गंगा दशहरा

गंगा दशहरा इस वर्ष 2017 में मनेगा सर्वार्थ और अमृत सिद्धि योग में —

प्रिय पाठकों/मित्रों, गंगा दशहरा हिन्दू धर्म का एक प्रमुख पर्व है |ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी को मां गंगा का स्वर्ग से धरती मॆ अवतरण हुआ था इस दिन को गंगा दशहरा कहा जाता है इस दिन गंगा या किसी भी नदी मॆ स्नान कर मां गंगा स्त्रोत का पाठ करने से दस तरह के दोषों का नाश होता है इस वर्ष गंगा दशहरा 4 जून 2017 को है | गंगा दशहरा 4 जून 2017 को सर्वार्थ सिद्धि व अमृत सिद्धि योग के साथ मनाया जाएगा। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार तीन जून को सुबह 6.52 बजे से दशमी लग जाएगी जो 4 जून को सुबह 8.02 मिनट तक रहेगी।

जब गंगाजी का धरती पर अवतरण हुआ था उस समय ये दस प्रकार के योग बने थे-
‘ज्येष्ठ मासे सिते पक्षे दशम्यां बुध हस्तयो: व्यतीपाते गरा नन्दे कन्या चन्द्रे वृषे रवौ।
हरते दश पापानि तस्माद्दशहरा स्मृता।।’

अर्थात् ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, दशमी तिथि, बुधवार, हस्त नक्षत्र, व्यतीपात योग, गर और आनन्द योग, कन्या राशि में चंद्रमा तथा वृष राशि में सूर्य – इन दस योगों से युक्त समय में अवतीर्ण हुई गंगा का स्नान दस पापों का हरण करता है।

जानिए गंगा दशहरा के दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व क्यों हैं–
गंगाजी हिमालय से हस्त नक्षत्र, ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष दशमी तिथि को अवतरित हुई थी। इस दिन पवित्र तीर्थ पर गंगा में स्नान कर दस प्रकार की वस्तुओं का दान करना चाहिए। खरबूजा, सत्तू, शर्बत, फूल, दीपक, पान के पत्ते, इत्र, पंखा हाथ का, जौ और तिल का दान सोलह मुट्ठी का दान, जरूरतमंदों को भोजन कराना आदि।

माना जाता है की इसी दिन गायत्री मंत्र का प्रकटीकरण भी हुआ था। इस पर्व के लिए गंगा मंदिरों सहित अन्य मंदिरों पर भी विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।मान्‍यता है कि मां गंगा में डुबकी लगाने से सभी पाप धुल जाते हैं और मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। वैसे तो गंगा स्नान का अपना अलग ही महत्व है लेकिन गंगा दशहरा के दिन गंगा स्नान करने से मनुष्य सभी दुखों से मुक्ति पा जाता है।स्कंदपुराण के अनुसार गंगा दशहरा के दिन व्यक्ति को किसी भी पवित्र नदी पर जाकर स्नान, ध्यान तथा दान करना चाहिए। इससे वह अपने सभी पापों से मुक्ति पाता है। यह दिन सबसे पुण्यकारी व फलदायी है। मंदिरों में गंगा दशहरा पर पूजन के साथ ही भगवान शिव का अभिषेक कर प्रसाद का वितरण किया जाता है।

इस दिन गंगा में खड़े होकर जो गंगा स्तोत्र पढ़ता है वह अपने सभी पापों से मुक्ति पाता है। स्कंद पुराण में दशहरा नाम का गंगा स्तोत्र दिया हुआ है। इस दिन दान-पुण्य करने का अधिक महत्व है। इस दिन 10 वस्तु का दान करना चाहिए। दस अंक का आज अधिक महत्व होता है। इससे अधिक फल की प्राप्ति होती है। इस दिन पूजा-पाठ और स्नान करने से आपके सभी पापों का नाश हो जाता है।

माँ गंगा जी का ध्यान इस प्रकार है-
सितमकरनिषण्णां शुक्लवर्णां त्रिनेत्राम्क रधृतकमलोद्यत्सूत्पलाऽभीत्यभीष्टाम् ।
विधिहरिहररूपां सेन्दुकोटीरचूडाम्क लितसितदुकूलां जाह्नवीं तां नमामि ॥

अर्थात् श्वेत मकर पर विराजित, शुभ्र वर्ण वाली, तीन नेत्रों वाली, दो हाथों में भरे हुए कलश तथा दो हाथों में सुंदर कमल धारण किए हुए,
भक्तों के लिए परम इष्ट, ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश तीनों का रूप अर्थात् तीनों के कार्य करने वाली, मस्तक पर सुशोभित चंद्रजटित मुकुट वाली तथा सुंदर श्वेत वस्त्रों से विभूषित माँ गंगा को मैं प्रणाम करता हूँ।

कर धृतकमलोद्यत्सूत्पलाऽभीत्यभीष्टा गंगा देव्यै नमो नमो नमः।
अर्थात् हाथ में सुंदर कमल धारण किए हुए, भक्तों के लिए परम इष्ट गंगा देवीजी को नमस्कार है, नमस्कार है।

ऐसे करे गंगा दशहरा व्रत और इस तरह करें पूजन —
गंगा दशहरा का व्रत भगवान विष्णु को खुश करने के लिए किया जाता है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है. इस दिन लोग व्रत करके पानी भी (जल का त्याग करके) छोड़कर इस व्रत को करते हैं. ग्यारस (एकादशी) की कथा सुनते हैं और अगले दिन लोग दान-पुण्य करते हैं. इस दिन जल का घट दान करके फिर जल पीकर अपना व्रत पूर्ण करते हैं. इस दिन दान में केला, नारियल, अनार, सुपारी, खरबूजा, आम, जल भरी सुराई, हाथ का पंखा आदि चीजें भक्त दान करते हैं |
गंगा दशहरा के दिन चूरमा का भोग लगाना चाहिए | घर पर सवा सेर प्रसाद के रूप में चूरमा बना लें औए भोग लगाने के बाद परिवार के सभी सदस्यों को खाने के लिए दें |

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जानिए क्यों और कैसे हुआ मां गंगा का अवतरण—

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि गंगा जी को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने के लिए अंशुमान के पुत्र दिलीप व दिलीप के पुत्र भागीरथ ने बड़ी तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर माता गंगा ने उन्हें दर्शन दिया और कहा ‘‘मैं तुम्हें वर देने आई हूं।’’

राजा भागीरथ ने बड़ी नम्रता से कहा, ‘‘आप मृत्युलोक में चलिए।’’

गंगा ने कहा ‘‘जिस समय मैं पृथ्वी तल पर अवतरण करूं, उस समय मेरे वेग को कोई रोकने वाला होना चाहिए। ऐसा न होने पर पृथ्वी को फोड़कर रसातल में चली जाऊंगी।’’

भागीरथ ने एक अंगूठे के बल खड़ा होकर भगवान शिव की आराधना की। उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने गंगा की धारा को अपने कमंडल से छोड़ा और भगवान शिव ने प्रसन्न होकर गंगा की धारा को अपनी जटाओं में समेट कर जटाएं बांध लीं। गंगा जी को शिव की जटाओं से बाहर निकलने का पथ नहीं मिल सका जबकि उन्हें अहंकार था कि वे शिव की जटाओं से कुछ ही क्षणों में निकलकर पृथ्वी पर पहुंच जाएंगी।

पुराणों में उल्लेख मिलता है कि शंकर जी की जटाओं में गंगा कई वर्षों तक भ्रमण करती रहीं लेकिन निकलने का कहीं मार्ग ही न मिला। अब महाराज भागीरथ को और भी अधिक चिंता हुई। उन्होंने एक बार फिर भगवान शिव के प्रसन्नतार्थ घोर तप शुरू किया। अनुनय-विनय करने पर शिव ने प्रसन्न होकर गंगा की धारा को मुक्त करने का वरदान दिया। इस प्रकार शिव जी की जटाओं से छूटकर गंगा जी हिमालय में ब्रह्माजी के द्वारा निर्मित ‘बिंदुसर सरोवर’ में गिरीं, उसी समय इनकी सात धाराएं हो गईं। आगे-आगे भागीरथ दिव्य रथ पर चल रहे थे, पीछे-पीछे सातवीं धारा गंगा की चल रही थी। पृथ्वी पर गंगा जी के आते ही हाहाकार मच गया। जिस रास्ते से गंगा जी जा रही थीं, उसी मार्ग में ऋषिराज जहु का आश्रम तथा तपस्या स्थल पड़ता था। तपस्या में विघ्न समझकर वे गंगा जी को पी गए। फिर देवताओं के प्रार्थना करने पर उन्हें पुन: जांघ से निकाल दिया। तभी से ये जाह्नवी कहलाईं।

इस प्रकार अनेक स्थलों का तरन-तारन करती हुई जाह्ववी ने कपिल मुनि के आश्रम में पहुंचकर सगर के साठ हजार पुत्रों के भस्मावशेष को तारकर उन्हें मुक्त किया। उसी समय ब्रह्माजी ने प्रकट होकर भागीरथ के कठिन तप तथा सगर के साठ हजार पुत्रों के अमर होने का वर दिया। साथ ही यह भी कहा तुम्हारे ही नाम पर गंगा जी का नाम भागीरथी होगा। अब तुम अयोध्या में जाकर राज-काज संभालो। ऐसा कहकर ब्रह्मा जी अंतर्ध्यान हो गए। इस प्रकार भागीरथ पृथ्वी पर गंगावतरण करके बड़े भाग्यशाली हुए।

भगीरथ की तपस्या से गंगा जी का अवतरण धरती मॆ हुआ जिससे उनके पुरखों को मोक्ष हुआ साथ ही म्रत्युलोक वासियों को गंगा जी का सानिध्य प्राप्त हुआ |

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उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि गंगा दशहरा के दिन ब्रह्म मुहूर्त में सूर्योदय के समय गंगा स्नान विशेष फलदायी रहेगा। अगर किसी वजह से गंगा में स्नान संभव नहीं हो तो आसपास की नदी व सरोवर में गंगाजल युक्त जल से स्नान करें। इस बार अाठ योगों की प्रधानता के साथ गंगादशहरा का पूजन किया जाएगा। ज्योतिषाचार्य दयानन्द शास्त्री ने बताया, दशहरा जितना बलवान होगा देश के लोगों को उतना ही लाभ होगा। गंगा स्नान करने से 3 कायिक, 4 वाचिक और 3 मानसिक पाप नष्ट होते हैं।

जानिए इस दिन गंगा पूजन कैसे करे–

इस दिन गंगा या किसी पवित्र नदी या फ़िर घर मॆ स्नान के जल मॆ गंगा या पवित्र जल मिलाकर इस मंत्र का पाठ करना चाहिये ||
“ॐ नमः शिवाये नारायनये दशहराये गंगाये नमः” का जाप दस बार करना चाहिए इसके पश्चात हाथ मॆ पुष्प लेकर इस स्त्रौत का पाठ करना चाहिये |
“ॐ नमो भगवते ऐइम ह्री श्री हिली हिली मिली मिली गंगे मां पावय पावय स्वाहा” इस मंत्र का पांच बार उच्चरण कर पुष्प जल को अर्पण करना चाहिये साथ ही अपने पितरों की तृप्ति के लिये प्रार्थना करना चाहिये.स्नान के समय दस दीपों का दान करना चाहिये ||
उपर्युक्त मंत्र का उच्चारण करते हुए गंगा पूजा की सामग्री अर्पित करें और धुप तथा दिया जलाएं |
गंगा जी को धरती पर लाने वाले भागीरथी का नाम और गंगा के उत्पत्ति स्थल का भी स्मरण करें |
नदी मॆ दस डुबकी लगाना चाहिये.जौ और तिल सोलह मुट्ठी लेकर तर्पण कार्य करना चाहिये ||
इस दिन किया गय़ा कार्य पितरों को मोक्ष तथा वंशवृद्धि के लिये अति उत्तम होता है.||
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गंगा दशहरा स्तोत्र —

॥ गंगा दशहरा स्तोत्रम् ॥
ॐ नमः शिवायै गङ्गायै शिवदायै नमो नमः।
नमस्ते विष्णुरुपिण्यै, ब्रह्ममूर्त्यै नमोऽस्तु ते॥
नमस्ते रुद्ररुपिण्यै शाङ्कर्यै ते नमो नमः।
सर्वदेवस्वरुपिण्यै नमो भेषजमूर्त्तये॥
सर्वस्य सर्वव्याधीनां, भिषक्श्रेष्ठ्यै नमोऽस्तु ते।
स्थास्नु जङ्गम सम्भूत विषहन्त्र्यै नमोऽस्तु ते॥
संसारविषनाशिन्यै,जीवनायै नमोऽस्तु ते।
तापत्रितयसंहन्त्र्यै,प्राणेश्यै ते नमो नमः॥
शांतिसन्तानकारिण्यै नमस्ते शुद्धमूर्त्तये।
सर्वसंशुद्धिकारिण्यै नमः पापारिमूर्त्तये॥
भुक्तिमुक्तिप्रदायिन्यै भद्रदायै नमो नमः।
भोगोपभोगदायिन्यै भोगवत्यै नमोऽस्तु ते॥
मन्दाकिन्यै नमस्तेऽस्तु स्वर्गदायै नमो नमः।
नमस्त्रैलोक्यभूषायै त्रिपथायै नमो नमः॥
नमस्त्रिशुक्लसंस्थायै क्षमावत्यै नमो नमः।
त्रिहुताशनसंस्थायै तेजोवत्यै नमो नमः॥
नन्दायै लिंगधारिण्यै सुधाधारात्मने नमः।
नमस्ते विश्वमुख्यायै रेवत्यै ते नमो नमः॥
बृहत्यै ते नमस्तेऽस्तु लोकधात्र्यै नमोऽस्तु ते।
नमस्ते विश्वमित्रायै नन्दिन्यै ते नमो नमः॥
पृथ्व्यै शिवामृतायै च सुवृषायै नमो नमः।
परापरशताढ्यायै तारायै ते नमो नमः॥
पाशजालनिकृन्तिन्यै अभिन्नायै नमोऽस्तुते।
शान्तायै च वरिष्ठायै वरदायै नमो नमः॥
उग्रायै सुखजग्ध्यै च सञ्जीवन्यै नमोऽस्तु ते।
ब्रह्मिष्ठायै ब्रह्मदायै, दुरितघ्न्यै नमो नमः॥
प्रणतार्तिप्रभञ्जिन्यै जग्मात्रे नमोऽस्तु ते।
सर्वापत्प्रतिपक्षायै मङ्गलायै नमो नमः॥
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।
सर्वस्यार्ति हरे देवि! नारायणि ! नमोऽस्तु ते॥
निर्लेपायै दुर्गहन्त्र्यै दक्षायै ते नमो नमः।
परापरपरायै च गङ्गे निर्वाणदायिनि॥
गङ्गे ममाऽग्रतो भूया गङ्गे मे तिष्ठ पृष्ठतः।
गङ्गे मे पार्श्वयोरेधि गंङ्गे त्वय्यस्तु मे स्थितिः॥
आदौ त्वमन्ते मध्ये च सर्वं त्वं गाङ्गते शिवे!
त्वमेव मूलप्रकृतिस्त्वं पुमान् पर एव हि।
गङ्गे त्वं परमात्मा च शिवस्तुभ्यं नमः शिवे ||
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इस स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पढ़ना, सुनना मन, वाणी और शरीर द्वारा होने वाले पूर्वोक्त दस प्रकार के पापों से मुक्त कर देता है। यह स्तोत्र जिसके घर लिखकर रखा हुआ होता है उसे कभी अग्नि, चोर, सर्प आदि का भय नहीं रहता है।