रुद्राभिषेक अर्थात रूद्र का अभिषेक करना यानि कि शिवलिंग पर रुद्रमंत्रों के द्वारा अभिषेक करना । जैसा की वेदों में वर्णित है शिव और रुद्र परस्पर एक दूसरे के पर्यायवाची हैं। शिव को ही रुद्र कहा जाता है। क्योंकि- रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: यानि की भोले सभी दु:खों को नष्ट कर देते हैं। हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार हमारे द्वारा किए गए पाप ही हमारे दु:खों के कारण हैं। रुद्राभिषेक करना शिव आराधना का सर्वश्रेष्ठ तरीका माना गया है । रूद्र शिव जी का ही एक स्वरूप हैं । रुद्राभिषेक मंत्रों का वर्णन ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में भी किया गया है। शास्त्र और वेदों में वर्णित हैं की शिव जी का अभिषेक करना परम कल्याणकारी है।
रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारे पटक-से पातक कर्म भी जलकर भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है तथा भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है।
रूद्रहृदयोपनिषद में शिव के बारे में कहा गया है कि- सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका: अर्थात् सभी देवताओं की आत्मा में रूद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रूद्र की आत्मा हैं।
वैसे तो रुद्राभिषेक किसी भी दिन किया जा सकता है परन्तु त्रियोदशी तिथि,प्रदोष काल और सोमवार को इसको करना परम कल्याण कारी है | श्रावण मास में किसी भी दिन किया गया रुद्राभिषेक अद्भुत व् शीघ्र फल प्रदान करने वाला होता है |
वेदों और पुराणों में रुद्राभिषेक के बारे में तो बताया गया है कि रावण ने अपने दसों सिरों को काट कर उसके रक्त से शिवलिंग का अभिषेक किया था तथा सिरों को हवन की अग्नि को अर्पित कर दिया था। जिससे वो त्रिलोकजयी हो गया।
भष्मासुर ने शिव लिंग का अभिषेक अपनी आंखों के आंसुओ से किया तो वह भी भगवान के वरदान का पात्र बन गया।
रुद्राभिषेक करने की तिथियांकृष्णपक्ष की प्रतिपदा, चतुर्थी, पंचमी, अष्टमी, एकादशी, द्वादशी, अमावस्या, शुक्लपक्ष की द्वितीया, पंचमी, षष्ठी, नवमी, द्वादशी, त्रयोदशी तिथियों में अभिषेक करने से सुख-समृद्धि संतान प्राप्ति एवं ऐश्वर्य प्राप्त होता है।
कालसर्प योग, गृहकलेश, व्यापार में नुकसान, शिक्षा में रुकावट सभी कार्यो की बाधाओं को दूर करने के लिए रुद्राभिषेक आपके अभीष्ट सिद्धि के लिए फलदायक है।
किसी कामना से किए जाने वाले रुद्राभिषेक में शिव-वास का विचार करने पर अनुष्ठान अवश्य सफल होता है और मनोवांछित फल प्राप्त होता है।
प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा, अष्टमी, अमावस्या तथा शुक्लपक्ष की द्वितीया व नवमी के दिन भगवान शिव माता गौरी के साथ होते हैं, इस तिथिमें रुद्राभिषेक करने से सुख-समृद्धि उपलब्ध होती है।
कृष्णपक्ष की चतुर्थी, एकादशी तथा शुक्लपक्ष की पंचमी व द्वादशी तिथियों में भगवान शंकर कैलाश पर्वत पर होते हैं और उनकी अनुकंपा से परिवार मेंआनंद-मंगल होता है।
कृष्णपक्ष की पंचमी, द्वादशी तथा शुक्लपक्ष की षष्ठी व त्रयोदशी तिथियों में महादेव नंदी पर सवार होकर संपूर्ण विश्व में भ्रमण करते है।
अत: इन तिथियों में रुद्राभिषेक करने पर अभीष्ट सिद्ध होता है।
वैसे तो रुद्राभिषेक साधारण रूप से जल से ही होता है। परन्तु विशेष अवसर पर या सोमवार, प्रदोष और शिवरात्रि आदि पर्व के दिनों मंत्र गोदुग्ध या अन्य दूध मिला कर अथवा केवल दूध से भी अभिषेक किया जाता है। विशेष पूजा में दूध, दही, घृत, शहद और चीनी से अलग।-अलग अथवा सब को मिला कर पंचामृत से भी अभिषेक किया जाता है। तंत्रों में रोग निवारण हेतु अन्य विभिन्न वस्तुओं से भी अभिषेक करने का विधान है।
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वैदिक शिव पूजन :-
भगवान शंकर की पूजा के समय शुद्ध आसन पर बैठकर पहले आचमन करें। यज्ञोपवित धारण कर शरीर शुद्ध करें। तत्पश्चात आसन की शुद्धि करें। पूजन-सामग्री को यथास्थान रखकर रक्षादीप प्रज्ज्वलित कर लें।
अब स्वस्ति-पाठ करें।
स्वस्ति-पाठ :-
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा:, स्वस्ति ना पूषा विश्ववेदा:, स्वस्ति न स्तारक्ष्यो अरिष्टनेमि स्वस्ति नो बृहस्पति र्दधातु।
इसके बाद पूजन का संकल्प कर भगवान गणेश एवं गौरी-माता पार्वती का स्मरण कर पूजन करना चाहिए।
यदि आप रूद्राभिषेक, लघुरूद्र, महारूद्र आदि विशेष अनुष्ठान कर रहे हैं, तब नवग्रह, कलश, षोडश-मात्रका का भी पूजन करना चाहिए।संकल्प करते हुए भगवान गणेश व माता पार्वती का पूजन करें फिर नन्दीश्वर, वीरभद्र, कार्तिकेय (स्त्रियां कार्तिकेय का पूजन नहीं करें) एवं सर्प का संक्षिप्त पूजन करना चाहिए। इसके पश्चात हाथ में बिल्वपत्र एवं अक्षत लेकर भगवान शिव का ध्यान करें।भगवान शिव का ध्यान करने के बाद आसन, आचमन, स्नान, दही-स्नान, घी-स्नान, शहद-स्नान व शक्कर-स्नान कराएं।इसके बाद भगवान का एक साथ पंचामृत स्नान कराएं। फिर सुगंध-स्नान कराएं फिर शुद्ध स्नान कराएं।अब भगवान शिव को वस्त्र चढ़ाएं। वस्त्र के बाद जनेऊ चढाएं। फिर सुगंध, इत्र, अक्षत, पुष्पमाला, बिल्वपत्र चढाएं।अब भगवान शिव को विविध प्रकार के फल चढ़ाएं। इसके पश्चात धूप-दीप !!
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आइये रुद्राभिषेक से जुड़े कुछ अहम बातो को जाने—
रुद्राभिषेक क्या है ?
अभिषेक शब्द का शाब्दिक अर्थ है – स्नान (Bath) करना अथवा कराना। रुद्राभिषेक का अर्थ है भगवान रुद्र का अभिषेक अर्थात शिवलिंग पर रुद्र के मंत्रों के द्वारा अभिषेक करना। यह पवित्र-स्नान रुद्ररूप शिव को कराया जाता है। वर्तमान समय में अभिषेक Rudrabhishek के रुप में ही विश्रुत है। अभिषेक के कई रूप तथा प्रकार होते हैं। शिव जी को प्रसंन्न करने का सबसे श्रेष्ठ तरीका है Rudrabhishek करना अथवा श्रेष्ठ ब्राह्मण विद्वानों के द्वारा कराना। वैसे भी अपनी जटा में गंगा को धारण करने से भगवान शिव को जलधाराप्रिय माना गया है।
रुद्राभिषेक क्यों किया जाता हैं?
रुद्राष्टाध्यायी के अनुसार शिव ही रूद्र हैं और रुद्र ही शिव है। रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: अर्थात रूद्र रूप में प्रतिष्ठित शिव हमारे सभी दु:खों को शीघ्र ही समाप्त कर देते हैं। वस्तुतः जो दुःख हम भोगते है उसका कारण हम सब स्वयं ही है हमारे द्वारा जाने अनजाने में किये गए प्रकृति विरुद्ध आचरण के परिणाम स्वरूप ही हम दुःख भोगते हैं।
रुद्राभिषेक का आरम्भ कैसे हुआ ?
प्रचलित कथा के अनुसार भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न कमल से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई। ब्रह्माजी जबअपने जन्म का कारण जानने के लिए भगवान विष्णु के पास पहुंचे तो उन्होंने ब्रह्मा की उत्पत्ति का रहस्य बताया और यह भी कहा कि मेरे कारण ही आपकी उत्पत्ति हुई है। परन्तु ब्रह्माजी यह मानने के लिए तैयार नहीं हुए और दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध से नाराज भगवान रुद्र लिंग रूप में प्रकट हुए। इस लिंग का आदि अन्त जब ब्रह्मा और विष्णु को कहीं पता नहीं चला तो हार मान लिया और लिंग का अभिषेक किया, जिससे भगवान प्रसन्न हुए। कहा जाता है कि यहीं से रुद्राभिषेक का आरम्भ हुआ।
एक अन्य कथा के अनुसार ––
एक बार भगवान शिव सपरिवार वृषभ पर बैठकर विहार कर रहे थे। उसी समय माता पार्वती ने मर्त्यलोक में रुद्राभिषेक कर्म में प्रवृत्त लोगो को देखा तो भगवान शिव से जिज्ञासा कि की हे नाथ मर्त्यलोक में इस इस तरह आपकी पूजा क्यों की जाती है? तथा इसका फल क्या है? भगवान शिव ने कहा – हे प्रिये! जो मनुष्य शीघ्र ही अपनी कामना पूर्ण करना चाहता है वह आशुतोषस्वरूप मेरा विविध द्रव्यों से विविध फल की प्राप्ति हेतु अभिषेक करता है। जो मनुष्य शुक्लयजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी से अभिषेक करता है उसे मैं प्रसन्न होकर शीघ्र मनोवांछित फल प्रदान करता हूँ। जो व्यक्ति जिस कामना की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक करता है वह उसी प्रकार के द्रव्यों का प्रयोग करता है अर्थात यदि कोई वाहन प्राप्त करने की इच्छा से रुद्राभिषेक करता है तो उसे दही से अभिषेक करना चाहिए यदि कोई रोग दुःख से छुटकारा पाना चाहता है तो उसे कुशा के जल से अभिषेक करना या कराना चाहिए।
रुद्राभिषेक की पूर्ण विधि —
इसमें में रुद्राष्टाध्यायी के एकादशिनि रुद्री के ग्यारह आवृति पाठ किया जाता है। इसे ही लघु रुद्र कहा जाता है। यह पंच्यामृत से की जाने वाली पूजा है। इस पूजा को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। प्रभावशाली मंत्रो और शास्त्रोक्त विधि से विद्वान ब्राह्मण द्वारा पूजा को संपन्न करवाया जाता है। इस पूजा से जीवन में आने वाले संकटो एवं नकारात्मक ऊर्जा से छुटकारा मिलता है।
रुद्राभिषेक से लाभ—-
शिव पुराण के अनुसार किस द्रव्य से अभिषेक करने से क्या फल मिलता है अर्थात आप जिस उद्देश्य की पूर्ति हेतु रुद्राभिषेक करा रहे है उसके लिए किस द्रव्य का इस्तेमाल करना चाहिए का उल्लेख शिव पुराण में किया गया है उसका सविस्तार विवरण प्रस्तुत कर रहा हू और आप से अनुरोध है की आप इसी के अनुरूप रुद्राभिषेक कराये तो आपको पूर्ण लाभ मिलेगा।
रुद्राभिषेक अनेक पदार्थों से किया जाता है और हर पदार्थ से किया गया रुद्राभिषेक अलग फल देने में सक्षम है जो की इस प्रकार से हैं ।
रुद्राभिषेक कैसे करे —
1) जल से अभिषेक
– हर तरह के दुखों से छुटकारा पाने के लिए भगवान शिव का जल से अभिषेक करें
– भगवान शिव के बाल स्वरूप का मानसिक ध्यान करें
– ताम्बे के पात्र में ‘शुद्ध जल’ भर कर पात्र पर कुमकुम का तिलक करें
– ॐ इन्द्राय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
– पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय” का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
– शिवलिंग पर जल की पतली धार बनाते हुए रुद्राभिषेक करें
– अभिषेक करेत हुए ॐ तं त्रिलोकीनाथाय स्वाहा मंत्र का जाप करें
– शिवलिंग को वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें
2) दूध से अभिषेक
– शिव को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद पाने के लिए दूध से अभिषेक करें
– भगवान शिव के ‘प्रकाशमय’ स्वरूप का मानसिक ध्यान करें
– ताम्बे के पात्र में ‘दूध’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें
– ॐ श्री कामधेनवे नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
– पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय’ का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
– शिवलिंग पर दूध की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें.
– अभिषेक करते हुए ॐ सकल लोकैक गुरुर्वै नम: मंत्र का जाप करें
– शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें
3) फलों का रस
– अखंड धन लाभ व हर तरह के कर्ज से मुक्ति के लिए भगवान शिव का फलों के रस से अभिषेक करें
– भगवान शिव के ‘नील कंठ’ स्वरूप का मानसिक ध्यान करें
– ताम्बे के पात्र में ‘गन्ने का रस’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें
– ॐ कुबेराय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
– पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
– शिवलिंग पर फलों का रस की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें
– अभिषेक करते हुए -ॐ ह्रुं नीलकंठाय स्वाहा मंत्र का जाप करें
– शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें
4) सरसों के तेल से अभिषेक
– ग्रहबाधा नाश हेतु भगवान शिव का सरसों के तेल से अभिषेक करें
– भगवान शिव के ‘प्रलयंकर’ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें
– ताम्बे के पात्र में ‘सरसों का तेल’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें
– ॐ भं भैरवाय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
– पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय” का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
– शिवलिंग पर सरसों के तेल की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें.
– अभिषेक करते हुए ॐ नाथ नाथाय नाथाय स्वाहा मंत्र का जाप करें
– शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें
5) चने की दाल
– किसी भी शुभ कार्य के आरंभ होने व कार्य में उन्नति के लिए भगवान शिव का चने की दाल से अभिषेक करें
– भगवान शिव के ‘समाधी स्थित’ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें
– ताम्बे के पात्र में ‘चने की दाल’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें
– ॐ यक्षनाथाय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
– पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
– शिवलिंग पर चने की दाल की धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें
– अभिषेक करेत हुए -ॐ शं शम्भवाय नम: मंत्र का जाप करें
– शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें
6) काले तिल से अभिषेक
– तंत्र बाधा नाश हेतु व बुरी नजर से बचाव के लिए काले तिल से अभिषेक करें
– भगवान शिव के ‘नीलवर्ण’ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें
– ताम्बे के पात्र में ‘काले तिल’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें
– ॐ हुं कालेश्वराय नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
– पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
– शिवलिंग पर काले तिल की धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें
– अभिषेक करते हुए -ॐ क्षौं ह्रौं हुं शिवाय नम: का जाप करें
– शिवलिंग को साफ जल से धो कर वस्त्र से अच्छी तरह से पौंछ कर साफ करें
7) शहद मिश्रित गंगा जल
– संतान प्राप्ति व पारिवारिक सुख-शांति हेतु शहद मिश्रित गंगा जल से अभिषेक करें
– भगवान शिव के ‘चंद्रमौलेश्वर’ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें
– ताम्बे के पात्र में ” शहद मिश्रित गंगा जल” भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें
– ॐ चन्द्रमसे नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
– पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय’ का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
– शिवलिंग पर शहद मिश्रित गंगा जल की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें
– अभिषेक करते हुए -ॐ वं चन्द्रमौलेश्वराय स्वाहा’ का जाप करें
– शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें
8) घी व शहद
– रोगों के नाश व लम्बी आयु के लिए घी व शहद से अभिषेक करें
– भगवान शिव के ‘त्रयम्बक’ स्वरुप का मानसिक ध्यान करें
– ताम्बे के पात्र में ‘घी व शहद’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें
– ॐ धन्वन्तरयै नम: का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
– पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय” का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
– शिवलिंग पर घी व शहद की पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें.
– अभिषेक करते हुए -ॐ ह्रौं जूं स: त्रयम्बकाय स्वाहा” का जाप करें
– शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें
9 ) कुमकुम केसर हल्दी
– आकर्षक व्यक्तित्व का प्राप्ति हेतु भगवान शिव का कुमकुम केसर हल्दी से अभिषेक करें
– भगवान शिव के ‘नीलकंठ’ स्वरूप का मानसिक ध्यान करें
– ताम्बे के पात्र में ‘कुमकुम केसर हल्दी और पंचामृत’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें – ‘ॐ उमायै नम:’ का जाप करते हुए पात्र पर मौली बाधें
– पंचाक्षरी मंत्र ‘ॐ नम: शिवाय’ का जाप करते हुए फूलों की कुछ पंखुडियां अर्पित करें
– पंचाक्षरी मंत्र पढ़ते हुए पात्र में फूलों की कुछ पंखुडियां दाल दें-‘ॐ नम: शिवाय’
– फिर शिवलिंग पर पतली धार बनाते हुए-रुद्राभिषेक करें.
– अभिषेक का मंत्र-ॐ ह्रौं ह्रौं ह्रौं नीलकंठाय स्वाहा’
– शिवलिंग पर स्वच्छ जल से भी अभिषेक करें..
ज्योर्तिलिंग-क्षेत्र एवं तीर्थस्थान में तथा शिवरात्रि-प्रदोष, श्रावण के सोमवार आदि पर्वो में शिव-वास का विचार किए बिना भी रुद्राभिषेक किया जा सकता है। वस्तुत: शिवलिंग का अभिषेक आशुतोष शिव को शीघ्र प्रसन्न करके साधक को उनका कृपापात्र बना देता है और उनकी सारी समस्याएं स्वत: समाप्त हो जाती हैं। अतः हम यह कह सकते हैं कि रुद्राभिषेक से मनुष्य के सारे पाप-ताप धुल जाते हैं। स्वयं श्रृष्टि कर्ता ब्रह्मा ने भी कहा है की जब हम अभिषेक करते है तो स्वयं महादेव साक्षात् उस अभिषेक को ग्रहण करते है। संसार में ऐसी कोई वस्तु, वैभव, सुख नही है जो हमें रुद्राभिषेक करने या करवाने से प्राप्त नहीं हो ।
हर हर महादेव…हर हर महादेव….हर हर महादेव….
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रुद्राभिषेक पूजा (रुद्राष्टाध्यायी)——————
नमस्ते अस्तु भगवन विश्वेश्वराय महादेवाय त्रयम्बकाय त्रिपुरान्तकाय त्रिकालाग्निकालाय कालाग्नीरुद्राय नीलकंठाय मृत्युमजयाय सर्वेश्वराय सदाशिवाय श्रीमन महादेवाय नमः
|| सदा रक्षतु शंकरः || सदा रक्षतु शंकरः || सदा रक्षतु शंकरः ||
रुद्राभिषेक इस पूजा में शिवलिंग की विधिवत पूजा की जाती है. शिव परिवार सहित शिवलिंग पर धरा से (दुग्ध धरा, जल धरा, घृत धरा, गन्ने के रस की धरा, दुग्ध मिश्रित जल सहारा इत्यादि से ) लगातार धारा से अभिषेक करते हुए रूद्र पाठ किया जाता है |
रूद्र पाठ की प्रचलित विधियाँ:
१) शुक्ल यजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी का पाठ( १ या ११ बार)
२) शुक्ल यजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी का पंचम और अष्टम अध्याय का पाठ
३) कृष्णा यजुर्वेदीय पाठ का “नमक” पाठ ११ बार. हर पाठ के बाद “चमक” पाठ के एक श्लोक का पाठ (एकादश रूद्र पाठ )
४) शिव सहस्रनाम पाठ
५) रूद्र सुक्त का पाठ
रुद्राभिषेक विशेष मुहुरतों में तथा तीरथ स्थान में करवाने से अत्यधिक शुभ फल देने वाला होता है, इस पूजन से राहु, शनि की दशा, अशुभ गोचर, नाडी दोष, सर्प दोष, मंगल दोष, कलत्र दोष, विष दोष, केमद्रुम दोष, विशेष पूजन विधि की सामर्थ्य न हो तो केवल रोज़ नियम से मंदिर में जा कर शिवलिंग की जल धरा से अभिषेक करिए.
जल में नवग्रह शांति के लिए कच दूद, गंगा जल, काले तिल, ध्रुवा आदि दाल लेना अच्छा रहता है
रूद्राभिषेक पूजन के लिए वेदी: चर्तुलिंगतोभद्र, मण्डल, षोडस मात्रिका मण्डल, शिव परिवार, नवग्रह मण्डल, वास्तु मण्डल, क्षेत्रपाल मण्डल, पंचांग मण्डल आदि इन मण्डलों पर देवताओं का ध्यान, आवाहन, पूजन करके जप यज्ञ अभिषेक सम्पन्न कराया जाता है।
रुद्राष्टाध्यायी के प्रथम अध्याय के ‘शिवसंकल्पमस्तु’ आदि मंत्रों से ‘गणेश’ का स्तवन किया गया है द्वितीय अध्याय पुरुषसूक्त में नारायण ‘विष्णु’ का स्तवन है तृतीय अध्याय में देवराज ‘इंद्र’ तथा चतुर्थ अध्याय में भगवान ‘सूर्य’ का स्तवन है। पंचम अध्याय स्वयं रूद्र रूप है तो छठे में सोम का स्तवन है इसी प्रकार सातवें अध्याय में ‘मरुत’ और आठवें अध्याय में ‘अग्नि’ का स्तवन किया गया है अन्य असंख्य देवी देवताओं के स्तवन भी इन्ही पाठमंत्रों में समाहित है। अतः रूद्र का अभिषेक करने से सभी देवों का भी अभिषेक करने का फल उसी क्षण मिल जाता है।
शिवार्चन व रुद्राभिषेक के लिए प्रत्येक माह की शुभ तिथियां इस प्रकार हैं- कृष्णपक्ष में 1, 4, 5, 6, 8, 11, 12, 13 व अमावस्या। शुक्लपक्ष में 2, 5, 6, 7, 9, 12, 13, 14 तिथियां शुभ हैं। शिव निवास का विचार सकाम अनुष्ठान में ही जरुरी है। निष्काम भाव से की जाने वाली अर्चना कभी भी हो सकती है। ज्योतिलिंग क्षेत्र एवं तीर्थस्थान में तथा शिवरात्रि, प्रदोष, सावन सोमवार आदि पर्वों में शिव वास का विचार किए बिना भी रुद्राभिषेक (जलाभिषेक) किया जा सकता है।
सुयोग्य ब्राह्मणों द्वारा रुद्राष्टाध्यायी का पाठ करवाएं और उसका श्रवण करें।
रुद्री के एक पाठ से बाल ग्रहों की शांति होती है। तीन पाठ से उपद्रव की शांति होती है। पांच पाठ से ग्रहों की, सात से भय की, नौ से सभी प्रकार की शांति और वाजपेय यज्ञ फल की प्राप्ति और ग्यारह से राजा का वशीकरण होता है और विविध विभूतियों की प्राप्ति होती है। इस प्रकार ग्यारह पाठ करने से एक रुद्र का पाठ होता है। तीन रुद्र पाठ से कामना की सिद्धि और शत्रुओं का नाश, पांच से शत्रु और स्त्री का वशीकरण, सात से सुख की प्राप्ति, नौ से पुत्र, पौत्र, धन-धान्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
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इसी प्रकार नौ रुद्रों से एक महारुद्र का फल प्राप्त होता है जिससे राजभय का नाश, शत्रु का उच्चाटन, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की सिद्धि, अकाल मृत्यु से रक्षा तथा आरोग्य, यश और श्री की प्राप्ति होती है। तीन महारुद्रों से असाध्य कार्य की सिद्धि, पांच महारुद्रों से राज्य कामना की सिद्धि, सात महारुद्रों से सप्तलोक की सिद्धि, नौ महारुद्रों के पाठ से पुनर्जन्म से निवृत्ति, ग्रह दोष की शांति, ज्वर, अतिसार तथा पित, वात व कफ जन्य रोगों से रक्षा, सभी प्रकार की सिद्धि तथा आरोग्य की प्राप्ति होती है।
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भगवान शंकर का श्रेष्ठ द्रव्यों से अभिषेक करने का फल जल अर्पित करने से वर्षा की प्राप्ति, कुशा का जल अर्पित करने से शांति, दही से पशु प्राप्ति, ईख रस से लक्ष्मी की प्राप्ति, मधु और घी से धन की प्राप्ति, दुग्ध से पुत्र प्राप्ति, जल की धारा से शांति, एक हजार मंत्रों के सहित घी की धारा से वंश की वृद्धि और केवल दूध की धारा अर्पित करने से प्रमेह रोग से मुक्ति और मनोकामना की पूर्ति होती है, शक्कर मिले हुए दूध अर्पित करने से बुद्धि का निर्मल होता है, सरसों या तिल के तेल से शत्रु का नाश होता है और रोग से मुक्ति मिलती है। शहद अर्पित करने से यक्ष्मा रोग से रक्षा होती है तथा पाप का क्षय होता है। पुत्रार्थी को भगवान सदाशिव का अभिषेक शक्कर मिश्रित जल से करना चाहिए। उपर्युक्त द्रव्यों से अभिषेक करने से शिवजी अत्यंत प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं। रुद्राभिषेक के बाद ग्यारह वर्तिकाएं प्रज्वलित कर आरती करनी चाहिए। इसी प्रकार भगवान शिव का भिन्न-भिन्न फूलों से पूजन करने से भिन्न-भिन्न फल प्राप्त होते हैं। कमलपत्र, बेलपत्र, शतपत्र और शंखपुष्प द्वारा पूजन करने से धन-धान्य की प्राप्ति होती है। आक के पुष्प चढ़ाने से मान-सम्मान की वृद्धि होती है। जवा पुष्प से पूजन करने से शत्रु का नाश होता है। कनेर के फूल से पूजा करने से रोग से मुक्ति मिलती है तथा वस्त्र एवं संपति की प्राप्ति होती है। हर सिंगार के फूलों से पूजा करने से धन सम्पति बढ़ती है तथा भांग और धतूरे से ज्वर तथा विषभय से मुक्ति मिलती है। चंपा और केतकी के फूलों को छोड़कर शेष सभी फूलों से भगवान शिव की पूजा की जा सकती है। साबुत चावल चढ़ाने से धन बढ़ता है। गंगाजल अर्पित करने से मोक्ष प्राप्त होता है ।
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(1) रूपक या षडंग पाठ – रुद्राष्टाध्यायी में कुल दस अध्याय हैं किन्तु नाम अष्टाध्यायी ही क्योंकि इसके आठ अध्यायों में भगवन शिव की महिमा व कृपा शक्ति का वर्णन है ।
शेष दो अध्याय शांत्यधाय और स्वस्ति प्रार्थनाध्याय के नाम से जाना जाता है । रुद्राभिषेक करते हुए इन सम्पूर्ण 10 अध्यायों का पाठ रूपक या षडंग पाठ कहा जाता है ।
{प्रथम अंग शिव संकल्प सूक्त , द्वतीय अंग पुरुष सूक्त, तृतीय अंग उत्तर नारायण सूक्त , चतुर्थ अंग अप्रतिरथ इंद्र सूक्त , पंचम अंग सूर्य सूक्त , और रूद्र सूक्त सम्पूर्ण पांचवे अध्याय तक षष्ट अंग इस प्रकार षडंग पाठ बताया गया है ।}
(2) एकादशिनि रुद्री – षडंग पाठ में पांचवें और आठवें अध्याय के नमक चमक पाठ विधि यानि ग्यारह पुनरावृति पाठ को एकादशिनि रुद्री पाठ कहते हैं ।
(3) लघु रुद्र – एकादशिनि रुद्री के ग्यारह आवृति पाठ को लघु रूद्र कहते हैं ।
(4) महारुद्र – लघु रूद्र की ग्यारह आवृत्ति पाठ को महा रूद्र कहा जाता है ।
(5) अतिरुद्र – महारुद्र की ग्यारह आवृति पाठ अतिरुद्र कहा जाता ।
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रुद्राष्टाध्यायी के मंत्रों के साथ भोले शंकर का जलाभिषेक करें। रुद्र पाठ को लघुरुद्र, महारुद्र व अतिरुद्र के रुप में करने का विधान है। पंचम अध्याय के एकादश आवर्तन (11 बार) और शेष अध्यायों के एक आवर्तन के साथ अभिषेक करने से एक ‘रुद्र’ या ‘रुद्री’ होती है। इसे एकादशिनी भी कहते हैं। एकादश रुद्री का पाठ करने से लघुरुद्र होता है और एकादश लघुरुद्र करने से महारुद एवं एकादश (ग्यारह) महारुद्र से अतिरुद्र का अनुष्ठान होता है ।
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by – Dayanand Shastri