र के साथ अन्य कोई भी ग्रह एक ही भाव मैं विराजित हो !
(4) कई ग्रहों की दृष्टी चन्द्र पर हो !
उक्त मैं से कोई एक योग होने पर भी केमद्रुम योग भंग हो जाता हैं ! किन्तु लगभग सभी देवग्य और वर्तमान ज्योतिष महानुभाव एक मत से स्वीकार करते हैं और अनुभव मैं भी यही आता हैं कि जन्मकुंडली के केमद्रुम योग और केमद्रुम भंग योग दोनों होने पर जातक को सम्बंधित ग्रहों कि दशा , अन्तर्दशा मैं दोनों ही प्रकार के फलो का सामना करना पड़ता हैं ! इस योग का अध्ययन करने के लिए मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचन्द्र कि कुंडली के द्वारा अच्छी तरह किया जा सकता हैं !
श्री रामचन्द्र का जन्म कर्क लग्न मैं हुआ था गुरु एवं चन्द्र लग्न मैं , तीसरे भाव मैं राहू , चौथे भाव मैं शनि , सप्तम भाव मैं मंगल , नवम भाव मैं शुक्र , केतु , दशम भाव मैं सूर्य , एकादश भाव मैं बुध विराजित हैं |
कर्क लग्न वाला जातक स्वतः भाग्यशाली होतें हैं ! साथ ही लग्नस्थ चन्द्र के दोनों और द्वितीय और द्वादश भाव मैं कोई गृह नहीं हैं ! अत:केमद्रुम योग विद्यमान प्रतीत होता हैं ! इस योग के विपरीत चन्द्र की राशी कर्क स्वयं लग्न भाव मैं हैं ! साथ मैं ही स्वग्रही चन्द्र भी केंद्र मैं शक्तिशाली होकर विराजित हैं ! जिसके साथ ब्रहस्पति भी हैं !चन्द्र की उच्च राशी मकर भी सप्तम भाव स्थित केंद्र स्थान मैं ही हैं ! अर्थात केमद्रुम योग भंग की एक ,दो नहीं वरन समस्त शर्त विद्यमान हैं ! इन सबके अलावा केंद्र मैं ब्रहस्पति उच्च का होकर पंचमहायोगों मैं श्रेष्ठ ” हंस योग “,शनि उच्च का होने से शश योग , मंगल उच्च का होकर केंद्र मैं होने से चक योग को बताता हैं , इनके अलावा गुरु चन्द्र मिलकर ज्योतिष का सबसे महान गज केसरी योग भी बनता हैं साथ ही सूर्य भी अपनी उच्च राशी मैं होकर अपने कारक स्थान मैं उपस्थित हैं ! शुक्र भाग्य भाव मैं होकर अपनी उच्च राशी मैं हैं ! अर्थात इस प्रकार के महान योग किसी अलौकिक व्यक्तित्व की जन्म कुंडली मैं ही हो सकते हैं !
इन महान योगों के होने के बाद भी भगवन श्री राम के जीवन चरित्र पर इस भयानक योग के प्रभाव से इंकार कैसे किया जा सकता हैं ! उनके जीवन संघर्ष यात्रा मैं ही इस योग के मात्र आंशिक प्रभाव का विश्लेषण किया जा सकता हैं ! (हालाँकि अन्य राजभंग योग भी जन्मकुंडली मैं विद्यमान हैं ) इन सबके कारण भगवन श्री राम के राजतिलक के समय शनि महादशा मैं मंगल का अंतर चल रहा था , तब राजतिलक होते -होते श्री राम को वनवासी राम बनना पड़ा ! अर्थात हम जैसे लोगों के लिए तो इस योग का असर और भी भयानक होगा ! इस योग के होने पर इसका निराकरण आवश्यक हैं !
चंद्रमा चूँकि मन का कारक हैं इस लिए जब भी कोई मुसीबत , या असफलता मिलती हैं तो दूसरों की अपेक्षा इस योग के पीड़ित को कई गुना महसूस होती हैं ! इस योग के चलते थोड़ी सी असफलता से जातक ” डिप्रेशन ” एवं मानसिक रोगों का भी शिकार हो सकता हैं
इस योग के कारण जीवन मैं अधूरापन रहता हैं !
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केमद्रुम योग ***********
केमद्रुम योग को अत्यंत अशुभ फल देने वाला योग माना जाता है।लेकिन यह तर्क पूर्णतः सत्य नही है।यह योग सदैव अशुभ फल नही देता।यह योग जातक को जीवन में संघर्ष से जूझने की क्षमता प्रदान करता है।ज्योतिष में चंद्रमा मन का कारक होता है, जब कुंडली में चंद्रमा अकेला होता है अर्थात् चंद्रमा के साथ व चंद्रमा से दूसरे और बारहवें भाव में कोई ग्रह न हो तब ऐसी स्थिति में जातक का मन अकेलापन महसूस करता है। जिस कारण वह नकारात्मक बाते सोच कर चिन्ता करने की प्रवृत्ति बना लेता है।केमद्रुम योग में राहु केतु का कोई विचार नही किया जाता। केमद्रुम योग के विषय में यह धारणा बनी हुई है कि यह योग जातक को निर्धन बनाता है, दुःख देता है, पूर्णतः संघर्ष भरा जीवन देता है आदि जैसे अशुभ परिणाम देता है।लेकिन केमद्रुम के विषय में यह बात पूर्णतः सत्य नही है।यदि कुंडली में कई अन्य शुभ स्थितियां हो चंद्रमा पूर्ण बली हो तो यह योग अपना अशुभ परिणाम देने में सक्षम नही रह जाता। केमद्रुम योग भंग होने के कारण **************************
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार कुण्डकी में यदि लग्न से केंद्र में चंद्रमा या कोई शुभ ग्रह हो तो केमद्रुम योग भंग माना जाता है।कुंडली में बन रही कई शुभ व बली ग्रह स्थितियां इस योग को भंग करती है।जैसे, चंद्रमा शुभ ग्रहो से दृष्ट हो या चंद्रमा पूर्ण बली होकर शुभ स्थान पर हो। पूर्ण चंद्रमा लग्न में होने पर भी यह योग भंग हो जाता है। चंद्रमा केंद्र स्थान में उच्च का हो तो यह योग भंग हो जाता है। चंद्रमा से केंद्र में कोई शुभ बली ग्रह हो तब भी कही हद तक यह योग भंग हो जाता है।
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केमद्रुम योग को भंग कर राजयोग में परिवर्तित करने वाले उपर्युक्त योगों की सत्यता की पुष्टि महात्मा गांधी, नेल्सन मंडेला, जुल्फिकार अली भुट्टो, भैरों सिंह शेखावत, बिल गेट्स, देवानंद, राजकपूर, ऋषि कपूर, शत्रुध्न सिन्हा, पंडित दयानन्द शास्त्री,अमीषा पटेल, अजय देवगन, राहुल गांधी, शंकर दयाल शर्मा, ईजमाम उल हक, जवागल श्री नाथ, पीचिदंबरम, मेनका गांधी, वसुंधरा राजे, अर्जुन सिंह तथा अनुपम खेर आदि सुप्रसिद्ध जातकों की कुंडलियों में स्वतः कर सकते हैं।
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केमद्रुम योग से बचने के कुछ विशिष्ट उपायों व ग्रह शांति के बारे में—
1. घर की उत्तर दिशा में प्राण प्रतिष्ठा करवाकर 2.25 इंच लंबा पारद शिवलिंग स्थापित करवाएं व नित्य विधिवत पूजन कर शिव अमोघ कवच का पाठ करें।
2. तीर्थस्थल जहां प्राकृतिक जल स्रोत हो और नर्मदेश्वर शिवलिंग स्थापित हो उस शिवालय में चंद्रमा ग्रह की शांति करवाएं।
3. अगर प्राप्त हो जाए तो बाएं हाथ की कनिष्ठा उंगली में प्राकृतिक समुद्री मुक्ता मणि (नेचुरल सी पर्ल) धारण करें।
4. चित्रा नक्षत्र युक्त सोमवारी पूर्णिमा पड़ने पर संकल्प लेकर लगातार चार वर्ष प्रति माह शिव-पूर्णिमा का व्रत रखें।
5. कांच की बोतल में वर्षा के समय पर गिरने वाले बर्फ के ओले जमा करके घर की उत्तरपश्चिम दिशा में रखें।
6. घर की उत्तर-पश्चिम दिशा पूर्ण चंद्रमा का चित्र लगाएं जिसके चारों तरफ आठ ग्रह स्थापित हों।
7. प्रति सोम प्रदोष को गाय के कच्चे दूध से “नमक-चमक पाठ” के साथ सम्पूर्ण रुद्राभिषेक करें।
8. चांदी की चेन में प्राण प्रतिष्ठित एक-एक दाना 2मुखी + 13मुखी + 14मुखी रुद्राक्ष धारण करें।
9. दो-मुखी रुद्राक्ष की माला से मंत्र “ह्रीं ॐ नमः शिवाय ह्रीं” का नित्य 11 माला जाप करें।